Wednesday, August 03, 2022

घोड़े पर स्विट्जरलैंड


श्रीनगर से कश्मीर पहुँचने पर शाम को लिड्डर किनारे बैठे। टहले। बाजार घूमे। अगले दिन नंबर लगा आसपास घूमने का।
आसपास घूमने में सबसे पहले आता है बैसरन घाटी का। भारत का स्विट्जरलैंड कहलाती है यह जगह। कश्मीर में स्विट्जरलैंड दिख जाए इससे अच्छा क्या? इसके अलावा अरु घाटी और बेताब घाटी भी देखने की लिस्ट में थीं।
सुबह तैयार होकर ड्राइवर को फोन किया तो पता चला उनकी तबीयत नासाज है। पेट गड़बड़ा गया है। खाना कुछ इधर-उधर हो गया होगा।
वैसे भी ड्राइवर का घुमाने में कोई काम नहीं था। बैसरन घाटी घोड़े पर जाना था। अरु और बेताब वैली के लिए स्थानीय गाड़ियों पर ही जा सकते हैं या फिर अपनी खुद की गाड़ी हो तो उस पर। ड्राइवर ने हमको उस जगह छोड़ दिया जहां से बैसरन घाटी जाने के लिए घोड़े मिलते हैं। इसके बाद वो आराम करने चला गया।
बैसरन और दूसरी घाटियों के लिए घोड़े से जाने के रेट लगे थे वहां। हमने सभी जगहों के हिसाब से घोड़ा तय कर लिया और जाने के लिए तैयार हो गए।
घोड़े वाले ने सहारा देकर हमको घोड़े पर बैठाया। रकाब में पैर डालकर हम चलने के लिए तैयार हो गए। साथ में जाने वाले बच्चे का नाम था मंजूर और घोड़े का नाम था बादल। बाद में कई घोड़ों के नाम बादल सुनाई दिए। जैसे चाय की दुकानों और ढाबों में काम करने वाले ज्यादातर बच्चों के नाम छोटू होते हैं उसी तरह शायद बादल घोड़ों का पसंदीदा नाम है। मंजूर ने मेरा बैग अपनी पीठ पर लाद लिया घोड़े की लगाम अपने हाथ में थामकर पैदल चल दिया।
थोड़ी देर पहलगाम की सड़क पर टहलने के बाद पहाड़ पर चढ़ने का नंबर आया। शुरुआत ही कीचड़ भरी पगडंडी से हुई। घोड़े के खुर और आधे घुटने कीचड़ में डूब गए। रास्ता पूरा पथरीला और कीचड़ भरा। घोड़े को चलने की आदत रही होगी इसलिए वह चलता गया। एकदम आटो मोड में। कीचड़ भरे रास्ते में मंजूर घोड़े की लगाम छोड़ किनारे किनारे सूखे रास्ते चलता रहा। घोडा अकेले हमको अपनी पीठ पर लादे कीचड़ भरे रास्ते से होकर आगे चलता रहा। कई जगह ऐसा भी हुआ कि घोडा सवारी के वजन और कीचड़ के कारण ठहर सा गया और फिर दम लगाकर आगे बढ़ा।
कहीं-कहीं तो कीचड़ इतना अधिक था कि लगा कीचड़ के स्पीड ब्रेकर लगा रखे हैं प्रकृति ने। कीचड़, गड्डे और पत्थर के अलावा अचानक मोड चढ़ाई और उतार भी मिल रहे थे। आसपास के खूबसूरत नजारे देखने के बजाए सारा ध्यान सुरक्षित चढ़ाई पर था। हर अगला कदम चुनौती की तरह लग रहा था।
उस दिन फिर मुझे अपने वजन का एहसास हुआ और लगा कि अगर वजन कुछ काम होता तो घोड़े को आराम होता। क्या पता वह मुझे कोसते हुए सोच रहा हो –‘कहां से आ जाते हैं घूमने के लिए इत्ती सारी चर्बी लेकर।‘
घोड़े पर चढ़ने का पाठ भी सीखा रास्ते में। चढ़ाई पर आगे झुकना होता है और उतरते हुए पीछे। कई बार इस सबक के उलट भी हुआ। घोड़ा तो कुछ नहीं बोल, अलबत्ता मंजूर ठीक से बैठने की एड्वाइजरी जारी करते रहे।
घोड़े पर बैठे घाटी की चढ़ाई करते हुए मुझे लगा कि घोडा और इंसान दोनों ही जीव हैं। आदमी ने अपनी समझ से ऐसे हालात बना लिए कि घोड़े पर चढ़ाई का हुनर और अधिकार भी पा लिया। खाने के लिए निर्भर होने के चलते घोड़ा हमारे इशारे पर चलने के लिए मजबूर है। कल को यही हाल इंसान का भी हो सकता है। कोई हमसे भी ज्यादा बुद्धिमान प्रजाति आ गई कायनात में तो घोड़े-गधे की तरह हम पर सवारी करेगी। हम चुपचाप उसके इशारे हरकतें करेंगे।
यह सोचते हुए यह भी लगा कि आज भी तो हालात इससे अलग तो नहीं हैं। हमारी आबादी का बड़ा हिस्सा जानवरों जैसी जिंदगी जीने को मजबूर है।
एक जगह ठहरकर घोड़े ने और मंजूर ने भी थोड़ा आराम किया। घोड़े के पेट पर हमारे पैरों से एहसास हुआ कि वह अंदर बाहर हो रहा था। थोड़ी देर में नीचे धार गिरने की आवाज सुनाई दी। घोड़ा खड़े-खड़े पेशाब कर रहा था। जानवरों के शौचालय तो होते नहीं। प्रकृति ही उनका निपटान स्थल है।
कुछ देर ठहरकर हम आगे बढ़े। एक जगह रुककर मंजूर ने बताया यह जगह दबयान वैली है। यहाँ पर महाराजा हरिसिंह ने एक तीर से दो शिकार किए थे। शेर और हिरण दोनों एक तीर से मार गिराए थे। एक तीर से एक साथ दो शिकार कैसे हुए होंगे इसका विवरण नहीं मिल। हो सकता है शेर को मरते देख , हिरण दहशत में मर गया हो-आल्हा की तर्ज पर :
बड़े लड़ैया महूबे वाले ,जिनकी मार सही न जाए
एक को मारे दो मर जाएँ ,तीसरा खौफ खाए मर जाए।
कुछ दूर पर कश्मीर वैली भी दिखाई मंजूर ने। वहां से दूर-दूर तक के नजारे दिख रहे थे। पहाड़ पर मकान और बस्ती तथा चारों तरफ खड़े ऊंचे-ऊंचे सीधे खड़े पेड़। सावधान मुद्रा में।
चलते-चलते करीब घंटे भर में उस जगह पहुंचे जिसे भारत का स्विट्जरलैंड कहा जाता है- बैसरन घाटी। एक जगह चबूतरा सा है जिसके सहारे नीचे उतरे। टिकट लेकर घुस गए स्विट्जरलैंड में। बिना वीसा, पासपोर्ट के।
अंदर घास का बहुत बड़ा, खूबसूरत घास का मैदान था। लोग वहां फोटोग्राफी कर रहे थे , कश्मीरी ड्रेस में फ़ोटो खिंचवा रहे थे। कुछ बच्चे और बुजुर्ग भी साथ में भेंड लिए उनके साथ फ़ोटो खिचाने का आग्रह कर रहे थे। मैदान के बाद दूर-दूर तक पहाड़, हरियाली और आसमान थे। मैदान की बाउंड्री के बाहर स्थानीय घर थे। इतना ही स्विट्जरलैंड दिखा मुझे भारत के स्विट्जरलैंड में।
कुछ लोग अकेले फ़ोटो खींच रहे थे। हमने उनके साथ में खींच दिए। बदले में उन्होंने भी हमसे कहा –‘लाओ आपका भी खींच दें। हमने खिचवाया। वो इतना स्वाभाविक आया था कि देखने लायक भी नहीं। सच अक्सर कड़ुवा ही होता है।‘
एक बच्ची अपनी भेड़ के साथ वहां आई। उसको दिखाकर कुछ पैसे मांगे उसने। मैंने पैसे नहीं दिए। इस पर उसने मुझसे ली हुई फ़ोटो डिलीट करने को कहा। मैंने डिलीट कर दी। बाद में ऐसे कई लोग वहां अपने साथ भेड़ लिए टहलते दिखे जो आसपास ही रहते होंगे। भेंड के साथ फ़ोटो खिंचाने का आग्रह कर रहे थे वो लोग।
मैदान के किनारे कुछ दुकाने भी दिखीं। उनमें से एक में बैठकर हमने चाय पी। साथ में बैठे गुजरात से आए दंपति से बात हुए। पुरुष की बाई पास सर्जरी हुई थी। अपने यात्रा के किस्से भी सुनाए उन्होंने।
करीब घंटे भर भारत के स्विट्जरलैंड में रहने के बाद बाहर निकल लिए। बाहर मंजूर दिखा नहीं तो फिर अंदर आकर बैठ गए। कुछ देर में वह आया और हम साथ में वापस हो लिए। घोड़े हमारा इंतजार कर रहे थे।

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