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मेरी पसन्द की कुछ कवितायें
By फ़ुरसतिया on February 23, 2007
पिछ्ली पोस्ट में हिंदीब्लागर जी ने विष्णु खरे की कविता पसंद की। यह कविता तद्भव
के नयें अंक १५ में आयी थी। तद्भभव तैमासिक पत्रिका है। कथाकार अखिलेश के
संपादन में निकलने वाली यह पत्रिका मुझे समकालीन साहित्यिक पत्रिकाऒं में
सबसे अच्छी लगती है। तद्भव के इसी अंक में कुछ और भी मजेदार कवितायें छपी हैं। इसमें आशीष त्रिपाठी ने समकालीन कवियों की कुछ कविताऒं की समीक्षा की है। मैं इनमें से कुछ कवितायें यहां पोस्ट कर रहा हूं, शायद साथियों को अच्छी लगें|
विष्णु नागर अपनी कविता ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ में कहते हैं:-
अपने ऊपर व्यंग्य करती हुयी विष्णु नागर की यह कविता देखें-
नागर जी का यह कवितांश भी देखें:
मुझे लगता है कि जिन साथियों को भी पढ़ने की रुचि है उनको इस त्रैमासिक पत्रिका का सदस्य बन जाना चाहिये। इसका वार्षिक शुल्क भारत के लिये १९०/- तथा विदेश के लिये चालीस डालर है। तद्भव का पता है:-
१८/२०१, इंदिरा नगर,
लखनऊ-२२६०१६
फोन-०५२२-२३४५३०१
ई-मेल-info@tadbhav.com
अपनी पिछ्ली पोस्ट में कुछ जरूरी लिंक भी मैं लगा दिये हैं। जिन साथियों को पुरानी कहानी जान का मन हो वे इसे दुबारा देख लें!
बहरहाल, समीरलालजी की मेहनत कामयाब रही रही। उनको विजेता होने की बधाई। अब आशा है कि यह मिथक टूट जायेगा कि हिंदी ब्लागर का विजेता लिखना बंद/कम कर देता है। सुनीलदीपक जी ने हमें आशीर्वाद दिया था। हमने कहा था आप गदगद रहे यही हमारे लिये आशीर्वाद है। सुनीलजी को दूसरे विजेता होने के नाते हमसे ८०० रुपये मूल्य की किताबें मिलेंगी। अब हम उनसे पूछेंगे कि किताबें कैसे भेजें। बिहारी बाबू को भी हमारी तरफ़ से बधाई! तरकश की परंपरा के अनुसार जगदीश भाटिया को भी इनाम मिल जाना चाहिये। बहरहाल जगदीशजी को हमसे ज्यादा वोट मिले इसके लिये हम उनको इनाम में एक अच्छी सी किताब भेंट करेंगे। जीतू, सृजन शिल्पी और रवि रतलामी को भी कुछ किताबें मिलेंगी लेकिन मुलाकात होने पर।:)
देबाशीष ने इस आयोजन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। इसके लिये वे बधाई के पात्र हैं। हर बार वे तमाम लोगों के द्वारा जाने/अनजाने हुयी गलतफहमियों के कारण कोसे भी जाते रहे। इस बार कोसना कम हुआ और नाम भी हुआ- अखबार वगैरह में। देबाशीष को एक बार फिर से बधाई!
विष्णु नागर अपनी कविता ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ में कहते हैं:-
अमेरिका चाहता है कि इस धरती के समस्त जन उसे प्यार करें
क्योंकि उन्हें मालूम पड़ गया होगा कि वह दुनिया में कहीं भी,
कभी भी कुछ भी कर सकता है
वह अफ्रीका में गन्दगी पर भिनभिनाती एक मक्खी को
खतरनाक घोषित करके उसे मारने के लिये फौजें भेज सकता है
और उस मक्खी के सिवाय सब कुछ को तबाह कर सकता है।
अपने ऊपर व्यंग्य करती हुयी विष्णु नागर की यह कविता देखें-
कभी-कभी मुझे सन्देह होता है कि मैं भी दूसरों की तरह
एक साधारण आदमी हूं
तो मैं इस सन्देह को दूर करने के लिये
किसी की नौकरी ले लेता हूं
किसी को ऐसा डांटता हूं कि वह थर-थर कांपने लगता है
किसी को दरवाजे के बाहर इतनी देर तक खड़ा रखता हूं कि
वह अपमानित होकर चुपचाप चला जाता है।
नागर जी का यह कवितांश भी देखें:
ग्लोबलाइजेशन के इस जमाने मेंतद्भव के इसी अंक में राजकुमार केशवानी, जो कि पेशे से पत्रकार हैं, की एक कविता है- ‘मुन्ने भाई रांग साइड’। कविता एक विलक्षण और ठेठ देशज(भोपाली) चरित्र मुन्ने भाई को उभारती है, जिसे रांग साइड में चलने के कारण ‘रांग साइड’ कह कर पुकारा जाने लगता है, मगर जो दुनिया में रांग साइड चलने वालों की बखिया उधेड़ने से नहीं चूकता:
हत्यारे का नाम कुछ भी हो सकता है
जार्ज मोदी भी और नरेन्द बुश भी
भाई मियां
सारी दुनिया चल रही है रांग साइड
मगर बस मानते नहीं हैं
खुद को रांग साइड
अब जरा देखिये बुश को
इराक में घुस गये
रांग साइड
मुशर्रफ को देखिये
कारगिल में घुस गये
रांग साइड
आडवाणी को देखिये
अयोध्या में घुस गये
रांग साइड
मोदी को देखिये
बेकरी में घुस गये
रांग साइड।
मुझे लगता है कि जिन साथियों को भी पढ़ने की रुचि है उनको इस त्रैमासिक पत्रिका का सदस्य बन जाना चाहिये। इसका वार्षिक शुल्क भारत के लिये १९०/- तथा विदेश के लिये चालीस डालर है। तद्भव का पता है:-
१८/२०१, इंदिरा नगर,
लखनऊ-२२६०१६
फोन-०५२२-२३४५३०१
ई-मेल-info@tadbhav.com
अपनी पिछ्ली पोस्ट में कुछ जरूरी लिंक भी मैं लगा दिये हैं। जिन साथियों को पुरानी कहानी जान का मन हो वे इसे दुबारा देख लें!
सूचना:
इस बीच इंडीब्लागीस चुनाव, २००६ के नतीजे आ गये। हिंदी ब्लाग में, आशानुरूप, समीरलालजी सबसे ज्यादा मत (१२८) पाकर सबसे आगे रहे। सुनील दीपकजी (४० मत) दूसरे स्थान पर तथा प्रियरंजन(३७ मत) तीसरे स्थान पर रहे। जगदीश भाटिया को ३६ मत मिले। दूसरे चुनाव में जीतेंन्द्र को १४७ वोट मिले थे। अबकी बार उन्होंने कोई प्रयास ही नहीं किया इसीलिये २८ मत ही मिले। सृजन शिल्पी को १६ मत मिले जबकि रवि रतलामीजी १४ मत पाकर नींव की ईंट बने रहे। फुरसतिया को ३५ मत मिले। हिंदी ब्लाग जगत के ४०० ऊपर चिट्ठों के होते हुये भी कुल वोटिंग ४०० से कम होना उदासीनता का परिचायक है।बहरहाल, समीरलालजी की मेहनत कामयाब रही रही। उनको विजेता होने की बधाई। अब आशा है कि यह मिथक टूट जायेगा कि हिंदी ब्लागर का विजेता लिखना बंद/कम कर देता है। सुनीलदीपक जी ने हमें आशीर्वाद दिया था। हमने कहा था आप गदगद रहे यही हमारे लिये आशीर्वाद है। सुनीलजी को दूसरे विजेता होने के नाते हमसे ८०० रुपये मूल्य की किताबें मिलेंगी। अब हम उनसे पूछेंगे कि किताबें कैसे भेजें। बिहारी बाबू को भी हमारी तरफ़ से बधाई! तरकश की परंपरा के अनुसार जगदीश भाटिया को भी इनाम मिल जाना चाहिये। बहरहाल जगदीशजी को हमसे ज्यादा वोट मिले इसके लिये हम उनको इनाम में एक अच्छी सी किताब भेंट करेंगे। जीतू, सृजन शिल्पी और रवि रतलामी को भी कुछ किताबें मिलेंगी लेकिन मुलाकात होने पर।:)
देबाशीष ने इस आयोजन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। इसके लिये वे बधाई के पात्र हैं। हर बार वे तमाम लोगों के द्वारा जाने/अनजाने हुयी गलतफहमियों के कारण कोसे भी जाते रहे। इस बार कोसना कम हुआ और नाम भी हुआ- अखबार वगैरह में। देबाशीष को एक बार फिर से बधाई!
Posted in कविता, मेरी पसंद | 13 Responses
मुझे तो यह संख्या अच्छी लगी!!
देबाशीष दादा को आयोजन की सफलता की बधाई!
वोटो पर मत जाइए। हमारे लिए आपका ब्लॉग केवल हिन्दी का ही नही, विश्व का सबसे अच्छा ब्लॉग है। मेरा सबसे पसंदीदा चिट्ठा।
राजकुमार केशवानी जी को पहली बार पढ़ने का मौक़ा मिला है. ज़ोरदार कविता है.
इंडीब्लॉगीज़ के विजेताओं को बधाई! सफल आयोजन के लिए देबाशीष जी को भी बधाई!
हिंदी श्रेणी में मात्र 334 वोट गिरने से यही साबित होता है कि हिंदी ब्लॉगिंग को अभी लंबा सफ़र तय करना है.
फ़ोटोब्लॉग श्रेणी में हिंदी ब्लॉग जगत की एकमात्र प्रविष्टि ‘छायाचित्रकार’ को मात्र 65 मत मिलने से ये भी ज़ाहि हुआ कि वोटिंग का कष्ट उठाने वाले कुल 334 हिंदी-ब्लॉगप्रेमियों में से भी ज़्यादातर ने हिंदी के एक फ़ोटो ब्लॉग को आगे बढ़ाने की जहमत नहीं उठाई. मात्र एक अतिरिक्त क्लिक की ही तो बात थी!
इस चुनाव में शामिल सारे चुनिंदा ब्लॉगरों को पुस्तक-उपहार देने की आपकी पहल अनुकरणीय है.
इंडीब्लॉगीज़ का आयोजन वास्तव में एक बडा यज्ञ था. श्री देबाशीष जी साधुवाद के हकदार हैं ही.
तद्भव से परिचय कराने के लिये धन्यवाद
मैथिली
इंडीब्लागीस चुनाव, २००६ ke safal aayojan per badhaayi..
Kaafi achhe achhe blogs parhne ko milte hain aajkal.
Haasya mein aapka blog aur Geeton mein Rakesh Khandelwal Ji ka blog atulniy hain.
Maja aa jaata hai parhkar aap donon ko ..