Thursday, January 12, 2017

अनूप मणि त्रिपाठी से मुलाकात


"अनूप, तुम अगर लड़की होते तो स्वेटर बहुत बढ़िया बुनते। "
यह बात हमसे हिंदी व्यंग्य के बुजुर्गवार Anup Srivastava जी ने पिछले हफ्ते कही। अपनीं बात को विस्तार देते हुये अनूप जी ने मेरे लिखने की तारीफ़ करते हुए कहा --'तुम लिखते ऐसा हो जैसे लड़कियां स्वेटर बिनती हैं।'
अब जब लड़कियां तक सिलाई-बुनाई का सीखना बन्द कर चुकी हैं तब इस तरह तारीफ़ कित्ती दिलखुश करने वाली हो सकती है , समझा जा सकता है। अनूप जी से मिलना हमेशा मजेदार रहता है।
इस बार जब वे मिले तो पिछले दिनों की माथे की चोट से उबर चुके थे। लेकिन पसली की नई चोट से मुलाकात हो गयी थी। पिछले कुछ दिनों से अपने अनूप जी भी राणा सांगा हो रखे हैं। कोई न कोई चोट लगी ही रहती है। ये तो दिखने वाली चोटें हैं। दिल में कितनी छुपाये हैं , उसका उनको ही पता होगा। लेकिन वे चोटों की परवाह किये बिना अपने काम-काज, आयोजन, प्रयोजन में लगे रहते हैं। एक नौजवान को भी शर्माने वाली ऊर्जा के साथ।
अट्ठहास का नया अंक साथ में लेकर हम लोग गोपाल चतुर्वेदी जी से मिलने गए। आलोक पुराणिक द्वारा संपादित अट्टहास के जनवरी अंक की तारीफ हमारी दीदी Nirupma Ashokने भी की यह कहते हुए कि यह अंक बहुत बढ़िया है। यह सूचना Alok Puranik को इस सुझाव के साथ कि अगर वे चाहें तो व्यंग्य पत्रिका नियमित निकालकर व्यंग्य के सबसे तगड़े पहलवान के साथ सबसे बड़े खलीफा भी बन सकते हैं (जब कभी बन जाएंगे तब खलीफा की जगह माफिया पढ़ा जाएगा)
अनूप जी से मिलने के बाद एक और अनूप से मिलने का सुयोग बना। अनूप मने Anoop Mani Tripathi से इसके पहले दो बार की मुलाकात है। एक तब वलेस के पहले और अब तक के अंतिम भी कार्यक्रम में उनका व्यंग्यपाठ सुना था। दूसरा तब जब मेरी किताब 'बेवकूफी का सौंदर्य' का विमोचन हुआ था। विमोचन के समय से अनूप भाई जब भी बात होती है तब हमारे बच्चों को हीरो बताते हैं और हमारी घरैतिन की बड़ी तारीफ़ करते हैं। विमोचन के मौके पर जो भाषण दिया था और उसके बाद उनके व्यवहार से बहुत प्रभावित हुए वे।
हमारे साथ यही लफड़ा है कि हमारे घर वालों से जो भी मिलता है वो उनकी ही तारीफ़ करता है। हमारी कोई तारीफ़ नहीं करता। 
तो लखनऊ में जब हमने फोनियाया अनूपमणि को सूरज भाई अपना इंटरवल पूरा कर चुके थे। लेकिन जनाब व्यंग्यकार महोदय ' सूरज निकला, चिड़ियाँ बोली' वाली मुद्रा में थे। बोले बस अभी उठे हैं। हम बोले -'इत्ती जल्दी क्यों उठ गए? कौनौ हडबड़ी है क्या ?'
खैर अब क्या किया जाए। जब जग गए तो उठ भी गए।
जब बात हुई तो मिलना भी तय हुआ। मिलन स्थल रहा लखनऊ का बर्लिंगटन चौराहा। हम पहुंच गए। देखा वहां राणा प्रताप की मय घोड़े की मूर्ति। पीछे से खड़े होकर देख रहे थे तो ऐसा लगा मानो राणा प्रताप अपने घोड़े के सामने वाली सराय होटल मीरा इन में घुसने की कोशिश कर रहे हैं। होटल वाला शायद उनका भाला देखकर डर रहा है। लेकिन राणा प्रताप कह रहे होंगे -'जाएंगे तो भाले के साथ।' बिना भाले राणा प्रताप तो ऐसे ही लगेगें जैसे बिना पञ्च का व्यंग्य।
बहरहाल ज्यादा देर तक हमको राणा प्रताप को निहारना नहीं पड़ा। अनूप मणि आ गए। फटफटिया पर। हम लोग वहीँ पास की चाय की दुकान पर खड़े होकर चाय पीते हुए गपियाये। घटनास्थल पर ही उनके मोबाइल में हिंदी टाइपिंग टूल डाउनलोड किया गया और उनकी चहकन सुनी गयी -'वाह यह तो मजेदार है।'
जैसा कि आमतौर पर होता है कि लेखक लोग आपस में एक दूसरे की किसी न किसी बहाने तारीफ़ करते हैं। हमने भी अनूप के लेखन की थोड़ी तारीफ़ की।फिर ज्यादा समझ में नहीं आया तो यह सुझाव दे डाला-'अब भाई तुम व्यंग्य उपन्यास लिख डालो।'
इस पर उनका कहना था -"लिख तो डालें लेकिन डर लगता है कहीं कोई पकड़कर सम्मानित न कर दे। " हमने कहा -"लेखन में यह जोखिम तो हमेशा बना रहता है।लेकिन चिंता न करो इनाम के साथ बुराई करने वाले भी मिलते रहेंगे। संतुलन बना रहेगा।"
संयोग की बात अनूप का पहला व्यंग्य संग्रह ' शो रूम में जननायक' उनकी रचनाओं के पुरस्कृत होने पर अंजुमन प्रकाशन से छप रहा है। हमारे शायर -ए-आजम Venus Kesariयह पुण्य का काम कर रहे हैं। किताब तो हमने खरीद ली अब अंजुमन प्रकाशन की प्राइम मेंबरशिप लेनी बकाया है।
अनूप मणि को 14 जनवरी को ही हिंदी भवन में एक और इनाम मिलना है। अर्चना चतुर्वेदीके पिताजी की स्मृति में स्थापित यह पहला युवा पुरस्कार अनूप मणि को मिलेगा इसके हम भी गवाह बनेंगे।
हमने ज्यादा नहीं पढ़ा अनूप मणि को लेकिन जितना पढ़ा है उससे अगर हम वरिष्ठ लेखक और आशीर्वादी उम्र वाले होते तो कहते -'मैं अनूप में व्यंग्य की संभावनायें देखता हूँ।'
फिलहाल इतना ही। अब्बी तो पुस्तक मेला में मिलना है। आगे भी लिखा जाएगा। फ़िलहाल इतना ही। आप भी आइए मेले में न। मिलते हैं। 

No comments:

Post a Comment