http://web.archive.org/web/20110101193636/http://hindini.com/fursatiya/archives/96
अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
कनपुरिया अखबार की कतरन
पिछले दिनों २३.१२.२००५ को कानपुर के दैनिक जागरण में ‘जागरण सिटी’ में
ब्लागिंग के बारे में लेख छपा। ‘मनीष त्रिपाठी’ ने लेख लिखा-ब्लाग स्फीयर
में अपना शहर। देख सकते हैं कि लेख के तथ्य धर्मराज के सच की तरह हैं। कुछ
गलत-कुछ सही। यह बताता है कि:-
१.जीतेन्दर हिंदी के पहले ब्लागर हैं।
२.अतुल फुरसतिया तथा रोजनामचा लिखते हैं।
३.ब्लागिंग की कमान कुछ कनपुरियों के हाथ में हैं।
बाकी की बातें आप खुद पढ़ चुके होंगे। हमने मनीष को सही तथ्य बताये । शायद वो फिर से लिखें।
जीतेंदर से जब फोन पर बात हुई तब जीतू ने कहा इसे ‘स्कैन’ करके चिपकाओ नेट पर। अतुल को भी कौतूहल था। अतुल के ब्लाग के बारे में कहा गया है-अतुल अरोरा के ब्लाग्स का क्या कहना! क्या कहते हो अतुल? अब तो लिखने लगो थोड़ा-थोड़ा सा ही सही! वर्ना कहीं ऐसा न हो कि रोजनामचा का पासवर्ड ही भूल जाओ।
१.जीतेन्दर हिंदी के पहले ब्लागर हैं।
२.अतुल फुरसतिया तथा रोजनामचा लिखते हैं।
३.ब्लागिंग की कमान कुछ कनपुरियों के हाथ में हैं।
बाकी की बातें आप खुद पढ़ चुके होंगे। हमने मनीष को सही तथ्य बताये । शायद वो फिर से लिखें।
जीतेंदर से जब फोन पर बात हुई तब जीतू ने कहा इसे ‘स्कैन’ करके चिपकाओ नेट पर। अतुल को भी कौतूहल था। अतुल के ब्लाग के बारे में कहा गया है-अतुल अरोरा के ब्लाग्स का क्या कहना! क्या कहते हो अतुल? अब तो लिखने लगो थोड़ा-थोड़ा सा ही सही! वर्ना कहीं ऐसा न हो कि रोजनामचा का पासवर्ड ही भूल जाओ।
Posted in सूचना | 6 Responses
तारीफ़ चाहे किसी की भी हो, लेकिन हम सभी का सर गर्व से ऊँचा हुआ है।एक बात तो है ही, दैनिक जागरण की पहुँच बहुत बड़े हिन्दी भाषी क्षेत्र मे हैं। मुझे अचानक भारत जाना पड़ा तो कई लोगों ने मुझे इस छपे लेख के बारे मे बताया। कुछ ऐसे लोगों ने भी जो कम्प्यूटर प्रयोग नही करते,लेकिन लेखन/पाठन के शौकीन है।
तभी मैने अनूप भाई से निवेदन किया था लेख को स्कैन करके चिपकाओ, देखें तो सही, क्या लिखा है।
मै आज भी कहता हूँ,भविष्य हिन्दी ब्लॉगिंग का है, समय आयेगा जब हर हिन्दीभाषी विचारशील व्यक्ति अपने विचारों की स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के लिये ब्लॉगिंग का प्रयोग करेगा। ये क्रान्ति जितनी जल्दी आ सके उतना अच्छा है।