1. नये खून को सोचना चाहिये कि उसके सामने तो पूरी जिन्दगी पड़ी है, कभी भी पद पर बैठ सकेंगे। पर पुराने खून के दिन गिने-गिनाये हैं, उन्हें कुछ दिन और रह लेने दो।
2. जब विधानसभाओं और संसद के आधे से अधिक सदस्य एम्बुलेंस में सभा-भवन जाया करेंगे और हर सदस्य के बगल में एक डॉक्टर बैठा करेगा, तब समझेंगे कि हमारा जनतन्त्र सयाना(मैच्योर्ड) हो गया।
3. सयानेपन से जो काम होते हैं उनसे मंगल होता है। दशरथ अगर कैकेयी से विवाह न करते तो राम को वन कौन भेजता? और राम वन न जाते तो रावण का नाश कैसे होता?
4. अंगरेजी में मुहावरा है- ’डाई इन हारनेस’, यानी घोड़ा हो तो उसे कसे-कसाये और आदमी हो तो पद पर काम करते-करते मरना चाहिये। यह बड़े गौरव की बात है। राज-पद पर जो व्यक्ति कसा-कसाया मृत्यु को प्राप्त होता है उसकी अन्त्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ होती है। जिन्हें राजकीय सम्मान से अन्येष्टि कराना है, वे पद क्यों छोड़ें?
5. पुराने खून के स्थान पर नया खून आ गया, तो बड़े पैमाने पर ’अनएम्प्लायमेण्ट’ (बेकारी)बढेगी। सयानों की बेकारी बड़ी खराब होती है। बेकार आदमी ’फ़्रस्टेशन’ (हताशा) से पीड़ित रहता है और उपद्रव करता है।
6. राष्ट्र का हित इसी में है कि पुराने नेता बेकारी की समस्या से पीड़ित न हों। उन्हें संस्मरण तक लिखने की फ़ुरसत नहीं मिलनी चाहिये, वरना संस्मरण में ही ऐसा कुछ लिख देंगे कि गड़बड़ पैदा हो जायेगी।
7. पुराने आदमी को चुनाव जीतने की सब तरकीबें मालूम हैं। वह जानता है कि किससे कैसे वोट लिया जा सकता है। उसका जीतना निश्चित है। नया आदमी एक चुनाव तो सीखने में ही हार जायेगा। पार्टी नये खूनों को टिकट देकर क्या चुनाव हारेगी?
8. हमारी हजारों सालों की महान संस्न्कृति है और यह समन्वित संस्कृति है, यानी यह संस्कृति द्रविड़, आर्य, ग्रीक, मुस्लिम आदि संस्कृतियों के समन्वय से बनी है। इसलिये यह स्वाभाविक है कि महान समन्वित संस्कृति वाले भारतीय व्यापारी इलायची में कचरे का समन्वय करेंगे, गेहूं में मिट्टी का, शक्कर में सफ़ेद पत्थर का, मक्खन में स्याही सोख कागज का। जो विदेशी हमारे माल में ’मिलावट’ की शिकायत करते हैं, वे नहीं जानते कि यह मिलावट नहीं है, ’समन्वय’ है तो हमारी संस्कृति की आत्मा है।
9. सामन्त इज्जत के लिये जान दे देता था, तो वह मारनेवाले की जान ले लेता था और अपनी दे देता था। पर व्यापारी को कहे कि एक जूता मारकर 5 रुपया दूंगा, तो वह कहेगा कि तू मुझे दस जूते मार ले और पचास रुपये दे दे- कमीशन काटकर चालीस में भी मार सकता है।
10. अपनी संस्कृति-सभ्यता नहीं छोड़े जाते। यह राष्ट्रीय विशेषता है और हम यह बच्चों को छोटी उम्र से ही सिखाते हैं। उनके संस्कार के लिये गणित में यह पढाते हैं- एक ग्वाला 21 रुपये मन के भाव से 2 मन दूध खरीदकर उसमें 20 सेर पानी मिलाता है और उसे एक रुपये में दो सेर के भाव बेचता है, तो उसे कितना लाभ होगा?
11. जिस युवक को अच्छी स्त्री का प्यार चाहिये, वह उचक्कापन अवश्य करेगा। शरीफ़ों को कोई स्त्री नहीं चाहती। यह अटल फ़िल्मी सत्य है।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10220952173127527
No comments:
Post a Comment