[इंसान के व्यक्तित्व निर्माण में उसके बचपन का बड़ा हाथ होता है। आलोक पुराणिक के साथ भी अलग नहीं हुआ। कम उमर में पिता के न रहने पर बकौल आलोक पुराणिक ही
’ बचपन यूं कहें कि बहुत आरामदेह नहीं बीता, आठ साल की उम्र में पिता को खो देने के बाद एक झटके से मेच्योर्टी आ गयी है। एकदम से बहुत बड़ा हो गया। लोगों की बातों और कर्मों के फर्कों को बहुत जल्दी समझने लगा।’
आज के सवाल-जबाब की कड़ी में आलोक पुराणिक के बचपन से जुड़ी कई यादें जिनसे उनकी मानसिन बनावट के ताने-बाना का पता चलता है।]
सवाल 1: बचपन की कैसी यादें है आपके मन मे। क्या खास याद आता है बचपन का?
जवाब: बचपन आगरा का है, आगरा ब्रज क्षेत्र का का बहुत खास शहर है। जमुना किनारे वेदांत मंदिर के अहाते में घर था, उसी घर में पिताजी ने आखिरी सांसें ली थीं। बाद में अतिक्रमण अभियान में वह घर ढहा दिया गया, मंदिर बचा रह गया। बंदों की रिहाईश खत्म हो गयी, भगवान के घर की चिंता भरपूर रखी गयी। जमुना किनारे आगरा एत्माद्दौला मकबरे के इस पार घर था। व्यंग्य जो मेरे अंदर है, वह आगरा के संस्कार की वजह है। टेढ़ा देखना, आगरा के कुछ मुहल्ले हैं-भैंरो नाला, पथवारी, बेलनगंज( बेलनगंज लैनगऊशाला में तो आठ वर्ष की उम्र से 20 वर्ष की उम्र तक रहा) इन मुहल्लों में आम बातचीत में व्यंग्य रहता है। ब्रज की धरती एक तरह से व्यंग्य का संस्कार देती है। दिल्ली आने के दस साल बाद मुझे पता चला कि मेरे अंदर व्यंग्य भी है और वह आगरा की देन है। बचपन यूं कहें कि बहुत आरामदेह नहीं बीता, आठ साल की उम्र में पिता को खो देने के बाद एक झटके से मेच्योर्टी आ गयी है। एकदम से बहुत बड़ा हो गया। लोगों की बातों और कर्मों के फर्कों को बहुत जल्दी समझने लगा।
सवाल 2: पिता को बचपन में खो दिया आपने। उनसे जुड़ी यादें कैसी हैं आपके मन में।
जवाब: पिता बैंक में थे, मेरी मां को पिता की जगह नौकरी मिली बैंक में, पर बहुत देर से। आर्थिक संकट थे। मां मेरी बहुत जिद्दी, दबंग हैं। उन्होने अपने पिता से सहायता लेने की जगह उन्होने बुनाई की मशीन पर काम करना शुरु किया। स्वेटर बुनती थीं मां मशीन पर धड़ाधड़, कुछेक महीने में बहुत एक्सपर्ट हो गयीं। जिद्दी थीं किसी की नहीं सुनती थी। अब भी नहीं सुनतीं। मैं मोटे तौर पर अब भी मां के अलावा किसी से नहीं डरता। मां से बहुत डरता हूं, कभी भी शराब पीने की हिम्मत नहीं हुई, सिर्फ इसलिए कि मां ने पूछ लिया -ये क्या हो रहा है, तो क्या जवाब दूंगा। मेरे अंदर एक हद तक मां का यह गुण आ गया है कि बहुत जिद्दी हूं। संघर्ष की ज्यादा बात करना मुझे अश्लील जैसा लगता है, अबे जो किया अपने लिया किया, काहे बताना दूसरों को कि ये किया वो किया। संक्षेप में कक्षा ग्यारह से ट्यूशन पढ़ाना शुरु कर दिया और फिर जिंदगी की गाड़ी चल निकली। जो कुछ मिलना है अपनी क्षमताओं से, अपने संघर्ष से और अपने धैर्य से ही मिलना है-यह बात आठ-दस साल की उम्र में समझ में आ गयी थी। पिता मेरे अपने ढंग के अलग व्यक्ति थे। मेरी उम्र के आठ साल का साथ तक का साथ रहा, पर जो समझा यही पता लगा कि अलग रंग-ढंग था। सेना से रिटायर होकर बैंक ज्वाइन किया बैंक की नौकरी के साथ बांसुरी बजाते थे, वायलिन बजाते थे और उन्होने एक प्रयोग करके एक पानी का ईजाद किया था, जिसे लगाकर कई लोगों का एग्जीमा ठीक हो जाता था। बहुधंधी व्यक्ति थे, कुछ कुछ बेचैन आत्मा जैसे, पर रचनात्मकता के गहरे तत्व थे, विकट संवेदनशील थे। मां बताती हैं कि एक बार परिवार के साथ एक फिल्म देखने गये, मैं, बड़ी बहन मां साथ थीं। मैंने शायद रोना-धोना मचाया फिल्म में, उन्होने गुस्से में मुझे चांटा मारा, बाद में वह उस चांटे को लेकर इतने नाराज हो गये खुद से कि कभी भी फिल्म ना देखने का फैसला किया। और फिर कभी फिल्म देखी ही नहीं। अलग थे वह, खालिस बैंककर्मी नहीं थे।
सवाल 3: आप अपने स्वास्थ्य के प्रति काम भर के जागरुक रहे। फिर आपके वजन ने शतक के पास पहुंचने की जुर्रत कैसे की ?
जवाब: 2009 में एक विकट बीमारी से घिरा मैं, इतनी विकट कि उस दौर में मैंने अपने सामान्य होकर जीवित रहने की उम्मीद छोड़ दी थी। आलस्य, बीमारी का असर उस सबके चलते वजन बढ़ता चला गया।
सवाल 4: आपके साल भर में 25-30 किलो वजन कैसे कम किया?
जवाब: एक दिन फैसला कर लिया कि अब यह नहीं चलेगा। मेरे परिचय की एक बहुत काबिल डाइटिशियन हैं रुपाली कर्जगीर, उन्होने मुझे गाइड किया, योग और घूमना, वजन कम हो गया। मूल बात फैसले की होती है, एक बार फैसला कर लो, तो सब हो जाता है। खान-पान का ध्यान में अब लगातार रखता हूं। वजन कम करना आसान है, वजन को कम बनाये रखना बहुत मुश्किल काम है।
सवाल 5: आपके पिता के न रहने पर आपके जीवन में क्या बदलाव आए?
जवाब: बहुत अजीब सी बात कह रहा हूं कि पिताविहीन बच्चे ज्यादा तेजी से मेच्योर हो जाते हैं। मेच्योर्टी यह आ जाती है कि बेट्टे कोई बेकअप नहीं है। प्लान बी है ही नहीं। जहां कूदो सोच समझकर कूदो। बचानेवाला कोई नहीं है। एक छाता सा हट जाता है सिर पे। धूप, बारिश सीधे आ रही है आप तक, सीधी बारिश और धूप परेशान करती है, पर पर पर वही आपको दूसरों के मुकाबले मजबूत भी बना देती है। जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी है-यह भाव आते ही जिंदगी के फैसले लेने में गुणात्मक परिवर्तन आ जाता है। मैं मां औऱ बड़ी बहन, ये तीन मेंबर, घऱ में बचे, थोड़े बहुत इधर उधऱ के विचलनों के बाद मैं बहुत जिम्मेदार बालक हो गया। पैसे की वैल्यू और रिश्तेदारों का अर्थ, इंसानी दोगलापन, इंसानी टुच्चापन थोड़ा जल्दी समझ में आ गया।
सवाल 6: दिन में बहुत समय आप लेखन, गजियाबाद दिल्ली आवागमन और अध्यापन में गुजार देते हैं। परिवार के लिए समय बहुत कम मिलता होगा। हड़काये नहीं जाते ?
जवाब: मेरे घरवाले बहुत सहयोगी हैं, पर मैं आपको बता दूं- दोनों बेटियों को जहां जब मेरी जरुरत है, मैं हमेशा हूं। पत्नी और मां की शिकायतें छोटी मोटी तो हो सकती हैं, पर आम तौर पर मैं एक जिम्मेदार पति और बाप और बेटा हूं। टाइम मैनेजमेंट की बात है। हर चीज के लिए वक्त निकाला जा सकता है, अगर बेकार की चीजों में वक्त जाया ना किया जाये।
सवाल 7: घर के काम काज में भी कुछ हाथ बटा पाते हैं ?
जवाब-जी नहीं अभी घर के कामकाज में मेरा रोल कोई नहीं है। भविष्य में घर के कामकाज में अपने योगदान को लेकर कुछ य़ोजनाएं हैं।
No comments:
Post a Comment