सबेरे निकले । नजारा नया था। आज बन्दर धमाचौकड़ी नहीं मचा रहे थे। बन्दरहाव से मुक्त बगीचा, सड़क और आसपास। बंदर लगता है पटाखे के डर से इधर-उधर हो गए थे। बंदरों की जगह पर कुत्तों ने कब्जा कर लिया था। बन्धरहाव की जगह कुकरहाव जारी था।
बंदरों की जगह कुत्तों के कब्जे को देख लगा कि जगहें भरे जाने को अभिशप्त होती हैं। अच्छे की छोदी जगह पर बुरे, शरीफ के सिमटते ही गुंडे अपना कब्जे का अंगौछा धर देते हैं। यह इतना ही शाश्वत सच है जितना लोकतंत्र में एक सरकार के बदलने पर दूसरी का आना।
इसीलिए कहा गया है -अपनी जमीन नहीं छोड़नी चाहिए।
पप्पू की चाय की दुकान गुलजार हो गयी थी। दुकान पर हमारे दफ्तर के एक बाबू चाय पीते मिले। पास ही घर है। दुकान पर खड़े-खड़े उनके घर-परिवार की जितनी जानकारी दो मिनट में मिली उतनी डेढ़ साल में कई बार मिलने के बाद नहीं मिल पाई।
सड़क पर एक गाय अपने बछड़े को दूध पिला रही थी। कभी एक राष्ट्रीय पार्टी का चुनाव चिन्ह जैसी मुद्रा। दुकान की बेंच पर दो लम्बी दाढ़ी वाले मौलाना की दाढ़ी इतनी शफ्फाक दिखी कि इत्ती सफ़ेदी का राज पूछने का मन किया। लेकिन जब तक पूंछे वे पैसा देकर निकल चुके थे।
वहीं एक बुजुर्ग निराला की कविता -
'वह आता दो टूक कलेजे के
करता पछताता '
करता पछताता '
वाली अदा में डगमग करते लपढब-लपढब चलते दुकान किनारे आकर बैठ गए। पपपू ने उनको चाय और बिस्कुट दिए। हमने उनके बारे में पूछा तो पप्पू ने कहा -'हमको पता नहीं। यहाँ आते हैं तो चाय पिला देते हैं रोज।'
हमने पूछा तो बताया कि उन्नाव के पास एक गांव के पास के रहने वाले है। शादी हुई नहीं। मांगते -खाते हैं। पहले जुहारी देवी गर्ल्स स्कूल में रहते थे। अब झाड़ी बाबा पड़ाव पर रहते हैं।
'जुहारी देवी स्कूल काहे छोड़ दिया?' पूछने पर बोले -'वो लड़किन का स्कूल है। यही मारे हुअन ते झाड़ी बाबा आ गए।'
उम्र पूछने पर बोले -'कुल्ल (बहुत) उम्र है। यही समझ लेव 70 -75 ।
हमने नाम पूछा तो बोले -'दुइ नाम हैं असली बताई कि नकली?'
हम बोले -दोनों बताओ।
बोले-'असली नाम है धनपत। नकली नाम भगत जी।'
असली नाम हाथ में गुदा हुआ था। नकली से लोग बुलाते हैं।
पास में झोले में कपड़े हैं। हमने पूछा -साथ लिए काहे घूमते हो?
बोले -'लोग चुरा लेते हैं। बहुत सामान चोरी चला गया।'
मतलब मांगने-खाने वाले के लिए भी चोर की व्यवस्था है अपने समाज में। चोरी की रेखा के ऊपर वाले गरीब हैं भगत जी।
गांव जाने की बात भी बताई। बोले -'पूस में मेला लगता है। तब जइबे गांव।'
अम्बेडकर जी के मन्दिर का जिक्र किया। वहां जाते रहते हैं।
आगे चले तो सड़क किनारे लोग सोये हुए थे। एक आदमी ने चद्दर से हाथ बाहर निकाला। मुझे लगा हमको नमस्ते टाइप कुछ करेगा। लेकिन वह करवट बदलकर हाथ दूसरी तरफ करके सो गया।
पुल पर गंगा ऊंघती हुई बह रहीं थी। एक आदमी पैकेट से दाने सड़क पर डालता जा रहा था। चिड़ियां बीच सड़क पर फुदकती हुई दाना चुगती जा रहीं थीं। हमने फोटो खींचकर वहीं से पोस्ट किया और लिखा:
चिड़ियां चहक रहीं सड़कों पर
आगे की तुकबन्दी आप सुबह पढ़ ही चुके हैं। अभी किस्सा इतना ही। आगे का किस्सा यहां पहुंचकर बांचेंhttps://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10212805567627481
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