Saturday, December 14, 2013

लोकतंत्र के नाम एक मजाक और सही

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लोकतंत्र के नाम एक मजाक और सही

लोकतंत्र के नाम पर एक मजाक और सहीदिल्ली में सरकार बनाने के नाम पर ‘पहले आप’, ‘पहले आप’ मचा हुआ है। जैसे सरकारी स्कूलों के ‘मिड के मील’ को स्कूल के अध्यापक खुद खाना नहीं चाहते वैसे ही हाल दिल्ली की सरकार के हो रखे हैं। कोई बनाना नहीं चाहता। चुनाव लड़ने में ही इत्ती मेहनत हो गयी कि अब सरकार बनाने की हिम्मत नहीं बची लोगों में।
आला अदालत ने लाल बत्ती पर प्रतिबंध की बात कहकर माननीयों की सरकार बनाने की इच्छा को कम किया है। जब लाल बत्ती ही नहीं मिलनी तो काहे को सरकार बनाने के लिये हुड़कना? लगता है सुप्रीम कोर्ट ‘आप’ पार्टी वालों को बाहर से बिना शर्त समर्थन दे रही है। बिना सरकार बने ही उनका एक एजेंडा लागू कर दिया।
सरकार बनाने के लिये बहुमत का लफ़ड़ा होता है। एक बार बहुमत साबित हो जाये फ़िर धकापेल चलाये जाओ सरकार। लेकिन यहां बहुमत ही नदारद है। बहुमत बिना सरकारिया कईसे बनी?
सरकार बनाने के लिये ‘आप’ ने जो शर्तें रखी हैं उनका अगर हिन्दी अनुवाद किया तो मतलब निकलेगा- हमको सरकार बनाने के लिये ज्यादा मत उकसाओ। बाकी तुम समर्थन दोगे तो हम सरकार तो बना लेंगे लेकिन सरकार बनाते ही सबसे पहले तुम्हारी ही ऐसी-तैसी करेंगे। ये समर्थन बहुत मंहगा पड़ेगा ठाकुर। सोच लो।
ठाकुर लोग घबरा कर अपना समर्थन वापस जेब में धरकर निकल लेंगे। कहते हुये -अरे भाई हम तो ऐसे ही मजाक कर रहे थे आपसे। हमारी क्या औकात जो आपको समर्थन दें।
प्रख्यात समाजवादी चिंतक स्व. किशन पटनायक का एक लेख है- विकल्पहीन नहीं है दुनिया। इसमें बताया गया है कि हर हाल में दुनिया में हमेशा में कोई न कोई विकल्प मौजूद रह हैं। जब दुनिया में मौजूद रहते हैं तो दिल्ली में काहे न होंगे। दिल्ली भी तो दुनिया के ही भीतर है। उसई के हिसाब से दिल्ली में सरकार बनाने के भतेरे विकल्प मौजूद हैं। कुछ तो यहां देखिये।
  1. जब किसी पार्टी को बहुमत न मिला तो माना जाये कि जनता ने सबको चुना है। सबको बराबर माना जाये।
  2. मंत्रिमंडल के लोगों का चुनाव पर्ची डाल के किया जाये। जित्ते लोगों को मंत्री बनना है उतनी पर्चियां पर मंत्रालय के नाम लिखकर विधायकों से निकलवाये जायें। जिस विधायक के नाम जिस मंत्रालय की पर्ची आ जाये वह उस मंत्रालय का मंत्री बन जाये।
  3. मुख्यमंत्री का चुनाव भी इसई तरह से किया जाये। जैसे ही कोई मुख्यमंत्री बन जाये वह सारी व्यवस्था अपने हाथ में संभाल लेगा और अपनी देखरेख में पर्ची निकलवाने का काम करेगा।
  4. नेता विरोधी दल और स्पीकर आदि के चुनाव में भी पर्ची पद्धति का उपयोग किया जायेगा।
  5. नेता विरोधी दल और मुख्यमंत्री अगर एक ही दल के होने की स्थिति में यदि दोनों में से कोई अपने ‘पर्ची आवंटित पद’ को न स्वीकार करना चाहे तो वह ऐसा कर सकता है। लेकिन उसका यह कृत्य जनता द्वारा सौंपी जिम्मेदारी से भागने की तरह माना जायेगा। फ़िर अगले एक पर्ची आवंटन में उसको किसी भी ‘पर्ची पद’ के अयोग्य माना जायेगा।
  6. एक बार की पर्ची से बना हुआ मंत्रिमंडल एक निश्चित अवधि तक काम कर सकेगा। यह अवधि सभी विधायक आपस में वोटिंग से तय कर सकते हैं। विधायकों की आपसी सहमति न होने पर मंत्रिमंडल की अवधि का निर्णय भी पर्ची निकाल कर किया जा सकता है। किसी भी हालत में यह अवधि एक दिन से कम और छह माह से अधिक नहीं हो सकती है।
  7. मंत्रिमंडल को जनता की भलाई के लिये सभी कानून बनाने का अधिकार होगा। कानून के बनाने का निर्णय लेने में एक घंटे से की अधिक की देरी होने पर उस कानून पर पर फ़ैसला सामूहिक मतदान के बाद ही लिया जायेगा।
  8. इस मंत्रिमंडल की कार्यवाहियों से जनता का कितना भला हुआ यह निर्णय भी पर्ची डालकर ही किया जायेगा। यदि किसी ने इसके खिलाफ़ मत व्यक्त किया तो उसके खिलाफ़ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जायेगी। कार्यवाही के अनुसार सजा देने न देने का फ़ैसला भी पर्ची निकाल कर ही किया जायेगा।
  9. मंत्रिमंडल के हर निर्णय के अंत में लिखा जायेगा – देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिये यह निर्णय लेना अपरिहार्य है।
  10. मंत्रिमंडल का हर सदस्य कहीं भी भाषण देगा तो हमेशा अपने भाषण का समापन ‘वन्दे मातरम’ और ‘भारत माता की जय’ से करेगा ।
  11. ऊपर वाले विकल्प में नारा कितनी जोर से नारा लगाना है इसका निर्णय भी ‘तत्कालीन पर्ची मंत्रिमंडल’ करेगा।
अपने एक मित्र जब मैं सरकार बनाने के यह विकल्प बता रहा तो उन्होंने हमारी खिल्ली उड़ाते हुये कहा- ये क्या बचकाना मजाक कर रहे हो तुम सरकार बनाने के विकल्प सुझाने के नाम पर?
हम कुछ बोल नहीं पाये लेकिन कहना यही चाहते थे – लोकतंत्र के नाम पर सब लोग ही तो मजाक कर रहे हैं। एक हमारी तरफ़ से भी सभी।

8 responses to “लोकतंत्र के नाम एक मजाक और सही”

  1. संतोष त्रिवेदी
    हमें ही बुला लो भाई :-)
  2. समीर लाल "भूतपूर्व स्टार टिपिण्णीकार"
    लोकतंत्र के नाम पर सब लोग ही तो मजाक कर रहे हैं।
    सच कहा!!
    समीर लाल “भूतपूर्व स्टार टिपिण्णीकार” की हालिया प्रविष्टी..नारे और भाषण लिखवा लो- नारे और भाषण की दुकान
  3. प्रवीण पाण्डेय
    सही उपाय है, अब यही शेष हैं।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..लुटे जुटे से
  4. सोमेश सक्सेना
    अच्छा लिखा है. liked it.
  5. Swapna Manjusha
    किस किस को पकड़िए किस किस को छोड़िये
    पर्ची बड़ी चीज़ है. सबकी पर्ची से ही खोलिए
    वैसे आज तक संसार का इतना बड़ा प्रजातंत्र वोट की पर्ची पर ही चल रहा है, आगे आपने जो सुझाया है वो उस अदद पर्ची का डाइवर्सिफिकेशन ही तो है :)
    Swapna Manjusha की हालिया प्रविष्टी..नामालूम सी ज़िन्दगी की, तन्हाई पिए जाते हैं…..
  6. hindithoughts.com
    इतनी सारी पर्चिया :p
    hindithoughts.com की हालिया प्रविष्टी..Poem on Dreams in Hindi
  7. Swapna Manjusha
    भूल सुधार :
    किस किस को पकड़िए किस किस को छोड़िये
    पर्ची बड़ी चीज़ है. सबकी पर्ची ही खोलिए
    Swapna Manjusha की हालिया प्रविष्टी..नामालूम सी ज़िन्दगी की, तन्हाई पिए जाते हैं…..
  8. arvind mishra
    उदात्त विचार :-)
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..अथ चापलूसी महात्म्य

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