मोबाइल है या हथगोला
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सुबह चाय पी रहे थे। अचानक मोबाइल बजा। वीडियो काल थी। जिस नम्बर से काल आई वह हमारी सम्पर्क लिस्ट में नहीं था। नाम किसी महिला का दिखा रहा था। हम काल उठाने ही वाले थे। तब तक हमको तमाम ' साइबरिया' हिदायतें याद आ गयी। उनमें से एक यह भी थी -' किसी अनजान नम्बर से वीडियो काल नहीं उठानी चाहिए।'
बाद में देखा फ़ोन नम्बर भारत का था। नाम परिचित सा था लेकिन सम्पर्क लिस्ट में नहीं था।
ऐसा आजकल अक्सर होता है। आए दिन अनजान नम्बर से कई काल आते हैं। कभी बैंक के नाम पर, कभी बीमा के नाम पर। कभी क्रेडिट कार्ड के बारे में , कभी लोन के नाम पर।
क्रेडिट कार्ड का अलग मज़ा है। हमने कुछ ख़रीदारी की ताकि क्रेडिट कार्ड का उपयोग चलता रहे। जैसे ही ख़रीद की अगले ने फोनियाना शुरू किया -'आप इसका भुगतान आसान किस्तों में कर सकते हैं। मतलब EMI में।'
हमने हर बार कहा -'भईये, हमारे पास पैसे हैं। हम बिल आते ही भुगतान करेंगे।' लेकिन क्रेडिट कार्ड वाली मैडम हमको बार-बार समझाने पर तुली हैं -'जब एक सुविधा मिल रही है तब उसका उपयोग कर लेना चाहिए आपको।'
हम समझ नहीं पा रहे हैं कि क़र्ज़ में डूबे रहना कहाँ से फ़ायदे मंद है। आम इंसान को लगता है कि क़र्ज़ जितनी जल्दी निपट जाए उतना अच्छा। हम कोई ग़ालिब थोड़ी हैं जो क़र्ज़ की पिएँ और शेर लिखें:
"क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि
हाँ, रंग लाएगी हमारी फाका-मस्ती एक दिन।"
सुना है अमेरिका में लोग सब कुछ ईएमआई पर ख़रीदते हैं। लेकिन हम अभी अमेरिका से 12369 किलोमीटर दूर हैं।
इसी तरह के संदेशे भी आते रहते हैं। कोई किसी बारे में कोई किसी बारे में। रोज तमाम तरह के लोन स्वीकृत होने के संदेश, क्रेडिट कार्ड जारी होने की खबर, कार चालान होने की खबर से लेकर सामानों के विज्ञापन, सूचना और न जाने क्या-क्या खबरें। ईमेल तो पूरी भर गयी ऐसी नोटिफ़िकेशन से। पिछले पाँच सालों में पाँच संदेश भी नहीं आए होंगे जो हमारे काम के हों। सब अगड़म-बग़ड़म संदेश। उस पर तुर्रा मेल से आता रोज का नोटिफ़िकेशन -'आपका फ्री मेल स्पेस ख़त्म हो गया है। मेल जारी रखने के लिए या तो नया स्पेस ख़रीदें या मेल में जगह ख़ाली करें।'
लगता है ये मेल वाले दुनिया भर का कूड़ा-करकट मँगवा के मेल बक्सा भर लेते हैं इसके बाद कहते हैं -'जगह ख़रीदों वरना मेल आने बंद हो जाएँगे।'
अजब दादागिरी है। रोज झाड़ू लिए मेल बक्सा ख़ाली करते रहो ताकि बाज़ार अपना कूड़ा हमारे मेल बक्से में भरता रहे।
आज तो दुनिया भर के नोटिफ़िकेशन मेल, वहात्सएप और दीगर रास्तों से मोबाइल में आता रहता है। दुनिया मुट्ठी में करने के बहाने अपन दुनिया की मुट्ठी में बंद हो गए हैं। हर पल टन्न-टन्न नोटिफ़िकेशन आते रहते हैं। घर वाले भन्न-भन्न भन्नाते रहते हैं। चौबीस घंटे की बेगार में लगा दिया है जैसे मोबाइल ने।
लोग कहते हैं कि सावधान रहो लेकिन कितना सावधान रहें? आजकल सब काम तो मोबाइल के भरोसे हो गए हैं। आप कोई सामना मँगवाओ तो डिलीवरी की सूचना मोबाइल पर आएगी। कुछ भी काम करो तो मोबाइल नम्बर ज़रूरी। लोगों के पास अपना आधार नम्बर भले न हो लेकिन मोबाइल नम्बर ज़रूर होगा। आज के दिन इंसान खाने बिना दिन भर भले रह ले लेकिन मोबाइल और नेटवर्क के बिना उसकी तबियत नासाज़ होने लगती है।
मोबाइल ने हमको जितना सूचना संपन्न बनाया है उतना ही डरपोक भी बनाया है। कहीं किसी प्रियजन का मोबाइल घंटे भर न मिले तो धुकुर-पुकुर , कहीं कोई अनजान नम्बर से काल आया तो संसय , फ़ोन उठाएँ तो डर और न उठाएँ तो चिंता कोई ज़रूरी संदेश ने छूट गया हो।
इन चिताओं से बचाव के कितने भी एसओपी बना लिए जाएँगे लेकिन इंसानी ज़ेहन से उसकी मैपिंग सबके लिए सम्भव नहीं। कहीं न कहीं चूक तो हो ही सकती है। हो ही जाती है।
संदेश नोटिफ़िकेशन वाली बात तो फिर भी बर्दाश्त हो जाती है। लेकिन ये जब से डिजिटल अरेस्ट , वीडियो कालिंग वाली खबरें सुनी हैं तब से लगता है हाथ में मोबाइल नहीं हथगोला लिए चल रहे हैं। हर अनजान काल से लगता है कि इसको उठाते ही हथगोले का पिन निकल जाएगा और हमको काम भर का घायल कर जाएगा।
ये लिखते समय एक अनजान नंबर से कॉल रहा है। समझ नहीं पा रहे कि उठायें कि न उठायें ।
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