Monday, January 15, 2018

एक तसल्ली भरा इतवार

चित्र में ये शामिल हो सकता है: 2 लोग, दाड़ी
82 साला बुजुर्गवार अल्ताफ
कल सुबह तसल्ली से उठे। इतवार देर से जगने, उठने के पहले करवट बदलने और फ़िर पलटकर सो जाने का दिन होता है। लिहाजा जब जगे तो सूरज भाई की सरकार आसमान में पूर्ण बहुमत में आ गयी थी। हर तरफ़ उनका ही जलवा।

बाहर निकलते ही सूरज भाई ने अपनी किरणों वाली बाहों को फ़ैलाते हुये हमको गले लगा लिया। हम गुनगुना गये। गर्मा गये। इसके बाद शर्मा गये।

शर्माने का कारण यह रहा कि सूरज भाई के गले लगाने के अंदाज से हमको लगा सीन कुछ ऐसा बना है जैसे प्रधानसेवक टाइप लोग प्रोटोकॉल तोड़कर किसी की अगवानी करते हैं- गर्मजोशी से खौलती हुई अगवानी। ऐसी कल्पना करना हमारे प्रोटॉकाल के खिलाफ है।

आगे एक जगह कूड़े का अलाव जल रहा था। एक कुत्ता अकेले अलाव का साथ दे रहा था। कुछ देर बाद दूसरा कुत्ता भी आ गया। लेकिन दूसरे कुत्ते को अलाव का साथ ज्यादा जमा नहीं। वह टहलता हुआ चल दिया। हमने उतरकर कुत्ते और अलाव का फ़ोटो लेना चाहा। जब तक उतरे तब तक कुत्ते निकल लिये। हम निराश होना ही चाहते थे कि एक नया कुत्ता आकर अलाव तापने लगा। हमने उसका फ़ोटो लिया। उसने भी एतराज नहीं किया। तसल्ली से फ़ोटो लेने दिया।
थोड़ी देर बाद बाहर निकले तो देखा सड़क एकदम गुलजार थी। बैटरी रिक्शे वाले धक्काड़े से सड़क पर सवारी लादे चले जा रहे थे। आगे वाली सीट पर अपने साथ एक सवारी बैठाये रिक्शे वाला दायीं तरफ़ झुका हुआ रिक्शा चला रहा था। दांयी तरफ़ झुके होने के कारण उसको दक्षिणपंथी रिक्शा वाला कहा जा सकता है? यह सवाल हमने जितनी तेजी से सोचा उससे भी तेजी से भुला दिया। दिमाग को डांट भी दिया यह कहते हुये - ’माननीय आपको राजनीति शोभा नहीं देती।’

चित्र में ये शामिल हो सकता है: लोग खड़े हैं और बाहर
अलाव तापता कुत्ता
दोपहर को आराम से धूप सेंकी। बगीचे में धूप और छाया आराम से एक-दूसरे की संगत में खुश-खुश पसरी हुई थीं। हवा दोनों के बीच बिना वीजा के टहल रही थी। कहीं-कहीं तो धूप के बीच छाया और दीगर जगह छाया के बीच धूप घुसी हुई थी। लेकिन दोनों के बीच कोई तनाव नहीं था। न कोई तोप-गोले चल रहे थे। प्रकृति और आदमी में यही अंतर होता है।
शाम ढलने के बाद कार से टहलने निकले। बहुत दिनों के बाद। बिरहाना रोड जो दीगर दिनों में भीड़-भाड़ वाला रहता है, एकदम तसल्ली में दिखा। दुकाने बंद।
एक मंदिर के बाहर कुछ लोग उकड़ू बैठे थे। वे गरीबी और जाड़े के संयुक्त आक्रमण को सिकुड़कर झेलते हुये, मांगने वाले थे। कुछ लोग कार से निकालकर उनको खाने का सामान दे रहे थे। जाड़े का समय लगभग बीच सड़क पर यह लेन-देन चल रहा था। सहज मानवीयता और पुण्य़ का ट्रान्जैक्शन हो रहा था।
जगह-जगह दूध की दुकाने दिखीं। ज्यादातर दूध की दुकानों पर पहलवान दूध भंडार लिखा हुआ था। मतलब दूध बेचने के लिये पहलवान होना जरूरी टाइप होता है। होते भी हैं, भले ही सींकिया हों।
एक दुकान पर कुछ सामान खरीदने के लिये रुके। इस बीच एक सफ़ेद दाड़ी वाले बुजुर्ग वहां आ गये। अपनी छ्ड़ी वहां खड़े हुये एक लड़के की तरफ़ बन्दूक की तरह तानते हुये ठां ठां करने लगे। हम उनसे बतियाने लगे तो उन्होंने कड़क गुडमार्निंग करते हुये ’हाऊ आर यू’ दाग दिया। रात नौ बजे कड़क गुडमार्निंग सुनना ऐसा ही लगा मानों किसी अंग्रेजी में तंग आदमी से मिलते मिलते ही वह शट्टाप, गेट्टाउट बोलते हुये गर्म जोशी से हाथ मिलाने लगे।
बुजुर्गवार ने बतियाते हुये जानकारी दी कि वे पश्चिम बंगाल से आये थे। सालों पहले। उमर 82 साल हो गयी है। लाल आंख के बारे में पूछा तो बताया - दो बार आपरेशन करा चुके हैं। एक पैर में चप्पल दूसरे में पट्टी का किस्सा सुनाते हुये बताया - ’ यहां चबूतरे पर सोये हुये थे। चार कुत्तों ने एक बाहर के कुत्ते को दौड़ा लिया। बचने के लिये वह कुत्ता पैर के पास आकर दुबक गया। कुछ देर बाद पैर फ़ैलाया तो डरे हुये कुत्ते ने पंजे पर काट लिया।’
चलते हुये कुछ खिलाने की बात की बुजुर्गवार ने। हमने दुकान से जो मन आये ले लेने की बात कही। उन्होंने कुछ मूंगफ़ली की एक गोल चिक्की की तरफ़ इशारा किया। हमने उठाकर उनको दे दी। ढेर सारी अंग्रेजी के फ़ुटकर वाक्य बोलकर गुड्ड्नाईट किया बुजुर्गवार ने। विदा होते हुये हमने नाम पूछा तो अल्ताफ़ बताया। वल्दियत भी बताई थी। लेकिन ठीक से सुन नहीं पाये।
चलते हुये लोगों ने बताया कि यहीं चबूतरे पर रहते हैं। अगल-बगल खड़े कुछ लड़के उस पर हंस रहे थे। शायद हम पर भी। लेकिन हंसी पर कोई गोंद थोड़ी लगा था जो हम पर चिपक गई हो। बस याद आ रही है।
लौटते हुये देखा लगभग हर फ़ुटपाथ पर लोग चादर, कम्बल ओढे सो रहे थे। शरीर को गोलाकार बनाकर ऊष्मा को बाहर जाने से रोकने की कोशिश करते हुये। हजारों लोग भद्दर जाड़े में ऐसे ही खुल्ले में सोते हैं। आज सूरज भाई से बात होगी तो उनसे कहेंगे रात की शिफ़्ट में भी थोड़ी देर आ जाया करो। देखते हैं क्या बोलते हैं।
आपको क्या लगता है मेरी बात सूरज भाई मानेंगे?
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10213454024438496

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