सबेरे टहलने का मजा ही और है। यह बात आज साइकिलियाते हुये फ़िर महसूस हुई।
घर से निकलने के लिये जैसे ही गेट खोला वैसे ही बन्दर बाबा बाउंड्री की दीवार पर दौड़ते हुये आये और गेट से फ़लांगते हुये दूसरी तरफ़ फ़ूट लिये। यह बन्दरकूद वे बाद में भी कर सकते थे। हमारे निकलते समय ही करने के पीछे की मंशा उनकी उसी घराने की रही होगी जिस मंशा से आतंकवादी अपनी गतिविधि का समय किसी राष्ट्रीय त्योहार के समय चुनते हैं।
बाहर पप्पू की चाय की दुकान गुलजार थी। सामने से एक बालिका स्पोर्ट्स शू पहने साइकिलियाते हुये गाना सुनते आ रही थी। उसके बगल से गुजरते हुये दूसरे साइकिल सवार ने टेढे होते हुये उसको ओवर टेक किया।
सड़क के दोनों किनारे गुलजार हो चुके थे। एक जगह तखत पर बैठे दो लोग एकदम पास-पास बैठे कान में मुंह लगाकर जिस तरह बतिया रहे थे उससे हमें लखनऊ में निशातगंज चौराहे के पास लगी गांधी जी और नेहरू जी की कनबतिया करती हुई मूर्ति याद आ गयी। महापुरुषों की मुद्रा के नकल के आरोप से बचने के लिये इन लोगों ने बीड़ी सुलगा ली।
दो बच्चे पानी की बड़ी बाल्टी में पानी परिवहन कर रहे थे। एक छोटी लकड़ी के पटरे के नीचे लगे लोहे के चार पहियों पर चलती ’सड़क-स्लेज’ पर पानी ले जा रहे थे बच्चे। इनकी ही उमर के बच्चे स्कूल जाते दिखे। पढाई के झांसे से बचे हुये बच्चे जिम्मेदारी का भाव चेहरे पर धारण किये थे।
बगल में सुलभ शौचालय पर स्नान और निपटान शुल्क 5 रुपये लिखा था। जीएसटी का जिक्र नहीं था इसमें। सुलभ शौचालय शायद जीएसटी से मुक्त होगा।
पुल पर पहुंचकर देखा तो सूरज भाई पानी में अपनी किरणों को लम्बवत लिटाये हुये भिगो रहे थे। किरणों को शायद ’जल-गुदगुदी’ लग रही होगी। वे हिलडुल रहीं थी। पानी भी उनके संग जुड़ा होने के चलते हिल-डुल रहा था।
गंगा जी में पानी कम हो गया था। नदी के बीच रेत दिखने लगी थी। लोग उसके किनारे तख्त डाले स्नान-ध्यान में जुट गये थे।
पुल पर लोगों की आवा-जाही बढ गयी थी। एक ऑटो वाला बीच पुल पर खड़ा होकर ऑटो स्टार्ट करते हुये बच्चों को चुप रहने की हिदायत दे रहा था। पुल खत्म होते ही एक दूसरा आदमी अपनी साइकिल किनारे खड़ी करके बैठकर अपने पेट का पानी पुल को समर्पित करने लगा। सामने पुल की ऊंचाई के बराबर के मकान के लोग उसको देखकर अनदेखा करते रहे। सबेरे-सबेरे का आलस्य सब पर हावी होता है।
एक आदमी अपनी साइकिल पर प्लास्टिक के ग्लास लादे चला जा रहा था। साइकिल के हैंडल पर टंगी ग्लास साइकिल की मूंछों की तरह नीचे को तने थे। मारुति पीपी माडल के ग्लास अपनी मंजिल पर पहुंचने को बेताब से लगे। मारुति कार और मारुति ग्लास में आपस में कोई रिश्तेदारी जरूर निकलती होगी।
सड़क पर साइकिल स्कूल जाती लड़कियां बतियाती हुयी चली जा रहीं थीं। जीन्स धारिणी बालिकाओं का स्कूल बैग कैरियर पर लदा हुआ था। बैग का पट्टा निकलकर साइकिल की तीलियों के सामने फ़ड़फ़ड़ा रहा था। तीलियां स्पीड में घूमती हुई उसको बरजती जा रहीं थीं- इधर मत आना। आओगे तो हड्डी पसली ऐंड़ी-बैंड़ी हो जायेंगी। हवा के झोंके के साथ वापस होते हुये बोला- ’अरे हम तो सबेरे वाला गुडमार्निंग बोलने आये थे। आजकल गुडमार्निंग का फ़ैशन है।’
क्या सही में ऐसा है? आजकल गुडमार्निंग का फ़ैशन चला है क्या? अगर ऐसा है तो हम भी आपको गुडमार्निंग बोल रहे हैं।
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