आज सबेरे घर से निकले तो घर के बाहर सड़क पर एक कुत्ता हमारी तरफ़ अपना पिछवाड़ा किये खड़ा दिखा। उसका खड़े होने अंदाज कुछ ऐसा था जैसे अंधेरे में सड़क किनारे निपटने को बैठी गठरियां किसी गाड़ी के गुजरने पर अपनी जगह खड़ी होकर गार्ड ऑफ़ आनर सरीखा देने लगती हैं (गठरियां और गार्ड ऑफ़ आनर वाला बिम्ब रागदरबारी से उडाया)। कुत्ते के अंडकोष किसी प्रभावशाली नेता से हमेशा सटकर चलने वाले चमचों से केवल इस मायने में अलग से लगे कि यहां उनको धकियाकर कोई खुद चमचा श्री बनने को उतारू नहीं था।
हमारे सामने से हमारे अखबार वाले मिसरा जी साइकिल पर जाते दिखे। क्या पता उन्होंने हमको दूर से आते देख लिया होगा शायद इसीलिये गरदन झुकाकर साइकिल चलाते हुये चले गये। नजरें मिलतीं तो नमस्कारी-नमस्कारा होता। आगे आर्मापुर इंटरकालेज के बाहर कुछ बच्चे गेट खुलने का इंतजार कर रहे थे। शायद बच्चे देरी से आये थे और अन्दर प्रार्थना शुरु हो गयी होगी। गेट खुलने के बाद बच्चे अंदर जायेंगे तब शायद कोई अध्यापक इनके नाम नोट करते हुये कुछ हल्की-फ़ुल्की सजा भी दे।
कालपी रोड पर आते ही सड़क एकदम रनिंग ट्रेक की तरह सफ़ाचट दिखी। हमने धक्काड़े से गाड़ी बढ़ा दी। विजय नगर चौराहे पर महाकवि भूषण की प्रतिमा खुले में खड़ी सवारियों को आते-जाते देखती होगी। सोचती होगी - "दायें देखूं या बायें देखूं, या फ़िर सामने ही गरदन किये रहूं । हर तरफ़ तो गाडियों की भीड है।
एक बच्ची धीरे-धीरे स्कूटी चलाती हुई चौराहा पार कर रही थी। उसकी पीठ पर उसका स्कूल बैग था। कोई गाड़ी होती तो हम उससे पहले पार करते लेकिन बच्ची को देखकर हमने अपनी गाड़ी हड़बड़ी से पार करने की इच्छा को ’नो’ कहा और बच्ची के चौराहा पार करने के बाद ही गाड़ी आगे बढाई।
आगे जरीब चौकी के पहले एक मजार के पास कुछ लोग चादर फ़ैलाये खड़े थे। सड़क के इस अतिक्रमण का जबाब देने के लिये सामने भी सड़क घेर कर एक मंदिर बना हआ था। आदमी लोग सड़क पर चल रहे थे, धर्म खड़ा हुआ था। जो उसके चक्कर में आ रहा था उनको भी ठहराये दे रहा था। धर्मस्थल बहुत बड़े स्पीड ब्रेकर हैं।
जरीब चौकी रेलवे क्रासिंग भी हमारे सम्मान में दोनों बैरियर फ़ैलाये खड़ी थी। हम शान से उसको पार करते हुये बढे। एक दिन जब क्रासिंग के पास से गुजर रहे थे तब ही क्रासिंग बन्द होने का समय हो गया। बैरियर नीचे होते देख हमने गाड़ी तेज भगाई, हार्न उससे भी तेज भगाया। हमारी तेजी देखकर गेटमैन ने बैरियर रोक दिया। हमने भी गाड़ी के अन्दर बैठे-बैठे सर झुकाकर बैरियर पार किया। क्रासिंग पार करके हमने रुककर संतोष, सुकून और इत्मिनान की सांस ली। अगर पीछे से गाड़ी हार्न नहीं बजाती तो तीन-चार और सांसे ले डालते। गाड़ियों के भभ्भड़ में आजकल सड़क खड़े होकर सांस लेना भी मुहाल हो गया है !
क्रासिंग के आगे एक रिक्शे में तीन बकरियां लदी जा रहीं थीं। बकरियां उसी तरह लदी-फ़ंदी थी रिक्शे पर जिस तरह बच्चों को स्कूल ले जाते हैं स्कूल रिक्शे वाले। बकरियों के पैर नीचे आपस में बंधे हुये थे। बकरियां आपस में ऐसे चहचहाते, मुस्कराते हुये हुये जा रही थीं मानों रिक्शेवाला उनको कहीं पिकनिक पर ले जा रहा हो।
पता चला कि रिक्शेवाला उनको बाकरगंज से किसी दुकान पर ले जा रहा है। एकाध दिन में बिक/कट जाने वाली बकरियां ऐसे चहकती हुई जा रही थीं जैसे किसी मल्टीनेशनल में नौकरी पाया कोई नौजवान उत्फ़ुल्ल मुद्रा में पहली बार जाता होगा वहां थोड़ा केयरलेस सा दीखता हुआ उससे ज्यादा सशंकित सा।
अनवरगंज स्टेशन के पास सड़क के बीच में पंकज जी बैठे मिले। देखते ही हाथ मिलाया और बोले-" जार्डन वाले घूम रहे हैं। सुरक्षा की चिन्ता है। कोहली के आदमी हैं सब। बुलेटप्रूफ़ जैकेट पहन के रहिये।" हमने पूछा -"चाय पी ली?" बोले -" अभी जा रहे हैं पीने।" हम नमस्ते करके आगे चल दिये।
टाटमिल चौराहे के आगे तीन पुलिस वाले सड़क पर खरामा-खरामा चहलकदमी करते हुये सड़क पार करते दिखते। पीछे तीन महिला पुलिसकर्मी वर्दी में आपस में खड़ी होकर वहीं बतिया रहीं थी। आगे बच्चियां सड़क पर कुछ-कुछ खेल रहीं थीं।
हम इस सब नजारे को निहारते हुये समय पर जमा हो गये फ़ैक्ट्री में आज सुबह !
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