[ आलोक पुराणिक का 50 वां साल पूरा होने के चंद घंटे पहले लिया गया इंटरव्यू। ]
सवाल 1: 2006 में आपके ड्रीम प्रोजेक्ट थे माइक्रो फ़ाइनेंसिंग और पदयात्रा। दोनों में अभी तक क्या प्रगति हुई?
जवाब: माइक्रोफाइनेंसिंग वाले प्रोजेक्ट की जगह नया ड्रीम आ गया वित्तीय साक्षरता को फैलाने का, पदयात्रा का ड्रीम भी है। कुछ नये ड्रीम भी जुड़ गये हैं, व्यंग्य, अध्यापन और वित्तीय साक्षरता, पत्रकारिता में फोटो का प्रयोग खूब करूं। अब फोकस हो रहा हूं ज्यादा। व्यंग्य विमर्श को लेकर कुछ परियोजनाएं हैं। कई लोगों के व्यंग्य पर लिखना है। योजना यह है कि तमाम व्यंग्यकारों के व्यंग्य के खास अंश निकालकर, पंच निकालकर पाठकों के सामने रखे जायें। कामर्स का अध्यापन रोचक कैसे बनाया जाये। आर्थिक पत्रकारिता के शिक्षण को समृद्ध कैसे किया जाये। स्टाक बाजार, मुचुअल फंड, सेनसेक्स, निफ्टी पर रोचक स्टडी मटिरियल कैसे तैयार किया जाये, इस पर कुछ काम करना है।
सवाल 2: रेशू वर्मा ने आपके बारे में लिखते हुये आपसे अपेक्षा की है कि आप वित्तीय साक्षरता के काम को ठोस ढंग से बढ़ायें इसेव्यवस्थित और व्यापक रुप दें। इस बारे में आपकी क्या योजनायें हैं।
जवाब: रेशूजी के साथ कई लोग मानते हैं कि मुचुअल फंड, स्टाक बाजार से जुड़े आपके ज्ञान से बहुत ठोस लाभ हुआ और वह लाभ बैंक बैलेंस की शक्ल में देखा जा सकता है। अब मैं निफ्टी, सेनसेक्स, मुचुअल फंड से जुड़े बहुत छोटे कोर्स विकसित कर रहा हूं। जो शुरु में लगभग मुफ्त में पढाऊंगा छात्रों को, गृहिणियों को, जो भी पढ़ना चाह। इनका लेवल यह होगा कि जिसने कक्षा आठ पास की है, वह भी इन्हे समझ पाये और ये हिंदी भाषा में भी उपलब्ध होंगे। इस संबंध में बुनियादी काम शुरु हो गया है।
सवाल 3 : सुभाष चन्दर जी ने आपसे अपेक्षा की है कि आप व्यंग्य कहानियों और उपन्यास पर भी काम करें। आपका क्या इरादा है इस बारे में?
जवाब: सुभाष चन्दर जी को बहुत धन्यवाद, व्यंग्य कहानियों पर उन्होने दस साल बहुत ही सार्थक मार्गदर्शन किया था, मैं उससे बहुत लाभान्वित हुआ था। सुभाष चंदर जी नये बच्चों को प्रोत्साहित करते हैं, सही मार्गदर्शन करते हैं, मेरा बहुत मार्गदर्शन किया उन्होने, अब भी करते हैं। मैं उनके सुझाव पर अमल करने की कोशिश करुंगा।
सवाल 4: व्यंग्य (और साहित्य की अन्य विधाओं में भी) अक्सर लोग मठाधीशी की बात करते हैं। यह बात बड़े , स्थापित और नये से नये लेखक भी गाहे-बगाहे करते हैं। जब सभी मठाधीशी के खिलाफ़ दिखते हैं तो असल में मठाधीश है कौन? क्या यह कोई निर्गुण ब्रह्म है जो किसी को दिखता नहीं पर होता सब जगह है?
जवाब: देखिये मठाधीशी सिर्फ व्यंग्य में ही हो ऐसा नहीं है। सब जगह है, जिसने अपने खेल बनाया है, वह किसी और को क्यों जगह देगा। वह अपने चेलों, झोलाउठावकों को जगह देगा, यह अनुचित होते हुए भी स्वाभाविक है। पर इसे यूं भी समझना चाहिए कि मठाधीशी बड़ा सब्जेक्टिव कंसेप्ट है। मठाधीश वही हो सकता है जिसके पास ऐसी क्षमता हो कि वह आपका खेल बना सकता है, बिगाड़ सकता है। मठाधीशी का शौक सामान्य शौक किसी को भी हो सकता है, पर मठाधीशी निवेश मांगती है, समय का ऊर्जा का, संसाधनों का, जिसका मन हो, वह कर ले। मठाधीशी हरेक की बूते का बात नहीं है। मठाधीश कौन है, इस सवाल का जवाब है कि जिसके भी पास संसाधन हैं, आकाशवाणी में नाम कटवाने जुडवाने की हैसियत है, टीवी में नाम कटवाने जुड़वाने की हैसियत है, गोष्ठियों में किसी को बुलाने किसी का नाम कटवाने की हैसियत है, वह मठाधीश है। पर मठाधीश को आप गौर से देखें, तो वह बहुत ही दयनीय प्राणी है, जिसे रचना जगत में खुद को स्थापित करने के लिए अपना समय और ऊर्जा इस सबमें खपानी पड़े, वह निश्चित ही दयनीय है। पुराने मठाधीशों से बात करें, तो वह दयनीय लगते हैं वो बताते हैं कि उन्होने यह कर दिया, उन्होने वह कर दिया। जिनके किये गये काम में दम है वह हम तक किसी के बिना कहे भी पहुंच रहा है। श्रीलाल शुक्ल ने कभी ना बताया किसी को मैंने यह किया-उनका राग दरबारी पढ़कर मेरे जैसे कई लोग व्यंग्यकार बने। ज्ञान चतुर्वेदी लिखकर आगे बढ़ जाते हैं, और मेरे ख्याल में ज्ञानजी से ज्यादा प्रेरक व्यक्तित्व हिंदी व्यंग्य में अभी कोई नहीं है। तो रचनात्मक फील्ड में लोग काम से प्रेरित होते हैं। मठाधीश आम पर रचनाकर्म में कम प्रवृत्त होते हैं, बाकी उठापटक में ज्यादा, पर मठाधीशी कोई गैरकानूनी गतिविधि नहीं है, कोई भी कर सकता है। कर रहे हैं लोग। सबको दिखता है और सब अपने हिसाब से गुणा-गणित में लगे रहते हैं, इसे साधो, उसे साधो, यह समयसाध्य काम है, लोग करते हैं। अपना चुनाव है सबका। बाकी आपका यह सवाल कतई बदमाशीपूर्ण सवाल है कि कौन है मठाधीश, आप खुद एक नवोदित मठाधीश हैं, जुगलबंदी के जरिये नया मठ बना रहे हैं। हालांकि मैं इसका स्वागत करता हूं कि आप नये लोगों को बहुत मौका दे रहे हैं और उन्हे प्रेरित कर रहे हैं।
सवाल 5 : आपकी माताजी और आपने खुद भी बताया कि आप स्वभाव से जिद्दी टाइप हैं। इस हसीन गुण के पीछे कारण क्या मानते हैं आप?
जवाब-जिद्दी होना बहुत कीमती गुण है। किसी भी रिजेक्शन को फाइनल ना मानना। करके ही मानूंगा इसी भाव से काम हो सकता है। अजीब सी बात है कि चलना है, चाहे जो हो, इस भाव से यात्रा की जाये, तो यात्रा में कुछ हाथ लग भी सकता है। पर यात्रा की परेशानियों की सोचें फिर सोचें कि छोड़ो यह आफत, वह आफत। तो काम नहीं हो सकता। धीमे धीमे यह समझ में आया कि बहुत कम चीजें करने की कोशिश करो, पर यह चिंता किये बगैर कि इसके परिणाम क्या आयेंगे। करना है तो करना है करना ही है। करना है क्योंकि करना अच्छा लगता है, करना है कि करना जिंदगी का अंग है। जिंदगी का अंग क्या जिंदगी ही है। जिंदगी ही बन जाये कोई गतिविधि, तो फिर आप उसके लाभ हानि गुणा गणित ना देखते, लोग कहते हैं कि अजब पागल जिद्दी है पर यह दरअसल जीवनशैली है कि यह करना है तो करना ही है।
सवाल6 : हिन्दी में लिखने-पढने और किताबें खरीदे न जाने का चलन क्यों नहीं पनप पाया?
जवाब-दरअसल कायदे से किताबों को पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश बहुत कम हुई है। हिंदी के प्रकाशकीय जगत का बड़ा हिस्सा किताबों के ग्राहक बनाने में जुटा रहा, पाठक बनाने में नहीं। तीस परसेंट के कमीशन पर किसी लाइब्रेरी में हजारों किताब खपा दो, उन्हे पढ़ता कौन है, इस पर विचार न किया जाये। फिर एक बहुत विरोधाभासी सा भाव कई हिंदी लेखकों में रहा कि पाठक खरीद कर ना पढ़े, तो रोओ कि हाय पाठक नहीं पढ़ता, और पाठक बहुत ज्यादा पढ़ने लगे तो रोओ कि हाय लेखक पतित हो गया, घटिया हो गया बाजारवादी हो गया। यह निहायत खोखली और कनफ्यूजिंग विचार पद्धित है, मैं लिखता हूं तो मेरी कोशिश होनी चाहिए कि हर माध्यम से अपने पाठक तक पहुंचू। प्रकाशक हद से हद मेरी किताब के ग्राहक ला सकता है, पाठक तो मुझे खुद बनाने हैं अपने काम से। हाल में चीजें बदली हैं। नये लेखक बुजुर्गों की बिलकुल नहीं सुन रहे हैं और अच्छा कर रहे हैं उनके विषय उनका काम एकदम नया है और स्वीकृत हो रहा है। पचास सौ की समोसा-चाय-दारु गोष्ठी में आप उन्हे साहित्यकार ना मानो, उन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता। वो अपना साहित्यकार होना साबित कर रहे हैं। तो अब स्थितियां बदली हैं। ईबुक के चलते प्रकाशन की स्थितियां बदली हैं। पर व्यंग्यकार को अपने पाठक तक सीधे पहुंचने की और उनसे संवाद की सीधी कोशिश करनी पड़ेगी। सिर्फ प्रकाशकों के सहारे सब कुछ ना छोड़ा जा सकता। अखबार, मैगजीन, वैबसाइट, ट्विटर,फेसबुक जितने भी माध्यमों से पहुंचा जा सके, लेखक को पहुंचना पड़ेगा। सिर्फ प्रकाशक के बूते रहेंगे, तो वह आपका भरपूर शोषण करेगा और आपकी औकात आपको बताता रहेगा।
सवाल7 : व्यंग्य को लेकर आपकी कुछ योजनायें हैं जैसे व्यंग्य का ग्राउंड लेवल का कोई कोर्स। ज्ञान जी ने भी जबलपुर में व्याख्यान दिया था जिसका विषय था -व्यंग्य पढने की तमीज! आपकी क्या योजनाये हैं व्यंग्य को लेकर।
जवाब-बिलकुल व्यंग्य कैसे देखें, इस पर एक बुनियादी कार्ययोजना तैयार है। मैंने बताया कि अपने समकालीनों के व्यंग्य पर लिखना है मुझे कि इस कैसे देखा जाये, कैसे पढ़ा जाये। जैसे कोर्स होते हैं-फिल्म एप्रीसियेशन के, कला एप्रीसियेशन के, वैसे ही व्यंग्य एप्रीसियेशन के कोर्स बनाने में कोई हर्ज नहीं है। और हर व्यंग्यकार अपने हिसाब से बनाये और आगे बताये। हमारा जिम्मा बनता है कि जिस भी फील्ड में हैं हम, उसके बारे में शिक्षित करते चलें लोगों को।
सवाल 8: व्यंग्य लेखन के अलावा और आपकी क्या योजनायें हैं निकट भविष्य में?
जवाब-वित्तीय साक्षरता, व्यंग्य, और फोटोकारिता मूलत इन तीन क्षेत्रों में ही काम होना अगले दस सालों में।
सवाल 9 : आपकी फ़ेवरिट ब्रांड नायिकायें राखी सावंत जी, मल्लिका सेहरावत जी और सनी लियोनी में से किसी एक से मुलाकात करने का मौका मिले आपको तो किससे मिलना चाहेंगे और क्यों? अगर वे आपको अपना कोई एक लेख सुनाने को कहें तो कौन सा लेख सुनाना चाहेंगे?
जवाब: सन्नी लियोनीजी ग्लोबलाइजेशन का प्रतीक हैं, कनाडा से वह भारत आयी हैं। सन्नीजी के उदय की एक ठोस आर्थिकी है, समाजशास्त्र है, इसलिए सन्नीजी से मिलकर इस सब पर उनके विचार जानना चाहूंगा। सन्नीजी को चाइस दूंगा कि वह सन्नी लियोनी पर लिखा मेरा कौन सा लेख सुनना चाहेंगी। वैसे मैं उन्हे डिस्काऊंट वाले महापुरुष नामक व्यंग्य निबंध सुनाना चाहूंगा।
सवाल 10: अपने जीवन की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि आप क्या मानते हैं? क्यों? इसी तरह सबसे खराब अनुभव अगर आपसे पूछा जाये तो क्या होगा?
जवाब-जीवन की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि यह ज्ञान मिलना है कि आलोक पुराणिक तुम व्यंग्य, वित्तीय साक्षरता और फोटोकारिता के लिए ही पैदा हुए हो। खऱाब अनुभव कौन सा रहा है, यह जिंदगी के आखिरी दिन बताऊंगा अभी तो बहुत जिंदगी बाकी है।
सवाल 11-जो आपसे मिलते हैं, वह आपकी बुलेट बाइक की चर्चा जरुर करते हैं। क्या आपकी बुलेट में।
जवाब-बुलेट बाइक मेरे परिवहन का मूल माध्यम है। बुलेट दरअसल परिवहन माध्यम नहीं अनुभव है। एक मित्र हैं मेरे बुलेट इंजीनियर-इरफान खान, उनके साथ मिलकर मैंने बुलेट बाइक की डिजाइन में कुछ बदलाव नियोजित किये हैं। आजकल उस पर भी काम हो रहा है। इरफान खान बहुत क्रियेटिव हैं, मेरे आइडिये सुनते हैं और उन पर काम भी करते हैं,जल्दी ही मैं आपको नयी डिजाइन की हुई बुलेट दिखाऊंगा।
सवाल 12: जन्मदिन के मौके पर किताब निकलना कैसा अनुभव लग रहा है आपको? इस मौके पर अपने तमाम पाठकों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
जवाब-सबसे पहले अनूप शुक्लजी को थैंकू कहूंगा कि इतनी जल्दी उन्होने यह कांड कर दिया। आम तौर पर हिंदी लेखक के लिए ऐसा आयोजन तब किया जाता है, जब वह ऐसे किसी आयोजन का हिस्सा बनने के लिए खुद अपने पैरों पर चलने काबिल ना रहता यानी अति ही बुढ़ापे में। यूं मैं इस किताब का एक संदेश यह भी ले सकता हूं कि आलोकजी अब हो लिया तुमने इतनी किताबें छाप लीं, तुम्हारे पर भी किताब हो ली। अब बस करो। पर व्यंग्यकार बेशर्म टाइप भी होता है, तो मैं कहूंगा 51 पर निकाली आप 101 पर भी निकालिये। पाठकों को संदेश यह है कि निर्मल चित्त से जिंदगी के अनुभव लें। मस्त रहें। दुनिया बदल रही है, बदलती दुनिया को समझें और बदलती दुनिया को समझने के लिए मेरे व्यंग्य जरुर पढ़ें।
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यह इंटरव्यू ’आलोक पुराणिक -व्यंग्य का ए.टी.एम.’ किताब में शामिल है। आलोक पुराणिक पर केन्द्रित यह किताब ’ई बुक’ लेने के लिये इधर पहुंचिये। कीमत मात्र 51 रुपये है।http://rujhaanpublications.com/…/alok-puranik-vyangya-ka-a…/
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