कल इंटरनेट शाम तक नहीं आया। एलेक्सा दिन भर मुंह फुलाये रही। लाइट नहीं जलाई। बाद में जब अंधेरा लगा का तार निकालकर सीधे स्विच में बिजली का प्लग लगाया। लाइट जलाई।
अभी तो एलेक्सा अकेली है। काम नहीं किया तो उसको हटा दिया। लेकिन कल को कृत्रिम बुद्धि बहुमत में हो जाएगी तो इतना आसान थोडा उसका प्लग निकालना। हल्ला-गुल्ला, धरना-प्रदर्शन हो जाएगा। क्या पता उनका भी ट्विटर खाता हो जाये और वो हमें हमारे खिलाफ ट्विटरबाजी करते हुए ट्रोलिंग शुरू कर दें जैसे किसी भी बात पर जमूरे लोग आजकल करने लगते हैं।
आखिर में इंटरनेट शाम को बहाल हुआ। एलेक्सा ने रात को गुडनाइट कहने पर बिजली बंद की।
आज सुबह बढिया धूप खिली थी। सोचा था कहीं घुमने जाएंगे। सोच तो लिया लेकिन थोड़ी-थोडा देर करते हुए समय टहलता रहा। देखते-देखते दोपहर हो गयी। घूमना शाम के लिए टल गया।
पहले सोचा कि सैन फ्रांसिस्को घूम आएं। घण्टे भर के करीब दूरी पर होगा। गोल्डन ब्रिज घूम आएं। पियरे घाट देख आएं। भीड़ भड़क्का देखेंगे कुछ। लेकिन फिर बाढ़ की एडवाइजरी की बात सोचकर नहीं गए। अब अगले कुछ दिन तो बारिश ही बारिश है। आसपास ही टहल पाएंगे।
इस बीच बिजली भी गुल हो गयी। लगता है मेरी कल की पोस्ट एलेक्सा और इंटरनेट ने बिजली को भी पढ़ा दी। वह भी बहक गई। बिना बताए फूट ली। बाद में सन्देश आया कि बिजली कुछ देर नहीं आएगी। कितनी देर नहीं आएगी यह भी नहीं बताया। बस गोल हो गई। सब अपनी मर्ज़ी के मालिक।
निकली गई तो अंधेरा हो गया। इंडक्शन चूल्हा, माइक्रोवेव सब निठल्ले हो गए। इंटरनेट भी चला गया। हमें लगा इंटरनेट और बिजली दोनों सुनहरी धूप में कहीं डेटिंग पर चले गए। जब इंटरनेट नहीं तो एलेक्सा भी गोल। ऐसा लगा हम कहीं गांव-देहात में आ गए।
कल जब देर तक इंटरनेट गायब रहा था तो पास के माल वाले भी दुकान बंद करके निकल लिए थे। जब बिल ही नहीं कट पायेगा तो काहे को बैठना। लेकिन आज आज मॉल खुला था। शायद कोई वैकल्पिक व्यवस्था की हो।
बेटे ने बताया कि दो साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि बिजली गई हो। शायद बिजली हमको अमेरिका में कानपुर का एहसास दिलाने के लिए चली गई हो। कानपुर होता तो बिजली विभाग में फोन करके लाइनमैन और सम्बंधित स्टाफ, अफ़सर को फोन करके पूछते कि बिजली क्यों गई। कब आएगी लेकिन यहां किसको फोन करें, पता नही नहीं। कोई चारा नहीं सिवाय इंतजार के।
बिजली गयी तो कल्पना करने लगे कि अगर देर न आई तो क्या करेंगे। अपने यहां तो दो-तीन चार दिन तक कि बिजली गुल का अनुभव है। कभी कोई केबल फूंक गयी, कभी ट्रांसफार्मर। यहां भी ऐसा हुआ होगा क्या? इधर पानी भरा है कई जगह। क्या पता कोई केबल फुंक गया हो। अपने इधर भी गर्मी और बरसात में ऐसा अक्सर होता है।
सोचने लगे कि अगर बिजली नहीं आई तो खाना बाहर खाएंगे। मंगवा लेगे। लेकिन कुछ देर बाद जब मोबाइल की बैटरी खत्म हो जाएगी तब कैसे मंजवाएंगे। कहीं जाएंगे कैसे? सब काम तो यहाँ मोबाइल, इंटरनेट के भरोसे हैं। क्या पता कुछ देर बाद बैटरी के बल और चलने वाला सुरक्षा सिस्टम भी बोल जाए, कोई भी घुस आए। लिफ्ट तो खैर बैठ ही गयी थी।
लेकिन बहुत ज्यादा चिंता कर पाते तब तक बिजली आ गई। तीन-चार घण्टे गायब रही होगी। पूछने की हिम्मत नहीं हुई हमारी कि कहां गयी थी, किसके साथ गयी थी। क्या पता बुरा मान जाए। इंटरनेट अलबत्ता अभी तक नहीं आया। क्या पता वीकेंड पर कहीं किसी के साथ निकल गया हो। एलेक्सा भी नदारद है।
इस बीच मोबाइल वाले इंटरनेट से काम चल रहा है। फोन की जो सुविधा ली थी उसके हिसाब से इंटरनेट तो चालू हो गया लेकिन फोन कॉल अभी भी नहीं चल रही। दस दिन हुए अभी तक ऐसा ही चल रहा। यह तो हाल हैं अपनी फोन सेवा प्रदाता कम्पनियों के।
दोपहर को घण्टी बजी। दरवाजा खोला तो एक एलक्ट्रिशियन था। एक हाथ में छुटकी सीढ़ी और दूसरी में ट्यूबलाइट लिए था। कुल जमा 5 मिनट में ट्यूबलाइट बदलकर चला गया शुभ दिन बोलकर। अपने यहां लोग इतनी हड़बड़ी में नहीं रहते। आराम से काम करते हैं।
बिजली वाली बात से याद आया कि दो दिन पहले पैदल पुल पर बिजली के तार या स्विच की सुरक्षा के लिए एक जगह ताला लगा देखा। इलेक्ट्रॉनिक तालों के बीच पहला चाबी वाला दिखा। ताले पर 'अमेरिकन ताला' लिखा था। अमेरिकन ताला भी अलीगढ़ी ताला टाइप कोई ताला होगा। खुले में लगे होने के चलते कुंडे पर जंग लग गयी थी।
बिजली वाली बात से याद आया कि यहाँ दस दिन में कही बिजली के तार पर कोई कटिया नहीं दिखी। न किसी जगह चौराहे पर , नुक्कड़ पर गपियाते लोग। हल्ला-गुल्ला, अबे-तबे का भी नितांत अभाव दिखा। लगा पूरा अमेरिका चुपचाप काम में मशगूल है।
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