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ब्लाग, विकिपीडिया और हिंदी
By फ़ुरसतिया on February 12, 2007
कल स्टेशन पर नया ज्ञानोदय का फरवरी अंक देखा। इसमें पाठकीय प्रतिक्रियाऒं में हसन जमाल जी का एक पत्र भी था। हसन जमाल जी जोधपुर से निकलने वाली पत्रिका ‘शेष‘ के संपादक हैं। जमाल साहब ने ज्ञानोदय के ही जनवरी अंक में मनीषा कुलश्रेष्ठ के लेख इंटरनेट ब्लाग्स बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त करते हुये लिखा है:-
इस पूरी प्रतिक्रिया में ब्लाग का कहीं जिक्र नहीं था जिसके बारे में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये यह पत्र लिखा गया था। मनीषाजी ने अपने लेख में ब्लाग के बारे में बताते हुये लिखा था:-
इन दोनों लेखों को पढ़ने के बाद लगा कि हिंदी ब्लाग लेखन अभी प्रिंट मीडिया के लिये अंधों का हाथी ही है। हसन जमाल जी की बात तो समझ में आती है कि उनको नयी तकनीक के बारे में अपने विचार प्रकट करने थे और नामवर सिंह तथा कुछ संपादकों की आलोचना करनी थी तो उसे उन्होंने मनीषा जी के लेख के बहाने कर दी। लेकिन मनीषाजी के लेख में हिंदी ब्लाग्स के बारे में जिस तरह लिखा गया उससे यही लगा कि ब्लाग्स के बारे में लिखते समय वे ध्यान खींचने वाले अंदाज में लिखने के मोह से अपने को बचा नहीं पायीं। ऐसा मैं इसलिये लिख रहा हूं क्योंकि वे इंटरनेट से बाकायदा जुड़ी हैं और नेट पत्रिका हिंदीनेस्ट का संपादन भी करती हैं।
मनीषा जी को हिंदी ब्लाग्स में लिखास का मारापन दिखा, साफ्टपोर्न दिखा, अटपटापन दिखा और चैटिंग का विस्तार दिखा। नहीं दिखा तो अक्षरग्राम नहीं दिखा, नारद नहीं दिखा, तरकश नहीं दिखा, अनुगूंज नहीं दिखा, निरंतर नहीं दिखी, रामचरितमानस नहीं दिखी और भी बहुत कुछ नहीं दिखा जो कि अगर दिखता तो शायद कुछ और अच्छा लगता। या शायद दिखा होगा लेकिन उनके बजाय उन्होंने ऊपर बतायी बातों के बारे में लिखना ज्यादा उचित समझा!
बहरहाल यह पुरानी बात है जब हंस के संपादक राजेन्द्र यादवजी ने ब्लाग लेखन को छपास पीड़ित लोगों की छ्पास पीड़ा से मुक्ति का उपाय बताया था। आज कम से कम कुछ ब्लागर्स तो ऐसे हैं हीं जिनका जस का तस लिखा हुआ लेखन किसी भी पत्रिका में छपने लायक है। हिंदी में लिखता होगा कोई साफ्टपोर्न भी लेकिन दो साल से अधिक के ब्लाग लेखन के बावजूद मैं ऐसे किसी भी ब्लाग के बारे में नहीं जानता जिसके बारे में मनीषा जी ने सबसे पहले लिखा। ब्लाग चैटिंग का विस्तार है यह उपमा भी कुछ जमी नहीं। चैटिंग में आप इधर मेसेंजर बाक्स से हटे नहीं कि आपकी सारी बतकही अधिकमतम केवल बातचीत करने वालों के कम्प्यूटर पर ही रह सकती है। दुनिया उसे जब मन आये तब नहीं पढ़ सकती।
बहरहाल, यह तो मैंने यह बताने के लिये लिखा कि साहित्य की दुनिया से जुड़े लोग ब्लाग को कैसे देखते हैं। अभी तक ब्लाग के बारे मुझे ऐसा कोई लेख नहीं दिखा जो रवि रतलामी के ब्लाग के बारे में लिखे लेख से आगे की बात करता हो या ब्लाग लेखकों के आपसी सम्बन्धों को अनूप सेठी के लेख से बेहतर तरीके से बयान करता हो जिसमें उन्होंने लिखा था:-
उद्भ्रान्तजी ने जो कविता पढ़ी वह समय से आगे की कविता बताई गयी। समय से आगे की कविता का शीर्षक था -अनाद्य सूक्त। करीब बीस मिनट की कविता मेरे पल्ले सिर्फ इतनी ही पड़ी कि इसमें प्रलय की बात है, महाविस्फोट है, कृष्ण विवर(ब्लैक होल) है और वातावरण में कविता कब खतम होगी का सामूहिक सवाल! बीच-बीच में हमारे साथ के बुजुर्ग अपनी पूरी मासूमियत से पूछते जा रहे थे -क्या आपको कुछ समझ में आ रहा है? सवाल के जवाब में नकार में सिर हिलाते हुये मुझे अहसास हो रहा था कि बीस साल के उमर के अन्तर के बावजूद दो व्यक्ति एक ही कविता को सुनते हुये समझ के एक ही धरातल पर खड़े रह सकते हैं। एक पीढ़ी आगे की कविता को सुनते हुये उसे समझने का प्रयास श्रोताऒं के बीच की कम से कम एक पीढ़ी का अंतर पाटकर दोनों को समान धरातल पर खड़ा कर देता। अज्ञेय ने सच ही कहा होगा- दुख मनुष्य को जोड़ता है।
वैसे उद्भ्रान्तजी प्रसिद्ध कवि माने जाते हैं। लेकिन पता नहीं क्यों उन्होंने उस दिन लोगों के आग्रह पर भी अपनी कविता मोरपंखी न सुनाकर ऐसी कविता सुनाना क्यों पसन्द किया जिसे उनके अलावा शायद सिर्फ वे लोग समझ सके जिन्होंने उस कविता के बारे में बाद में राय जाहिर की। व्याख्या की और उसे समय से आगे की कविता बताया!
बहरहाल, वहां पहुंचने पर विनोद श्रीवास्तव जी ने मेरा परिचय कराया तो यह भी जोड़ा कि ये फुरसतिया नाम से ब्लाग लिखते हैं। बाद में धन्यवाद ज्ञापन और चाय सुड़कन कार्यक्रम के बाद बचे हुये इफरात समय में से पांच मिनट अपने लिये घसीटकर वहां लोगों को ब्लाग के बारे में जानकारी दी। लोग आश्चर्यचकित थे कि ऐसा भी होता है कि आप इधर लिखो उधर से प्रतिक्रिया आ जाये। कई लोगों ने, जैसे कि लिये लिये जाते हैं, मेरे पते फोन नम्बर ले लिये और आगे जानकारी के लिये सम्पर्क करने को कहा। एक भानुजी भी मिले जो कि लाफ्टर चैलेंज में अपना वीडियो भेजना चाहते थे। वहीं कवि सुनील बाजपेयी से परिचय हुआ और डा.प्रतीक मिश्र जी से भी। डा. प्रतीक मिश्रजी डी.ए.वी. कालेज में हिंदी के विभागाध्यक्ष हैं और हिंदी में तमाम किताबें उन्होंने लिखी हैं। उस दिन मुझे उन्होंने अपनी दो किताबें भेंट कीं जिनमें से एक गीत संग्रह (गीत सुधियों के) है और दूसरा बालगीत संग्रह जिसमें अन्त्याक्षरी के अंदाज में अ से ज्ञ तक वर्णमाला के हर अक्षर से शुरू होने वाले बाल गीत हैं। वहीं पर लोगों से बात करते हुये मेरा यह मन और पक्का हुआ कि अपने शहर के बारे में अधिक से अधिक जानकारी नेट पर डालूंगा और अपने शहर के सारे साहित्यकारों के बारे में पूरी दुनिया को परिचित कराउंगा।
यह काम जब मैं करने की सोच रहा था तब ही यह फिर से लगा कि हिंदी विकिपीडिया को सम्पन्न करना चाहिये। मुझसे पहले भी मेरे कई दोस्त कह चुके हैं कि ये मेरी पसंद टाइप के बड़े-बड़े लेख, कहानियां आदि लिखने के बजाय मुझे अपना भी लिखते रहना चाहिये। साइकिल यात्रा के बारे में लिखने के लिये भी आशीष खासतौर पर हवा भरते रहते हैं। आशीष ने ही एक बार बातचीत करते हुये कहा था कि वे इस साल कम से कुछ सौ लेख विकिपीडिया में डालेंगे और कुछ लेख अंतरिक्ष के बारे में लिखेंगे। अंतरिक्ष पर उनके बेहतरीन लेख तो आने भी लगे।
इस सबने हमें कल फिर से उकसाया और हम विकिपीडिया भंडार को सम्पन्न करने के काम में फिर से जुट गये। मैथिली जी ने मुझसे ओ हेनरी की एक कहानी
पढ़वाने के लिये कहा था और श्रीलाल शुक्लजी की रचनाऒं के बारे में जानकारी चाही थी। मैंने ओ हेनरी की कहानी आखिरी पत्ती विकिपीडिया पर डाल दी है और श्रीलाल शुक्लजी की रचनाऒं के बारे में भी जानकारी वहां डाल दी है। मैथिलीजी हमारे बुजुर्ग हैं। उनकी इच्छा पूरी करने में देरी हुयी इसलिये उनको खुश करने के लिये मैंने ओ.हेनरी कापरिचय भी विकिपीडिया में डाल दिया है। आगे हमारे कस्बाई मन की हरिशंकर परसाई के बारे में जो भी फरमाइशें थीं वे भी जल्दी ही वहीं विकिपीडिया पर ही पूरी होंगी। मैं संक्षेप में इसकी सूचना समय-समय पर यहां देता रहूंगा लेकिन दूसरे लेखकों की पूरी रचनायें विकिपीडिया पर ही डालूंगा।
मैं पहले ही अनुरोध कर चुका हूं कि हम सभी को हिंदी के बारे में सामग्री जुटाने में सहयोग करना चाहिये। नियमित लिखने के अलावा यह बहुत जरूरी है नेट पर हिंदी को मजबूत करने के लिये। जब लोग हिंदी में जानकारी के लिये नेट की शरण में आयेंगे तो उनको उतनी ही जानकारी मिलेगी जितनी नेट पर हम लोगों ने भरी है। आगे का मुझे पता नहीं लेकिन अभी की हालत यह है कि हिंदी की जो भी जानकारी वहां हैं वह हमारे-आपके जैसे स्वांत सुखाय लोगों द्वारा ही डाली गयी है। हिंदी में विकिपीडिया में मितुल काफ़ी काम किया है और निरन्तर पर इस बारे में लेख भी लिखा है।
मितुल ने सुझाव दिया था कि हम कुछ लोग मिलकर हिंदी में कुछ पेज तैयार करें और उससे विकिपीडिया को सम्पन्न करें। जैसे मान लीजिये भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम के बारे में एक पेज लिखा जाये। तो इसमें १८५७ की क्रांति से जुड़े सारे पहलुओं को शामिल करके नेट पर डाल दिया जाये। सृजन शिल्पी नेताजी पर शोध कर रहे हैं तो आजाद हिंद फौज के बारे में पेज तैयार कर सकते हैं। नीरज दीवान गांधीजी को पकड़ लें तथा अपने मोहल्ले वाले अविनाश जी के साथ मिलकर पत्रकारिता का पेज तैयार कर सकते हैं। मनीष भारतीय सिनेमा गीत का पेज तैयार कर सकते हैं। रचना जी ने नासिक के कुंभ मेले के बारे में लिखा था वे उसको आगे विस्तार देते हुये कुंभ मेले के बारे में पेज तैयार कर सकती हैं। प्रेमेन्द्र ने कल सर संघ चालक के बारे में एक लेख लिखा था। वे अपने इम्तहान समाप्त होने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बारे में एक पेज तैयार कर सकते हैं। बेंगाणी बन्धु गुजरात वाले पेज को तैयार कर सकते हैं। बेजीजी और डा. भावना कंवर कवितायें लिखने के साथ-साथ मिलकर डाक्टरी से संबंधित कुछ पेज तैयार कर सकती हैं।
रवि रतलामीजी से भी अनुरोध है कि वे रचनाकार की अमूल्य निधि को धीरे-धीरे करके संबंधित साहित्यकार का पन्ना बनाकर वहां पर डाल दें। अब देखिये कि वहां हृदयेशजी के बारे में जानकारी का पन्ना सूना है जबकि रचनाकार पर आपने उनके संस्मरण डाले हैं। आप इसे वहां डालिये न!
करने के लिये काम बहुत है। और विकिपीडिया को जब आप सम्पन्न कर रहे होते हैं तो आप अपनी भाषा के हाथ मजबूत कर रहे होते हैं। भाषाऒं की कमाई की क्षमता की अक्सर हम बात करते हैं। जिस माध्यम में हम भाषा से कमाने की संभावनायें टटोल रहे हैं पहले उसको मजबूत तो करें। तमाम तरीके होंगे इसके लेकिन मुझे सबसे आसान और मौजूं तरीका लगता है हिंदी के मुक्त ज्ञान कोश को सम्रद्ध करने का। यह काम तो ऐसा है जिसमें हम सब बराबर का योगदान कर सकते हैं। इसमें किसी के लेखन कौशल से ज्यादा उसके समर्पण की जरूरत है।
कुछ न समझ में आये तो सब लोग अपने-अपने शहर के बारे में जो जानकारी पता हो उसे ही विकिपीडिया में डालकर शुरुआत कर सकते हैं!
काम के जुनून के बात आती है तो मुझे याद आता है अरविंद कुमार और उनकी पत्नी कुसुम कुमार के द्वारा तैयारसमान्तर कोश! अरविंद कुमार ने हिंदी में थिसारस तैयार करने का सपना देखा। कुमार दम्पति ने गोदावरी नदी में स्नान करके इसका संकल्प लिया। अरविंद कुमार ने अपनी अच्छी-खासी माधुरी पत्रिका की लगी-लगाई नौकरी छोड़ दी। दिल्ली आये फिर खर्चे कम करने के लिये और ‘इन्टीरियर’ में गये। खर्चा चलाने के लिये छुटपुट लेखन-सम्पादन करते रहे। बीच में बार यमुना की बाढ़ में जब घर का सामान बह गया तो उनको यही खुशी थी कि उनका काम बच गया। पूरे बीस वर्ष लगाकर कुमार दम्पति ने हिंदी भाषा का पहला थिसारस तैयार किया।
अरविंद कुमारजी की मेहनत और समर्पण का जज्बा हमारे लिये मिसाल है। उन्होंने तो नौकरी छोड़ी, शहर छोड़े, घर बदले। लेकिन हमें लगता है नौकरी, शहर, घर छोड़े/बदले बिना भी हम हिंदी की सम्पन्नता के लिये बहुत कुछ कर सकते हैं। आखिर हम सबके अंदर अरविंद कुमार दम्पति के हिंदी प्रेम का कुछ न कुछ अंश हो है ही। हमें कुछ छोड़ना नहीं है केवल अपने स्वभाव जन्य आलस्य को त्यागना है।
मितुल से अनुरोध है कि वे विकीपीडिया के बारे में जानकारी देने के लिये ही सही अपना एक ब्लाग शुरू करें। और यदि बिना ब्लाग लिखे वे कामदेव की तरह अनंग रहकर ही सबके अन्दर विकि प्रेम की भावना जगाते रहना चाहते हैं तो मुझे इस बारे में बताते रहें ताकि मैं अपने माध्यम से साथियों को बता सकूं जिससे इच्छुक मित्र इस काम अपना योगदान कर सकें। सबसे पहले वे बतायें कि विकिपीडिया में पेज कैसे बनाये जाते हैं!
मैंने हिंदी का ब्लाग लेखन रविरतलामी के लेख को पढकर शुरु किया। लेकिन उस लेख के बाद तमाम शुरुआती तकनीकी परेशानियां दूर करने में हमारे साथी मृणाल त्रिपाठी का योगदान रहा। उन्होंने ही मुझे लिंक लगाना, काउंटर लगाना, फोटो लगाना और ब्लाग सम्बन्धी तमाम हरकतों के बारे में जानकारी दी। अच्छी खासी हिंदी जानने के बावजूद वे अभी अंग्रेजी में ही ब्लाग लिखते रहे। अब कल ही बहुत उकसाने के बाद उन्होंने अपना हिंदी ब्लाग भी शुरू किया। आशा है कि इनकी विचार यात्रा अपने अंग्रेजी ब्लाग की तरह ठहरी-ठहरी नहीं रहेगी।
जब मृणाल जैसे हमारे साथी अपनी दो साल की स्वभावगत जड़ता को त्यागकर हिंदी में लिखना शुरू कर सकते हैं तो जो लोग सक्रियता से हिंदी में लिख रहे हैं वे हिंदी की सम्रद्धि के लिये अपने-अपने हिस्से का योगदान क्यों नहीं दे सकते हैं! आइये विकिपीडिया में जितना योगदान से सकते हों दीजिये। आइये अपनी-अपनी खिड़की से अपने-अपने हिस्से का सावन देखते हैं। दुनिया रंगबिरंगी दिखेगी।
तो आ रहे हैं न अपना योगदान देने विकिपीडिया के आंगन में!
मनीषा अभी युवा हैं और सम्पन्न परिवार से सम्बन्ध रखती हैं, इसलिये उन्हें चारों तरफ हरा-हरा दिखायी देता है। हमने उम्र गुजारी है इस दस्त की स्याही, इसलिये हमें हर विकास की पुस्त में विनाश ही विनाश दिखायी देता है। इंटरनेट तो एक जाल है, इसमें जो उलझा वो गया काम से। बेशक हर तकनीक में कई सुविधायें और लाभ नजर आते हैं, लेकिन देखना चाहिये कि वो इन्सान का क्या कुछ छीन लेती हैं। इंटरनेट सूचनाऒं का जंगल है जहां इंसान भटक कर रह जाता है। बेशक वह विश्व से जुड़ जाता है, पर अपने घर से अपने प्यारों से कट के रह जाता है।
इस पूरी प्रतिक्रिया में ब्लाग का कहीं जिक्र नहीं था जिसके बारे में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये यह पत्र लिखा गया था। मनीषाजी ने अपने लेख में ब्लाग के बारे में बताते हुये लिखा था:-
*लिखास के मारों के लिये इंटरनेट पर पर्सनल ब्लाग-लेखन धड़ल्ले से चल निकला है जिसमें हिंदी का साफ्ट पोर्न भी है, तो देश के खस्ताहाल पर राजनीतिज्ञों को गाली देने वाले भी हैं, फिल्म रिव्यू हैं, फिल्मी और शायराना किस्म की कहानियां हैं, कवितायें हैं, प्रेम के इजहार हैं तो वहां कई गम्भीर साहित्यिक सरोकारों से पूर्ण ब्लाग्स भी आपको मिल जायेंगे। ** यूं समझिये यह चैटिंग का विस्तॄत स्वरूप है, जिसे सारा संसार पढ़ रहा है और पढ़कर आपके लिखे गये विचार पर तत्काल प्रतिक्रिया दे रहा है।
*** आप जब हिंदी ब्लाग्स की इस मजेदार मगर अटपटी दुनिया में प्रवेश करते हैं तो ब्लागर्स के सेन्स आफ ह्यूमर के कायल हुये बिना नहीं रह सकते।
इन दोनों लेखों को पढ़ने के बाद लगा कि हिंदी ब्लाग लेखन अभी प्रिंट मीडिया के लिये अंधों का हाथी ही है। हसन जमाल जी की बात तो समझ में आती है कि उनको नयी तकनीक के बारे में अपने विचार प्रकट करने थे और नामवर सिंह तथा कुछ संपादकों की आलोचना करनी थी तो उसे उन्होंने मनीषा जी के लेख के बहाने कर दी। लेकिन मनीषाजी के लेख में हिंदी ब्लाग्स के बारे में जिस तरह लिखा गया उससे यही लगा कि ब्लाग्स के बारे में लिखते समय वे ध्यान खींचने वाले अंदाज में लिखने के मोह से अपने को बचा नहीं पायीं। ऐसा मैं इसलिये लिख रहा हूं क्योंकि वे इंटरनेट से बाकायदा जुड़ी हैं और नेट पत्रिका हिंदीनेस्ट का संपादन भी करती हैं।
मनीषा जी को हिंदी ब्लाग्स में लिखास का मारापन दिखा, साफ्टपोर्न दिखा, अटपटापन दिखा और चैटिंग का विस्तार दिखा। नहीं दिखा तो अक्षरग्राम नहीं दिखा, नारद नहीं दिखा, तरकश नहीं दिखा, अनुगूंज नहीं दिखा, निरंतर नहीं दिखी, रामचरितमानस नहीं दिखी और भी बहुत कुछ नहीं दिखा जो कि अगर दिखता तो शायद कुछ और अच्छा लगता। या शायद दिखा होगा लेकिन उनके बजाय उन्होंने ऊपर बतायी बातों के बारे में लिखना ज्यादा उचित समझा!
बहरहाल यह पुरानी बात है जब हंस के संपादक राजेन्द्र यादवजी ने ब्लाग लेखन को छपास पीड़ित लोगों की छ्पास पीड़ा से मुक्ति का उपाय बताया था। आज कम से कम कुछ ब्लागर्स तो ऐसे हैं हीं जिनका जस का तस लिखा हुआ लेखन किसी भी पत्रिका में छपने लायक है। हिंदी में लिखता होगा कोई साफ्टपोर्न भी लेकिन दो साल से अधिक के ब्लाग लेखन के बावजूद मैं ऐसे किसी भी ब्लाग के बारे में नहीं जानता जिसके बारे में मनीषा जी ने सबसे पहले लिखा। ब्लाग चैटिंग का विस्तार है यह उपमा भी कुछ जमी नहीं। चैटिंग में आप इधर मेसेंजर बाक्स से हटे नहीं कि आपकी सारी बतकही अधिकमतम केवल बातचीत करने वालों के कम्प्यूटर पर ही रह सकती है। दुनिया उसे जब मन आये तब नहीं पढ़ सकती।
बहरहाल, यह तो मैंने यह बताने के लिये लिखा कि साहित्य की दुनिया से जुड़े लोग ब्लाग को कैसे देखते हैं। अभी तक ब्लाग के बारे मुझे ऐसा कोई लेख नहीं दिखा जो रवि रतलामी के ब्लाग के बारे में लिखे लेख से आगे की बात करता हो या ब्लाग लेखकों के आपसी सम्बन्धों को अनूप सेठी के लेख से बेहतर तरीके से बयान करता हो जिसमें उन्होंने लिखा था:-
यहां गद्य गतिमान है। गैर लेखकों का गद्य। यह हिन्दी के लिए कम गर्व की बात नहीं है। जहां साहित्य के पाठक काफूर की तरह हो गए हैं, लेखक ही लेखक को और संपादक ही संपादक की फिरकी लेने में लगा है, वहां इन पढ़े-लिखे नौजवानों का गद्य लिखने में हाथ आजमाना कम आह्लादकारी नहीं है। वह भी मस्त मौला, निर्बंध लेकिन अपनी जड़ों की तलाश करता मुस्कुराता, हंसता, खिलखिलाता जीवन से सराबोर गद्य। देशज और अंतर्राष्ट्रीय। लोकल और ग्लोबल। यह गद्य खुद ही खुद का विकास कर रहा है, प्रौद्योगिकी को भी संवार रहा है। यह हिन्दी का नया चैप्टर है।प्रसंगत: बताऊं कि पिछले हफ्ते शहर में कवि उद्भ्रांत जी आये थे। उनके सम्मान में एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। उद्भ्रान्तजी कानपुर के ही बासिन्दे हैं और फिलहाल दिल्ली में प्रसार भारती में सीनियर प्रोग्राम डायरेक्टर हैं। अपनी २०-२५ साल की साहित्य सेवा के दौरान उन्होंने अनेकानेक कविता पुस्तकें लिखी हैं। वहां उस गोष्ठी में जो कवितायें पढ़ी गयीं थी उनमें से एक कवि अवध बिहारी श्रीवास्तवजी की शुरुआती लाइनें मुझे याद है:-
खिड़की से जितना दिखता है
बस उतना सावन मेरा है।
उद्भ्रान्तजी ने जो कविता पढ़ी वह समय से आगे की कविता बताई गयी। समय से आगे की कविता का शीर्षक था -अनाद्य सूक्त। करीब बीस मिनट की कविता मेरे पल्ले सिर्फ इतनी ही पड़ी कि इसमें प्रलय की बात है, महाविस्फोट है, कृष्ण विवर(ब्लैक होल) है और वातावरण में कविता कब खतम होगी का सामूहिक सवाल! बीच-बीच में हमारे साथ के बुजुर्ग अपनी पूरी मासूमियत से पूछते जा रहे थे -क्या आपको कुछ समझ में आ रहा है? सवाल के जवाब में नकार में सिर हिलाते हुये मुझे अहसास हो रहा था कि बीस साल के उमर के अन्तर के बावजूद दो व्यक्ति एक ही कविता को सुनते हुये समझ के एक ही धरातल पर खड़े रह सकते हैं। एक पीढ़ी आगे की कविता को सुनते हुये उसे समझने का प्रयास श्रोताऒं के बीच की कम से कम एक पीढ़ी का अंतर पाटकर दोनों को समान धरातल पर खड़ा कर देता। अज्ञेय ने सच ही कहा होगा- दुख मनुष्य को जोड़ता है।
वैसे उद्भ्रान्तजी प्रसिद्ध कवि माने जाते हैं। लेकिन पता नहीं क्यों उन्होंने उस दिन लोगों के आग्रह पर भी अपनी कविता मोरपंखी न सुनाकर ऐसी कविता सुनाना क्यों पसन्द किया जिसे उनके अलावा शायद सिर्फ वे लोग समझ सके जिन्होंने उस कविता के बारे में बाद में राय जाहिर की। व्याख्या की और उसे समय से आगे की कविता बताया!
बहरहाल, वहां पहुंचने पर विनोद श्रीवास्तव जी ने मेरा परिचय कराया तो यह भी जोड़ा कि ये फुरसतिया नाम से ब्लाग लिखते हैं। बाद में धन्यवाद ज्ञापन और चाय सुड़कन कार्यक्रम के बाद बचे हुये इफरात समय में से पांच मिनट अपने लिये घसीटकर वहां लोगों को ब्लाग के बारे में जानकारी दी। लोग आश्चर्यचकित थे कि ऐसा भी होता है कि आप इधर लिखो उधर से प्रतिक्रिया आ जाये। कई लोगों ने, जैसे कि लिये लिये जाते हैं, मेरे पते फोन नम्बर ले लिये और आगे जानकारी के लिये सम्पर्क करने को कहा। एक भानुजी भी मिले जो कि लाफ्टर चैलेंज में अपना वीडियो भेजना चाहते थे। वहीं कवि सुनील बाजपेयी से परिचय हुआ और डा.प्रतीक मिश्र जी से भी। डा. प्रतीक मिश्रजी डी.ए.वी. कालेज में हिंदी के विभागाध्यक्ष हैं और हिंदी में तमाम किताबें उन्होंने लिखी हैं। उस दिन मुझे उन्होंने अपनी दो किताबें भेंट कीं जिनमें से एक गीत संग्रह (गीत सुधियों के) है और दूसरा बालगीत संग्रह जिसमें अन्त्याक्षरी के अंदाज में अ से ज्ञ तक वर्णमाला के हर अक्षर से शुरू होने वाले बाल गीत हैं। वहीं पर लोगों से बात करते हुये मेरा यह मन और पक्का हुआ कि अपने शहर के बारे में अधिक से अधिक जानकारी नेट पर डालूंगा और अपने शहर के सारे साहित्यकारों के बारे में पूरी दुनिया को परिचित कराउंगा।
यह काम जब मैं करने की सोच रहा था तब ही यह फिर से लगा कि हिंदी विकिपीडिया को सम्पन्न करना चाहिये। मुझसे पहले भी मेरे कई दोस्त कह चुके हैं कि ये मेरी पसंद टाइप के बड़े-बड़े लेख, कहानियां आदि लिखने के बजाय मुझे अपना भी लिखते रहना चाहिये। साइकिल यात्रा के बारे में लिखने के लिये भी आशीष खासतौर पर हवा भरते रहते हैं। आशीष ने ही एक बार बातचीत करते हुये कहा था कि वे इस साल कम से कुछ सौ लेख विकिपीडिया में डालेंगे और कुछ लेख अंतरिक्ष के बारे में लिखेंगे। अंतरिक्ष पर उनके बेहतरीन लेख तो आने भी लगे।
इस सबने हमें कल फिर से उकसाया और हम विकिपीडिया भंडार को सम्पन्न करने के काम में फिर से जुट गये। मैथिली जी ने मुझसे ओ हेनरी की एक कहानी
पढ़वाने के लिये कहा था और श्रीलाल शुक्लजी की रचनाऒं के बारे में जानकारी चाही थी। मैंने ओ हेनरी की कहानी आखिरी पत्ती विकिपीडिया पर डाल दी है और श्रीलाल शुक्लजी की रचनाऒं के बारे में भी जानकारी वहां डाल दी है। मैथिलीजी हमारे बुजुर्ग हैं। उनकी इच्छा पूरी करने में देरी हुयी इसलिये उनको खुश करने के लिये मैंने ओ.हेनरी कापरिचय भी विकिपीडिया में डाल दिया है। आगे हमारे कस्बाई मन की हरिशंकर परसाई के बारे में जो भी फरमाइशें थीं वे भी जल्दी ही वहीं विकिपीडिया पर ही पूरी होंगी। मैं संक्षेप में इसकी सूचना समय-समय पर यहां देता रहूंगा लेकिन दूसरे लेखकों की पूरी रचनायें विकिपीडिया पर ही डालूंगा।
मैं पहले ही अनुरोध कर चुका हूं कि हम सभी को हिंदी के बारे में सामग्री जुटाने में सहयोग करना चाहिये। नियमित लिखने के अलावा यह बहुत जरूरी है नेट पर हिंदी को मजबूत करने के लिये। जब लोग हिंदी में जानकारी के लिये नेट की शरण में आयेंगे तो उनको उतनी ही जानकारी मिलेगी जितनी नेट पर हम लोगों ने भरी है। आगे का मुझे पता नहीं लेकिन अभी की हालत यह है कि हिंदी की जो भी जानकारी वहां हैं वह हमारे-आपके जैसे स्वांत सुखाय लोगों द्वारा ही डाली गयी है। हिंदी में विकिपीडिया में मितुल काफ़ी काम किया है और निरन्तर पर इस बारे में लेख भी लिखा है।
मितुल ने सुझाव दिया था कि हम कुछ लोग मिलकर हिंदी में कुछ पेज तैयार करें और उससे विकिपीडिया को सम्पन्न करें। जैसे मान लीजिये भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम के बारे में एक पेज लिखा जाये। तो इसमें १८५७ की क्रांति से जुड़े सारे पहलुओं को शामिल करके नेट पर डाल दिया जाये। सृजन शिल्पी नेताजी पर शोध कर रहे हैं तो आजाद हिंद फौज के बारे में पेज तैयार कर सकते हैं। नीरज दीवान गांधीजी को पकड़ लें तथा अपने मोहल्ले वाले अविनाश जी के साथ मिलकर पत्रकारिता का पेज तैयार कर सकते हैं। मनीष भारतीय सिनेमा गीत का पेज तैयार कर सकते हैं। रचना जी ने नासिक के कुंभ मेले के बारे में लिखा था वे उसको आगे विस्तार देते हुये कुंभ मेले के बारे में पेज तैयार कर सकती हैं। प्रेमेन्द्र ने कल सर संघ चालक के बारे में एक लेख लिखा था। वे अपने इम्तहान समाप्त होने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बारे में एक पेज तैयार कर सकते हैं। बेंगाणी बन्धु गुजरात वाले पेज को तैयार कर सकते हैं। बेजीजी और डा. भावना कंवर कवितायें लिखने के साथ-साथ मिलकर डाक्टरी से संबंधित कुछ पेज तैयार कर सकती हैं।
रवि रतलामीजी से भी अनुरोध है कि वे रचनाकार की अमूल्य निधि को धीरे-धीरे करके संबंधित साहित्यकार का पन्ना बनाकर वहां पर डाल दें। अब देखिये कि वहां हृदयेशजी के बारे में जानकारी का पन्ना सूना है जबकि रचनाकार पर आपने उनके संस्मरण डाले हैं। आप इसे वहां डालिये न!
करने के लिये काम बहुत है। और विकिपीडिया को जब आप सम्पन्न कर रहे होते हैं तो आप अपनी भाषा के हाथ मजबूत कर रहे होते हैं। भाषाऒं की कमाई की क्षमता की अक्सर हम बात करते हैं। जिस माध्यम में हम भाषा से कमाने की संभावनायें टटोल रहे हैं पहले उसको मजबूत तो करें। तमाम तरीके होंगे इसके लेकिन मुझे सबसे आसान और मौजूं तरीका लगता है हिंदी के मुक्त ज्ञान कोश को सम्रद्ध करने का। यह काम तो ऐसा है जिसमें हम सब बराबर का योगदान कर सकते हैं। इसमें किसी के लेखन कौशल से ज्यादा उसके समर्पण की जरूरत है।
कुछ न समझ में आये तो सब लोग अपने-अपने शहर के बारे में जो जानकारी पता हो उसे ही विकिपीडिया में डालकर शुरुआत कर सकते हैं!
काम के जुनून के बात आती है तो मुझे याद आता है अरविंद कुमार और उनकी पत्नी कुसुम कुमार के द्वारा तैयारसमान्तर कोश! अरविंद कुमार ने हिंदी में थिसारस तैयार करने का सपना देखा। कुमार दम्पति ने गोदावरी नदी में स्नान करके इसका संकल्प लिया। अरविंद कुमार ने अपनी अच्छी-खासी माधुरी पत्रिका की लगी-लगाई नौकरी छोड़ दी। दिल्ली आये फिर खर्चे कम करने के लिये और ‘इन्टीरियर’ में गये। खर्चा चलाने के लिये छुटपुट लेखन-सम्पादन करते रहे। बीच में बार यमुना की बाढ़ में जब घर का सामान बह गया तो उनको यही खुशी थी कि उनका काम बच गया। पूरे बीस वर्ष लगाकर कुमार दम्पति ने हिंदी भाषा का पहला थिसारस तैयार किया।
अरविंद कुमारजी की मेहनत और समर्पण का जज्बा हमारे लिये मिसाल है। उन्होंने तो नौकरी छोड़ी, शहर छोड़े, घर बदले। लेकिन हमें लगता है नौकरी, शहर, घर छोड़े/बदले बिना भी हम हिंदी की सम्पन्नता के लिये बहुत कुछ कर सकते हैं। आखिर हम सबके अंदर अरविंद कुमार दम्पति के हिंदी प्रेम का कुछ न कुछ अंश हो है ही। हमें कुछ छोड़ना नहीं है केवल अपने स्वभाव जन्य आलस्य को त्यागना है।
मितुल से अनुरोध है कि वे विकीपीडिया के बारे में जानकारी देने के लिये ही सही अपना एक ब्लाग शुरू करें। और यदि बिना ब्लाग लिखे वे कामदेव की तरह अनंग रहकर ही सबके अन्दर विकि प्रेम की भावना जगाते रहना चाहते हैं तो मुझे इस बारे में बताते रहें ताकि मैं अपने माध्यम से साथियों को बता सकूं जिससे इच्छुक मित्र इस काम अपना योगदान कर सकें। सबसे पहले वे बतायें कि विकिपीडिया में पेज कैसे बनाये जाते हैं!
मैंने हिंदी का ब्लाग लेखन रविरतलामी के लेख को पढकर शुरु किया। लेकिन उस लेख के बाद तमाम शुरुआती तकनीकी परेशानियां दूर करने में हमारे साथी मृणाल त्रिपाठी का योगदान रहा। उन्होंने ही मुझे लिंक लगाना, काउंटर लगाना, फोटो लगाना और ब्लाग सम्बन्धी तमाम हरकतों के बारे में जानकारी दी। अच्छी खासी हिंदी जानने के बावजूद वे अभी अंग्रेजी में ही ब्लाग लिखते रहे। अब कल ही बहुत उकसाने के बाद उन्होंने अपना हिंदी ब्लाग भी शुरू किया। आशा है कि इनकी विचार यात्रा अपने अंग्रेजी ब्लाग की तरह ठहरी-ठहरी नहीं रहेगी।
जब मृणाल जैसे हमारे साथी अपनी दो साल की स्वभावगत जड़ता को त्यागकर हिंदी में लिखना शुरू कर सकते हैं तो जो लोग सक्रियता से हिंदी में लिख रहे हैं वे हिंदी की सम्रद्धि के लिये अपने-अपने हिस्से का योगदान क्यों नहीं दे सकते हैं! आइये विकिपीडिया में जितना योगदान से सकते हों दीजिये। आइये अपनी-अपनी खिड़की से अपने-अपने हिस्से का सावन देखते हैं। दुनिया रंगबिरंगी दिखेगी।
तो आ रहे हैं न अपना योगदान देने विकिपीडिया के आंगन में!
Posted in बस यूं ही | 24 Responses
कृपया बतायें कि विकीपीडिया पर कैसे लिखना है।
मनीषा
http://hindibaat.blogspot.com
बहुत अच्छा लगता है यह काम करते हुए
रहा सवाल कापीराईट का हमे उसकी जरूरत ही नही है, हमने ही खुद कहीं की ईट कही का रोडा जमाकर ये लेख लिखे है। अंतरिक्ष पर मेरा लेखन कार्य एक लेखक का कम, अनुवादक और संपादक का ज्यादा है।
अंतरिक्ष पर अब तक आयी टिप्पणीयो मे से मुझे सबसी अच्छी टिप्पणी प्रेमलताजी की लगी थी, उन्होने लिखा था कि
मेरी खुशी का कारण बच्चो को इन लेखो का अच्छा लगना था। हिन्दी मे यह सब जानकारी उपलब्ध नही है। कुल मिलाकर एक पत्रिका’विज्ञान प्रगति’ है जो इस तरह की जानकारी देती है।
आशा है शीघ्र ही इस बारे में कुछ सोचेंगे।
भित्तीचित्रों से याद आया, डिस्कवरी चैनल पर एक बार देख रहा था की मिस्त्र में जिन मजदूरों नें अपने राजा-रानियों के लिये पिरामिड बनाए, उन्होंनें पास की गुफ़ाओं में उन्हीं राजा रानियों के मैथूनचित्र भी चोरी-छुपे बनाए थे. ये उनका तरीका था परिवेश को लेकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने का. उन चित्रों से पता चलता है की मजदूरों ने डर के मारे काम किया लेकिन वे क्रोधित थे शासकों के प्रति! टेक्नोराती से परिचित सभी प्रयोगकर्ता जानते होंगे की युरोपीय भाषाओं में सैकडों पॉर्न संबंधित ब्लाग्स हैं, हिंदी में भी हो सकता है की कोई हों. स्वतंत्र विधा में वे भी समाज के किसी पहलू को प्रतिबिंबित करते होंगे – ठीक वैसे ही जैसे अभिव्यक्ति के नाम पे साहित्यवाले रेत में मुंण्डी डाले कविता करते हैं.
फ़िर भी निश्चित ही साफ़्टपार्न वाला कोई ब्लाग उतना अधिक महत्वपूर्ण भी नही की विकिपीडिया, और हिंदी की साझा साईटों से अधिक उल्लेखनीय बन जाता! स्पष्टत: लेखिका की पठन-पाठन वरियताएं हमसे तो भिन्न हैं.
इस बारे में आपके पहले लिखे लेख साथी हाथ बढ़ाना पर इस बारे में टिप्पणी भी की थी।
ब्लॉगिंग को चैटिंग का विस्तृत रुप कहना लेखिका की अल्पज्ञता दर्शाता है, बेहतर होता वे कुछ लिखने से पहले ब्लॉगिंग के बारे में जरा जानकारी ले लेती।
बना रही भू को सुहागिनी |
ये किस कवि के श्रीमुख से निकले वचन हैं ठीक से याद नहीं, हमेशा की भांति सम्भवतः अनूपजी बता सकेगें |
अन्तर्जाल पर हिन्दी ऐसे ही तेजी से पैर पसारे, हमारी कामना है |
जैसे भी हो सकेगा मैं अपना योगदान देता रहूंगा |
हिन्दी में काफी अनाड़ी हूं, फिर भी मेरे लायक कोई काम हो तो ज़रूर बताइयेगा.
जुलाई में नेता लोग न्यूयार्क में हिंदी के नारे लगा रहे होगे, हम लोग गाज़ियाबाद वाले घर में नए कामों पर लग चुके हैं..।
सबमित्रों की शुभ कामनाएँ चाहिएँ।
अरविंद कुमार
आपके प्रयासों को भागीरथ का ही दूसरा नाम दिया जा सकता है. नमन्.
अगर आप तक यह संदेश पहुँच रहा है तो आपसे एक निवेदन है. पेंगुइन से प्रिंट मीडिया में आपका यह कार्य निकल रहा है यह तो ठीक है, परंतु इसे सॉफ़्टवेयर के रूप में भी कम्प्यूटर में इस्तेमाल हेतु अतिशीघ्र निकालें ताकि इसके इस्तेमाल में और भी आसानी हो. साथ ही आजकल छोटे छोटे पीडीए जैसे अंग्रेजी के इलेक्ट्रॉनिक पॉकेट डिक्शनरी आते हैं. यह थिसॉरस भी किसी छोटे पॉकेट इलेक्ट्रॉनिक डिक्शनरी में आ जाए तो फिर क्या बात है!
उम्मीद है इस दिशा में भी कुछ कार्य तो चल ही रहे होंगे…
आप ने सही बात उठाई। मैं शैलेंद्र के गीत मेरा जूता है जापानी से हमेशखा प्रभावित रहा हूँ। वहनई भारतीयता का मौनिफ़ेस्टो जैसा थाृ जापानी सस्ता जूता पहनने वाला 1952-53 का नौजवान दुनिया से सब कुछ ले कर भी अबनी, देश कीष भाषा की नई शान बनानें में जुटा था. वह बिगले दिन शहज़ादा खुली सड़क प सीनाताने निकल पड़ा था. उसे सही मंज़िल पता नहीं था, लेकिन कहाँ रुकना है, वह यह भी तो नहीं जानता था. मैं तभी से चलता आ रहा हूं, चलता जा रहा हूँ… अभी हाल में पेंगुइन इंडिया से हमारा नया विशाल कोश आ रहा है–
Penguin English Hindi Thesarus and Dictionary
इस के तीन भाग हैे–
पहला है इंग्लिश हिंदी थिसारस हिंदी इंग्लिश थिसारस
दूसरा है इंग्लिश हिंदी डिक्शनरी ऐंड इंडैक्स
तीसरा है हिंदी इंग्लिश डिक्शनी ऐंड इंडैक्स
ए-4 साइज़ के बारीक चाइप में चार कालम वाले इस कोश के बारे में मैं इतना ही कह सकता हूँ, यह विश्व का बृहत्तम द्लभाषी थिसारस होगा। अकसर ऐसे थिसारस भाषा सिखाने के लिए बनाए जातें और उन का आकतार होता दोनों इंडैक्स मिला कर कुल 300-350 पेज.
हमारे कोश में भारतद के साथ साथ विश्व कि प्रमुख संस्कृतियों के अंतरसंबंध दुनीया को जोड़ने का काम करें, अर्थ और पर्याय तय़ा विपर्याय तो देंगे ही।
पर बात यहाँ ख़त्म नहीं होती…
हाल ही में मैं ने केद्रीय हिंदी संस्थान के महान योजना हिंदी लोक शब्दकोश परियोजना का आनरेरी मुख्य संपादक होे कापनिमंत्रण स्वीकार कर लिया है। इस के अंतर्गत हिंदी से संबंधित 48 भाषाओं के जैसे ब्रजभाषा, अवधी, पहाड़ी, कुमीयूंनी, राजसथानी, बोजपुरी,मैथिली भाषाओं के शब्दकोश संकलित कए जाएँगे. इस काम के लिए नियुक्त कोशकर्मा ङाषाई क्षेत्रों में जा कर शब्द इकट्टे करेंगे… य सबी कोश िंटरनेट पर भी उपलब्ध होंगे..ताकि दुनिय भार में फैले उत्तर भारहतीय मूल के लोग अपनी भाषा, संस्कृति, जीवन के संपर्क में रह सकें.
यह काम हम लोग अगल दस सालों में पूरा कर लेना चाहते है।ॉ
मेरी अपील है इस योजना के बारे सूचना अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचे, ताकि वे हमारा मार्गदर्शन कर सकें…
जानकारी मेरे घर के पते पर भेजं–
अरविंद कुमार
सी-18 चंद्र नगर
गाज़ियाबाद 201011
samantarkosh@gmail.com
सब से सहयोग से ही यहमान काम सही दिशाम और पूरी जानकारी पे भरपूर हो सकेगा
अरविंद कुमार
arvind ji ke sath interview n article janshatta me jan.6,08 ko pubished hui hai…
k.prapanna@gmail.com