आज फिर गंगा किनारे गए टहलने। पुल शुरू होने से पहले एक आदमी हैण्डपम्प पर पानी भरता दिखा। सड़क से नीचे लगा है हैण्डपम्प। दो बाल्टी पानी भरने के बाद उनको आहिस्ते-आहिस्ते लेकर अपने घर की तरफ जाता दिखा। रास्ता ऊबड़खाबड़। हर घर तिरंगा की मुहिम के तहत झोपड़ियों में तिरंगा फहरा रहा था।
झोपड़ियों की छतों पर तरह-तरह का कबाड़ बिखरा हुआ था। हर छत कबाड़ के लिए किसी आवाहन की जरूरत नहीं पड़ती। लोग अपनी छत पर कबाड़ इकट्ठा करते रहते हैं। न जाने कब काम आ जाये। यह बात अलग कि पुराना कबाड़ अक्सर नए कबाड़ के नीचे दबता जाता है। नया कबाड़ पुराने कबाड़ को मार्गदर्शक कबाड़ में शामिल करके खुद ऊपर स्थापित हो जाता।
सड़क के दूसरी तरफ ड्यूटी से लौटता पुलिस/होमगार्ड का जवान मोटरसाईकिल पर बैठे-बैठे बंदरो के लिए खाने का सामान फेंकता जा रहा था। आसपास मौजूद बन्दर फेंका हुआ सामान लपकते हुए खाते दिख रहे थे। कुछ बन्दर दूर से। चुपचाप सामान फेंकते देख रहे थे। उनके शायद पेट भरे हों या सुबह-सुबह खाने का मन न हो।
वहीं बैरिकेटिंग पर तीन बंदर बैठे दिखे। एक बन्दर चिंतन मुद्रा में। दूसरा बीच में टहलता हुआ। तीसरा बिना दाने के भुट्टे को चबा रहा था। एक भी दाना नहीं बचा था लेकिन उसको जिस शिद्दत से चबा रहा था उससे लग रहा था किसी ने उसको बालू से तेल निकालने का किस्सा सुनाया होगा। वहीं एक सांड नीचे पड़ी पालीथिन से अपने लिए कुछ खाने का सामान खोजते हुए टहल रहा था।
पुल पर कई महिलाएं कसरत करती दिखीं। पुल की रेलिंग को पकड़कर पैर चलाते हुए, हाथ-पैर दांए-बाएं करते हुए, घुटनों को ऊपर-नीचे करते हुए कसरतियाते हुई महिलाएं। आगे कुछ लड़के भी वर्जिश करते दिखे। गंगापुल पर ओपन जिम का नजारा बना हुआ था।
एक अखबार वाला घर से लाये आते की गोली बनाकर नदी में डालता दिखा। नदी के जीवों के लिए सुबह का नाश्ता। कितना किसी मछली के पेट में जाता है, कितना नदी में समा जाता है इस बात से बेपरवाह वह आटे की गोलियां बनाते हुए नदी के पानी में फेंकता रहा। आटा खत्म हो जाने के बाद वह सूरज भाई की तरफ हाथ जोड़कर कुछ देर प्रार्थना मुद्रा में खड़ा रहा। इसके बाद साइकिल पर बैठकर अखबार बांटने निकल गया। अखबार में आधे पेज पर तीन खबरें प्रमुखता से छपी हैं:
1. महापुरुषों के नाम पर होंगे मेडिकल कालेज
2. मंहगाई के खिलाफ किसानों का दिल्ली कूच आज
3. कानपुर मेट्रो के लिए 186 करोड़ जारी
इन तीन प्रमुख खबरों के साथ सात फुटकर सूचनाएं और खबरें हैं। जिनमें से एक यह भी कि मोबाइल-लैपटॉप से 80% लोगों को न्यूरॉल्जिया (नसों का दर्द)।
आधे पेज पर समाचारों के नीचे बाकी आधे पेज पर पल्सर बाइक का विज्ञापन है। एक्स शो रूम कीमत 129984 रुपये मतलब 16 रुपये कम एक लाख तीस हजार।
अखबार के आधे पेज पर ख़बर आधे पर विज्ञापन मतलब आधे में समाचार आधे में बाजार।
आगे कई बुज़ुर्गवार सामूहिक पूजा करते मिले। कुछ संस्कृत और सरल हिंदी भजन का सामूहिक गायन। एक भजन में प्रार्थना की जा रही थी -'हमको अपनी शरण में ले लीजिए। हम दीन-हीन हैं।' रोज प्रार्थना करते होंगे बुजुर्गवार लेकिन उनकी प्रार्थना शायद अनसुनी रह गयी है अबतक। क्या पता प्रार्थना सुन ली गई हो और शरण में ले लिया गया हो लेकिन उसकी चिट्ठी अभी जारी न हुई हो। यह भी हो सकता है प्रार्थना पर विचार हो रहा हो। फाइल पर नोटिंग बढ़ी हो-'गंगा पुल पर रोज शरण की याचना करने वाले बुजुर्ग संस्कारी लगते हैं। इनको शरण में लेने की संस्तुति की जाती है?'
हो सकता है पूछा गया हो कि इनके संस्कारी होने के क्या प्रमाण हैं?
सम्भव है पलट नोटिंग की गई हो-'ये हमारी शरण में आने की विनती कर रहे हैं। इससे बड़ा और क्या प्रमाण चाहिए इनके संस्कारी होने का?'
बुज़ुर्गवार इन सबसे निर्लिप्त अपनी पूजा में तल्लीन हैं। आज आसमान रंगहीन है। लगता है वहाँ भी रंगों पर खर्चे में कटौती करने का आदेश हुआ है।
नदी का पानी अलग-अलग अंदाज में बह रहा हैं। एक हिस्से का पानी डांस सा करता हुआ आता है। नदी के मंच पर पानी के शंख से बनाता हुआ आगे बढ़ता है। पानी का कुछ हिस्सा नदी में डुबकी सा लगाते हुए गुम हो जाता है। आगे चलकर पानी सीधे बहने लगता है।
डांस करता हुआ नदी का पानी, शंख के आकार में बहते हुए फिर सीधे बहने का समय क्या पता इस हिस्से के पानी का जीवन चक्र हो। जल मंच पर आना, डांस करते और फिर शंक्वाकार ज्वार में बहते हुए फिर नदी की धार में सीधे बहने लगना इस हिस्से के पानी का पूरा जीवन हो। इतनी देर में और इतने समय में पानी ने अपना बचपन, जवानी , बुढापा जी लिया हो। पानी केरा बुदबुदा , अस मानुष की जात।
बगल के कुछ हिस्से का पानी उबलता हुआ सा बहता है। लगता है इस हिस्से के पानी में जवानी का ज्वार है। पानी 'युवा हृदय सम्राट' की मुद्रा में उफनता हुआ सा बहता है। बीस-पचीस मीटर तक पानी ऐसे ही जोश से बहता है। आगे चलकर पानी की उचकन कम हो जाती है और वह नदी के पानी के साथ शामिल होकर मुख्य धारा के साथ बहने लगता है। पानी के बहने का यह अंदाज किसी युवा नेता के अंदाज सरीखा लगता है जो कुछ दिन परिवर्तन की हुंकार लगाने के बाद उसी पार्टी में शामिल हो जाता है जिसके विरोध के साथ उसने शुरुआत की थी।
बाकी हिस्से का पानी भी अपनी-अपनी मर्जी से बह रहा था।
लौटते हुए गंगा घाट गये। कुछ दुकानों में लोग बैठे हुए गपिया रहे थे। एक चाय की दुकान से चाय लेकर अपन गंगाघाट की सीढ़ियों पर बैठकर चाय चुस्कियाते हुए नदी के पानी का सौंदर्य देखते रहे।
सूरज भाई नदी में पूरा लम्बवत लेटे गंगास्नान करते दिखे। पानी हिलता-डुलता उनको स्नान करते महसूस करता रहा। कुछ लोग नदी के पानी में डुबकी लगाते, नहाते , तैरते दिखे। दूर नदी में नाव जाती दिखी। नदी किनारे कुछ पुरानी, बुजुर्ग नावें देखकर दुष्यंत कुमार जी की याद आई:
नाव जर्जर ही सही,
लहरों से टकराती तो है।
इस बीच ओपीएफ के एक टेलर भी गंगा दर्शन करने आये। नमस्ते किये। बताया -'एम फोर सी में पैराशूट बनाते हैं।'
हाल-चाल , कुशल-क्षेम के बाद हमने पूछा -'ड्यूटी नहीं जाना क्या आज?'
'जाएंगे। यहाँ से घर जाएंगे। स्टेशन के पास है घर। वहां से पास लेंगे और सात चालीस पर अंदर हो जाएंगे।' -टेलर ने जबाब दिया।
फैक्ट्री का टाइम 0730 का है। दस मिनट तक देर से आना अलाउड है। अगला उस समय सीमा को ही फैक्ट्री का समय मानता है।
लौटते हुए घाट पर मौजूद फूल बेंचने वाली महिलाओं की बतकही सुनाई देती है। एक कहती है-'केहू से बिना बताए साठ हजार दीन रहय शादी मां। अभय तक उधार चुका नहीं है।'
हमको परसाई जी की बात याद आती है-'देश की आधी ताकत लड़कियों की शादी में जा रही है।'
आते समय एक आदमी बच्चे को स्कूल ले जाने के लिए तैयार होता दिखा। आदमी ने हेलमेट धारण किया, मोटरसाइकल पर सवार हुआ। घर वालों ने बच्चे का बस्ता मोटरसाईकिल में बैठ चुके बच्चे को थमाया। आखिर में महिला उचककर पीछे की सीट पर बैठ गयी। मोटरसाइकिल पर अधिवक्ता लिखा था। पूरा परिवार सुबह-सुबह तैयार होकर निकल लिया।
पुल के नीचे एक रिक्शे पर स्कूल जाते बच्चे दिखे। सेंट्रल स्कूल में पढ़ते हैं। एक बच्चे से क्लास पूछा तो उसने बताया -सेकेंड बी। क्लास के साथ सेक्सन बताना इतना ही आम है जितना किसी के नाम पूछने पर वह जाति भी बताए। अनूप के साथ शुक्ल भी। क्लास के साथ सेक्शन और नाम के साथ जाति फेविकोल के मजबूत जोड़ की तरह चिपकी रहती है।
कितने बच्चे जाते हैं रिक्शे में पूछते हुए बच्चों की फोटो खींची। एक बच्चे ने बताया- ' अंकल नौ, कभी-कभी दस।'
बच्चे ने जब 'अंकल नौ..' कहा तो मुझे लगा कि फ़ोटो खींचने को मना करते हुए 'अंकल नो..' कह रहा था। लेकिन तब तक हम सामने से फ़ोटो ले चुके थे। बाद में पता लगा वह 'नो' नहीं 'नौ' कह रहा था। निजता का अधिकार लागू होते-होते रह गया।
बच्चों ने धक्का लगाकर रिक्शा ' स्टार्ट' करवाया। बैठकर स्कूल चल दिये।
आगे रिक्शा और उसमें सवार बच्चे फिर मिले जबकि हम पैदल आये थे। उनका रास्ता शायद लम्बा था। एक बच्ची चढ़ाई में धक्का लगाते हुए रिक्शेवाले को सहयोग करती कुछ देर सड़क पर चली। फिर उचककर रिक्शे में बैठ गई।
बच्चों को स्कूल जाते देखते हुए हम वापस लौट आये।
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