Tuesday, February 12, 2013

नमो नर्मदे मैया रेवा

http://web.archive.org/web/20140419160552/http://hindini.com/fursatiya/archives/4028

नमो नर्मदे मैया रेवा

अमरकंटक यात्रा के दौरान माई की बगिया में कई नर्मदा परकम्मावासियों से मुलाकात हुई। उनमें से एक दल सुबह स्नान के बाद नर्मदा भजन करने लगा। अपने मोबाइल कैमरे में उस भजन को हमने रिकार्ड कर लिया। वाद्ययंत्र तम्बूरा और डब्बा जिसमें रेजगारी से संगत दी जा रही थी। हमारे साथ के लोग भी संगत देने लगे। आप भी सुनिये भजन- नमो नर्मदे मैया रेवा।

osted in , , | 5 Responses

5 responses to “नमो नर्मदे मैया रेवा”

  1. प्रवीण पाण्डेय
    नमो नर्मदे…भक्तिमय कर गया संगीत..
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..आईआईटी – एक आनन्द यात्रा
  2. सतीश सक्सेना
    परकम्मा कर क्यों नहीं आते महाराज , तुम्हायी यारी से कछु हमारो भलो भी होयगो !
    नमो नर्मदे ..
    सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..पुत्री वन्दना – सतीश सक्सेना
  3. ajit gupta
    ऐसे लोकगीतों का संग्रह होना ही चाहिए। आपको शुभकामनाएं।
    ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..पुत्र-वधु, परिवार की कुलवधु या केवल पुत्र की पत्‍नी?
  4. Blog Bulletin
    आज की ब्लॉग बुलेटिन सनातन कालयात्री की ब्लॉग यात्रा – ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
  5. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] नमो नर्मदे मैया रेवा [...]
 

Wednesday, February 06, 2013

आहत होने पर सर्विस टैक्स

http://web.archive.org/web/20140420082908/http://hindini.com/fursatiya/archives/4006

आहत होने पर सर्विस टैक्स

आजकल आहत होने का मौसम चल रहा है।
आजकल जिसे देखो किसी न किसी बात पर आहत हो जाता है। पिछले दिनों तमाम लोग आशीष नंदी जी के बयान से आहत हो गये। कमल हसन अपनी फ़िलिम पर बैन से आहत हो गये। उधर कश्मीर में कोई साहब लड़कियों के बैंड से आहत हो गये। बापू आशाराम का एक भक्त उनकी लात से आहत हो गया। कोई किसी के चुटकुले से आहत हो गया, कोई किसी के बयान से। जिसे देखो उसको आहत का जुखाम हुआ है।
आहत का जुखाम जकड़ते ही दनादन बयानों की छींके शुरु हो जाती हैं। मामला संक्रामक हो लेता है। जिसे देखो वह भी बयान जारी करने लगता है। काटजू साहब ने पिछले दिनों नब्बे प्रतिशत भारतीयों को बेवकूफ़ कहा। जिनको बेवकूफ़ कहा वे तो समझदार निकले- कुछ बोले नहीं। लेकिन बाकी दस प्रतिशत लोग बेगानी शादी में अब्दुल्ला की तरह दीवाना बन गये। नब्बे प्रतिशत में शामिल होने के लिये अपनी बेवकूफ़ी दिखाते रहे। काटजू साहब के बयान पर बयान फ़ुटौव्वल करते रहे।
आहत होने का मजा दिखाने में है। जो आहत होता है वो मीडिया के पास जाता है। बताता है कि देखो हम आहत हुये हैं। हमारे आहत होने की खबर को दुनिया भर को दिखा दे भाई। मीडिया का तो काम ही आहत प्रसारण का है। वह अपने काम में जुट जाता है।
आहत का जुखाम आमतौर पर दो-तीन दिन चलता है। किसी आहत केस में आमतौर पर पहले दिन बयानों छींके सबसे ज्यादा आती हैं। दूसरे-तीसरे दिन मामला कंट्रोल में आ जाता है। मीडिया डाक्टर अगले आहत रोगी के राहत कार्य में जुट जाता है।
आहत होने की सुविधा आमतौर पर खास लोगों को ही उपलब्ध है। जैसे अंग्रेजों के जमाने में कुछ क्लबों में आमजनता और कुत्तों का प्रवेश वर्जित था वैसे ही आम लोगों को आहत होने की सुविधा हासिल नहीं हैं। कल के दिन दुनिया भर में न जाने कितनी लातें चलीं होंगी। उन लातों का जिक्र किसी मीडिया वाले ने नहीं किया होगा। लेकिन बापू आशाराम ने जो लात अपने भक्त को मारी वह खास लात है इसलिये उसका जिक्र मीडिया ने किया। उनके पहले के कारनामें उनको खास बनाते हैं।
आहत होने की सुविधा केवल खास लोगों को हासिल है। खास आदमी बड़ी तेजी से आहत होता है। जैसे ही उसके मन को कोई बात चुभी, उसके पेट पर लात पड़ी वह वह अपने आहत होने का पोस्टर बनवाता है। मीडिया के होर्डिंग पर टांग आता है। मीडिया अपने होर्डिंग की जगह किराये पर देती है। दो-तीन बाद दूसरे का आहत का पोस्टर टांग देती है।
आम आदमी न जाने कित्ता रोज परेशान होता है। गरीबी, बेईमानी, असुविधाओं, जाड़ा,गर्मी, बरसात, कोहरे की मार से हलकान होता है। पानी, बिजली, सड़क, गैस, तेल, रिजर्वेशन , दाखिले की समस्याओं से परेशान है। लेकिन उसको आहत होने की सुविधा हासिल नहीं है। आहत होने के लिये उसको पहले आम से खास बनना पड़ेगा। आम आदमी आहत होने के लिये ’इन्टाइटल्ड’ नहीं है। आहत होने की सुविधा केवल खास के लिये सुरक्षित है।
पहले सरकारें आम आदमी की नुमाइंदगी करतीं थीं। जनता की तरह उसने भी अपने को आहत होने की सुविधा से वंचित कर रखा था। इधर देखा जा रहा है कि वह आम से खास होती जा रही है। जरा-जरा सी बात पर आहत हो जा रही है। कार्टू्निस्टों को जेल भेज रही है। लेखकों पर पाबंदी लगा रही है।
सरकार को खुद आहत होने की बजाय लोगों के आहत होने की आदत का फ़ायदा उठाना चाहिये। आहत पर सर्विस टैक्स ठोंक देना चाहिये। जिसको आहत होना हो वो अपने आहत होने की मात्रा के हिसाब से सर्विस टैक्स जमा करे। मजे से आहत हो। सरकार की कमाई फ़ौरन बढ़ जायेगी। लोगों की आहत होने की आदत का इससे अधिक रचनात्मक उपयोग और भला क्या होगा? सरकार सबको आहत होने की सुविधा दे रही है। आहत सर्विस टैक्स वसूल रही है। सुविधा पर टैक्स तो जायज बात है भाई।
आहत सर्विस टैक्स लगेगा तो सरकार कभी उसे माफ़ करके अपने लिये फ़ायदे भी जुगाड़ सकती है। गरीबी रेखा के नीचे वालों पर फ़ुल आहत सर्विस टैक्स माफ़। पांच लाख तक की कमाई वालों के लिये आहत टैक्स में दस प्रतिशत छूट। कंपनियां तरह-तरह के आहत राहत पैकेज ला सकती हैं। आहत टैक्स प्लानर पाठ्यक्रम बनाये जा सकते हैं। आहत राहत स्कूल, विश्वविद्यालय खोले जा सकते हैं। आहत राहत सम्मेलन किये जा सकते हैं।
आहत होने के और रचनात्मक उपयोग बताने में डर सा लग रहा है। न जाने कौन किसी बात पर आहत हो जाये। :)

13 responses to “आहत होने पर सर्विस टैक्स”

  1. ajit gupta
    पहले तो लगा कि रवीश कुमार जी की पोस्‍ट का हवाला दे रहे हैं क्‍या? क्‍योंकि उनकी भी एक पोस्‍ट आयी थी कि लोग आहत हो रहे हैं। खैर टेक्‍स वाला आयडिया चल नहीं पाएगा, क्‍योंकि आहत वे हो रहे हैं, जिनके पास लीडरशिप है। और ये लोग तो टेक्‍स देते नहीं।
    ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..हमें वापस लाना होगा आठवीं शताब्‍दी का उभय भारती वाला काल
  2. आशीष श्रीवास्तव
    बचपन मे बालहंस मे हम कवि आहत की रचनाये सुनकर आहत होते थे।
    आशीष श्रीवास्तव की हालिया प्रविष्टी..2 जनवरी 2013 : पृथ्वी सूर्य के समीपस्थ बिंदू पर !
  3. वीरेन्द्र कुमार भटनागर
    कुछ खास किस्म के लोगों के लिऐ टीवी पर छाये रहने यानि अपनी पब्लिसिटी का सुगम तरीका है समय-२ पर आहत करने वाले बयान देते रहना या कुछ ऐसी खुराफात करना कि लोग आहत हों या कम से कम आहत होने का नाटक करें।
  4. rachna
    आज कल रिवर्स सर्विस टैक्स भी होता हैं जो आहत हुआ वो सर्विस टैक्स देकर जिसने आहत किया उस से रिफंड हासिल कर सकता हैं
  5. aradhana
    हम आपकी पोस्ट से आहत हो गए :)
    aradhana की हालिया प्रविष्टी..Five minutes with Kathryn Presner
  6. प्रवीण पाण्डेय
    हमें आहत होने की आहट लग जाती है, कट लेते हैं, टैक्स भी बच जाता है।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..गरीबी देना तो तमिलनाडु में
  7. arvind mishra
    पूरे फुरसतिया रंग में हैं आज तो :-) इन दिनों हम भी बहुत आहात चल रहे हैं -ये आहती सीजन ही है ?क्या
  8. भारतीय नागरिक
    टिप्पणी न आने से भी तो लोग आहत होते हैं. मतलब बिलागरान. उनके बारे में!
  9. संजय @ मो सम कौन
    बजट के मौसम में आपके सुझाव हम पहले से आहतों को हताहत करने में सक्षम हैं।
    संजय @ मो सम कौन की हालिया प्रविष्टी..पहचान
  10. गिरीश बिल्लोरे
    आज़ भी वही दशा है महाराज
    सच्ची फ़िलहाल तीसरी कसम देख लूं उनिप बांचता हूं
    फ़ुरसत हौयके फ़ुरसतिया जी
  11. गिरीश बिल्लोरे
    आज़ भी वही दशा है महाराज
    सच्ची फ़िलहाल तीसरी कसम देख लूं पुनि बांचता हूं
    फ़ुरसत हौयके फ़ुरसतिया जी
    गिरीश बिल्लोरे की हालिया प्रविष्टी..आतंकवाद क्या ब्लैकहोल है सरकार के लिये
  12. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] आहत होने पर सर्विस टैक्स [...]
  13. e cigarette cartridge cotton
    what’s an electronic cigarettes? electronic things, you can try going Sim Lim Square but remember to bargine!

Sunday, February 03, 2013

धूप अलसाई सी लेटी है

http://web.archive.org/web/20140420081754/http://hindini.com/fursatiya/archives/3987

धूप अलसाई सी लेटी है


सुबह दरवाजा खोलते ही धूप दिखी। एकदम दरवज्जे तक आकर ठहरी हुयी सी। जैसे सूदूर से कोई फ़रियादी किसी हाकिम के यहां पहुंच जाये। लेकिन उसके दरवज्जे में घुसने की हिम्मत न होने पर वहीं ठिठका खड़ा रहे कि अब क्या करूं! :)
ठिठकी धूप देखकर अपनी तुकबंदी/कविता याद आती है:
जाड़े में धूप
आहिस्ते से आती है,
धीमें-धीमे सहमती हुई सी।
जैसे कोई अकेली स्त्री
सावधान होकर निकलती है
अनजान आदमियों के बीच से।
धूप सहमते हुये
गुजरती है चुपचाप
कोहरे, अंधेरे और जाड़े के बीच से।
धूप सड़क , मैदान, छत, बरामदे में अलसाई सी लेटी है। उसको आज न दफ़्तर जाना है, न कचहरी न इस्कूल। ऊपर सूरज जी गर्म से हो रहे हैं। लगता है धूप को डांट रहे हैं – उसके आलस के लिये। शायद कह रहे हों -उठ जा बिटिया ब्रश करके नास्ता कर ले उसके बाद थोड़ा पढ़ ले। एक्जाम आने वाले हैं।
धूप लाड़ली अपने पापा के गले में बांहे डालकर फ़िर कुनमुनाती हुई सो जाती है। सूरज उसको प्यार से निहारते हुये अपनी ड्यूटी बजाने निकल पड़ते हैं। :)
एक आटो सड़क पर पसरी धूप को बेरहमी से कुचलता निकलता है। ऊपर से इसे देखकर सूरज का खून खौल जाता है। उनके शरीर का तापमान हजार डिग्री बढ़ जाता है। सूरज की गर्मी देख आटो वाले के पसीने आ जाते हैं। वह अपना स्वेटर उतारकर बगल में धर लेता है। भागता चला जाता है ! सरपट ! दूर ,बहुत दूर । डरते हुये – सड़क पर पसरी सूरज की बच्चियों को रौंदते हुये सलमान खान की तरह।
धूप , पेड़ – पौधों की पत्तियों पर पहुंची। सब सहेलियां आपस में चिपटकर चमकने , बिहंसने, बतियाने लगीं। धूप ने अपने सूरज से धरती तक अपने सफ़र की कहानी सुनाई। यह भी कि कैसे वह रास्ते में, पृथ्वी की परिक्रमा के बहाने मंडराते, तमाम आवारा आकाश पिंडो को गच्चा देते हुये आयी है।
एक सहेली ने कहा कि वे तुम उनको छोड़कर यहां चली आयी वे बेचारे अंधेरे में भटकते, तेरी याद में चक्कर काट रहे होंगे। बड़ी निष्टुर है तू यार धूप! इस पर सब खिलाखिलाकर हंस दीं। पत्तियां तो अब तक हंसते हुये थरथरा रही हैं।
गेंदे का फ़ूल धूप और पत्तियों को हंसते-खिलखिलाते देख अपना सर मटकाते हुये मुस्कराने लगा है। थोड़ा मोटा सा होने के चलते किसी सेठ का पेटू बेटा सा लगता है गेंदे का फ़ूल! उसको सिर मटकाते-मुस्कराते देख एक गुलाब की कली ने अपनी सहेली के कान में फ़ुसफ़ुसाते हुये कहा- बौढ़म कहीं का, बेवड़ा, बावला। ज्यादा नजदीकी के चक्कर में उसका कांटा सहेली-कली के चुभ गया। वह, उई मां! कहते हुये झल्लाते हुये तेजी से फ़ुसफ़ुसाई – गेंदे की आशिकिन अपना ये कांटा संभाल। हमारी नयी पत्ती में छेद कर दिया। ये तो रफ़ू भी नहीं होती कहीं :)
धूप,पत्तियों, फ़ूल, कलियों को चहकते-महकते देख पूरी कायनात मुस्कराने लगी।

मेरी पसंद

तुम्हारी याद
गुनगुनी धूप सी पसरी है
मेरे चारो तरफ़।
कोहरा तुम्हारी अनुपस्थिति की तरह
उदासी सा फ़ैला है।
धीरे-धीरे
धूप फ़ैलती जा रही है
कोहरा छंटता जा रहा है।

7 responses to “धूप अलसाई सी लेटी है”

  1. समीर लाल
    धीरे-धीरे
    धूप फ़ैलती जा रही है
    कोहरा छंटता जा रहा है।
    -शुभ संकेत हैं..शुभकामनाएँ.
    समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..आहिस्ता आहिस्ता!!
  2. indian citizen
    अच्छा बिम्ब है. धूप, कुहरे और सूरज का.
    indian citizen की हालिया प्रविष्टी..सरोकार की पत्रकारिता और वेब-साइट पर तस्वीरें
  3. प्रवीण पाण्डेय
    धूप बस यही कहती है, मैं आ गयी हूँ.. आप भी आ जाओ।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..बस, बीस मिनट
  4. sanjay jha
    जैसे कोई अकेली स्त्री
    सावधान होकर निकलती है
    अनजान आदमियों के बीच से।…….
    ……………………..
    ……………………..
    प्रणाम.
  5. mahendra gupta
    कोहरा तुम्हारी अनुपस्थिति की तरह
    उदासी सा फ़ैला है।
    भाव पूर्ण अभिवयक्ति
  6. सतीश सक्सेना
    आपने अपना फोटू बड़ा गज़ब खिचवाया है …
    सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..भाषा इन गूंगो की -सतीश सक्सेना
  7. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] धूप अलसाई सी लेटी है [...]

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सूरज जी लगता है धूप को डांट रहे हैं




धूप सड़क , मैदान, छत, बरामदे में अलसाई सी लेटी है। उसको आज न दफ़्तर जाना है, न कचहरी न इस्कूल। ऊपर सूरज जी गर्म हो रहे हैं। लगता है धूप को डांट रहे हैं उसके आलस के लिये। शायद कह रहे हों -उठ जा बिटिया ब्रश करके नास्ता कर ले उसके बाद थोड़ा पढ़ ले। एक्जाम आने वाले हैं। धूप लाड़ली अपने पापा के गले में बांहे डालकर फ़िर कुनमुनाती हुई सो जाती है। सूरज उसको प्यार से निहारते हुये अपनी ड्यूटी बजाने निकल पड़ते हैं।

Thursday, January 31, 2013

इति श्री अमरकंटक यात्रा कथा

http://web.archive.org/web/20140420081616/http://hindini.com/fursatiya/archives/3962

इति श्री अमरकंटक यात्रा कथा

अमरकंटक में हमने नर्मदा और शोण तथा भद्र नदियों के उद्गम देखे। शोण और भद्र अपने उद्गम से कुछ दूर आगे चलकर सोनभद्र बनते हैं। एकदम पतली धार, एक हैंडपंप से निकलते पानी सरीखी, देखकर यह विश्वास ही नहीं होता कि यही नदियां आगे चलकर विशाल, जीवनदायिनी नदियां बनती होंगी। नदी के उद्गम को घेरकर उसके चारो तरफ़ चबूतरा/मंदिर/घेरा बना दिया गया है। पाइप से गुजारकर आगे भेजा गया है। नदी में बांध तो आज बने लेकिन उनकी घेरेबंदी तो बहुत पहले से शुरु हो गयी थी। नदी के भक्तों द्वारा।
सोनभद्र के उद्गम से तो पानी निकलता दिखता है। नर्मदा उद्गम से पानी निकलता नहीं दिखता। एक सरोवर में खूब सारा पानी भरा है। ठहरा हुआ सा। वहीं एक जगह बना है नर्मदा उद्गम। बताया गया कि जब सरोवर का पानी खाली किया गया जाता है तब उद्गम दिखता है। लेकिन यह सवाल वहां भी रहा कि इतने शांत सरोवर से ही नर्मदा प्रकट होती हैं। आगे कपिलधारा तक और फ़िर दूधधारा तक पहुंचते-पहुंचते भी नर्मदा की धारा पतली ही रहती है। कपिल धारा, जहां से नर्मदा नीचे आती हैं , भी एकाध फ़ुट ही चौड़ी होगी। वही नर्मदा आगे चलकर जीवन दायिनी, सौंदर्य की नदी बनती हैं। इतना पानी कहां से आता होगा उनमें।
शायद नदी के बहाव के साथ उनमें और धारायें/प्रपात जुड़ते जाते होंगे। कुछ दिखते होंगे, कुछ गुप्त रहते होंगे। चुपचाप अपना योगदान देकर नदी को समृद्ध बनाते होंगे। नर्मदा सबसे पहले निकली सो सबसे सीनियर हुई। सीनियारिटी का उनको यह फ़ायदा हुआ कि आगे जुड़ने वाली धारायें भी उनके ही नाम से जानी गयीं। एक नदी के निर्माण कई जलधारायें मिलती हैं। सब मिलकर पानी का चंदा देती हैं। मुख्य नदी के निर्माण में अपना सौंदर्य जोड़ती हैं। नदी का सौंदर्य सामूहिकता का सौंदर्य होता है। मिल-जुलकर बना सौंदर्य। सामूहिकता का सौंदर्य भीड़ की अराजकता और कड़े अनुशासन के बीच की चीज होता है। न एकदम बिखरा न बहुत कसा। सहज सौंदर्य।
माई की बगिया में नर्मदा की परिक्रमा करने आये कई परकम्मावासी भी ठहरे हुये थे। नहाते-धोते, आगे की यात्रा के लिये तैयार होते, खाना बनाते, खाते नर्मदा भक्त। एक जगह बुढऊ-बुढिया खाना बना रहे थे। बुढिया जी रोटी बेल रहीं थीं बुजुर्ग सेंक रहे थे। रसोई में बराबर की सहभागिता। उनके बगल में ही कई और चूल्हे सुलग रहे थे। बगल में एक महिला तीन-चार पुरुषों के साथ खाना बना रहीं थीं। सब कुछ न कुछ सहयोग कर रहे थे। श्रम का बराबर सा विभाजन। आदमी लोग बरतन मांज रहे थे। शायद नर्मदा परिक्रमा आदमी-औरत में बराबरी का भाव जगाती है। दोनों काम में हाथ बंटाते हैं।
आदमी-औरत में बराबरी का भाव जगाने के लिये उनको साथ-साथ नर्मदा परिक्रमा पर निकल पड़ना चाहिये। :)

बाहर देखा कि कुछ लोग नर्मदा की वाहन से परिक्रमा पर निकले थे। सबके रहने का बराबर से इंतजाम। एक जगह तीन नर्मदा यात्री तम्बूरा लिये नर्मदा भजन गा रहे थे। भावविभोर। भजन के भाव थे- नर्मदा मैया सबका भला करती हैं, कल्याण करती हैं। नरसिंहपुर से कई यात्री आये थे।
आगे हम लोग पातालेश्वर मंदिर देखने गये। दसवीं-बारहवीं सदी में बने मंदिर। कहा जाता है कि पातालेश्वर मंदिर स्थित शिवलिंग की जलहरी में सावन के अंतिम सोमवार को नर्मदाजी का प्रादुर्भाव होता है। पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित इस परिसर में कई मंदिर हैं। दसवीं-बाहरवीं शताब्दी के मंदिरों के बीच एक मंदिर पर किन्हीं पुजारी जी का कब्जा भी है। उन्होंने अपना अतिक्रमण बना रखा है। खूबसूरत परिसर में वह कब्जा मखमल में टाट के पैबंद की तरह लग रहा था। उसकी एक छत का लेंटर लटक गया था।

दोपहर का खाना हमने बसंत भोजनालय में खाया। मालिक/मैनेजर शायद कोई दुबे जी थे। रोटी बेल रहे थे। दूसरा सेंक रहा था। किसी बात पर दुबे जी और खाना परसने वाले में बहस होने लगी। दोनों अपना-अपना काम करते हुये बहस करते जा रहे थे। खाना परसने वाले ने उलाहना दिया कि मैनेजर उसको उल्टा-सीधा काम बताता रहता है, ये करो, अब वो करो। मैनेजर ने बयान जारी किया- हमको अधिकार है इस बात का। तुम जब हमारा काम संभालने लायक हो जाओगे तब तुम भी काम बताने के अधिकारी हो जाओगे। दोनों काफ़ी देर तक बहस करते थे, अपना काम करते हुये। हम उनकी बहस सुनते हुये खाना खाते रहते। वहीं एक जगह हमें लिखा दिखाई दिया- कृपया शांति बनाये रखें। यह शायद ग्राहकों के लिये था। जगह की कमी के कारण शायद इत्ता ही लिखा। जगह होती तो पूरी बात लिखी जाती- कृपया शांति बनाये रखें ताकि हम बहस कर सकें।

साठ रुपये में पूरी थाली खाना खाकर हम तृप्त हो गये। एकाध जगह और फ़ास्टफ़ार्वर्ड मोड में देखी। इसके बाद गेस्ट हाउस परिवार से विदा लेने गये। मालकिन हमारे कमरे में अलसाई सो रहीं थीं। डुप्लीकेट चाबी से कमरा खोलकर। हमने कमरों का किराया दिया जिसे ध्यान से दो बार गिना गया। घर टाइप गेस्ट हाउस में ठहरने का फ़ायदा हुआ कि ठहरने के अलावा किसी और चीज के पैसे नहीं लगे। चाय, पकौड़ी, मिठाई और गर्मजोशी और मुस्कान मुफ़्त में मिली। चलते-चलते हमने एक बार फ़िर से मालकिन को बाल झड़ने से बचाने का दवा बताई- मस्त रहा करिये। वे फ़िर मुस्करा दीं। :)
खाना कुछ ज्यादा ही खा लिया था शायद। लौटते हुये काफ़ी देर तक ऊंघते रहे। रास्ते में जगह-जगह परकम्मावासी दिखे। हम लोग ढिढौंरी (अमरकंटक से 80 किमी) तक गाड़ी बहुत धीमे-धीमे चलाते रहे। बीच-बीच में आंखे चौड़ी करके खोलते रहे ताकि जगे-जगे से रहें। ढिढौंरी के बाद नींद विदा सी हो गयी। गाडी ने इस्पीड पकड ली। हम देर रात पहुंच गये जब्बलपुर।
इति श्री अमरकंटक यात्रा कथा।

10 responses to “इति श्री अमरकंटक यात्रा कथा”

  1. अफलातून
    पढ़ कर पुण्य जरूर मिला होगा । आभार ।
    गैर हिमालयी नदियों में नर्मदा और ताप्ती ही पूर्व से पश्चिम जाती हैं। आपके विवरण में सोन और भद्र का उल्लेख आया तब स्वातिजी ने कहानी सुनाई जिसमें सोन की अभद्रता के कारण नर्मदा उनसे उलट दिशा में भागती हैं ।
  2. sanjay jha
    कृपया शांति बनाये रखें ताकि हम बहस कर सकें।……………….
    aap likhte rahen ……… jis-se ke hum banchte rahen……
    pranam.
  3. सतीश सक्सेना
    बधाई यात्रा के लिए …
    सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..भाषा इन गूंगो की -सतीश सक्सेना
  4. दयानिधि
    तीरे तीरे नर्मदा पढ़नी है। आपने इतना सुंदर वर्णन किया है कि आनंद आ गया।
    दयानिधि की हालिया प्रविष्टी..जूता चल गया
  5. प्रवीण पाण्डेय
    सारी नदियाँ पतली धार ले कर ही निकलती हैं, ये तो रास्ते की दोस्ती होती है अन्य धाराओं से कि सागर तक पहुँचते पहुँचते विशालमना हो जाती हैं।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..ताकि सुरक्षित रहे आधी आबादी
  6. siddharth shankar tripathi
    वाह जी, आप तो साइकिल से जाने वाले थे परकम्मा करने. लेकिन लगता है अभी माहौल जानने के लिए सर्वे पर गए थे. फिरा भी विवरण तो मजेदार बन पडा है.
    डुप्लीकेट चाबी से कमरा खोलकर आपके किराए के बिस्तर का आनंद मालकिन ने उठा लिया और अलसाय भी रही थीं.. ऐसा क्या था जी वहाँ?
  7. arvind mishra
    नदिया जीवन दायिनी तो हैं मगर जिसने सोन की विनाश लीला देखी है वह सहमते हुए मानता है यह हाहाकारी जन धन विनाशिनी है!
    एक जगहं कुछ उपमा दोष सा लगते लगते बच गया है -सामूहिक सौन्दर्य वाले मामले में -अगर नदी का मानवीयकरण किया जाए और जैसा कि लगा आप प्रस्तावना कर रहे हैं तो फिर सौन्दर्य के निखार में सामूहिकता के समावेश के मायने क्या होंगें? बहरहाल आपने प्रवाह बदल दिया !
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..कौन सा भारत,किसका भारत?
  8. Girish Billore
    भई फ़ुरसतिया जी
    हत्ती के नीचे से निकसे…….. के नईं निकसे
    और वो नेत्र विहीन दिव्य दृष्टिवान से कांडात बंधवाया कि नहीं..
    Girish Billore की हालिया प्रविष्टी..अक़्ल हर चीज़ को, इक ज़ुर्म बना देती है !
  9. Abhishek
    ” कृपया शांति बनाये रखें ताकि हम बहस कर सकें।” आइडिया जबरदस्त है :)
  10. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] इति श्री अमरकंटक यात्रा कथा [...]