Tuesday, April 02, 2024

एयरपोर्ट पर जीवन चक्र



कोलकता इस बार रहे दो दिन। दोनों दिन दफ्तर में निकल गये। शाम पार्टीबाजी में।
जाने के पहले कई मित्रों से मिलने का प्लान बनाया था लेकिन मिलना हो नहीं पाया । हर बार की तरह मामला अगली बार पर टल गया।
अलबत्ता आते समय पी बनर्जी जी से मिलना हुआ। हम लोग ओएफसी में काफी दिन साथ रहे। शुरुआत में 1988 से 1989 में और बाद में 2001 से 2007 से ओएफसी पोस्टिंग के दौरान। तीसरी बार ओएफसी आये तब तक बनर्जी जी रिटायर हो चुके थे।
इसके पहले जब भी कोलकता आये तो अगली बार मिलने की बात कहकर लौट आये। लेकिन इस बार मिलना हो ही गया। मिलने पर तमाम सारी पुरानी यादें फिर से ताजा हुई। मित्रों से मिलते-जुलते रहना चाहिये। मिलना-जुलना किसी भी संबंध को ताजा बनाये रखता है।
हवाई अड्डे पर बाहर ही कम्प्यूटर पर बोर्डिंग टिकट प्रिंट करने की कोशिश की। नहीं बना। हर बार बताया -'पीएनआर नम्बर मैच नहीं करता।' अपन कम्प्यूटर को गलत मानकर अंदर आ गये। सिक्योरिटी वाले ने टिकट और परिचय पत्र देखकर अंदर आने दिया।
काउंटर पर बोर्डिंग टिकट बनवाने के लिये अपनी बुकिंग दिखाई तो बताया गया कि ये तो लखनऊ से कोलकता आने का टिकट है। जाने का दिखाइये। हमने बुकिंग टिकट पलट के दिखाया उसमें भी लखनऊ से कोलकता का ही प्रिंट था । हमने फिर मोबाइल में टिकट दिखाया। काउण्टर कन्या ने बोर्डिंग पास बना दिया।
मतलब बाहर कम्प्यूटर जी सही कह रहे थे कि जो पीएनआर नम्बर हम भर रहे थे वह ठीक नहीं था। दूसरी तरफ सुरक्षा वाले भाईसाहब ने बिना हमारा टिकट ठीक से देखे हमको आने दिया। हमने कम्प्यूटर जी से दूर से माफी मांगी कि हमने उनको गलत समझा। अनजाने में हम तमाम लोगों को गलत समझते रहते हैंं अकसर पता भी नहीं चलता कि हम गलत हैं। इसी भ्रम में जिंदगी भी गुजार देते हैं लोग।
सुरक्षा वाले के लिये क्या कहें जिसने हमारा टिकट ठीक से देखे बिना अंदर आने दिया ?
बोर्डिंग पास बनवाने के बाद उडान का इंतजार करते हुये एक सन्यासी जी से मुलाकात हुई। उनके सर पर रंगबिरंगा मुकुट सा था। मुकुट के चलते वे लोगों केआकर्षण का केंद्र बने थे। पास बैठे थे लिहाजा बातचीत हुई।
पता चला सन्यासी जी इंग्लैंड से थे। सन्यास ले लिये हैं। इस्कान समुदाय से जुडे हैं। बातचीत के दौरान गीता के कई श्लोक सुना डाले। कुछ हमने भी 'मिसरा उठाने वाले अंदाज' में साथ में दोहराये। उनके साथ एक युवा सन्यासी भी था। पता चला वह कोरिया का रहने वाला है। अभी गृहस्थ है लेकिन इस्कान से जुडा है।
सन्यासी जी का मुकुट रंगबिरंगा था। हमने तारीफ की तो मुकुट उतारकर दिखाया। मुकुट में मौजुद एक बटन दबाया तो मुकुट में लगे बल्ब जलने-बुझने लगे। मुकुट में मौजुद आकृतियों के सहारे हमको जीवन-मरण का चक्र अंग्रेजी में समझाया। पैदाइश,बचपन, जवानी, बुढापा से होते हुये आखिर तक का सीन। हमने तारीफ की तो दुबारा दिखाया जीवन चक्र। तारीफ को उन्होने 'मुकर्रर' की तरह लिया होगा। हमने दुबारा तारीफ नहीं की। उन्होने बटन बंद कर दिया।
कुछ देर तक बात करने के बाद अपन की फ्लाइट की बोर्डिंग शुरु हो गयी। अपन जहाज में बैठकर घर की तरफ चल दिये।

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