Tuesday, February 13, 2024

पुस्तक मेले में विमोचनबाजी

  

पुस्तक मेले में किताबों की दुनिया में पहुँचते ही विमोचन दृश्य दिखने लगे। हर अगली स्टाल पर विमोचन होता दिखा। कुछ मिशनरी विमोचक भी दिखे। लेखक के साथ आये, दुकान से किताब उठाई, किताब को सीने से सटाया, फ़ोटो खिंचाई, लेखक से हाथ मिलाया और किताब सहित अगले विमोचन के लिए निकल लिए।
हमने एक दुकान वाले से पूछा भी कि ये पुस्तक विमोचक तुम्हारी किताबें क़ब्ज़े में करके निकल लिए तुम देखते रह गए।
उसने बताया कि -‘देखते नहीं रह गये। हम ध्यान से देखते रहते हैं। किताब विमोचक के नाम चढ़ा देते हैं। उनको बिल भेजेंगे। छोड़ेंगे नहीं।’
हमको दुकानदार की निष्ठुरता पर बड़ा ग़ुस्सा आया। समझ में नहीं आया कि जिस चीज की चोरी तक को अपराध नहीं माना जाता उसको सामने-सामने ले जाने पर उसके पैसे बाद में देने पड़ें। मतलब इंसानियत का चलन ही ख़त्म हो गया।
विमोचन करने वाले कभी-कभी किताब विमोचन करते हुए लोग यह भी सुनिश्चित करते दिखे कि सीने से सटी किताब उल्टी नहीं पकड़े हैं।
हमारे न्यूवर्ल्ड पब्लिकेशन पहुँचते ही वहाँ प्रेम जनमेजय जी और साथ ही लालित्य ललित जी वहाँ पहुँचे। प्रेम जी , लालित्य ललित जी और अपन की किताब का किताब वहाँ विमोचन हुआ । फ़ोटो भी हुए। पता नहीं किसने खींचें थे फ़ोटो। लालित्य भाई जुगाड़ करके मँगवा दें तो मेले में हुए पहले विमोचन की याद साथ रहेगी।
प्रेम जी ने आरिफ़ा एविस से हमारी किताब ख़रीदी। लेकिन हमारी हिम्मत नहीं हुई कि फ़ौरन हम भी उनकी किताब ख़रीद लें। बाद में अगले दिन हालाँकि हमने प्रेम जी की, हरीश नवल जी की और कई व्यंग्यकार साथियों की किताब ख़रीदी। अरविंद तिवारी जी और प्रमोद ताम्बट जी किताबें हम पहले ही आज लाइन मँगवा चुके थे।
श्रीलाल शुक्ल जी ने अपने लेखन के बारे में टिप्पणी करते हुए लिखा है -‘मेरा अधिकतर लेखन मुरव्वत का लेखन है।’
इसी तर्ज़ पर पुस्तक मेले से अधिकतर ख़रीद मुरव्वत की ख़रीद होती है। मित्र लेखकों की किताबें ख़रीदने में सोच की गुंजाइश कहाँ होती है।
न्यूवर्ल्ड पब्लिकेशंस के सामने ही डा पवन विजय खड़े दिखे। देखते ही कस के गले पड़ गये। हड्डी जकड़ गई, साँस उखड़ने को हुई। अपने हाल देखकर हमको उन राष्टाध्यक्षों के हाल याद आए जो बुज़ुर्गियत की उम्र में विश्व सम्मेलनों लपक के आपस में कड़क आलिंगन करते हैं।
पवन विजय जिस गर्मजोशी से गले मिले उसको संतुलित करने के लिये उन्होंने मिसरा पढ़ा -‘ तुम्हई देखि शीतल भई छाती।’ यह एहसास हुआ कि हम आदतन बात और व्यवहार में 36 का आँकड़ा रखने के लिए कितना सजग रहते हैं। हमको अंदेशा हुआ सर्दी के मौसम में कहीं ठंड न लग जाये। लेकिन फिर बात किताबों की होनी लगी और बात आई-गई हो गई।
किताबों की बात शुरू हुई तो पता चला कि डॉ किरण मिश्रा का ताज़ा आया कविता संकलन ‘ब्रह्मांड का घोषणापत्र एवं अन्य कवितायें’ सामने सर्व भाषा ट्रस्ट पर मौजूद था। कविता संकलन ख़रीद कर उसका विमोचन किया गया। कविता संकलन के विमोचन के बाद पवन विजय ने अपने उपन्यास ‘जोगी-बीर’ के साथ भी फ़ोटो खिंचवा ली। किताब ख़रीदकर उसका भी विमोचन किया गया।
इस बीच मनु कौशल जी भी सपत्नीक वहाँ पधारे। मनु जी आजकल आलोक पुराणिक जी के साथ दिल्ली के लोगों को टहलाते हुए दिल्ली की विरासत से लोगों को रूबरू कराते हैं। वाक कराते समय मनु जी के अंदर ग़ालिब , खुसरों और दीगर बुजुर्गों की आत्मायें आकर लोगों को गुजरे जमाने की दास्तान सुनाती रहती हैं। मनु जी ने भी हमारी ख़िताब ख़रीदकर उसका विमोचन किया।
इस सिलसिले को आगे बढ़ाते आयुध निर्माणी के वरिष्ठ कथाकार गोविंद उपाध्याय जी ने अपना नवीनतम संग्रह ‘बिना पते वाला आदमी’ हमको भेंट किया। देश की हर प्रतिष्ठित पत्रिका में गोविंद जी की कहानियाँ छप चुकी हैं। तीन दशक से भी अधिक समय से लिखते हुए गोविंद जी के छपने का सिलसिला बीस साल पहले 2004 में शुरू हुआ और अभी तक कुल जमा 19 कहानी संग्रह और उपन्यास आ चुके हैं। हमने भी अपनी लेखकीय प्रतियों में से एक प्रति वहीं से लेकर गोविंद जी को भेंट की। उसके साथ फ़ोटो भी खिंचवा ली। एक और विमोचन संपन्न हुआ।
फ़ेसबुक पर हमारे मेले में आने की सूचना पढ़कर कालेज के साथी भोपाल सिंह और उनसे जानकारी लेकर मनोज भी वहाँ आये और किताब लेकर साथ में फ़ोटो खिंचायी। मनोज अपने तख़ल्लुस ‘जानी’ के नाम से व्यंग्य लेख भी लिखते रहे हैं पिछली सदी से। कई सम्मान भी पाये हैं किताबों पर। फ़ोटो खिंचाते हुए भोपाल सिंह ने कहा -‘ऐसे फ़ोटो लीजिए ताकि लगे कि आप हमको किताब भेंट कर रहे हैं। फ़ोटो देखकर और दोस्त आयेंगे। हमने फ़ोटो अभी तक लगाया ही नहीं लिहाज़ा दोस्त लोग अभी तक आये नहीं।
भोपाल सिंह और मनोज के वहाँ रहते हुए राजीव भी सपरिवार पहुँचे वहाँ। राजीव हमारे कॉलेज के हैं और जबलपुर में हमारे साथ काम भी कर चुके हैं। चार साल। काम के सिलसिले की राजीव की एक मज़ेदार अदा यह थी थोड़ा सा भी लीक से हटकर काम हुआ तो करने से रस्मी तौर मना कर देते फिर हमारे कहने पर कॉलेज और दफ़्तर को दोहरी वरिष्ठता के लिहाज़ करते हुए राजी हो जाते कहते हुए -‘होना तो नहीं चाहिए लेकिन आप कह रहे हैं तो कर देते हैं।’ इस तरह कई काम हमारे खाते में चढ़ाते हुए राजीव ने किए। आजकल लोक सेवा आयोग में प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली में तैनात हैं।
राजीव की पत्नी हिमानी भी साथ में थीं। हिमानी बहुत अच्छी चित्रकार और कथाकार हैं। बच्चों के लिए शिक्षाप्रद स्केच और कहानी की किताबें लाना चाहती हैं। जल्द ही आनी चाहिए।
राजीव और हिमानी के साथ भी किताब के फ़ोटोबाज़ी हुई ।
फ़ोटो और विमोचन का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए आरिफ़ा ने भी अपनी ही दुकान से किताब ख़रीदकर विमोचन किया। आरिफ़ा से वर्षों पुरानी जान पहचान और बातचीत के बाद मुलाक़ात पहली बार हुई। आरिफ़ा की कोशिश और बार-बार आग्रह के चलते ही मेरा यह व्यंग्य संकलन आ पाया। सजग संपादक का काम करने के चलते इधर आरिफ़ा की लिखाई में कुछ रुकावट आई है। उम्मीद है कि सिलसिला फिर ज़ोर पकड़ेगा।
आलोक निगम भी इतवार होने के चलते छुट्टी के कारण आये मेले और फिर घटनास्थल पर भी। आलोक अपनी पोस्टों में गणित के सवालों से लोगों के बीच अपने ज्ञान का आतंक मचाते रहते हैं। ग़नीमत है कि पुस्तक मेले में उनकी गणित की पाठशाला का शटर गिरा रहा।
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