Friday, May 03, 2019

जब तक जांगर में दम, तब तक काम


धर्मतल्ला पर चाय कुल्हड़ में मिली। दाम बढ़ गए। कागज के कप में पांच रुपये। कुल्हड़ में छह। मिट्टी के दाम एक रुपये। वैसे तो मिट्टी अनमोल होती है।
एक महिला टहलती हुई आई। आँचल फैलाकर मांगती। किसी ने कुछ दिया। बाकी बगलिया के निकल लिए। वह निस्संग भाव से मांगती रही।
निस्संग से याद आया कि श्रीलाल शुक्ल जी निस्संग व्यंग्यकार कहलाते थे।
एक आदमी उससे कहता है-' यहाँ कौन देने वाला है तुमको। ये दुकानदार सब कंगला है। खुद मांगता है। यहां कोई नहीं देने वाला किसी को।'
महिला उसकी बात को अनसुनी करते हुये बिना दैन्य भाव के अपने काम में लगी रहती है।
हम एक उसके आँचल में रखकर बतियाते है। घर कहाँ है?
'बैरकपुर' - महिला बताती है।
'कैसे आती हो इत्ती दूर से?'- हम पूछते हैं।
'इत्ती' लिखते समय याद आया की विजी श्रीवास्तव Viji Shrivastava के अगले व्यंग्य संग्रह का नाम है - 'इत्ती सी बात। '
'बस से। दस टका किराया है।' - वह बताती है।
'बस वाला किराया छोड़ता नहीं है?'- हम पूछते हैं।
'न वो काहे को छोड़ेगा। आने - जाने का किराया देना पड़ता है। बीस रुपया रोज।'- महिला बताती है।
इसके बाद और बातें हुईं। महिला का नाम सईदाबीबी है। छह बच्चे हैं । सबकी शादी हो गयी। सबके घर बस गए। नाती-पोता हैं। घर जाती हैं तो नाती-पोता पूछते हैं - आज क्या लाई मेरे लिए?
'जब बच्चे हैं । कमाते हैं तो माँगती क्यों हो?' - हम पूछते हैं।
'घर में रहते हैं तो बच्चे ठीक से खाने को नहीं देते। बासी-कूसी दे देते हैं। कहते हैं- यही है। यही खातिर जबतक जांगर में दम है तब तक माँगब। उसके बाद भगवान मालिक।' -महिला अपना मांगने का दर्शन बताती है।
अपने बारे में और बताया सईदा बीबी ने- ' जिस साल इंदिरा गांधी खत्म हुई थीं उसी साल आदमी नहीं रहा। उसके बाद कुछ दिन काम किया। फिर मांगने का काम कर रहने लगे।'
मांगने का काम से हमें लगा कहीं कोई यह बयान न जारी कर दे-'माँगना भी एक रोजगार है।बयानबाजी में कोई प्रतिबंध नहीं लोकतंत्र में।'
सईदा बीबी की कमाई का अंदाजा लगाने के लिए हमने पूछा -'कल कितने मिले?'
'कल हम आये नहीं थे। तबियत खराब थी। खून मीठा हो गया है हमारा। थक गए थे। बुखार आ गया। तीन दिन से आये नहीं।' -सईदा ने बताया।
'अढ़ाई सौ तीन सौ मिल जाता है रोज का।' - अपनी कमाई का खुलासा करते हुए बताया सईदा ने।
'बहुत मिल जाता है फिर तो'- हमने कहा।
'यह धर्म तल्ला है। यहाँ सब धर्म की कमाई होती है। देखो वो भी मांग रहे हैं।'- एक बुजुर्ग की तरफ इशारा करते हुए बताया।
वो बुजुर्ग तब तक टहलते हुए पास आ गए। कोई मुस्लिम नाम बताया। बड़ा लंबा। हमने उनको भी एक सिक्का दिया। उन्होंने देखकर लौटा दिया। एक रुपये का सिक्का उनको मंजूर नहीं था। हमने उनसे वापस लेकर सईदा बीबी के आंचल में डाल दिया। उन्होंने मना नहीं किया-' सिक्के-सिक्के पर लिखा पाने वाला का नाम।'
'पुलिस वाले तंग नहीं करते। पैसा तो नहीं मांगते?' हमने पास की दुकान पर मोटरसाइकिल पर चाय पीते सिपाही की तरफ इशारा करते हुए पूछा।
नहीं। कोई तंग नहीं करता। कहते हुए सईदा बीबी आगे बढ़ गयीं।

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