Friday, May 03, 2019

जब तक जांगर में दम, तब तक काम


धर्मतल्ला पर चाय कुल्हड़ में मिली। दाम बढ़ गए। कागज के कप में पांच रुपये। कुल्हड़ में छह। मिट्टी के दाम एक रुपये। वैसे तो मिट्टी अनमोल होती है।
एक महिला टहलती हुई आई। आँचल फैलाकर मांगती। किसी ने कुछ दिया। बाकी बगलिया के निकल लिए। वह निस्संग भाव से मांगती रही।
निस्संग से याद आया कि श्रीलाल शुक्ल जी निस्संग व्यंग्यकार कहलाते थे।
एक आदमी उससे कहता है-' यहाँ कौन देने वाला है तुमको। ये दुकानदार सब कंगला है। खुद मांगता है। यहां कोई नहीं देने वाला किसी को।'
महिला उसकी बात को अनसुनी करते हुये बिना दैन्य भाव के अपने काम में लगी रहती है।
हम एक उसके आँचल में रखकर बतियाते है। घर कहाँ है?
'बैरकपुर' - महिला बताती है।
'कैसे आती हो इत्ती दूर से?'- हम पूछते हैं।
'इत्ती' लिखते समय याद आया की विजी श्रीवास्तव Viji Shrivastava के अगले व्यंग्य संग्रह का नाम है - 'इत्ती सी बात। '
'बस से। दस टका किराया है।' - वह बताती है।
'बस वाला किराया छोड़ता नहीं है?'- हम पूछते हैं।
'न वो काहे को छोड़ेगा। आने - जाने का किराया देना पड़ता है। बीस रुपया रोज।'- महिला बताती है।
इसके बाद और बातें हुईं। महिला का नाम सईदाबीबी है। छह बच्चे हैं । सबकी शादी हो गयी। सबके घर बस गए। नाती-पोता हैं। घर जाती हैं तो नाती-पोता पूछते हैं - आज क्या लाई मेरे लिए?
'जब बच्चे हैं । कमाते हैं तो माँगती क्यों हो?' - हम पूछते हैं।
'घर में रहते हैं तो बच्चे ठीक से खाने को नहीं देते। बासी-कूसी दे देते हैं। कहते हैं- यही है। यही खातिर जबतक जांगर में दम है तब तक माँगब। उसके बाद भगवान मालिक।' -महिला अपना मांगने का दर्शन बताती है।
अपने बारे में और बताया सईदा बीबी ने- ' जिस साल इंदिरा गांधी खत्म हुई थीं उसी साल आदमी नहीं रहा। उसके बाद कुछ दिन काम किया। फिर मांगने का काम कर रहने लगे।'
मांगने का काम से हमें लगा कहीं कोई यह बयान न जारी कर दे-'माँगना भी एक रोजगार है।बयानबाजी में कोई प्रतिबंध नहीं लोकतंत्र में।'
सईदा बीबी की कमाई का अंदाजा लगाने के लिए हमने पूछा -'कल कितने मिले?'
'कल हम आये नहीं थे। तबियत खराब थी। खून मीठा हो गया है हमारा। थक गए थे। बुखार आ गया। तीन दिन से आये नहीं।' -सईदा ने बताया।
'अढ़ाई सौ तीन सौ मिल जाता है रोज का।' - अपनी कमाई का खुलासा करते हुए बताया सईदा ने।
'बहुत मिल जाता है फिर तो'- हमने कहा।
'यह धर्म तल्ला है। यहाँ सब धर्म की कमाई होती है। देखो वो भी मांग रहे हैं।'- एक बुजुर्ग की तरफ इशारा करते हुए बताया।
वो बुजुर्ग तब तक टहलते हुए पास आ गए। कोई मुस्लिम नाम बताया। बड़ा लंबा। हमने उनको भी एक सिक्का दिया। उन्होंने देखकर लौटा दिया। एक रुपये का सिक्का उनको मंजूर नहीं था। हमने उनसे वापस लेकर सईदा बीबी के आंचल में डाल दिया। उन्होंने मना नहीं किया-' सिक्के-सिक्के पर लिखा पाने वाला का नाम।'
'पुलिस वाले तंग नहीं करते। पैसा तो नहीं मांगते?' हमने पास की दुकान पर मोटरसाइकिल पर चाय पीते सिपाही की तरफ इशारा करते हुए पूछा।
नहीं। कोई तंग नहीं करता। कहते हुए सईदा बीबी आगे बढ़ गयीं।

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Thursday, May 02, 2019

खबरों की जुगलबंदी



1. मसूद संयुक्त राष्ट्र से वैश्विक आतंकी घोषित: बगदादी की टीआरपी खतरे में।
2. जू में काम पूरा नहीं हुआ और पैसे का हो गया भुगतान: भुगतान जरुरी है, काम का क्या --'हुआ, हुआ न हुआ।'
3. टेनरियों के भाग्य का फैसला आज: गंगा के सीने में धुकुर-पुकुर।
4. बिजली फॉल्ट की शिकायत आसानी से करा सकेंगे दर्ज: फॉल्ट ठीक होने की कोई गारंटी नहीं।
5. फोन पर अश्लील बातें करने में केस : जो करना है आमने-सामने करें।
6. बिना जाली के लगे ट्रांसफॉर्मर दे रहे हैं हादसों को दावत: हादसों ने कहा -'दावत कुबूल है। जल्द ही आएंगे।'
7. सिद्दू के बयान पर आयोग का नोटिस: गुरु ठोंको ताली।
8. केट ने कड़ी मेहनत कर छरहरी काया हासिल की: भारत का विंडीज दौरा दो सप्ताह के लिए टला।
9. श्रीलंका के राष्ट्रपति बोले मेरे देश को बख्शे बगदादी: भारत के टीवी चैनलों में मारे जाने की सजा हमको न दे।
10. चीन अलग-थलग पड़ने के डर से झुका: पाकिस्तान ने मसूद को सुरक्षित स्थान पर भेजा।
11. आ गया रियूजेबल कागज पेन से लिखा मिटा सकेंगे: फाइलों पर किये फैसले चैटिंग मेसेज की तरह मिटाए जाने की संभावना।
खबरें दैनिक हिंदुस्तान से

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Wednesday, May 01, 2019

खबरों की जुगलबंदी



1.रसोई गैस सिलेंडर के दाम 6 रुपये बढ़े: सूरज भाई का मुफ्तिया ऑफर -खाना धूप में पकाएं।
2. नौबस्ता में ताला बंद मकान में चोरी: नए ताले का खर्च बचा।
3. कलेक्ट्रेट और विकास भवन में पसरा सन्नाटा: कर्मचारी घर से ही कर रहे टाटा।
4. मई में ताजमहल का रात में नहीं होगा दीदार: चांदनी अब दिन में ही दिखेगी यार।
5. चश्मे के गले में घन्टी : बांध दी Arunendra Verma ने ।
6. इंजीनियर कर रहे दिहाड़ी मजदूरी: उनसे भी कमीशन लेते हैं ठेकेदार।
7. फर्जी मतदान पर रिपोर्ट मांगी: मसूद पर बातचीत करने के लिए तैयार हुआ चीन।
8.मार्क जुकरबर्ग ने स्लीप बॉक्स बनाया: सभी फेसबुकियों को करेंगे भेंट।
9. जेट एयरवेज कर्मियों की मेडिक्लेम सुविधा बन्द: अपने भरोसे बीमार पड़े जेट कर्मी।
10. सोना 55 रुपये लुढ़का चांदी 200 रुपये सस्ती: दोनों मिलकर कर रहे सर्राफे में मस्ती।
11. हैलेट में अभी दवाओं की आपूर्ति में लगेंगे दो माह: अच्छी खबरों को सुना मरीजों को ला रहे आई सी यू से बाहर।
खबरें दैनिक हिन्दुतान से।

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मई दिवस की सुबह

सुबह सड़क चमकदार दिखी। धूप खूब खिली-खिली। गर्म होने की तैयारी करती सी।

बच्चे स्कूल की तरफ बढ़ रहे। कुछ के माता-पिता-भाई छोड़ने आये हैं। एक बच्ची स्कूटी पर जाती दिखी। सामने कोई आ गया। बच्ची ने पहले स्कूटी के ब्रेक लगाए। स्कूटी धीमी हुई। इसके बाद उसने पैर से ब्रेक लगाकर स्कूटी रोकी। फिर आगे बढ़ी।
एक महिला अपने एक बच्चे को स्कूल छोड़ने जा रही है। बच्चा स्कूल ड्रेस में तैयार है। साथ में दूसरा बच्चा है। वह एकदम घरेलू ड्रेस में है। चड्ढी - बनियाइन में। 'चड्ढी पहन के फूल खिला है' याद आ गया।
ऑटो वाला अपने बच्चे स्कूल में छोड़कर ऑटो पर बैठा है। सीट पर एकदम सिंहासन पर नबाब की तरह बैठने की मुद्रा। सीट की

खासियत ही ऐसी होती है, जो बैठता उतरना नहीं चाहता इससे। सच पूछें तो आदमी गद्दी पर बैठता इंसान गद्दी पर नहीं बैठता, गद्दी ही उस पर सवारी करती है। आसानी से उतरती नहीं।
एक ठिलिया में लोहे के एंगल लादे दो लोग चले जा रहे हैं। एक आगे से खींच रहा है। दूसरा पीछे से धक्का लगा रहा है। पीछे वाले का शरीर पसीना-पसीना हो रहा है। सूरज की किरणें उस पसीने को चमका रहीं हैं। हवा उसको ठंडा करने का प्रयास कर रही हैं।
रिक्शे पर रखी प्लाई पर चप्पलें रखी हैं। बीच में एक बच्चा बैठा है। बच्चा लोहे के एंगल को ढोते हुए लोगों से बेपरवाह अपने में मगन है। उसके मुंह से निकलती लार उसकी हथेली से चिपककर तार की तरह फैल रही है। बच्चा बड़े ध्यान से अपनी

लार को देखता है। सूरज की किरणें उसको चमका रही हैं। बच्चा अपने में मगन है।
चढ़ाई पर पसीने से लथपथ मजदूर और जोर लगाता है। हमारा मन किया कि हम भी थोड़ा जोर लगा दें हैइस्सा करते हुए। लेकिन जब तक मन की बात अमल में लाएं तब तक वह आगे बढ़ जाता है।
याद आया कि आज मजदूर दिवस है। आज की सुबह मई दिवस की चमकीली सुबह है।

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Tuesday, April 30, 2019

खबरों का गठबंधन

1.कानपुर में 51.65% प्रतिशत मतदान: वोटिंग में कनपुरिये सेकेंड डिवीजन से पास।

2. इस बार नहीं दिख रही कोई लहर: सभी मछुआरों ने अपनी नावें उतारी।
3. बुजुर्ग और महिला मतदाता भी पीछे नहीं रहे: जमकर दिखाया वोटिंग का बचपना।
4. 28 प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद: 23 मई तक किसी की किस्मत को जमानत नहीं।
5. तापमान बढ़ने के साथ ही घटता गया मतदान: कम मतदान के लिए आरोप से सूरज भाई भन्नाए।
6. मतदान के बाद हर उम्मीदवार ने किया जीत का दावा: 23 मई तक सबकी गलतफहमी सुरक्षित।
7. अपशगुन को अपलोड कर दो: जो होगा देखा जाएगा।
8. नौकरी ढूंढने वालों को चेताया: खबरदार जो रोजगार की तलाश की।
9. चाची पहिले वोट डारि आओ: वहिके बाद सब्जी छौंकेव आय।
10. दिखाया पहले वोट का दम: कनपुरिये नहीं किसी से कम।
11. अस्पताल से सीधे पहुंचे मतदान केंद्र: अस्पताल की डर में मारे सिट्टी-पिट्टी गुम ।
खबरों के शीर्षक आज के हिंदुस्तान अखबार से।

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Saturday, April 27, 2019

पप्पू की दुकान और कनेर का फ़ूल


सबेरे-सबेरे पप्पू की चाय की दुकान गुलजार हो गयी है। लोग बैठे चाय -नाश्ता कर रहे हैं। एक बड़ी , सफ़ेद दाढी वाले बुजुर्ग खड़े-खड़े चाय पी रहे हैं। नमकीन दांत से कुतर रहे हैं। एकदम आहिस्ते से। शायद इस ख्याल से कि नमकीन को एकसाथ ज्यादा कटने का दर्द न हो। परदुखकातरता का भाव !

एक बुजुर्ग बेंच को टांगों के बीच फ़ंसाये अखबार बांच रहे हैं। बीच का पन्ना खुला है। अखबार किसी पक्षी के खुले डैनों सा उनके सामने पसरा है। पूरा फ़ैलाकर अखबार पढने का मजा ही और है। हर तरह की खबरें उड़ान भरती हैं।
ओला बुक कराये हैं। घरैतिन को स्कूल जाना है। पुल पर जाम लगता है। अक्सर गाड़ी जाम में फ़ंस जाती है। ओला एक दहकता हुआ शोला बन जाता है।
कई सालों से बन रहा है ओवरब्रिज। ओवरब्रिज मतलब उपरिसेतु। कई बार बनना शुरु होता है। हर बार लगता है कि अब बन ही जायेगा। लेकिन कुछ दिन बाद फ़िर से बनना शुरु हो जाता है।


ओला पर गूगल हमारे घर की लोकेशन ’जे एफ़ सेल स्ट्रीट’ बताता है। कई लोगों से पूछ चुके इसका क्या मतलब है? जेएफ़सेल कौन है, कोई महामानव हैं या कोई फ़ैक्ट्री, या कुछ और ? जितने लोगों से पूछा उनमें से किसी को पता नहीं ! लेकिन गूगल को पता है। गूगल सब जानता है। जानता क्या जो गूगल बताता है अब वही जानकारी है, बाकी सब गलत। गूगल सत्य है, बाकी सब मिथ्या।
फ़ोन देखते हैं तो कई मेसेज पासवर्ड के दिखे। किसी ने मेरे एटीएम से खरीद करने की कोशिश की है। शुरुआत १०० रुपये से। इसके बाद किसी पोओएस से खरीद की कोशिश। कार्ड ब्लॉक किया । सालों से साथ रहे एटीएम कार्ड का साथ छूटने का दर्द। कार्ड ब्लॉक करते हुये दो ही विकल्प बताता है बैंक - ’कार्ड खोया या चुराया गया।’ मतलब कार्ड फ़र्जी खरीद की कोशिश के चलते ब्लॉक कराया जा रहा इसका कोई विकल्प नहीं।
घर के बाहर कनेर के पेड़ में फ़ूल खिले हैं। अलग-अलग डालियों में अलग-अलग अंदाज में। सामने की डाली में एक फ़ूल पूरा खिला है। बाकी के सब कली हैं अभी। कल या परसों तक खिलेंगे। इस लिहाज से कम औसत आयु वाले फ़ूलों वाली टहनी है यह। युवा सबसे ज्यादा हैं इस टहनी पर। जैसे भारत है युवा राष्ट्र। बाकी की टहनियां अलग-अलग फ़ूलों वाली हैं। एक में तो सभी फ़ूल पूरे खिले हैं। पूरी टहनी वृद्धाश्रम लग रही। किसी वामपंथीे पार्टी के पोलितब्यूरो की तरह। किसी दक्षिणपंथी पार्टी के मार्गदर्शक मंडल सरीखी।
फ़ूल का नाम पहले हमने गुड़हल समझा। फ़िर कहा -’अबे गुड़हल नहीं कनेर है।’ मन को हड़काया भी कि अपने आसपास की दुनिया से इतने अनजान कैसे हो गये यार। ये लक्षण तो बड़े लोगों के हैं। खाली भुलक्कड़ और अनजान बनकर बनकर बड़े बनने की कोशिश शार्टकट है। दूसरी तमाम खुर्राट हरकते किये बिना बड़ा बनने का ख्वाब छोड़ दो।
सूरज भाई मुस्करा रहे हैं। पीली रोशनी फ़ैला रहे हैं। कनेर के फ़ूलों पर भी रोशनी की बारिश कर रहे हैं। उनको इस बात से कोई शिकायत नहीं कि कनेर ने उनकी किरणों का रंग धारण कर लिया है। बड़े लोगों का मन भी बड़ा होता है। मतलब असली बड़े वही होते हैं जिनके मन बड़े होते हैं। बाकी तो सब ’डालडा बड़े’ हैं।

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ओवरब्रिज और सड़क सुरंग

 


हमारे घर के पास बनते ओवरब्रिज के बगल से गुजरती सड़क। रोजी-रोटी और खरीददारी के लिए कानपुर आये लोग वापस शुक्लागंज, उन्नाव लौट रहे हैं। हरेक को वापस लौटने की जल्दी है।

ओवरब्रिज नहीं बना था तो सड़क चौड़ी थी। आगे क्रासिंग पर ट्रेनों के आने पर बन्द होती थी। भीड़ होती थी। जाम लगता था। जाम से निपटने के लिए ओवरब्रिज बनना शुरू हुआ। दो साल हमको हो गए देखते। इसके पहले से बन रहा है ब्रिज। कब पूरा होगा , पता नहीं।
कभी दिन में कई बार खुलने-बन्द होने वाली क्रासिंग अब स्थाई रूप से बंद है।
पुल बनने से पहले सड़क के दोनों तरफ बने शानदार बंगलों के हाल बेहाल हो गए है। संकरी सड़क से उनमें घुसना और निकलना कष्टकारी हो गया। जिन बंगलों को एलॉट करवाने के लिए अफसरों में मारामारी होती थी अब उनमें लोग जाना नहीं
चाहते।

सड़क के दोनों तरफ खड़े रहने वाले ठेले अब हट गए हैं। हेयर कटिंग सैलून की बिक्री कम हो गयी है। क्रासिंग पार से आने वाले ग्राहक कम हो गए हैं। पुल बनने के बाद भी अब वे ग्राहक लौटने वाले नहीं। पुल पार करते ही फरर्राटा मारते हुए निकल जाएंगे।
एक चौड़ी सड़क तीन हिस्से में बंट गयी है। बीच का हिस्सा पुल के लिए रखकर उसके अगल-बगल पतली , पगडंडी या कहें कुलिया टाइप सड़के निकल आयी हैं। पतली सड़क पर अक्सर सवारियां आमने-सामने से आकर जाम की सर्जना करती हैं। पर अमूमन जाम घण्टे-दो घण्टे में साफ हो जाता। इतने समय में तो चुनाव के समय कोई विवादास्पद बयान भी साफ हो जाता है।
शाम को लौटती हुई सवारियां किसी सुरंग में जाती दिखती हैं। 'सड़क सुरंग' के मोड़ पर मुड़कर पुराने पुल से होते हुए निकल जाएंगे शुक्लागंज से उन्नाव।

जब मैं इस इलाके में आया था तो सोचता था कि गंगा पुल पर रोज जाऊंगा। गंगा और पुल पर रोज पोस्ट लिखूंगा। 'पुलिया पर दुनिया' के बाद 'पुल से दुनिया' देखूंगा। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। वैसे भी पुलिया ठहरकर बैठने के लिए होती है। पुल इस पार से उस पार जाने के लिए होता है। ठहराव की गुंजाइश नहीं वहां। लेकिन जाने का मन तो होता है वहां। अभी भी मन किया चला जाये।
लेकिन अभी तो काम भर की रात हो गयी। इस समय जाने से क्या फायदा पुल पर। रास्ते में कुत्ते दौड़ा लेंगे। क्या पता कोई काट ही ले। चार ठो इंजेक्शन लगवाने पड़ें। आजकल कुत्ते काटने पर लगने वाले इंजेक्शन भी कम आ रहे हैं। पिछले दिनों हमारे बंगले में एक बच्चे को एक पिल्ले ने काट लिया तो इंजेक्शन मिलने में समस्या हो गयी। शहर खोजना पड़ा।
बहरहाल अब सोना ही सबसे बेहतर विकल्प हैं। सो जाय नहीं तो ग्यारह बज जाएंगे। इसके बाद बारह बजेंगे और फिर तारीख बदल जाएगी। तारीख बदले इसके पहले नींद के इलाके में घुसकर सुरक्षित हो जाया जाए।

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Friday, April 26, 2019

सच और हसीन झूठ

झूठ की भीड़ में एक अकेला सच खड़ा था।
सच अकेला था लेकिन निडर था।
झूठ की भीड़ अकेले सच से डरी खड़ी थी। पता नहीं किस झूठ की पोल खोल दे।
एक अकेला सच अनेकों झूठ पर भारी था।
झूठ की भीड़ में खुसफुसाहट डर बढ़ रहा था। लोग फुसफुसाते हुए आपस में कह रहे थे -'यार इस सच के बच्चे ने जीना मुहाल कर रखा है। यह तो बहुत बड़ी समस्या है हमारे लिए। कब तक इसके डर के साये में जिएंगे हम। इसका कोई इलाज नहीं क्या?'
दुनिया में ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका कोई इलाज न हो। एक शातिर झूठ ने कहा। निकलेगा इसका भी इलाज निकलेगा। चिंता न करो। देखते रहो। थोड़ा इंतजार करो।
झुट्ठों की भीड़ इंतजार करने लगी।
कुछ देर बाद एक हसीन झूठ इठलाता हुआ सच की तरफ बढ़ा। सच जब तक कुछ समझ पाए तब तक झूठ ने उसको चूम लिया और गले लगकर कहा -' सच में तुम कितने बहादुर हो सच। मैं तुम्हारी बहादुरी पर फिदा हूँ। आई लव यू।'
सच कुछ देर को हक्का-बक्का रह गया। जब उसको समझ आया कि उसको चूमने वाला 'झूठ' है तब उसने उसको झिड़ककर दूर किया। हसीन झूठ मुस्कराते हुए झूठ की भीड़ में वापस लौट आया।
कुछ ही देर में सच को हसीन झूठ द्वारा चूमे जाने का वीडियो वायरल हो गया। उसमें से सच द्वारा झूठ को झिड़ककर दूर करने का सीन गायब था।
सच बेचारा डाक्टर्ड और वायरल वीडियो के अधूरे होने की बात कहते हुए अपनी सफाई पेश कर रहा था। लेकिन झूठ की भीड़ में कोई उसकी सुनने को तैयार नहीं था।
सच अभी भी अकेला खड़ा था। सामने झूठ की भीड़ थी। लेकिन अब झूठ की भीड़ से सच का डर खत्म हो गया था। सच के हसीन झूठ के साथ के वायरल वीडियो ने सच को झूठ का 'आदमी' साबित कर दिया था।
सच 'सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं' का स्टेटस लगाए अकेला परेशान खड़ा था।
हसीन झूठ और शातिर झूठ साथ मिलकर अठखेलियां मना रहे थे। हसीन झूठ को झूठ समाज के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा गया था।
पूरा झूठ समाज उल्लास मनाते हुए भी डरा हुआ था कि अबकी बार फिर सच सामने आया तो उसका मुकाबला कैसे करेंगे।

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Monday, April 22, 2019

किताबों की दुनिया से

 22.04.2005

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"मैं एक बदतमीज, बदकलाम, बदजबान, बदनसीब , बदमिजाज बूढा बनता जा रहा हूं। लेकिन अब मैं अपना तौर तरीका बदल नहीं सकता, लाख कोशिश करूं तब भी नहीं। मुझे अपने गुस्से और गम को काम में ढालते रहना चाहिये, अपने किरदार और व्यवहार में नहीं। जैसा जीता-सोचता हूं, करीब-करीब वैसा ही लिखता हूं, जैसा लिखता हूं करीब-करीब वैसा ही जीता -सोचता हूं।
अब पढना कम कर देना चाहिये- एक तो इसलिये कि आंखें थक जाती हैं और एक इसलिये कि अब पढने से कोई फ़ायदा होता नजर आता है, न कोई खास लुत्फ़ मिलता। पढा हुआ पहले भी याद कम ही रहता था, अब और कम। अब हर क्षण खीझ को, हर अनुभव की आंच को हर ख्याल की खाक को , हर सांस की सुरसुराहट को, हर दर्द के धुयें को दर्ज करते रहना चाहिये। लेकिन क्यों?"
ये बातें प्रख्यात लेखक कृष्ण बलदेव वैद ने आज से 14 साल पहले अपनी डायरी ( किताब का शीर्षक अब्र क्या चीज है? हवा क्या है?) में लिखीं थीं। उस समय वे 67 साल की उमर के थे। आज वे 91 के होंगे। उनकी दो किताबें पढी हैं मैंने (1) एक नौकरानी की डायरी (2) नर-नारी। दोनों शुरु करने के बाद पूरी खत्म करके ही छोड़ी। ऐसा कम होता है आजकल। किताबें , एक से एक बेहतरीन , बेस्टसेलर किताबें या तो शुरु ही नहीं होतीं या फ़िर अधूरी छूट जाती हैं। पढने की क्षमता कम , बहुत कम हो गयी है। जैसे कम्प्यूटर की मेमोरी भरने के बाद कम्प्यूटर हैंग करने लगता है कुछ वैसा ही। किताबें पढते समय दिमाग हैंग कर जाता है। किताब उठाकर रख देते हैं।
लेकिन किताबें इकट्ठा करने का जुनून बरकरार है। तमाम अलाय-बलाय से बचाती हैं किताबें।
पिछले दिनों मनोहर श्याम जोशी पर लिखी प्रभात रंजन की किताब हमजाद बोहेमियन मंगवाई। उसके साथ और कई किताबें मंगवा लीं। कुछ मित्रों ने लिस्ट के बारे में पूछा था। हमने सोचा बतायें लेकिन फ़िर लगा कि फ़िर तो पहले जी तमाम किताबों के बारे में भी बताना चाहिये। लेकिन अब सोचते हैं कि अभी इस बार की किताबों के बारे में बतायें। क्या पता किसी का मन आ जाये किताब पढने का। जैसे हमजाद बोहेमियन का जिक्र पढकर निर्मल गुप्त जी ने उसे मंगवाया और पढकर ही छोड़ पाये उसे।
किताबों की लिस्ट ये रही:
1. हमजाद बोहेमियन - प्रभात रंजन
2.अब्र क्या चीज है? हवा क्या है?- कृष्ण बलदेव वैद
3.जांच जारी है- आरिफ़ा एविस
4.ढाक के तीन पात- मलय जैन
5.औघड़ -नीलोत्पल मृणाल
6.इनरलाइन पास - उमेश पंत
7.हमसफ़र एवरेस्ट - नीरज मुशाफ़िर
8.पैडल-पैडल - नीरज मुशाफ़िर
9.चिरकुट दास चिन्गारी- वसीम अकरम
10. भली लड़कियां बुरी लड़कियां- अनु सिंह चौधरी
11.मैं बोनसाई अपने समय का - रामशरण जोशी
12. पर्यावरण के पाठ साक्षात्कार -अनुपम मिश्र
13.एक किशोरी की डायरी अने फ़्रांक - अनुवादक प्रभात रंजन
14. पालतू बोहेमियन -प्रभात रंजन
15. सच प्यार और थोड़ी सी शरारत -खुशवन्त सिंह
16.उच्च शिक्षा का अंडरवर्ड- जवाहर चौधरी
17. बारिश, धुंआ और दोस्त- प्रियदर्शन
इसके पहले की मंगाई और अब तक अनपढी , अधपढी किताबों की सूची बनायेंगे तो शाम हो जायेगी। इन किताबों हमारे समय के बेहतरीन लेखकों में सुमार लेखकों की बेहतरीन मानी जानी वाली किताबें भी हैं। ज्ञान चतुर्वेदी जी की किताब पागलखाना और रसूल हमजातोव की मेरा दागिस्तान बहुत दिनों तक बैग में साथ लिये दफ़्तर आते-जाते रहे। यात्राओं में भी साथ रखे।
पागलखाना का सफ़र पेज 73 पहुंचा है। सबसे ताजी जगह जो अंडरलाइन की है वह यह है:
"बाजार में आजकल भ्रम डिस्काउंट रेट पर मिल जाता और नाक बड़े ऊंचे भाव पर बिक जाया करती है। लोग नाक बेच देते हैं और भ्रम लगाये घूमते हैं।"
पेज 73 से 270 तक का सफ़र देखिये कब तय होता है। होने को तो एक दिन में तय हो सकता है लेकिन देखिये। फ़िलहाल तो सामने हैं किताबें।

Sunday, April 21, 2019

दवा और प्रेम वन लाइनर

 दवाओं की तरह प्रेम की भी एक्सपायरी डेट होती है। Nirmal Gupta

दवाओं की तरह प्रेम के भी साइड इफेक्ट होते होंगे। - अनूप शुक्ल
दवाओं के असर की तरह प्रेम के लिए भी आवश्यक है विश्वास - मनीष मोहन
दवाओं की ही तरह प्रेम जल्द असरदायक भी होता है बेहतरी के लिए 😉😊 ज्योति त्रिपाठी
"रम" जितना पुराना उतना अच्छा और प्रेम जितना पुराना उतना गहरा .....Akram Javed
दवाओं की तरह प्रेम के अलग अलग रंग भी होते हैं। अर्चना चतुर्वेदी
काश दवाइयों की तरह प्रेम भी जेनरिक होता। Alankar Rastogi
दवाओं की तरह प्रेम की अलग अलग खुराकें होती हैं किसी को कम किसी को ज्यादा.. Anup Srivastava
आजकल दवाओं की तरह नकली प्रेम भी मिलते हैं जो बाद (में) बुरा असर करते हैं । - अर्चना चतुर्वेदी
कई बार आराम नहीं आने पर दवा की मात्रा बढ़ानी पड़ती है। इसी तरह नतीजे ना मिलने पर प्रेम की डोज़ बढ़ा देना ही सही रहता है। Poonam Jain
पहले इंजेक्शन का दर्द और पहले प्रेम का दर्द जिसे बता न सके दोनों बहुत याद आते हैं .....Akram Javed.
प्रेम आयुर्वेदिक औषधियों की तरह कुछ खास प्रहरों में ही कारगर होता है। DrArvind Mishra
बीमार हूँ मैं तेरी असरदार नज़र का,
बेअसर दवा है दुआ का असर गया। Harshvardhan Verma
दवा की तरह प्रेम को भी taken for granted लेने से बचना चाहिए -Poonam Jain
एक उम्र के बाद दवा और प्रेम के भरोसे ही जीवन कट पाता है -Poonam Jain
प्रेम के इजहार से ज्यादा साहस का काम प्रेम निभाना है - Pallavi Trivedi
सच्चा प्रेम कोई दवा नहीं खुद एक लाइलाज मर्ज़ है उसकी क्या एक्सपायरी होगी। 😊 -Virendra Bhatnagar
प्रेम के फ्रेम में सेट होना आसान नहीं😊 Alok Nigam
वो प्रेम की दवा ढूंढ रहे हैं तो चलो प्रेम को बीमारी समझ लेते हैं ! -Shweta Sharma
प्रेम कुदरती होता है, बनावटी नही. इसलिए प्रेम के साइड-इफेक्ट दवाओं के साइड-इफेक्ट की तरह अवांछित नही होता.Prahlad Singh
प्रेम नामक बीमारी की कोई उम्र नही होती लेकिन डोज जरूर उम्र के लिहाज से लेनी चाहिए, वरना प्रेम के साइड एफफ़ेक्ट्स भी हो सकते हैं! ALok Khare
बुढ़ापे में दवाओं का डोज़ चिकित्सक को संभल कर देना चाहिए. अपने पुराने चिकित्सक से ही मिलते रहिये. नए चिकित्सक से परामर्श नुक्सान पहुंचा सकता है. Pradeep Kumar Shukla
दवा हो या प्रेम, ये हो नहीं सकता कि कड़वाहट कोई और गटक ले और आराम आपको हो जाए। -Poonam Jain

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