एक दिन घर के पास घूमते हुए एक लाइब्रेरी दिखी। शहर की पब्लिक लाइब्रेरी फ़ास्टर सिटी पब्लिक लाइब्रेरी। घर से 1.1 मील (1.77 किलोमीटर) दूर। नक़्शे के हिसाब से 22 मिनट की दूरी। कल देखने गए लाइब्रेरी।
लाइब्रेरी के अहाते के ज़मीन के पत्थरों में कई प्रसिद्ध लेखकों के नाम खड़े थे। लाइब्रेरी के दरवाज़े के सामने पत्थर पर अंग्रेज़ी में लिखा था:
“Books are keys to wisdom's treasure;
Books are gates to lands of pleasure;
Books are paths that upward lead;
Books are friends. Come, let us read.”
― *Emilie Poulsson
(पुस्तकें ज्ञान के खजाने की कुंजी हैं; पुस्तकें सुख की भूमि का द्वार हैं; किताबें वो रास्ते हैं जो ऊपर की ओर ले जाती हैं; किताबें दोस्त हैं, आइए, पढ़ते हैं।)
किताबों की बारे में एमली पालसन की यह कविता पढ़ने के पहले ही अपन की किताबों से दोस्ती हैं और मानते हैं कि किताबें तमाम अलाय-बलाय से बचाती हैं।
जिस पत्थर पर यह कविता लिखी थी उसका फ़ोटो लेते समय पैर का जूता फ़ोटो में आ रहा था। हमने जीभ दाँतो के नीचे दबाकर पैर पीछे किया और फ़ोटो खींचा। फ़ोटो खींचने के बाद आगे बढ़े।
लाइब्रेरी का दरवाज़ा स्वचालित है। पास पहुँचते ही खुल गया। घुसते ही गेट की बायीं तरफ़ लाइब्रेरी से सम्बंधित तमाम नोटिस लगी थी। एक नोटिस में आत्मकथा लिखना सिखाने की सूचना थी। आभासी माध्यम से। कोई अनुभव नहीं। ग्रुप से जुड़ो। लिखना सीखो। नोटिस पुरानी थी लेकिन लिखना सिखाने के लिए लाइब्रेरी प्रयास करती हैं यह पता चला।
लाइब्रेरी में घुसते ही सैनिटाइज़र और मास्क रखे थे। कोरोना से बचाव के उपाय। ज़्यादातर लोग हाथ साफ़ करके ही लाइब्रेरी में घुस रहे थे।
लाइब्रेरी में घुसते ही एक कमरे में डिसकाउंट पर मिलने वाली किताबें रखीं थी। कई रैक्स में पूरी कमरा भर किताबें। किताबें पलट-पलट कर देखते रहे कुछ देर। एक किताब The Orphan Collector पलटते हुए एक पन्ने पर लिखा दिखा :
This is America, they need to learn our language or go back wherever they came from.
(यह अमेरिका है । उनको हमारी भाषा सीखनी पड़ेगी नहीं तो जहां से आए हैं वहाँ लौट जाएँ)
अमेरिका के बारे में लिखा यह वाक्य किसी भी जगह के बारे में सही है। जहां रहें उसके तौर-तरीक़े सीखना ज़रूरी है।
तमाम किताबें पलटते हुए बिल गेट्स की लिखी एक किताब -The speed of thought भी दिखी। 16.96 डालर की मूल दाम की किताब 2 डालर की मिल रही थी। किताब के पन्ने पलटते हुए उसे लेने का मन किया। हमने काउंटर पर भुगतान का करने के बारे में पूछा। पता चला -‘वहीं क्यू आर कोड से मोबाइल एप से आनलाइन भुगतान कर दीजिए।’ हमारे पास अमेरिका में मोबाइल एप से भुगतान करने की सुविधा नहीं थे। हमने पूछा -‘गूगल पे से हो जाएगा यहाँ भुगतान?’
बताया गया-‘नहीं। गूगल पे यहाँ नहीं चलता। नक़द भुगतान कर सकते हैं।’
नक़द भुगतान में मेरे पास एक डालर का नोट और खूब सारी रेज़गारी थी। मुझे पता नहीं था कि सारी रेज़गारी मिलकार एक डालर से कम से थी या ज़्यादा। हमने अपनी समस्या बताई। काउंटर पर मौजूद लाइब्रेरियन ने मुस्कराते हुए कहा -‘आप किताब ले जाइए। कल भुगतान कर दीजिएगा। खुद न आ पाएँ तो किसी से भेज दीजिएगा।’
पैसे भुगतान की समस्या पर कुछ और सवाल-जबाब हुए तो लाइब्रेरियन ने कहा -‘आप किताब ले जाइए। पैसे के बारे में चिंता न करें।’
लेकिन हमको मुफ़्त में किताब ले जाना जमा नहीं। हमने मेहनत करके सारी रेज़गारी जमा की। कुल मिलाकर दो डालर से अधिक ही होंगे। काउंटर पर दिए। उसने लिए नहीं। बोली -‘वहीं बक्से में डाल दीजिए। किताब ले लीजिए।’
हमने पैसे डाल दिए। लाइब्रेरियन ने न किताब देखी। न पैसे गिने। किताब पाकर हमारी ख़ुशी से से खुश हो गयी।
बाद में पता चला कि डिस्काउंट में मिलने वाली किताबें वो किताबें हैं जिनको लोग लाइब्रेरी को दान दे देते हैं। लाइब्रेरी वाले उनको बेंचकर लाइब्रेरी के लिए नई किताबें ख़रीदते हैं।
किताब लेकर हमने पूरी लाइब्रेरी घुमी। तमाम लोग पढ़ रहे थे। बच्चों के सेक्सन में किताबों के साथ, डीवीडी और कम्प्यूटर वग़ैरह भी थे। कुर्सियों के साथ सोफ़े भी लगे थे। बच्चे अपने अभिभावकों के साथ पढ़ रहे थे। कुछ बच्चे फ़र्श पर बैठे कलरिंग कर रहे थे।
दूसरी तरफ़ बड़े लोगों की किताबें थीं। हज़ारों की संख्या में होंगी किताबें। जगह-जगह कम्प्यूटर भी लगे थे। लोग उन पर लाग इन किए हुए पढ़ रहे थे।
लौटकर फिर काउंटर पर आए। लाइब्रेरियन से हमने पूछा -‘यहाँ का फ़ोटो ले सकते हैं?’
उसने कहा -‘यह पब्लिक प्लेस है। आप फ़ोटो ले सकते हैं। लेकिन किसी को एतराज हो तो उसका फ़ोटो न लें।’
हमने लाइब्रेरी के फ़ोटो लिए। लाइब्रेरियन का भी। फ़ोटो लेने से पहले पूछने पर मुस्कराते हुए लाइब्रेरियन ने कहा -‘आप ले सकते हैं। वैसे मुझे पोज देना पसंद नहीं।’
बातचीत का सिलसिला शूरु हुआ तो पता चला कि लाइब्रेरियन जेना मूलतः सिंगापुर की है। 2008 से लाइब्रेरी में काम कर रही हैं। कई जगह तबादले होते हुए यहाँ आईं। लाइब्रेरी का काम पसंद है इसीलिए यहाँ पढ़ाई की और नौकरी भी। जेना (Jenna) नाम है। जेना के सर के कुछ बाल हरे थे। शायद रंगाए होंगे। हर रंग पसंद होगा। साथ खड़ी महिला से दोस्ताना अन्दाज़ में बतियाते हुए जेना किताबें इशू करती रही। हमसे भी बात करती रहती। बाद में पता चला साथ वाली महिला लाइब्रेरी इंस्पेक्शन के लिए आई है। मूलतः सिंगापुर की रहने वाली है। उसके बैज पर नाम लिखा था -नूरी।
लाइब्रेरी के काउंटर के पास ही छुटकी सी थ्री डी प्रिंटिंग मशीन रखी थी। थ्री डी प्रिंटिंग जटिलतम पार्ट्स के उत्पादन की आधुनिक तकनीक है। इसकी सहायता से किसी भी आकार का पार्ट बनाया जा सकता है। इस तकनीक की जानकारी देने के विचार से यह छोटी मशीन वहाँ रखी थी। कई तरह के आकृतियाँ बनाकर लोग समझ सकते हैं कि थ्री डी प्रिंटिंग कैसे होती है। लोग अलग-अलग तरह की आकृतियाँ बना रहे थे। सब कुछ मुफ़्त था।
हमने भी एक थ्री डी आकृति बनाई। अपने नाम के पहले अक्षर A को प्रिंट किया। प्रिंटिंग विकल्प चुनते ही मशीन काम पर लग गयी। प्लेटफ़ार्म ऊपर उठा। सेवईं की तरह का प्लास्टिक का धागा मशीन से निकला और प्रिंटिंग होनी लगी। दस मिनट क़रीब मशीन का हेडर इधर-उधर हिलता-डुलता रहा और आकृति बनती रही। आख़िर में A बन गया। हमने वहीं मौजूद चाकू की सहायता से उसको निकाला। जेना को दिखाया। वो मुस्कराते हुए बोली -‘अच्छा बना है। इट्स गुड।’
हमने पूछा -‘इसे मैं ले जा सकता हूँ?’
जेना बोली -‘हाँ। ये आपका है। आप ले जा सकते हैं।’
इस बीच लाइब्रेरी का समय समाप्त हो रहा था। बीस मिनट पहले उन्होंने माइक पर लोगों को बताया कि लाइब्रेरी बंद होने में बीस मिनट बचे हैं। दस मिनट पहले भी घोषणा की। पाँच बजे लाइब्रेरी बंद होने लगी। और लोगों के साथ हम भी बाहर निकल आए।
लाइब्रेरी में एक घंटा गुज़ारकर महसूस हुआ कि यहाँ बच्चों को पढ़ने के लिए उत्साहित करने का अच्छा माहौल है। लोग लाइब्रेरी आते हैं। बैठकर पढ़ते हैं। रखरखाव बहुत अच्छा है।
लाइब्रेरी की संख्या खोजते हुए नेट पर देखा तो पता चला अमेरिका में कुल 117,341 लाइब्रेरी हैं। इसके मुक़ाबले भारत में 54,856 पब्लिक लाइब्रेरी हैं। दुनिया भर में कुल 2600000 (26 लाख) लाइब्रेरी हैं।
संख्या की बात से ज़्यादा ज़रूरी बात लाइब्रेरी का रखरखाव है। अपने यहाँ लाइब्रेरियों के रखरखाव और सुविधाओं पर बहुत कुछ किये जाने की गुंजाइश है।
लौटते हुए शाम को गयी थी। सूरज भाई भी अपनी लाइब्रेरी बंद करके जाने वाले थे। जाते हुए मुस्कराते हुए बोले -‘कुछ पढ़ाई-वढ़ाई भी किया करो। ख़ाली लाइब्रेरी घूमने से कुछ नहीं होता।’
सूरज भाई मज़े लेने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते।
हम सूरज भाई को बाय बोलकर घर आ गए।
https://www.facebook.com/share/p/MN2WH1c8yJbqXZpT/
No comments:
Post a Comment