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अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
पिछले दिनों जब अमिताभ बच्चन स्वस्थ होकर वापस आये तो सहारा वन टीवी पर उस दिन के कार्यक्रम का प्रसारण किया जिसके बाद से अमिताभ बच्चन की तबियत खराब हुई। इसमें हरिवंशराय बच्चन की स्मृति में लखनऊ में आयोजित कवि सम्मेलन की झलकियां दिखाईं गई। उज्जयिनी के कवि ओम व्यास ने एक कविता पढ़ी थी -मजा ही कुछ और है।
यह कविता पंक्ति दिमाग में फंसी थी। आज सोचा इसे निकाल ही दिया जाये। अब
जब इसे निकाला तो तमाम और लाइनें भरभरा कर निकल पड़ीं। इसे बिना किसी
लाग-लपेट के यहां दे रहा हूं। तमाम पहलू छूट रहे हैं। लेकिन आफिस भी पुकार
रहा है लिहाजा जितना है उतने में ही मौज का जुगाड़ करे।
आपके दिमाग में कुछ कुलबुला रहा हो तो उसे यहीं या फिर अपने ब्लाग में निकाल के धर दें। इसका भी मजा ही कुछ और है।
जाडे़ में बिस्तर पर बैठ कर खाने का,
बाथरूम में बिन नहाये पानी गिराने का,
हल्ला मचा कर अवकाश पर जाने का
अनुगूंज का बूथ कब्जिया के जीत जाने का -
मजा ही कुछ और है।
हिंदी प्रेमियों का अंग्रेजी में लटपटाने का
गरियाने के बाद उसे मौज बताने का
२० साल पुरानी साइकिल फिर से चलाने का
फाइलों के बीच से कविता निकाल लाने का
मजा ही कुछ और है।
हिंदी पोस्ट पर अंग्रेजी में टिपियाने का
हर फिसली कन्या का गाडफादर बन जाने का
कुंवारे की कंडली में शादी योग खोज लाने का
गणितीय भाषा में प्रेम का झंडा लहराने का
मजा ही कुछ और है।
शादी लायक लड़के को नंगा दिखाने का
कविता पढ़कर ‘प्रतिकविता’ झिलाने का
ग्राहक पाकर पुराना स्टाक निकालने का
रोज-रोज,नये-नये उपदेश पिलाने का
मजा ही कुछ और है।
हर नयी नवेली को कुंवारी न बताने का
मिर्जा के मुंह से मामला रफा-दफा करवाने का
बिना सोचे नई-नई योजनाये उछालने का
करने के समय हे-हे-हे करके मुकर जाने का
मजा ही कुछ और है।
विदेश में जाकर देश के बारे में आंसू बहाने का
जहां हैं उसे कोसते हुये वहीं टिके रह जाने का
रोते हुये देश के प्रेम में पागल बन जाने का
शहीदाना अंदाज में पेड़ का टूटा-पत्ता बन जाने का
मजा ही कुछ और है।
रोजमर्रा के लेनदेन को टीवी पर दिखाने का
पकड़े जाने पर थू-थू,शर्म-शर्म मच जाने का
साजिश है हमको फंसवाने की का बहाना बनाने का
निर्लप्त देशवासियों का काम-धंधे में लग जाने का
मजा ही कुछ और है।
ये लगता है फिर आ जायेगा टीम में- बताने का
फिर लफड़ा करेगा कहकर गांगुली को गरियाने का
निकाले जाने पर ये तो ‘गल्त हुआ’ बताने का
फिर ये तो चलता ही रहता है बताने का
मजा ही कुछ और है।
आंख खुलते ही लैपटाप से चिपक जाने का
चाय लाती पत्नी को देखकर सकपकाने का
‘बड़ी अच्छी लग रही हो’ कह मस्का लगाने का
‘उठो बच्चों’ कह फिर से टाइपिंग में जुट जाने का
मजा ही कुछ और है।
सबेरे-सबेरे स्वामी से नेट पर बतियाने का
व्यस्त जीतू से ‘कमेंट करो यार’ कहलाने का
भाभियों को साष्टांग करके प्यारा बन जाने का
आफिस जाने से तुरंत पहले कविता झिलाने का
मजा ही कुछ और है।
आपके दिमाग में कुछ कुलबुला रहा हो तो उसे यहीं या फिर अपने ब्लाग में निकाल के धर दें। इसका भी मजा ही कुछ और है।
जाडे़ में बिस्तर पर बैठ कर खाने का,
बाथरूम में बिन नहाये पानी गिराने का,
हल्ला मचा कर अवकाश पर जाने का
अनुगूंज का बूथ कब्जिया के जीत जाने का -
मजा ही कुछ और है।
हिंदी प्रेमियों का अंग्रेजी में लटपटाने का
गरियाने के बाद उसे मौज बताने का
२० साल पुरानी साइकिल फिर से चलाने का
फाइलों के बीच से कविता निकाल लाने का
मजा ही कुछ और है।
हिंदी पोस्ट पर अंग्रेजी में टिपियाने का
हर फिसली कन्या का गाडफादर बन जाने का
कुंवारे की कंडली में शादी योग खोज लाने का
गणितीय भाषा में प्रेम का झंडा लहराने का
मजा ही कुछ और है।
शादी लायक लड़के को नंगा दिखाने का
कविता पढ़कर ‘प्रतिकविता’ झिलाने का
ग्राहक पाकर पुराना स्टाक निकालने का
रोज-रोज,नये-नये उपदेश पिलाने का
मजा ही कुछ और है।
हर नयी नवेली को कुंवारी न बताने का
मिर्जा के मुंह से मामला रफा-दफा करवाने का
बिना सोचे नई-नई योजनाये उछालने का
करने के समय हे-हे-हे करके मुकर जाने का
मजा ही कुछ और है।
विदेश में जाकर देश के बारे में आंसू बहाने का
जहां हैं उसे कोसते हुये वहीं टिके रह जाने का
रोते हुये देश के प्रेम में पागल बन जाने का
शहीदाना अंदाज में पेड़ का टूटा-पत्ता बन जाने का
मजा ही कुछ और है।
रोजमर्रा के लेनदेन को टीवी पर दिखाने का
पकड़े जाने पर थू-थू,शर्म-शर्म मच जाने का
साजिश है हमको फंसवाने की का बहाना बनाने का
निर्लप्त देशवासियों का काम-धंधे में लग जाने का
मजा ही कुछ और है।
ये लगता है फिर आ जायेगा टीम में- बताने का
फिर लफड़ा करेगा कहकर गांगुली को गरियाने का
निकाले जाने पर ये तो ‘गल्त हुआ’ बताने का
फिर ये तो चलता ही रहता है बताने का
मजा ही कुछ और है।
आंख खुलते ही लैपटाप से चिपक जाने का
चाय लाती पत्नी को देखकर सकपकाने का
‘बड़ी अच्छी लग रही हो’ कह मस्का लगाने का
‘उठो बच्चों’ कह फिर से टाइपिंग में जुट जाने का
मजा ही कुछ और है।
सबेरे-सबेरे स्वामी से नेट पर बतियाने का
व्यस्त जीतू से ‘कमेंट करो यार’ कहलाने का
भाभियों को साष्टांग करके प्यारा बन जाने का
आफिस जाने से तुरंत पहले कविता झिलाने का
मजा ही कुछ और है।
Posted in कविता, बस यूं ही | 12 Responses
अपनी खिंचाई पर भी जबरन मुस्काराने का,
कमेन्ट के लिये नये ब्लॉग खोजने का
व्यस्त रहकर भी ब्लॉग लिखने का
मजा ही कुछ और है।
अब का है कि हम तो आदी हो गये है, तुम्हारी खिंचाई के, जिस दिन नही खेंचते तो मन बैचैन हो उठता है कि कंही शुकुल बीमार तो नही पड़ गये। अच्छा लिखे हो,लगे रहो।
सार्वजनिक सामूहिक खिंचाई पे मूह फाड के हंसने का
क्रिसमस पे खाली दफ्तर मे तुकबँदी बुनने का
काम का ढेर पडा है सोच के सिर धुनने का
मजा ही कुछ और है.
देख चुके ख़बरें सब
काम-काज निपटा के
खाली-खाली बैठें जब
शुकुल जी के लिक्खे को
चाय संग पढ़ने का
साथ-साथ हँसने का
…
मजा ही कुछ और है
रिजर्व बैन्क के सामने “वेलू” के दोसे खाने का,
ठग्गु के लड्डू/कुल्फी खाने का,
और कानपुर मॅ बिना हेल्मेट/सीट बेल्ट के वाहन चलाने का,
मजा ही कुछ और है…..
क्या दिन थे वे भी। हमारा फ़ेवरिट टाइम पास था पंक्षी गिनना। चलो एक लेख इस पर भी उधार रहा।
साथ साथ बटोरने का भी फुरसतियाजी
मज़ा ही कुछ और है
चाय लाती पत्नी को देखकर सकपकाने का
‘बड़ी अच्छी लग रही हो’ कह मस्का लगाने का
‘उठो बच्चों’ कह फिर से टाइपिंग में जुट जाने का
मजा ही कुछ और है।
ऊपर वाला हमारे लिए लिखा गया है