http://web.archive.org/web/20110926045617/http://hindini.com/fursatiya/archives/222
अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
पुराने साल का लेखा-जोखा
आज नये साल का पहला दिन है। नये साल का मतलब है सबेरे देर तक
बिस्तर पर ‘ऐंड़ियाऒ’। उठने के लिये उचको और फिर रजाई में दुबक जाऒ! डरते
और मुस्कराते हुये कहो-यार, ज़रा चाय पिलाऒ। लेकिन हमें नये साल पर हमेशा
खुंदक आती है। ससुरा आते ही शुरू हो जाता है। और हम सोचते रह जाते हैं कि
नया साल आयेगा, बैठेगा, ‘हेलो,हाऊ डू यू डू’ कहते हुये हथेलियां रगड़ते हुये कहेगा-आपका समय शुरू होता है अब! लेकिन नहीं, ये तो आते ही शुरू हो गया और जब तक हम ‘हैप्पी न्यू यीअर’ और ‘सेम टु यू’ के झंझावात से उबरें तब तक साल का पहला दिन अपनी पारी समेट चुका था।
बहरहाल, पुराने साल के खात्मे की खबर हमें लगी हमें जीतेंन्द्र की चिट्ठाचर्चा से। अगला इतनी गफलत में रहता है कि साल तक गुजर जाता है और इनको हवा नहीं लगती। जीतू फरमाते हैं:-
बहरहाल यह तो जीतेंन्द्र की अदायें हैं। ये अदायें छोड़ देंगे तो इनको पहचानेगा कौन! हम कुछ और लिखें इसके पहले बीते साल पर एक सरसरी नजर मार लें तो कोई खराब बात नहीं होगी। तो आइये चलते हैं देखते हैं गये साल में क्या-कुछ हुआ हिंदी चिट्ठाजगत में!
…कारवां बनता गया:-पिछ्ले वर्ष जैसा कि जीतेंन्द्र ने बताया कराबे चालीस लोग चिट्ठाजगत से जुडे़। आजकल जो लोग नियमित लेखन कर रहे हैं उनमें से अधिकांश वे हैं जिन लोगों ने इस साल ही लिखना शुरू किया। यह उल्लेखनीय बात है कि नये साथियों में आपसी संपर्क भी बना हुआ है। रूठना-मनाना भी जारी रहा है। सबसे ज्यादा मनौवल इस साल हुई सागर चंद नाहर की। वे किसी बात पर रूठ गये और फिर बाजी मनाने वालों के हाथ में रही। लेकिन कुछ साथी ऐसे भी रहे जिन्होंने मनाने वालों को उनका काम नहीं करने दिया और लिखना स्थगित कर दिया।
लेखन में कुछ नये आयाम भी छुये गये और कई ऐसे उल्लेखनीय पोस्ट हुये। चिट्ठाजगत के लोग का उल्लेख अखबारों, पत्रिकाऒं और टेलीविजन तक में हुआ। रविरतलामी, जगदीश व्योम का टेलीविजन साक्षात्कार, रवि रतलामी, सागर चंद नाहर के लेख, अनुवाद पत्रिकाऒं, अखबारों में छपे। प्रत्यक्षा तो अब नियमित कहानी लेखिका बन गयीं हैं और संपादक अब उनसे कहानियों का तकादा करने लगे हैं। आशा है कि आगे आने वाले समय में जैसे-जैसे इंटरनेट की उपलब्धता बढ़ेगी, हिंदी चिट्ठाकारों की संख्या में इजाफ़ा होता जायेगा।
नारद बैठे फिर खड़े हो गये:-पिछ्ले वर्ष की शायद सबसे उल्लेखनीय घटना नारद का बैठना रहा। लोग तब तक आदी हो गये थे नारद के माध्यम से ही नये चिट्ठों के बारे में जानकारी पाने के। इससे हिंदी चिट्ठाजगत से जुड़े सभी लोग प्रभावित हुये। और जब आग लगी तो कुआं खोदा गया। सब लोगों ने जुटकर आर्थिक, तकनीकी सहयोग दिया और नारद फिर से चालू हुआ। मुझे इसकी वर्तमान स्थिति नहीं पता है कि आगे कैसे इसे चलाया जायेगा, और क्या सहयोग करने होंगे। लेकिन मुझे यह लगता है चूंकि अब यह आम लोगों के सहयोग से चल रहा है तो इसके बारे में आम लोगों को विस्तार से जानकारी देनी चाहिये। इसके अलावा आगे के लिये धन की व्यवस्था पर विचार होना चाहिये। अनूप भार्गव जी ने इस बारे में प्रस्ताव दिया था कि इसका पंजीकरण कराया जाये तो आधी धनराशि अनुदान के रूप में मिल सकती है। इस दिशा में भी सोचा जाना चाहिये।
नारद के बारे में अभी जब लिख रहा हूं तो मुझे चिट्ठाचर्चा के मराठी चिट्ठों के बारे में की गयी चर्चा पर एक टिप्पणी की याद आती है जो शायद रविरतलामीजी ने की थी। उनका कहना था कि हिंदी नारद में भी वे सुविधायें होनी चाहियें जो मराठी के नारद में हैं या फिर मराठी वालों से कहें कि हिंदी के चिट्ठे भी उसी में शामिल कर लें। पहली बात से तो मैं सहमत हूं लेकिन दूसरी बात मुझे कुछ हजम नहीं हुई। उनसे सहयोग लेना अपने साथ जोड़ने के और तरीके हो सकते हैं लेकिन यह कहना कि भैया ये हमसे हो नहीं पा रहा हमारे लिये तुम कर दो कुछ जमता नहीं भाई! क्या हम कुछ गलत तो नहीं समझ/कह रहे हैं रतलामीजी!
नारद में अब ब्लाग पोस्ट पर हुये कमेंट भी दिखते हैं। क्या कोई ऐसी व्यवस्था हो सकती है कि सारी टिप्पणियां एक जगह इकट्टा हो सकें और एक जगह सारी टिप्पणियां प्रकाशित की जा सकें!
यह खुशी की बात है कि अब नारद का लिंक प्रसिद्ध साहित्यिक,कला पत्रिका अभिव्यक्ति में भी मौजूद है।
चिट्ठाचर्चा:-चिट्ठाचर्चा नये रूप में फिर से शुरू हुआ। और अब कमोवेश यह नियमित भी है। जिन दिनों नारद की सुविधा स्थगित थी तब इसके महत्व का अंदाजा नये सिरे से हुआ। गुजराती, मराठी, राजस्थानी चिट्ठों की चर्चा से इसे नया आयाम मिला। मलयालम के चिट्ठों की चर्चा के लिये बनारस से अफलातूनजी और उर्दू के लिये रमण कौल जी कुछ शुरू करने वाले थे। कब होगा आगाज इनका !
परिचर्चा:-नारद के नये रूप में परिचर्चा की शुरुआत हुयी। परिचर्चा के माध्यम से नये विषयों पर विचार विमर्श, सूचनाऒं के आदान-प्रदान ज्यादा सहज और त्वरित हुआ। लोगों के जन्मदिन की शुभकामनायें देने हंसी-खुशी के मौकों पर बधाइयां देने में भी परिचर्चा मंच का धड़ल्ले से उपयोग हुआ। इन सब सार्थक उपयोगों के साथ-साथ कहासुनी के माहौल भी कम नहीं बने। ऐसा भी हुआ जब लोग एक-दूसरे पर तर्क-कुतर्क कटारी लेकर टूट से पड़े। उस समय परिचर्चा मंच ‘परिचर्चा’ कम ‘अरिचर्चा’ मंच ज्यादा लग रहा था। परिचर्चा के चलते पहले कीचौपाल बंद हो गयी। परिचर्चा सहज-सुगम है लेकिन इसके माध्यम से आपको सूचनायें पाने के लिये वहां जाना पड़ेगा। जबकि पहले की चौपाल में सूचनायें पोस्टों के रूप में आती थीं |बहरहाल, आशा है कि आगे परिचर्चा और सार्थक रूप में अपनी उपादेयता सिद्ध करेगी!
तरकश:-यह एक अनूठा आयोजन रहा जिसकी शुरुआत इस वर्ष हुयी। तरकश के माध्यम से हिंदी में और गुजराती में लिखने वालों के अनियमित कालम पेश किय गये। सहज, सरल भाषा में छोटे-छोटे लेखों के माध्यम से इसकी पैठ आम लोगों तक हो चुकी है। कभी-कभी वर्तनी की अशुद्दियां अखरती हैं लेकिन फिर यह भी लगता है कि निरंतर सुधार से यह कमियां तो दूर ही की जा सकती हैं। बेंगाणी बंधुऒं का सार्थक प्रयास है और यह उनकी तारीफ़ की बात है कि अपने इस कार्यक्रम में उन्होंने सभी साथियॊं का सहयोग लेने में सफलता हासिल की।
निरंतर:-निरंतर का दोबारा प्रकाशन शुरू होना भी गतवर्ष की उल्लेखनीय घटना रही। दूसरा अंक एक माह विलंब से आयी लेकिन आशा है कि आगे से यह नियमित द्विमासिक रूप में निकलता रहेगा। सुनील दीपक, प्रत्यक्षा, ई-स्वामी और अन्य नये साथियों के साथ में जुड़ने से सामग्री का टोटा कम हुआ है। अब बस इसे नियमितता प्रदान किया जाना बाकी है।
अनुगूंज:-दो साल पहले जब अनुगूंज की शुरुआत हुयी थी तो इसमें लोग अपने-अपने ब्लाग पर दिये गये विषय पर लेख लिखते थे और उस पर चर्चा होती थी। हिंदी चिट्ठाजगत के अगर कुछ बेहतरीन लेख देखने हों तो वे अनुगूंज में मिलेंगे। धीरे-धीरे अनुगूंज के आयोजन में अनियमिता और लेखकों की उदासीनता के चलते अनुगूंज का आयोजन कम होते-होते बंद सा हो गया है। इसके ही जरिये अनुनाद सिंह ने नेट पर हिंदी कहावतों और मुहावरों का संग्रह और रवि रतलामी जी ने चुटकुलों का संग्रह तैयार किया। क्या नये साल में इसे फिर से शुरू किया जा सकता है! इसका सवाल का उत्तर किसके पास है?
बुनो कहानी:-अनुगूंज के आसपास ही बुनोकहानी का आयोजन भी शुरू हुआ था। लेकिन तीन-चार कहानियों के बाद सारे करघे बंद हो गये। जहां तक मुझे याद आता है कि सबसे लम्बा गतिरोध तब आया था जब शशि सिंह ने एक वैज्ञानिक कहानी शुरू की थी। मेरे ख्याल में वह कहानी जहां की तहां अटकी है। अब जब अपने यहां कहानी लेखकों की भरमार है तब तो इसे फ़िर से शुरू होना चाहिये। न हो तो तीन लोग आपस में अपने-अपने दल बना लें और लिखें अपने-अपने हिस्से की कहानी या और कोई सुझाव हो तो बतायें।
रामचरितमानस/ राग दरबारी नेट पर:- गत वर्ष रामचरितमानस जीतेंन्द्र की शुरुआत और रविरतलामी के सहयोग से नेट पर पोस्ट की गयी। यह खुशी की बात है। क्या कोई ऐसा जुगाड़ हो सकता है कि रामचरित मानस में भी सर्च की सुविधा हो जिससे कि किसी शब्द विशेष से शुरु होने वाली चौपाई, दोहा, श्लोक तुरंत मिल जाये!
इसी साल प्रसिद्ध व्यंग्य लेखक श्रीलाल शुक्ल के कालजयी उपन्यास रागदरबारी को नेट पर उपलब्ध कराने का काम शुरू हुआ। अभी तक १३ भाग टाइप हो चुके हैं और बाकी की टाइपिंग चल रही है। आशा है कि एकाध महीने में यह काम पूरा हो जायेगा।
जिन साथियों के सहयोग से यह काम चल रहा है वे इसके लिये बधाई के पात्र हैं। जो साथी इस टंकण यज्ञ में सहयोग दे सकते हैं वे भी आगे आयें और इस काम को करने में सहायता दें।
जब यह रागदरबारी और दूसरी साहित्यिक किताबों को नेट पर लाने की मुहिम चल रही है तब मैं यह सोच रहा हूं कि क्या कोई ऐसे तरकीब नहीं है जो हिदी के लिखे को ‘टेक्स्ट’ के रूप में(फोटो नहीं) स्कैन कर सके ताकि टाइपिंग का झंझट कम हो सके? सुना है कि अंग्रेजी में इस तरह की सुविधा मौजूद है!
विकिपीडिया:-जब से मुझे मितुल के माध्यम से विकिपीडिया के बारे में जानकारी मिली और यह पता चला है कि इसमें हिंदी की प्रगति बहुत कम है तबसे मुझे यह लगता है कि हमें इसमें नियमित योगदान देना चाहिये। इसके बारे में फिर कभी विस्तार से लिखूंगा लेकिन मुझे यह लगता है कि इसे हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा। वैसे तो नये साल में कुछ नये संकल्प लेने का मैं काम नहीं करता क्योंकि यह सब ऐसे ही होता है। लेकिन अगर एक भी संकल्प लेने की मजबूरी हो तो मैं यही लूंगा कि हिंदी विकिपीडिया को संपन्न बनाने का काम करूंगा। उसमें साल भर में कुल सौ पन्ने कम से कम जोड़ने का प्रयास मैं करूंगा।
इंडीब्लागीस:- देबाशीष ने लगातार चौथे वर्ष भारतीय ब्लागर्स के लिये इंडीब्लागीस की घोषणा कर दी। फिलहाल यह आयोजन इस समय आरंभिक दौर में है। गतवर्ष इस समय वहां काफ़ी गहमा-गहमी होने लगी थी। आप इस आयोजन को करने में जो भी सहायता कर सकें वह देबाषीष को करें। हिंदी के जो भी ब्लाग नामांकित हों उनके लिये जम कर मतदान करें और इस आयोजन को सफल बनायें।
वर्ष का उभरता हुआ चिट्ठाकार:- तरकश की तरफ़ से इस बार वर्ष हिंदी २००६ के उभरते हुये चिट्ठाकार का चुनाव के लिये आयोजन हो रहा है। अंतिम नामों की घोषणा हो चुकी है जिनके लिये मतदान आज से शुरू हो चुके हैं। इस अंतिम लिस्ट में कुछ ऐसे नाम नहीं हैं जो शायद अपने को निश्चित सा मान रहें होंगे। यह बात निर्णायकों के विवेक पर निर्भर करती है और कोई भी उसके चयन न होने के लिये निर्णायकों को विवेकहीन कहने के लिये स्वतंत्र है। यह सूचित कर देने में शायद कोई हर्ज नहीं है कि वे सभी लोग अंतिम सूची में शामिल हैं जिनके लिये एक से अधिक (दो तक) निर्णायक सहमत थे। निर्णायकों के सहज पसंद के अलावा और कोई मापदंड नहीं था इसमें।
फिलहाल नये साल के उपलक्ष में इस पोस्ट में इतना ही। नया वर्ष आप सभी के लिये मंगलमय हो यही कामना है।
मेरी पसंद
प्रत्यक्षा
बहरहाल, पुराने साल के खात्मे की खबर हमें लगी हमें जीतेंन्द्र की चिट्ठाचर्चा से। अगला इतनी गफलत में रहता है कि साल तक गुजर जाता है और इनको हवा नहीं लगती। जीतू फरमाते हैं:-
२००६ कब आया और कब चला गया, पता ही नही चला। यूं तो प्रत्येक वर्ष अपने साथ कुछ ना कुछ नया जरुर लाता है। यही हुआ भी हमारे चिट्ठा जगत के साथ। २००६ मे हमारे परिवार मे ४० से ज्यादा चिट्ठाकार शामिल हुए है। इन नये चिट्ठाकारों की लेखन शैली भी कमाल की है। ऊर्जा और जोशोखरोश तो हम बुजुर्गों से ज्यादा तो है ही।जीतेंद्र की बुजुर्गियत वाली बात पढ़ के हमें हंसी तो बहुत आयी लेकिन हम केवल मुस्कराकर रह गये। अगला हरकतें शम्मी कपूर की तरह करता है लेकिन अदायें संजीव कुमार जैसी दिखाता है। पता नहीं जीतेंदर को बुढ़ापा काहे इतना लुभाता है। जहां मौका मिलता है तड़ से बुजुर्गियत ओढ़ लेते हैं।
बहरहाल यह तो जीतेंन्द्र की अदायें हैं। ये अदायें छोड़ देंगे तो इनको पहचानेगा कौन! हम कुछ और लिखें इसके पहले बीते साल पर एक सरसरी नजर मार लें तो कोई खराब बात नहीं होगी। तो आइये चलते हैं देखते हैं गये साल में क्या-कुछ हुआ हिंदी चिट्ठाजगत में!
…कारवां बनता गया:-पिछ्ले वर्ष जैसा कि जीतेंन्द्र ने बताया कराबे चालीस लोग चिट्ठाजगत से जुडे़। आजकल जो लोग नियमित लेखन कर रहे हैं उनमें से अधिकांश वे हैं जिन लोगों ने इस साल ही लिखना शुरू किया। यह उल्लेखनीय बात है कि नये साथियों में आपसी संपर्क भी बना हुआ है। रूठना-मनाना भी जारी रहा है। सबसे ज्यादा मनौवल इस साल हुई सागर चंद नाहर की। वे किसी बात पर रूठ गये और फिर बाजी मनाने वालों के हाथ में रही। लेकिन कुछ साथी ऐसे भी रहे जिन्होंने मनाने वालों को उनका काम नहीं करने दिया और लिखना स्थगित कर दिया।
लेखन में कुछ नये आयाम भी छुये गये और कई ऐसे उल्लेखनीय पोस्ट हुये। चिट्ठाजगत के लोग का उल्लेख अखबारों, पत्रिकाऒं और टेलीविजन तक में हुआ। रविरतलामी, जगदीश व्योम का टेलीविजन साक्षात्कार, रवि रतलामी, सागर चंद नाहर के लेख, अनुवाद पत्रिकाऒं, अखबारों में छपे। प्रत्यक्षा तो अब नियमित कहानी लेखिका बन गयीं हैं और संपादक अब उनसे कहानियों का तकादा करने लगे हैं। आशा है कि आगे आने वाले समय में जैसे-जैसे इंटरनेट की उपलब्धता बढ़ेगी, हिंदी चिट्ठाकारों की संख्या में इजाफ़ा होता जायेगा।
नारद बैठे फिर खड़े हो गये:-पिछ्ले वर्ष की शायद सबसे उल्लेखनीय घटना नारद का बैठना रहा। लोग तब तक आदी हो गये थे नारद के माध्यम से ही नये चिट्ठों के बारे में जानकारी पाने के। इससे हिंदी चिट्ठाजगत से जुड़े सभी लोग प्रभावित हुये। और जब आग लगी तो कुआं खोदा गया। सब लोगों ने जुटकर आर्थिक, तकनीकी सहयोग दिया और नारद फिर से चालू हुआ। मुझे इसकी वर्तमान स्थिति नहीं पता है कि आगे कैसे इसे चलाया जायेगा, और क्या सहयोग करने होंगे। लेकिन मुझे यह लगता है चूंकि अब यह आम लोगों के सहयोग से चल रहा है तो इसके बारे में आम लोगों को विस्तार से जानकारी देनी चाहिये। इसके अलावा आगे के लिये धन की व्यवस्था पर विचार होना चाहिये। अनूप भार्गव जी ने इस बारे में प्रस्ताव दिया था कि इसका पंजीकरण कराया जाये तो आधी धनराशि अनुदान के रूप में मिल सकती है। इस दिशा में भी सोचा जाना चाहिये।
नारद के बारे में अभी जब लिख रहा हूं तो मुझे चिट्ठाचर्चा के मराठी चिट्ठों के बारे में की गयी चर्चा पर एक टिप्पणी की याद आती है जो शायद रविरतलामीजी ने की थी। उनका कहना था कि हिंदी नारद में भी वे सुविधायें होनी चाहियें जो मराठी के नारद में हैं या फिर मराठी वालों से कहें कि हिंदी के चिट्ठे भी उसी में शामिल कर लें। पहली बात से तो मैं सहमत हूं लेकिन दूसरी बात मुझे कुछ हजम नहीं हुई। उनसे सहयोग लेना अपने साथ जोड़ने के और तरीके हो सकते हैं लेकिन यह कहना कि भैया ये हमसे हो नहीं पा रहा हमारे लिये तुम कर दो कुछ जमता नहीं भाई! क्या हम कुछ गलत तो नहीं समझ/कह रहे हैं रतलामीजी!
नारद में अब ब्लाग पोस्ट पर हुये कमेंट भी दिखते हैं। क्या कोई ऐसी व्यवस्था हो सकती है कि सारी टिप्पणियां एक जगह इकट्टा हो सकें और एक जगह सारी टिप्पणियां प्रकाशित की जा सकें!
यह खुशी की बात है कि अब नारद का लिंक प्रसिद्ध साहित्यिक,कला पत्रिका अभिव्यक्ति में भी मौजूद है।
चिट्ठाचर्चा:-चिट्ठाचर्चा नये रूप में फिर से शुरू हुआ। और अब कमोवेश यह नियमित भी है। जिन दिनों नारद की सुविधा स्थगित थी तब इसके महत्व का अंदाजा नये सिरे से हुआ। गुजराती, मराठी, राजस्थानी चिट्ठों की चर्चा से इसे नया आयाम मिला। मलयालम के चिट्ठों की चर्चा के लिये बनारस से अफलातूनजी और उर्दू के लिये रमण कौल जी कुछ शुरू करने वाले थे। कब होगा आगाज इनका !
परिचर्चा:-नारद के नये रूप में परिचर्चा की शुरुआत हुयी। परिचर्चा के माध्यम से नये विषयों पर विचार विमर्श, सूचनाऒं के आदान-प्रदान ज्यादा सहज और त्वरित हुआ। लोगों के जन्मदिन की शुभकामनायें देने हंसी-खुशी के मौकों पर बधाइयां देने में भी परिचर्चा मंच का धड़ल्ले से उपयोग हुआ। इन सब सार्थक उपयोगों के साथ-साथ कहासुनी के माहौल भी कम नहीं बने। ऐसा भी हुआ जब लोग एक-दूसरे पर तर्क-कुतर्क कटारी लेकर टूट से पड़े। उस समय परिचर्चा मंच ‘परिचर्चा’ कम ‘अरिचर्चा’ मंच ज्यादा लग रहा था। परिचर्चा के चलते पहले कीचौपाल बंद हो गयी। परिचर्चा सहज-सुगम है लेकिन इसके माध्यम से आपको सूचनायें पाने के लिये वहां जाना पड़ेगा। जबकि पहले की चौपाल में सूचनायें पोस्टों के रूप में आती थीं |बहरहाल, आशा है कि आगे परिचर्चा और सार्थक रूप में अपनी उपादेयता सिद्ध करेगी!
तरकश:-यह एक अनूठा आयोजन रहा जिसकी शुरुआत इस वर्ष हुयी। तरकश के माध्यम से हिंदी में और गुजराती में लिखने वालों के अनियमित कालम पेश किय गये। सहज, सरल भाषा में छोटे-छोटे लेखों के माध्यम से इसकी पैठ आम लोगों तक हो चुकी है। कभी-कभी वर्तनी की अशुद्दियां अखरती हैं लेकिन फिर यह भी लगता है कि निरंतर सुधार से यह कमियां तो दूर ही की जा सकती हैं। बेंगाणी बंधुऒं का सार्थक प्रयास है और यह उनकी तारीफ़ की बात है कि अपने इस कार्यक्रम में उन्होंने सभी साथियॊं का सहयोग लेने में सफलता हासिल की।
निरंतर:-निरंतर का दोबारा प्रकाशन शुरू होना भी गतवर्ष की उल्लेखनीय घटना रही। दूसरा अंक एक माह विलंब से आयी लेकिन आशा है कि आगे से यह नियमित द्विमासिक रूप में निकलता रहेगा। सुनील दीपक, प्रत्यक्षा, ई-स्वामी और अन्य नये साथियों के साथ में जुड़ने से सामग्री का टोटा कम हुआ है। अब बस इसे नियमितता प्रदान किया जाना बाकी है।
अनुगूंज:-दो साल पहले जब अनुगूंज की शुरुआत हुयी थी तो इसमें लोग अपने-अपने ब्लाग पर दिये गये विषय पर लेख लिखते थे और उस पर चर्चा होती थी। हिंदी चिट्ठाजगत के अगर कुछ बेहतरीन लेख देखने हों तो वे अनुगूंज में मिलेंगे। धीरे-धीरे अनुगूंज के आयोजन में अनियमिता और लेखकों की उदासीनता के चलते अनुगूंज का आयोजन कम होते-होते बंद सा हो गया है। इसके ही जरिये अनुनाद सिंह ने नेट पर हिंदी कहावतों और मुहावरों का संग्रह और रवि रतलामी जी ने चुटकुलों का संग्रह तैयार किया। क्या नये साल में इसे फिर से शुरू किया जा सकता है! इसका सवाल का उत्तर किसके पास है?
बुनो कहानी:-अनुगूंज के आसपास ही बुनोकहानी का आयोजन भी शुरू हुआ था। लेकिन तीन-चार कहानियों के बाद सारे करघे बंद हो गये। जहां तक मुझे याद आता है कि सबसे लम्बा गतिरोध तब आया था जब शशि सिंह ने एक वैज्ञानिक कहानी शुरू की थी। मेरे ख्याल में वह कहानी जहां की तहां अटकी है। अब जब अपने यहां कहानी लेखकों की भरमार है तब तो इसे फ़िर से शुरू होना चाहिये। न हो तो तीन लोग आपस में अपने-अपने दल बना लें और लिखें अपने-अपने हिस्से की कहानी या और कोई सुझाव हो तो बतायें।
रामचरितमानस/ राग दरबारी नेट पर:- गत वर्ष रामचरितमानस जीतेंन्द्र की शुरुआत और रविरतलामी के सहयोग से नेट पर पोस्ट की गयी। यह खुशी की बात है। क्या कोई ऐसा जुगाड़ हो सकता है कि रामचरित मानस में भी सर्च की सुविधा हो जिससे कि किसी शब्द विशेष से शुरु होने वाली चौपाई, दोहा, श्लोक तुरंत मिल जाये!
इसी साल प्रसिद्ध व्यंग्य लेखक श्रीलाल शुक्ल के कालजयी उपन्यास रागदरबारी को नेट पर उपलब्ध कराने का काम शुरू हुआ। अभी तक १३ भाग टाइप हो चुके हैं और बाकी की टाइपिंग चल रही है। आशा है कि एकाध महीने में यह काम पूरा हो जायेगा।
जिन साथियों के सहयोग से यह काम चल रहा है वे इसके लिये बधाई के पात्र हैं। जो साथी इस टंकण यज्ञ में सहयोग दे सकते हैं वे भी आगे आयें और इस काम को करने में सहायता दें।
जब यह रागदरबारी और दूसरी साहित्यिक किताबों को नेट पर लाने की मुहिम चल रही है तब मैं यह सोच रहा हूं कि क्या कोई ऐसे तरकीब नहीं है जो हिदी के लिखे को ‘टेक्स्ट’ के रूप में(फोटो नहीं) स्कैन कर सके ताकि टाइपिंग का झंझट कम हो सके? सुना है कि अंग्रेजी में इस तरह की सुविधा मौजूद है!
विकिपीडिया:-जब से मुझे मितुल के माध्यम से विकिपीडिया के बारे में जानकारी मिली और यह पता चला है कि इसमें हिंदी की प्रगति बहुत कम है तबसे मुझे यह लगता है कि हमें इसमें नियमित योगदान देना चाहिये। इसके बारे में फिर कभी विस्तार से लिखूंगा लेकिन मुझे यह लगता है कि इसे हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा। वैसे तो नये साल में कुछ नये संकल्प लेने का मैं काम नहीं करता क्योंकि यह सब ऐसे ही होता है। लेकिन अगर एक भी संकल्प लेने की मजबूरी हो तो मैं यही लूंगा कि हिंदी विकिपीडिया को संपन्न बनाने का काम करूंगा। उसमें साल भर में कुल सौ पन्ने कम से कम जोड़ने का प्रयास मैं करूंगा।
इंडीब्लागीस:- देबाशीष ने लगातार चौथे वर्ष भारतीय ब्लागर्स के लिये इंडीब्लागीस की घोषणा कर दी। फिलहाल यह आयोजन इस समय आरंभिक दौर में है। गतवर्ष इस समय वहां काफ़ी गहमा-गहमी होने लगी थी। आप इस आयोजन को करने में जो भी सहायता कर सकें वह देबाषीष को करें। हिंदी के जो भी ब्लाग नामांकित हों उनके लिये जम कर मतदान करें और इस आयोजन को सफल बनायें।
वर्ष का उभरता हुआ चिट्ठाकार:- तरकश की तरफ़ से इस बार वर्ष हिंदी २००६ के उभरते हुये चिट्ठाकार का चुनाव के लिये आयोजन हो रहा है। अंतिम नामों की घोषणा हो चुकी है जिनके लिये मतदान आज से शुरू हो चुके हैं। इस अंतिम लिस्ट में कुछ ऐसे नाम नहीं हैं जो शायद अपने को निश्चित सा मान रहें होंगे। यह बात निर्णायकों के विवेक पर निर्भर करती है और कोई भी उसके चयन न होने के लिये निर्णायकों को विवेकहीन कहने के लिये स्वतंत्र है। यह सूचित कर देने में शायद कोई हर्ज नहीं है कि वे सभी लोग अंतिम सूची में शामिल हैं जिनके लिये एक से अधिक (दो तक) निर्णायक सहमत थे। निर्णायकों के सहज पसंद के अलावा और कोई मापदंड नहीं था इसमें।
फिलहाल नये साल के उपलक्ष में इस पोस्ट में इतना ही। नया वर्ष आप सभी के लिये मंगलमय हो यही कामना है।
मेरी पसंद
नूतन वर्ष
द्वार खटखटाये
आ जायें हम ? पुराना साल
दुबका खरगोश
बीता समय
पुराने पत्ते
सा , गिर गया साल
कोंपल फूटी
इंतज़ार में
लायेगा साल क्या
थोडी सी खुशी
पिछला साल
रुठा , इतने बुरे
हम थे नहीं
गिले शिकवे
चादर के अंदर
बाँधी गठरी
फूल खिलायें
तितलियाँ रंगीन
नूतन वर्ष
प्रत्यक्षा
Posted in बस यूं ही | 10 Responses
स्वर्णमयी हर निमिष आपके पांव तले धरती हो
कचनारों की कलियां बूटे रँगें आन देहरी पर
नये वर्ष में संध्या प्रतिदिन सुधा बनी झरती हो
यह सब आप ही लोगों की कृपा से संभव हुआ। वरिष्ठ चिट्ठाकारों से ही हमें चिट्ठाकारी की प्रेरणा मिली।
‘नारद’ तो हम चिट्ठाकारों की लाइफ-लाइन है। उसमें सुधार के उपाय हमेशा किए जाते रहने चाहिए।
क्या खा कर लिखते हो दादा। सीरियस से सीरियस पोस्ट में भी हँसा देते हो।
आप जिस प्रकार के टूल की बात कर रहे हैं उसे OCR (Optical Character Reader) कहते हैं। अंग्रेजी के तो बहुत से ऐसे टूल मौजूद हैं और काफी अच्छा कार्य करते हैं। हिन्दी का मेरी नजर में अब तक एक ही ऐसा टूल आया है – चित्रांकन
इसे यहाँ से डाउनलोड करें। १० एम० बी० साइज का है। इस बारे में जानकारी यहाँ पढ़ें। बाकी आप प्रयोग करके देख लें।
विकीपीडिया संबंधी आपके विचारों से मैं सहमत हूँ। कृपया शीघ्र ही इस बारे में लिखें कि हम सब इसके लिए क्या कर सकते हैं।
:):):) :):):)
:):):) :):):) :):):) :):):)
आपके लिये नव वर्ष अति शुभफलकारी हो और आपकी समस्त मनोकामनायें पूर्ण हों, यही कामना है.
नये साल की आपको बहुत बहुत बधाई…:)
हर अनुप्रयोग व हर सेवा में स्केलेबिलिटी तो होनी ही चाहिए, साथ ही अच्छे विकल्प भी होने चाहिए. यकीन मानिए, इंटरनेट पर हिन्दी जब धड़ल्ले से चलने लगेगी (अभी तो यह घिसट भी नहीं पा रही है तरीके से)तो हमें ऐसे दस नारदों की आवश्यकता होगी – हर एक का अलग फ्लेवर, अलग स्टाइल. और मेरे कहने का मतलब यही था.
बहुत बार हम कहना कुछ चाहते हैं, कह कुछ देते हैं और समझ कुछ लिया जाता है – विडम्बना यहीं हो जाती है.