पहलगाम में रामदेव जी मिलने और अमरनाथ यात्रियों के कैंप बाहर से देखने के बाद वापस लौट आए। लौटते हुए लिड्डर नदी को एक बार फिर मन लगाकर देखा। नदी तो अभी भी वहीं बह रही होगी । हजारों किलोलीटर पानी उसमें बह चुका होगा। लेकिन उसके इठलाते हुए बहने का दृश्य मेरे जेहन में जस का तस स्थिर है।
नदियां अपने उद्गम के पास इठलाती हुए बहती हैं। ऐसे जैसे बच्चियाँ बचपन में अपने घर में खिलंदड़े अंदाज में उछल-कूद करती रहती हैं। आगे जाकर अधिकांश नदियों की गति धीमी हो जाती है। उनका पानी गंदा हो जाता है। अतिक्रमण हो जाता है उनके किनारे। यह सब कुछ ऐसे ही जैसे लड़कियां दूसरे के घर जाकर तमाम बंदिशों और जिम्मेदारियों और विपरीत परिस्थितियों में जीते हुए रहती हैं। नदियाँ और स्त्रियाँ दोनों जीवन दायिनी होती हैं। दोनों की जीवनचर्या लगभग एक सरीखी होती है।
नहा-धोकर नाश्ता किया और चलने के लिए तैयार हो गए। दो दिन का कमरे का किराया 3000 रुपए और चाय, दूध खाने का खर्च 820 रुपए हुए। भुगतान करके अटेंडेंट के साथ फ़ोटो खिंचवाए और ड्राइवर का इंतजार करने लगे।
ड्राइवर की तबियत एक दिन नासाज रहने के बाद कुछ ठीक हो गई थी। उसके आने तक सामने काम करने वाले बढ़ई से बतियाए। सामने की काटेज बन रही थी। पास के गाँव से काम करने आते हैं मोहम्मद रफीक। काम के बारे में पूछने पर बताया कि अंदर का लकड़ी का काम तो लगभग साल भर मिलता रहता है। बारिश और जाड़े में बाहर के काम करना मुश्किल हो जाता है।
29 साल के रफीक हाल ही में तीसरे बच्चे के पिता बने हैं। अपने बच्चे और पत्नी जानम के फ़ोटो भी दिखाए उन्होंने हमें। परिचित , रिश्ते में ही विवाह हुआ था हनीफ़ का। अपने परिवार से खुश हैं।
29 साल में तीन बच्चों के बाद और बच्चे होने की आशंका से कुछ डरे लगे रफीक को मैंने आपरेशन कराने की सलाह दी तो उनका कहना था –‘पैसे का इंतजाम करवा के करवाएंगे।‘
हमने बताया –‘ये आपरेशन तो मुफ़्त होते हैं। अस्पताल में चले जाओ। आपरेशन करवाओ। घर चले आओ। मस्ती में जीवन बिताओ।‘
मुफ़्त आपरेशन की जानकारी रफीक के लिए आश्चर्य का विषय थी। इसके प्रति उत्साहित हुए लेकिन उनको शंका थी कि कहीं इससे आदमी में मर्दानगी में कमी नहीं तो नहीं हो जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो उनका पारिवारिक जीवन बेपटरी हो सकता है।
हमने एक विशेषज्ञ की तरह पूरे विश्वास के साथ (अज्ञानी का आत्मविश्वास तगड़ा होता है) उनको आश्वस्त किया –‘ऐसा कुछ नहीं होता है। फटाफट आपरेशन करवाओ। चैन की वंशी बजाओ। चिन्ता मुक्त हो जाओ।‘
और भी तमाम बातें हुई रफीक से। उनके बचपन के बारे में, उनके घर-परिवार-समाज के बारे में। बेमतलब की। आवारगी जैसी। आवारगी से याद आया मुस्तक युसूफ़ी साहब की बात –‘मूंगफली और आवारगी में खराबी यह है कि आदमी एक दफा शुरू कर दे तो समझ नहीं आता, खत्म कैसे करें।‘
कुछ देर में ड्राइवर साहब आ गए। हम सामान और खुद को गाड़ी में लादकर वापस श्रीनगर के लिए चल दिए ।
रास्ते में वही जगहें मिलीं जिनको देखते हुए आए थे। सड़क की दाईं-बाई तरफ सेव और दीगर फलों के बगीचे थे। एक बगीचे में रुके हम लोग। कई एकड़ में फैले बगीचे में तरह-तरह के सेव और दूसरे फल दिखे। सेव अभी पके नहीं थे। बताया गया कि एक महीने में पाक जाएंगे। दूर-दूर जाते हैं सेव यहां से बिकने के लिए।
जो बच्चा बगीचा घुमा रहा था मुझे उससे मैंने उसकी पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछा। बताया ग्यारहवीं में पद्धत है बच्चा। उसकी हावी और दोस्तों के बारे में पूछा। यह भी कि उसके क्लास में लड़कियां भी साथ पढ़ती हैं या नहीं। उसने बताया –‘हां लड़के-लड़कियां साथ पढ़ते हैं।‘
हमने पूछा –‘लड़कियों से दोस्ती है कि नहीं?’
उसने बताया- ‘नहीं।‘ आगे यह भी कहा- ‘लड़कियों से दोस्ती उसको पसंद नहीं।‘
हमने फिर पूछा-‘ लड़कियों से दोस्ती क्यों पसंद नहीं है?’
उसने कहा –‘क्योंकि उसको लड़कियों का साथ पसंद नहीं है।‘
हमने पूछा- ‘क्यों लड़कियों का साथ क्यों पसंद नहीं है? आगे शादी होगी तब कैसे निभेगी अगर लड़कियों का साथ पसंद नहीं?’
उसने कहा-‘ शादी की जब होगी तब की बात अलग। अभी इसलिए पसंद नहीं क्योंकि उनसे दोस्ती में लड़के बिगड़ जाते हैं। ‘
हमने पूछा- ‘कैसे? किस तरह बिगड़ जाते हैं लड़के लड़कियों से दोस्ती करने में?’
उसने बताया-‘ लड़कियों से दोस्ती में लड़के उनसे मिलते-मिलाते हैं। साथ घूमते है। उससे उनका ध्यान बँटता है। पढ़ाई प्रभावित होती। फिर जब दोस्ती के बाद ब्रेक अप हो जाता है तो लड़के नशे के चक्कर में पड़ जाते हैं।‘
बालक यह बता ही रहा था कि सामने सड़क पर एक लड़का-लड़की बात करते दिखे। उसने उनकी तरफ इशारा करते हुए बताया। वो देखिए उनकी दोस्ती है। वे बात कर रहे हैं।
मैंने बच्चे से पूछा-‘ तुम उनको जानते हो?’
बालक ने कहा –‘हां, वो मेरे क्लास में पढ़ते हैं।‘
हमने कहा –‘हमारी बात कराओ उनसे।‘
बच्चा थोड़ा झिझक गया। शायद सोचने लगा कि कैसे बात करवाये। तब तक हमने खुद आगे बढ़कर उन बच्चों से कहा –‘ये बता रहा है कि तुम लोग इसके साथ पढ़ते हो।‘
दोनों ने लड़के की तरफ देखते हुए कहा –‘हाँ।‘
इसके बाद हमने उन बच्चों से बात की। ज्यादातर बात लड़की ने ही की। बहुत खूबसूरत बच्ची , मुझसे बेझिझक बात कर रही थी। उसका घर बगीचे के पीछे ही है। घर में माँ-पिता और छोटा भाई हैं। पढ़ाई-लिखाई और हावी आदि के बाद लड़की ने मुझसे पूछा –‘आप कहाँ से आए हैं? अमरनाथ यात्रा के लिए आए थे क्या?’
हमने बताया। करीब पाँच मिनट की बात के बाद लड़की ने कहा-‘ घर चलिए आपको चाय पिलाएं?’
हमने कहा –‘अभी हमको श्रीनगर जाना है। चाय फिर कभी आएंगे तब पियेंगे। दूसरी बात हमको चाय पिलाने ले चलोगी तो घर में अब्बू डाँटेंगे तुमको कि किस सड़क चलते को ले आई चाय पिलाने के लिए।‘
इस पर लड़की ने कहा- ‘मेरे अब्बू मुझे नहीं डाँटेंगे। वो मुझे कभी नहीं डांटते। वैसे भी आजकल वो अमरनाथ यात्रा के लिए काम पर गए हैं।‘
प्यारी बच्ची का आत्मविश्वास देखकर बहुत अच्छा लगा। वह अपने घर चली गई।
हमने वहाँ सेव का रस पिया। जैम और कुछ आचार खरीदा और आगे बढ़ लिए।
रास्ते में जमींदार केसर किंग की दुकान पर रुके। जलालउद्दीन जी ने फिर कहवा पिलाया और दुबारा आने को कहा।
एक जगह ड्राइवर ने बताया –‘यहां क्रिकेट के बल्ले बनते हैं।‘
हमको कश्मीर में क्रिकेट तो खेलना नहीं था तो बिना रुके आगे बढ़ गए।
दोपहर बाद श्रीनगर पहुच गए। सबसे पहले दवा की दुकान से दवा ली और वापस उसे होटल पहुंचे जहां से गए थे। वही कमरा नंबर भी वही (106) जिसमें जाते समय ठहरे थे।
कुछ देर आराम करने के बाद शाम को बाकी बचा हुआ श्रीनगर देखने के लिए निकल लिए।
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