शंकराचार्य मंदिर देखने के बाद श्रीनगर में देखने के लिए दो बगीचे बचे थे –परी महल और चश्मेशाही। इन जगहों पर अपनी गाड़ी नहीं जाती है। आटो से जाना होता है। दोनों एक रास्ते में पढ़ते हैं। पहले चश्मेशाही फिर परीमहल। चश्मेशाही तक का किराया दस रुपया परीमहल तक का पच्चीस रुपया।
पूरा आटो तो तुरंत मिल जाता है लेकिन अकेले जाने के लिए आटो भरने का इंतजार करना पड़ा। जब सवारी पूरी हुई तब चला आटो।
परीमहल का निर्माण दारा शिकोह ने कराया था। पढ़ने-लिखने के शौकीन दाराशिकोह ने अपने सूफ़ी शिक्षक मुल्ला शाह बदाख़्शी के सम्मान में यहां एक बौद्ध मठ का भी निर्माण करवाया था, जिसे बाद में ज्योतिष विज्ञान के विद्यालय में बदल दिया गया। ऐसी मान्यता है कि पौराणिक समय में यहां झरने हुआ करते थे, जो अब सूख चुके हैं। पहले परी महल, खगोल विज्ञान और ज्योतिष सीखने का एक केंद्र था। बाग सात तलों में बना है । अन्य गार्डन की तरह परी महल में पानी का साधन नहीं है। बगीचे में एक स्प्रींग और एक लॉन है, जहां कई प्रकार के फूल और फल अनेक किस्मों में लगे हुए हैं।
इसकी खूबसूरती के कारण इसको परीमहल कहा जाता होगा। परी महल में जो इमारतें हैं उनमें छेद/आले बने हैं। शायद रोशनी के लिए दिए रखने के इंतजाम के लिए हो।
हर मंजिल पर स्थित बगीचे का रख रखाव अच्छे से किया गया है इसलिए बगीचे खूबसूरत लग रहे थे। इमारत अलबत्ता हर जगह अपनी बुजुरगियत का एहसास करा रही थी।
एक नवविवाहित जोड़ा वहां फ़ोटोबाजी में जुटा था। बातचीत के बाद हमने उसके फ़ोटो खींच दिए। लड़की हमारे खिंचे फ़ोटो देखकर खुश हुई। बोले –‘अंकल आपने अच्छे फ़ोटो लिए हैं।‘ हमारा मन किया फोटोग्राफर हो जाएँ लेकिन मन की बात वहीं खड़े-खड़े खारिज कर दी। शौकिया फ़ोटो खीचना एक बात। पेशे के रूप में फोटोग्राफी करना अलग बात। लाले पड़ जाते हैं दिहाड़ी के। घूमते रहो लोगों के आगे –पीछे। फ़ोटो खिंचा लो , फ़ोटो खिंचा लो। तुरंत डिलीवरी।
पता चला गुजरात से आए हैं वे लोग। प्रेम विवाह हुआ है। शादी में थोड़ा झिकझिक हुई। घरवालों ने पहले एतराज किया फिर मान गए। दोनों कमाते हैं। लड़की आईटी क्षेत्र में,लड़का अपनी दुकान चलाता है। लड़की तेज थी। बातचीत में लड़के को हड़काती जा रही थी। लड़का समझदार था। बिना हील–हुज्जत के जैसा लड़की कहती जा रही थी वैसा करता जा रहा है। गृहस्थी की गाड़ी सही से चलने के लिए समझदारी भी जरूरी होती है।
यह भी लगा कि अगर लड़का-लड़की दोनों आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हों तो उनके प्रेम के विवाह में बदलने की गुंजाइश काफी रहती है।
परी महल घूमघाम कर और बाग-बगीचे के फ़ोटो खींचकर हम बाहर आ गए। आटो करके चश्म-ए-शाही पहुंचे।
चश्म-ए-शाही के बाहर कई दुकाने थीं। खाने-पीने की भी और सामान बेंचने की भी। पहुंचे तो गुजराती जोड़ा वहां मैगी खाता दिखा। हमसे भी उन्होंने मैगी खाने के लिए कहा। हमने धन्यवाद देते हुए मन कर दिया। टिकट लेकर अंदर गए।
चश्म-ए-शाही सम 1632 में बनवाया गया था। मुगल बादशाह शाहजहाँ ने अपने गवर्नर अली मर्दान खां से अपने बेटे दाराशिकोह के लिए इसे बनवाया था। राजभवन के पास स्थित जबरदान पहाड़ी के पास है चश्म-ए-शाही। राजभवन के पास स्थित होने के कारण ही शायद यहाँ आने से पहले हमारे सामान की स्कैनिंग हुई हो।
चश्म-ए-शाही में पानी का एक स्रोत है। इसका खनिज युक्त पानी स्वास्थ्य के लिए उपयोगी माना जाता है। कहते हैं कि यहां का पानी भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी प्रयोग करते थे। इस पानी के स्रोत की खोज कश्मीर की महान महिला संत रूपा भवानी ने की थी। रूपा भवानी कश्मीरी पंडितों के साहब घराने से थीं। इसलिए उनके द्वारा खोजे इस जल स्रोत का नाम ‘चश्म-ए-साहिबी’ रखा गया जो समय के साथ बिगड़ते हुए चश्म-ए-शाही बन गया।
यह बगीचा श्रीनगर स्थित शाही बगीचों में सबसे छोटा है। एक एकड़ जमीन में बना यह बगीचा 108 मीटर लंबा और 38 मीटर चौड़ा है।
बगीचे के सबसे आखिरी में पानी का स्रोत था। तीन स्रोतों से बहता हुआ पानी। लोग उसका पानी पी रहे थे। बोतल में भर रहे थे। हमने भी भी अपनी बोतल में भरा और अगले दिन तक पीते रहे।
वही पानी आगे चलकर नालियों के सहारे बगीचे में इकट्ठा हो रहा था। बगीचे के बीच में बहता हुआ पानी बगीचे की सुंदरता में इजाफा कर रहा था।
बगीचे में लोग उसकी सुंदरता को निहारते और तारीफ करते हुए फ़ोटो खिंचा रहे थे। वो गुजराती जोड़ा भी कश्मीरी ड्रेस में अपनी यादें सँजो रहा था। फ़ोटो खिंचा रहा था।
हम कुछ देर वहां रहकर बाहर आ गए। चश्मेशाही के बाहर कबूतर और दूसरे पक्षी गुटरगू और गुफ्तगू करते हुए मजे से उड़ रहे थे। कोई-कोई तो उड़कर अंदर टहलकर बाहर भी आ जाता। उनके लिए कोई टिकट नहीं था।
वहीं पर मौजूद चाय की दुकान पर चाय पीते हुए बिस्कुट खाए। बीस रुपए की चाय , दस रुपए का बिस्कुट। कश्मीर जाने के पहले कुछ दिन से चाय बिना चीनी के पीने लगे थे। कश्मीर यात्रा में यह परहेज स्थगित कर दिया। जैसी मिले वैसे पीते रहे चाय। बिना चीनी की चाय की जिद नहीं की। यात्राएं तमाम परहेज खत्म करती हैं।
चाय बहुत अच्छी बनी थी। उसको पीते हुए वो गुजराती जोड़ा वापस जाता हुआ दिखा। आटो में बैठते हुए उसने हमसे साथ चलाने की पेशकश की। चाय छोड़कर जाने का मेरा मन नहीं हुआ। उन्होंने भी सामने दिख जाने के कारण पूछ लिया होगा। हमने उनका निकलने के लिए कहा –‘तुम लोग चलो, हम आते हैं।‘
इस बीच हमारे एक बहुत अजीज मित्र का फोन आ गया। उन्होंने मुझे दो बातों के लिए जमकर हड़काया- ‘ट्रांसफर हुआ तो बताया नहीं और कश्मीर अकेले क्यों चले गए। भाभी जी को क्यों साथ नहीं लाए।‘ मित्र की हड़काई सुनकर चाय का स्वाद बढ़ गया। आपको बिना स्वार्थ के टोकने वाले , हड़काने वाले आपके लिए नियामत हैं। वह व्यक्ति बड़ा अभागा होता जिसे कोई टोकने वाला मित्र नहीं होता।
आज मित्रता दिवस है । मुबारक हो। किसी मित्र को हड़काकर या किसी से हड़ककर मित्रता दिवस मनाएँ।
चाय खत्म करके दूसरी पीने का मन हुआ लेकिन चाय वाले ने कहा –‘अभी समय लगेगा। ‘
हम वापस लौट आए। आटो स्टैंड पर हमारे ड्राइवर हमारा इंतजार कर रहे थे। उनके साथ हम होटल वापस लौट आए।
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