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इंडीब्लागीस चुनाव चर्चा
By फ़ुरसतिया on February 18, 2007
वर्ष २००६ के इंडीब्लागीस
चुनाव अपने आखिरी दौर में हैं। हमारे जिन साथियों को इंडीब्लागीस के बारे
जानकारी नहीं हैं उनकी जानकारी के लिये बता दूं कि यह भारत से जुड़े
चिट्ठाकारों को दिया जाने वाले पुरस्कार हैं। चिट्ठाकार देश में हैं या देश
के बाहर वे इसमें नामांकित होने की पात्रता रखते हैं। यह लगातार चौथा साल
है जब यह चुनाव हो रहा है। इंडीब्लागीस का आयोजन देबाशीष करते हैं जो अपने
हिंदी और और अंग्रेजी चिट्ठे के अलावा निरंतर पत्रिका के नियमित/ अनियमित प्रकाशन के लिये जाने जाते हैं। उनके नाम ब्लाग जगत की तमाम उपलब्धियां जुड़ी हैं।
इंडीब्लागीस पुरस्कार कई वर्गों में दिये जाते हैं। इनमें मुख्यतया अभी तक अंग्रेजी के ही ब्लाग निर्वाचित होते रहे हैं। भारतीय भाषाऒं के लिये अलग से एक-एक इनाम की व्यवस्था की गयी है। इंडीब्लाग के अलावा अन्य किसी वर्ग में हिंदी के ब्लाग नामांकित न हो पाने का मुख्य कारण मेरी समझ में हिंदी ब्लागर्स की इस मामले में उदासीनता तथा ब्लाग नामांकन तय करने में हिंदी के जजों की सीमित संख्या का होना है। फोटोब्लाग कैटेगरी में सुनील दीपक जी का ब्लाग छायाचित्रकार भी नामांकित हुआ है।
आज मैंने पहली बार सारे विवरण देखे। गुजराती ब्लाग के लिये ज्यूरी न होने के कारण किसी गुजराती ब्लाग का नामांकन न हो पाना थोड़ा आश्चर्य की बात लगती है। इन नामांकनों से ,हमेशा की तरह, कुछ लोगों को हर्ष मिश्रित आश्चर्य हुआ है वहीं कुछ को झटका लगा कि उनका ब्लाग कैसे छूट गया। हिंदी वर्ग में कुल आठ ब्लाग नामांकित हुये हैं। हमारे कुछ साथियों अपने-अपने चुनाव प्रचार भी चालू कर दिये हैं।
हिंदी ब्लागिंग के बारे में बता दें कि पहली बार आलोक हिंदी के अकेले उम्मीदवार थे लिहाजा वे निर्विरोध जीते। दूसरी बार के विजेता रहे अतुल। दूसरी बार दोनों कनपुरिया ब्लागर्स अतुल और जीतेंद्र में काफ़ी नजदीकी कुश्ती हुयी। एकबारगी यह लग रहा था कि जीतेंद्र जीत जायेंगे लेकिन बाद में शायद अतुल के दोस्तों को होश आया और जीतेंद्र ने अपनी मेहनत कम कर दी लिहाजा जीत ने अतुल का वरण किया। तीसरी बार मतलब कि पिछ्ली बार शशि सिंह विजेता रहे। लेकिन पिछली बार वोट बहुत कम पड़े, जहां तक मुझे याद है, सौ से भी कम। यह हिंदी ब्लागर्स की इन्डीब्लागीस के प्रति पिछले वर्ष उदासीनता का परिणाम परिचायक था।
दूसरी बार हमने जब वोट डाले तो उससे तुरन्त दिख जाता था कौन कितने वोट पाया है। हमने तमाम फर्जी वोटिंग भी की थी और कई बार वोट डाले थे। पिछ्ले वर्ष न हम वोट देख पाये न मन किया। इस वर्ष तो हम अपनी तकनीकी तंगी के चलते नामांकन तक न कर पाये। वर्ना मैं तमाम दूसरी कैटेगरी में हिंदी ब्लागर्स को नामांकित करना चाहता था। देश के सबसे अच्छे ब्लाग के लिये हिंदी का एक भी ब्लाग का नामांकित न होना अखरता है। बहरहाल, हम अपनी अपनी उदासीनता के लिये किसको कोसें!
चुनाव जब होंगे तो कोई एक तो जीतेगा ही लेकिन इंडीब्लागीस की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि आपको कुछ ऐसे ब्लाग्स के बारे में जानकारी मिलती है जो आपके
पसंदीदा ब्लाग बन सकते हैं। यह पेज आपको साल भर के लिये अपने पसंदीदा पेज में रखना चाहिये ताकि आप ब्लाग जगत की बेहतरीन पोस्टें देखते रह सकें।
मैं और कुछ लिखूं इसके पहले अपने हिंदी ब्लाग जगत के उन चिट्ठाकारों के बारे में बहुत संक्षेप में बताना चाहता हूं जिनको इस वर्ष के लिये नामांकित किया गया है। यह जानकारी उन लोगों के लिये है जो हिंदी ब्लाग जगत से अभी हाल ही में जुड़े हैं। जो लोग पहले से ही इनसे परिचित हैं वे टिप्पणी में लिखकर बतायें कि क्या कुछ छूट गया इन साथियों के बारे में।
आईना: दिल्ली के जगदीश भाटिया ने दस माह पूर्व ही अपना चिट्ठा आईना शुरू किया। अपनी लेखन शैली और अपने सहज व्यवहार से जगदीशजी हिंदी ब्लाग जगत के लोकप्रिय ब्लागर बन गये। उनकी पोस्टों का लोगों को इंतजार रहता है। उनकी मुन्ना भाई-सर्किट सीरीज की पोस्टों का पाठकों को बेताबी से इंतजार रहता है।6 जनवरी,2007 को ‘आईना’ वर्डप्रैस के सभी भाषाओं के 5.75 लाख चिट्ठों में “Blogs of the day- growing blogs” में 69 वें नंबर पर रहा। जगदीशजी आर्थिक विषयों पर भी बखूबी जानकारी पूर्ण लेख लिखते रहते हैं। निरंतर के नये अंक में जगदीशजी का लेख रियल स्टेट की अनियंत्रित असामान्य तेजी के बारे में आमुख लेख लिखा है जिसके बारे में आप विस्तार से समीक्षा यहां देख सकते हैं।
दिल्ली जैसे शहर में अपना काम-धाम, दौड़-धूप की जिंदगी जीते तथा नियमित ब्लागिंग करते जगदीशजी रागदरबारी उपन्यास को नेट पर लाने में भी टंकण सहयोग प्रदान कर रहे हैं।
जगदीश जी के बारे में और अधिक विस्तार से जानने के लिये आप उनके ब्लाग के लेख देखिये और उनका घोषणापत्र भी देखिये।
बिहारी बाबू कहिन दिल्ली निवासी प्रियरंजन झा अपने बारे में परिचय देते हुये लिखते हैं-कलम के सिपाही. कर्मक्षेत्र दिल्ली. फिलहाल जिंदगी से सीखते हुए आगे बढ़ने की कोशिश जारी है… । इस युवा, खूबसूरत (फोटो यही कहती है भाई) कलम के सिपाही के सिपाही के लेख सम-सामयिक घटनाऒं पर चुटकी लेते हुये तीखे व्यंग्य करते हैं। एक-एक लेख पठनीय, संग्रहणीय होता है। लेख पढ़कर कोई भी संवेदनशील व्यक्ति सोचने पर मजबूर हो जाता है। मैं प्रियरंजन से व्यक्तिगत रूप से परिचित नहीं हूं लेकिन प्रियरंजन शशि सिंह और जीतेंन्द्र के सम्पर्क में हैं जैसा कि उनकी इस पोस्ट से पता चलता है। प्रियरंजन शायद टिप्पणी माया के जाल में फंसने से बचते हैं। न खुद किसी के ब्लाग पर टिप्पणी करते हैं न किसी की चिंता कि कोई आये और टिपियाये- न ऊधो से लेना न माधो को देना। लेकिन इससे उनके ब्लाग पोस्ट की गुणवत्ता पर कोई फरक नहीं पड़ता। राजनैतिक, सामाजिक चेतना से संपन्न अगर कुछ पोस्ट छांटने का काम करना हो तो वो खोज बिना बिहारी बाबू का ब्लाग देखे मुकम्मल नहीं होगी।
प्रियरंजन ने अपनी पोस्ट में अपनी बात कही है। आप वहां देखें और उनके ब्लाग की अन्य पोस्टें देखकर लाभान्वित हों।
जो कह न सके: ‘जो कह न सके’ नाम से नियमित रूप से अपनी बात कहते रहने वाले सुनील दीपकजी इस नामांकन सूची में सबसे अधिक अनुभवी (उम्रदराज कहना ठीक नहीं लगेगा न!)चिट्ठाकार हैं। विषय विविधता के हिसाब से उनके जैसा वैविध्य शायद ही किसी और चिट्ठाकार के लेखों में हो। घर, परिवार, समाज, देश, विदेश, फिल्में, पर्यटन,साहित्य, संस्कृति,चिकित्सा, बचपन,जवानी, बुढ़ापा सब कुछ उनके लेखन के विषय रहे हैं। उन्होंने यौन संबंधों पर बेहद सतर्क सधी हुयी भाषा में अपने विचार व्यक्त किये हैं। विकलांगों के यौन जीवन से संबंधित उनका अध्ययन अपने-आप में अनूठा है। विकलांगों के जीवन से संबंधित अन्य विविध पहलुऒं के बारे में भी वे अपने विचार प्रकट करते रहते हैं।
उनके चिट्ठे के लोकप्रिय/ बेहद पढ़ा जाने वाला होने के कारणों में एक कारण यह भी है कि उनकी पोस्ट वहीं खतम हो जाती है जब पाठक सोचता है कि काश कुछ और लिखा होता। अपनी राय थोपने के बजाय वे निष्पक्ष तरीके से अपनी बात रखने का प्रयास करते हैं।
निरंतर का जब फिर से प्रकाशन शुरू हुआ तब से वे इससे जुड़े हैं और इसमें नियमित योगदान करते रहते हैं। सुनील दीपक जी को अगर आज कोई सवाल पूछना हो तो वे यह जरूर पूछेंगे -क्या भाई, यहां कोई महिला ब्लागर क्यों नहीं नामांकित हुयी? ऐसा ही उन्होंने निरंतर के संपादक मंडल में शामिल होते ही पूछा था तब प्रत्यक्षाजी को शामिल करके कोरम पूरा हुआ। सुनील दीपक जी का निरंतर में छपा परिचय यहां है।
सुनील जी के ब्लाग की खासियत उनके बहुरंगी/ खूबसूरत चित्र हुआ करते हैं। प्रकृति और मानव उनके कैमरे के पसंदीदा विषय रहे हैं। अब भी उनके ब्लाग पर चित्र रहते हैं। लेकिन नियमित रूप से अपने चित्रों को पोस्ट करने के लिये उन्होंने छायाचित्रकार नाम से अलग फोटोब्लाग बनाया है।
एन.डी. टी.वी. वालों ने दो हफ्ते पहले जब अपने चैनेल पर अपने ‘गुडमार्निंग इंडिया’ कार्यक्रम में हिंदी ब्लागों के बारे में जानकारी देना शुरू किया तो सुनील दीपक के ब्लाग जो कह न सके का जिक्र किया।
मेरा पन्ना: अगर किसी को हिंदी ब्लाग जगत की धड़कन का अंदाजा लेना हो तो उसके लिये जीतेंन्द्र से संपर्क सबसे मुफ़ीद उपाय है। करीब ढाई साल से ब्लाग जगत से जुड़े जीतेंद्र हिंदी ब्लाग जगत की लगभग हर उल्लेखनीय घटना से संबद्ध रहे हैं फिर चाहे वह बुनो कहानी हो या ब्लागनाद , अनुगूंज हो या परिचर्चा, निरंतर हो या चिट्ठा चर्चा, अक्षरग्राम हो या नारद, रामचरित मानस हो या उर्दू-हिंदी शब्दकोश। सुख हो या दुख। दोस्ती हो या लड़ाई ऐसा कोई घटनाक्रम अभी तक हिंदी ब्लागजगत में नहीं हुआ जिससे जीतेंद्र अपनी ब्लागिंग शुरू करने से लेकर जुड़े न रहे हों। मतलब हर फटे में इनकी टांग अड़ी है।
जीतेन्द्र की बोलती हुयी लेखन शैली के कारण उनका लिखा हुआ पढ़ते समय ऐसा आभास होता है कि उनके आमने-सामने बैठकर गुफ्तगू कर रहे हों। अपने शुरुआती दिनों में अपने मोहल्ले के किस्से सुनाकर जीतेंद्र ने तमाम लोगों को उनके बचपन की शरारतें याद दिला दीं। उनके पप्पू, स्वामी, मिर्जा जैसे पात्र लोगों
को अपने पात्र लगते हैं। शुरुआत में क्रिकेट और राजनीति पर जीतेंन्द्र ने काफ़ी लिखा। फिर तमाम शायरों के उम्दा कलामों से लोगों को परिचित कराया। सिंधी ब्लाग, फोटो ब्लाग, भारत यात्रा ब्लाग आदि तमाम ब्लाग भी जीतेंन्द्र ने शुरू किये। जुगाड़ी लिंक के माध्यम से जीतेंन्द्र उपयोगी तकनीकी साइटों से पाठकों को परिचित कराते रहते हैं।
नारद के मुख्य सूत्रधार होने के नाते जीतेंन्द्र तमाम नये ब्लागरों की तमाम तकनीकी समस्यायों को सुलझाते रहते हैं। अधिकांश हिंदी ब्लागरों से जीतेंन्द्र व्यक्तिगत रूप से जुड़े हुये हैं।
नौकरी की वजह से व्यस्यतता और समय की कमी के कारण जीतेंन्द्र अक्सर अपने खास अंदाज में लंबे-लंबे लेख अब लंबे अंतराल के बाद लिखने लगे हैं। लेकिन जब लिखते हैं तो इंतजार की कमी पूरी कर देते हैं।
कुल मिलाकर जीतेंन्द्र अपने लेखन, अनौपचारिक व्यवहार और तकनीकी गतिविधियों के संयोजन के कारण आज की हिंदी ब्लागिंग की दुनिया में एक अपरिहार्य उपस्थिति हैं। हिंदी ब्लाग जगत में सबसे अधिक सहजता से और मौज लेते हुये मैंने किसी के बारे में अगर लिखा है तो वे जीतेंद्र हैं! उनके बारे में मेरे लिखे लेख यहां, यहां और यहां हैं।
रवि रतलामी:हिंदी ब्लागिंग को बढ़ावा देने वाली किसी एक घटना का अगर जिक्र करना हो तो मुझे लगता है कि अभिव्यक्ति में छपा ब्लागिंग से सम्बन्धित रवि रतलामी का यह लेख इस चुनाव में सबसे आगे होगा। हिंदी ब्लागिंग की शुरुआती दौर से अब तक अगर सबसे ज्यादा लेखन करने वाले व्यक्ति का चुनाव करना हो तो उनमें निर्विवाद रूप से रवि भाई सबसे आगे होंगे। अपने ब्लाग, अभिव्यक्ति, प्रभासाक्षी पर नियमित लेखन के अलावा रवि रतलामी रचनाकार पर भी उन लेखकों की रचनायें नियमित रूप से उपलब्ध कराते रहे हैं जिनकी पहुंच नेट तक नहीं है।
निरंतर के संपाद्क मंडल के सक्रिय सदस्य होने के अलावा रवि सोमवार को नितमित अपनी व्यंजल मयी चिट्ठाचर्चा भी करते हैं।
मुक्त सोर्स प्रोग्राम लिनिक्स में रवि रतलामी ने उल्लेखनीय कार्य हुये अनेकानेक उपलब्धियां हासिल कीं। गतवर्ष डा.जगदीश व्योम के साथ सहारा टीवी चैनेल पर रवि रतलामी का साक्षात्कार प्रसारित हुआ तो अडो़स-पड़ोस के लोग उनको कौतूहल से कई दिन देखते रहे।
अपने ब्लाग पर काफ़ी दिन लिखने के बाद रवि रतलामी ने कुछ दिन हिंदिनी पर अपना लेखन जारी रखा। फिर वे व्यापारिक संभावनाऒं की तलाश में वापस
अपने ब्लाग स्पाट पर चले गये। रवि रतलामी ने सामाजिक, तकनीकी, व्यंग्यपरक, राजनीतिक लेख लिखे हैं। अभिव्यक्ति पर अपने ब्लाग पर उनके लेख तकनीकी लेखों के मानक लेख हैं। मुझे लगता है कि जितने सार्थक तकनीकी लेख रवि रतलामी ने लिखे होंगे उतने शायद किसी और ब्लागर ने हिंदी में नहीं लिखें होंगे। अपने कार्टून कोने देशी टून के माध्यम से अब वे कार्टून के क्षेत्र में भी सक्रिय हो गये हैं। व्यंजल के तो वे जनक माने जाते हैं।
मूलत:स्वास्थ्य संबंधी कारणों से अपनी मध्य प्रदेश बिजली विभाग की नौकरी स्वैच्छिक सेवा निवृति के उपरान्त रवि रतलामीआजकल रतलाम में स्वतंत्र लेखन में संलग्न हैं। रवि रतलामी का परिचय आपको यहां और यहां मिल सकता है। उनका जन्मदिवस पर लिया गया साक्षात्कार यहां पर है!
सृजन शिल्पी:अपने गम्भीर लेखन और विचारों से हिंदी ब्लाग जगत को समृद्ध करने वाले सृजन शिल्पी दिल्ली के रहने वाले हैं। अपने शोध परक लेखों से, कतिपय विरोध के बावजूद, अविचलित रहकर अपनी बात तार्किक ढंग से कहने का सृजन शिल्पी पूरी गंभीरता से प्रयास करते रहते हैं। साहित्य से जुड़े व्यक्तियों से संबंधित नामी लेखकों के साहित्यिक अवदानों से वे हिंदी चिट्ठाकारों से परिचित कराते रहे। सम-सामयिक सामाजिक राजनैतिक घटनाऒं पर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं। हाल के दिनों मेंअ आरक्षण समस्या, गांधी जी के महत्व और नेताजी से संबंधित उनके लेखों ने हिंदी ब्लाग जगत में पर्याप्त हलचल पैदा की। साहित्यिक प्रतिभाऒं में नागार्जुन,शमशेर आदि महान कवियों/लेखको से हिंदी ब्लाग जगत के पाठ्कों से परिचित कराया।
समीरलाल: हिंदी ब्लाग जगत में कुंडलिया किंग, लालाजी, मुंडली नरेश, समीरभाई जैसे तमाम संबोधनों से नवाजे जाने वाले समीरजी अपने लिये सबसे मुफ़ीद उपमा स्वामी समीरा नंद की पाते हैं। लगभग एक साल पहले लिखना लिखना शुरू करने वाले समीरलाल की सक्रियता देख कर ऐसा लगता है कि वे सालों से ब्लागिंग करते आ रहे हों। उनके गुदगुदाने वाले लेखों का पाठकों को हमेशा इंतजार रहता है। वे अपने लेखन पर सबसे अधिक टिप्पणियां पाने वाले ब्लागर हैं। नये से नये ब्लागर का निरंतर वे उत्साह बढ़ाते रहते हैं।
अपने जीवन का अधिकांश भाग मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी जबलपुर में बिताने वाले समीरलाल के घरवाले मूलत: पूर्वी उत्तरप्रदेश के रहने वाले हैं। फिलहाल कनाडा में रहकर समीरजी चार्टेड एकाउटेंट के काम से जुड़े हैं।
नियमित लेखन से अपने पाठकों का दिल बहलाते-बहलाते समीरलाल कब दिल को छू जाने वाली बात कह जायें, कहना मुश्किल है। बेहद संवेदनशील समीरजी किसी का दिल दुखाने से बचने का भरसक प्रयास करते हैं
जिस दिन समीरजी का चिट्ठाचर्चा करने का दिन होता है उसके पहले लोग अपने लेख पोस्ट कर देते हैं ताकि समीरजी उनकी कायदे चर्चा कर दे। कल आरकुट में देखा तो उनके प्रशंसकों का लंबा चौड़ा संसार है।
अपनी तमाम व्यस्त गतिविधियों के बावजूद समीरजी नियमित लेखन करते रहते हैं। तरकश में भी उनके लेख बराबर छपते रहते हैं। तरकश पर पिछले वर्ष के अंत में हुये चुनावों में उनको स्वर्ण कलम विजेता के पुरस्कार से नवाजा गया था। उस चुनाव में फर्जी वोटिंग से बचाने के लिये और सही में गुणवत्ता पूर्ण चिट्ठे को चुने जाने के लिये समीरजी ने सुझाव दिया था कि केवल ब्लागर्स ही वोटिंग करें। यहां इंडीब्लागीस में शायद ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है लेकिन समीरजी का प्रसंशक समुदाय दूर-दूर तक फैला है इसलिये उनको चिंता करने की कोई समस्या नहीं है।
बेहद लोकप्रिय चिट्ठाकार समीरलाल के बारे में और अधिक जानकारी के लिये उनकी निरंतर में छपा परिचय भी देख लीजिये। समीरलाल जी के चुनाव प्रचार से संबंधित लेख यहां और यहां देख सकते हैं।
फुरसतिया:नामांकित आठ ब्लागों में से एक फुरसतिया भी है। अगर आप यहां मेरे लेख पढ़ते रहे हैं तो आप बखूबी मुझसे परिचित होंगे। मेरा ब्लाग ही मेरा परिचय है।
मैंने यथासम्भव निष्पक्षता/निर्लिप्तता से अपने सारे साथियों के बारे में आपको बता दिया। आपसे अनुरोध है कि आप अपने कीमती समय से कुछ मिनट निकालकर इन्डीब्लागीस की चुनाव प्रक्रिया में भाग लें।
चुनाव के लिये आप यहां पर जाकर अपना नाम और ई-मेल पता लिख कर भेजें। इसके बाद आपके ई-मेल पर आपको वोट देने के लिये जरूरी लिंक भेजा जायेगा। आप उससे वोटिंग कर सकते हैं। इसमें एक ब्लाग का यू.आर.एल. लिखने की जगह है। उसमें आप अपने ब्लाग का या किसी के भी ब्लाग का नाम लिख सकते हैं या खाली भी छोड़ सकते हैं।
आपसे अनुरोध है आप अपने वोटिंग के अधिकार का प्रयोग करें और हिंदी ब्लागिंग के लिये अधिक से अधिक से वोट करें। खुद करें और अपने मित्रों से करवायें। इतने सारे हिंदी पाठ्कों के रहते अगर वोटिंग संख्या चार अंकों तक भी न पहुंचे तो बड़ी अखरने वाली बात है। खुड वोट दीजिये दोस्तों को भी वोटिंग के लिये उकसाइये।
यह सारी जानकारी देने के पीछे मेरा उद्देश्य अपना प्रचार करना नहीं है न ही अपने लिये वोट मांगना। मेरी केवल यह इच्छा है कि आप लोग उदासीन न रहें। जिस भी ब्लागर को आप चाहते हैं उसे अपना मत दें। कम से कम ऐसा तो न हो कि चार और के हिंदी ब्लागर्स की दुनिया के लोगों के मत उनकी संख्या से भी कम हों।
वैसे पाठकों के लिये यह उपलब्धि होती है कि इंडीब्लागीस में जीते कोई भी आप कुछ बेहतरीन ब्लागों के बारे में जान जाते हैं। वहीं लेखकों को नया पाठक वर्ग मिलता है। यहां तक की उपलब्धि लोगों को मिल गयी है। इसके अलावा जो कुछ है वह आपकी अतिरिक्त दौड़-धूप और पसीने से मिलता है। जितना दौड़-धूप करेंगे उतना आगे जायेंगे, जितना पसीना बहायेंगे उतना स्वाद मिलेगा।
मेरा अनुरोध है कि फोटो ब्लाग वर्ग के लिये आप अपना वोट सुनील दीपक के ब्लाग छायाचित्रकार को दें। हिंदी ब्लागिंग के लिये आप जिसको ठीक समझते हों उसको अपना मत दें। वैसे मेरे अकेले के वोट से अगर चुनाव होता तो मैं अपना वोट रवि रतलामी या सुनील दीपक में से किसी एक को देता। कारण मैं ऊपर बता चुका हूं। नामांकित लोगों में रवि रतलामी हिंदी ब्लाग जगत में अपने लेखन और अब तक के योगदान के लिये तथा सुनील दीपक अपने विविधता पूर्ण एवं जानकारी प्रदान करने वाले लेखन के लिये मेरी पसंद हैं।
एक बात और बता दें। अगर आप सही में अपने प्रिय चिट्ठाकार को जिताना चाहते हैं तो यह भी ध्यान में रखें कि वह चुनाव जीतते ही लिखना कम कर सकता है या बंद कर सकता है। अभी तक का हिंदी ब्लागिंग का यही इतिहास रहा है। आलोक, अतुल, शशिसिंह इसके जीते-जागते उदाहरण हैं। तो सोच-समझकर वोट दीजियेगा। लेकिन यह भी हो सकता है कि जिसे आप जितायें वह पुराने मिथक को तोड़ दे और आपके विश्वास की रक्षा करे।
तो आप प्रजातंत्र के नागरिक होने का सुबूत दीजिये और अपने पसंदीदा ब्लाग के लिये इंडीब्लागीस में मतदान दीजिये। फिर मत कहियेगा बताया नहीं!
इंडीब्लागीस पुरस्कार कई वर्गों में दिये जाते हैं। इनमें मुख्यतया अभी तक अंग्रेजी के ही ब्लाग निर्वाचित होते रहे हैं। भारतीय भाषाऒं के लिये अलग से एक-एक इनाम की व्यवस्था की गयी है। इंडीब्लाग के अलावा अन्य किसी वर्ग में हिंदी के ब्लाग नामांकित न हो पाने का मुख्य कारण मेरी समझ में हिंदी ब्लागर्स की इस मामले में उदासीनता तथा ब्लाग नामांकन तय करने में हिंदी के जजों की सीमित संख्या का होना है। फोटोब्लाग कैटेगरी में सुनील दीपक जी का ब्लाग छायाचित्रकार भी नामांकित हुआ है।
आज मैंने पहली बार सारे विवरण देखे। गुजराती ब्लाग के लिये ज्यूरी न होने के कारण किसी गुजराती ब्लाग का नामांकन न हो पाना थोड़ा आश्चर्य की बात लगती है। इन नामांकनों से ,हमेशा की तरह, कुछ लोगों को हर्ष मिश्रित आश्चर्य हुआ है वहीं कुछ को झटका लगा कि उनका ब्लाग कैसे छूट गया। हिंदी वर्ग में कुल आठ ब्लाग नामांकित हुये हैं। हमारे कुछ साथियों अपने-अपने चुनाव प्रचार भी चालू कर दिये हैं।
हिंदी ब्लागिंग के बारे में बता दें कि पहली बार आलोक हिंदी के अकेले उम्मीदवार थे लिहाजा वे निर्विरोध जीते। दूसरी बार के विजेता रहे अतुल। दूसरी बार दोनों कनपुरिया ब्लागर्स अतुल और जीतेंद्र में काफ़ी नजदीकी कुश्ती हुयी। एकबारगी यह लग रहा था कि जीतेंद्र जीत जायेंगे लेकिन बाद में शायद अतुल के दोस्तों को होश आया और जीतेंद्र ने अपनी मेहनत कम कर दी लिहाजा जीत ने अतुल का वरण किया। तीसरी बार मतलब कि पिछ्ली बार शशि सिंह विजेता रहे। लेकिन पिछली बार वोट बहुत कम पड़े, जहां तक मुझे याद है, सौ से भी कम। यह हिंदी ब्लागर्स की इन्डीब्लागीस के प्रति पिछले वर्ष उदासीनता का परिणाम परिचायक था।
दूसरी बार हमने जब वोट डाले तो उससे तुरन्त दिख जाता था कौन कितने वोट पाया है। हमने तमाम फर्जी वोटिंग भी की थी और कई बार वोट डाले थे। पिछ्ले वर्ष न हम वोट देख पाये न मन किया। इस वर्ष तो हम अपनी तकनीकी तंगी के चलते नामांकन तक न कर पाये। वर्ना मैं तमाम दूसरी कैटेगरी में हिंदी ब्लागर्स को नामांकित करना चाहता था। देश के सबसे अच्छे ब्लाग के लिये हिंदी का एक भी ब्लाग का नामांकित न होना अखरता है। बहरहाल, हम अपनी अपनी उदासीनता के लिये किसको कोसें!
चुनाव जब होंगे तो कोई एक तो जीतेगा ही लेकिन इंडीब्लागीस की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि आपको कुछ ऐसे ब्लाग्स के बारे में जानकारी मिलती है जो आपके
पसंदीदा ब्लाग बन सकते हैं। यह पेज आपको साल भर के लिये अपने पसंदीदा पेज में रखना चाहिये ताकि आप ब्लाग जगत की बेहतरीन पोस्टें देखते रह सकें।
मैं और कुछ लिखूं इसके पहले अपने हिंदी ब्लाग जगत के उन चिट्ठाकारों के बारे में बहुत संक्षेप में बताना चाहता हूं जिनको इस वर्ष के लिये नामांकित किया गया है। यह जानकारी उन लोगों के लिये है जो हिंदी ब्लाग जगत से अभी हाल ही में जुड़े हैं। जो लोग पहले से ही इनसे परिचित हैं वे टिप्पणी में लिखकर बतायें कि क्या कुछ छूट गया इन साथियों के बारे में।
आईना: दिल्ली के जगदीश भाटिया ने दस माह पूर्व ही अपना चिट्ठा आईना शुरू किया। अपनी लेखन शैली और अपने सहज व्यवहार से जगदीशजी हिंदी ब्लाग जगत के लोकप्रिय ब्लागर बन गये। उनकी पोस्टों का लोगों को इंतजार रहता है। उनकी मुन्ना भाई-सर्किट सीरीज की पोस्टों का पाठकों को बेताबी से इंतजार रहता है।6 जनवरी,2007 को ‘आईना’ वर्डप्रैस के सभी भाषाओं के 5.75 लाख चिट्ठों में “Blogs of the day- growing blogs” में 69 वें नंबर पर रहा। जगदीशजी आर्थिक विषयों पर भी बखूबी जानकारी पूर्ण लेख लिखते रहते हैं। निरंतर के नये अंक में जगदीशजी का लेख रियल स्टेट की अनियंत्रित असामान्य तेजी के बारे में आमुख लेख लिखा है जिसके बारे में आप विस्तार से समीक्षा यहां देख सकते हैं।
दिल्ली जैसे शहर में अपना काम-धाम, दौड़-धूप की जिंदगी जीते तथा नियमित ब्लागिंग करते जगदीशजी रागदरबारी उपन्यास को नेट पर लाने में भी टंकण सहयोग प्रदान कर रहे हैं।
जगदीश जी के बारे में और अधिक विस्तार से जानने के लिये आप उनके ब्लाग के लेख देखिये और उनका घोषणापत्र भी देखिये।
बिहारी बाबू कहिन दिल्ली निवासी प्रियरंजन झा अपने बारे में परिचय देते हुये लिखते हैं-कलम के सिपाही. कर्मक्षेत्र दिल्ली. फिलहाल जिंदगी से सीखते हुए आगे बढ़ने की कोशिश जारी है… । इस युवा, खूबसूरत (फोटो यही कहती है भाई) कलम के सिपाही के सिपाही के लेख सम-सामयिक घटनाऒं पर चुटकी लेते हुये तीखे व्यंग्य करते हैं। एक-एक लेख पठनीय, संग्रहणीय होता है। लेख पढ़कर कोई भी संवेदनशील व्यक्ति सोचने पर मजबूर हो जाता है। मैं प्रियरंजन से व्यक्तिगत रूप से परिचित नहीं हूं लेकिन प्रियरंजन शशि सिंह और जीतेंन्द्र के सम्पर्क में हैं जैसा कि उनकी इस पोस्ट से पता चलता है। प्रियरंजन शायद टिप्पणी माया के जाल में फंसने से बचते हैं। न खुद किसी के ब्लाग पर टिप्पणी करते हैं न किसी की चिंता कि कोई आये और टिपियाये- न ऊधो से लेना न माधो को देना। लेकिन इससे उनके ब्लाग पोस्ट की गुणवत्ता पर कोई फरक नहीं पड़ता। राजनैतिक, सामाजिक चेतना से संपन्न अगर कुछ पोस्ट छांटने का काम करना हो तो वो खोज बिना बिहारी बाबू का ब्लाग देखे मुकम्मल नहीं होगी।
प्रियरंजन ने अपनी पोस्ट में अपनी बात कही है। आप वहां देखें और उनके ब्लाग की अन्य पोस्टें देखकर लाभान्वित हों।
जो कह न सके: ‘जो कह न सके’ नाम से नियमित रूप से अपनी बात कहते रहने वाले सुनील दीपकजी इस नामांकन सूची में सबसे अधिक अनुभवी (उम्रदराज कहना ठीक नहीं लगेगा न!)चिट्ठाकार हैं। विषय विविधता के हिसाब से उनके जैसा वैविध्य शायद ही किसी और चिट्ठाकार के लेखों में हो। घर, परिवार, समाज, देश, विदेश, फिल्में, पर्यटन,साहित्य, संस्कृति,चिकित्सा, बचपन,जवानी, बुढ़ापा सब कुछ उनके लेखन के विषय रहे हैं। उन्होंने यौन संबंधों पर बेहद सतर्क सधी हुयी भाषा में अपने विचार व्यक्त किये हैं। विकलांगों के यौन जीवन से संबंधित उनका अध्ययन अपने-आप में अनूठा है। विकलांगों के जीवन से संबंधित अन्य विविध पहलुऒं के बारे में भी वे अपने विचार प्रकट करते रहते हैं।
उनके चिट्ठे के लोकप्रिय/ बेहद पढ़ा जाने वाला होने के कारणों में एक कारण यह भी है कि उनकी पोस्ट वहीं खतम हो जाती है जब पाठक सोचता है कि काश कुछ और लिखा होता। अपनी राय थोपने के बजाय वे निष्पक्ष तरीके से अपनी बात रखने का प्रयास करते हैं।
निरंतर का जब फिर से प्रकाशन शुरू हुआ तब से वे इससे जुड़े हैं और इसमें नियमित योगदान करते रहते हैं। सुनील दीपक जी को अगर आज कोई सवाल पूछना हो तो वे यह जरूर पूछेंगे -क्या भाई, यहां कोई महिला ब्लागर क्यों नहीं नामांकित हुयी? ऐसा ही उन्होंने निरंतर के संपादक मंडल में शामिल होते ही पूछा था तब प्रत्यक्षाजी को शामिल करके कोरम पूरा हुआ। सुनील दीपक जी का निरंतर में छपा परिचय यहां है।
सुनील जी के ब्लाग की खासियत उनके बहुरंगी/ खूबसूरत चित्र हुआ करते हैं। प्रकृति और मानव उनके कैमरे के पसंदीदा विषय रहे हैं। अब भी उनके ब्लाग पर चित्र रहते हैं। लेकिन नियमित रूप से अपने चित्रों को पोस्ट करने के लिये उन्होंने छायाचित्रकार नाम से अलग फोटोब्लाग बनाया है।
एन.डी. टी.वी. वालों ने दो हफ्ते पहले जब अपने चैनेल पर अपने ‘गुडमार्निंग इंडिया’ कार्यक्रम में हिंदी ब्लागों के बारे में जानकारी देना शुरू किया तो सुनील दीपक के ब्लाग जो कह न सके का जिक्र किया।
मेरा पन्ना: अगर किसी को हिंदी ब्लाग जगत की धड़कन का अंदाजा लेना हो तो उसके लिये जीतेंन्द्र से संपर्क सबसे मुफ़ीद उपाय है। करीब ढाई साल से ब्लाग जगत से जुड़े जीतेंद्र हिंदी ब्लाग जगत की लगभग हर उल्लेखनीय घटना से संबद्ध रहे हैं फिर चाहे वह बुनो कहानी हो या ब्लागनाद , अनुगूंज हो या परिचर्चा, निरंतर हो या चिट्ठा चर्चा, अक्षरग्राम हो या नारद, रामचरित मानस हो या उर्दू-हिंदी शब्दकोश। सुख हो या दुख। दोस्ती हो या लड़ाई ऐसा कोई घटनाक्रम अभी तक हिंदी ब्लागजगत में नहीं हुआ जिससे जीतेंद्र अपनी ब्लागिंग शुरू करने से लेकर जुड़े न रहे हों। मतलब हर फटे में इनकी टांग अड़ी है।
जीतेन्द्र की बोलती हुयी लेखन शैली के कारण उनका लिखा हुआ पढ़ते समय ऐसा आभास होता है कि उनके आमने-सामने बैठकर गुफ्तगू कर रहे हों। अपने शुरुआती दिनों में अपने मोहल्ले के किस्से सुनाकर जीतेंद्र ने तमाम लोगों को उनके बचपन की शरारतें याद दिला दीं। उनके पप्पू, स्वामी, मिर्जा जैसे पात्र लोगों
को अपने पात्र लगते हैं। शुरुआत में क्रिकेट और राजनीति पर जीतेंन्द्र ने काफ़ी लिखा। फिर तमाम शायरों के उम्दा कलामों से लोगों को परिचित कराया। सिंधी ब्लाग, फोटो ब्लाग, भारत यात्रा ब्लाग आदि तमाम ब्लाग भी जीतेंन्द्र ने शुरू किये। जुगाड़ी लिंक के माध्यम से जीतेंन्द्र उपयोगी तकनीकी साइटों से पाठकों को परिचित कराते रहते हैं।
नारद के मुख्य सूत्रधार होने के नाते जीतेंन्द्र तमाम नये ब्लागरों की तमाम तकनीकी समस्यायों को सुलझाते रहते हैं। अधिकांश हिंदी ब्लागरों से जीतेंन्द्र व्यक्तिगत रूप से जुड़े हुये हैं।
नौकरी की वजह से व्यस्यतता और समय की कमी के कारण जीतेंन्द्र अक्सर अपने खास अंदाज में लंबे-लंबे लेख अब लंबे अंतराल के बाद लिखने लगे हैं। लेकिन जब लिखते हैं तो इंतजार की कमी पूरी कर देते हैं।
कुल मिलाकर जीतेंन्द्र अपने लेखन, अनौपचारिक व्यवहार और तकनीकी गतिविधियों के संयोजन के कारण आज की हिंदी ब्लागिंग की दुनिया में एक अपरिहार्य उपस्थिति हैं। हिंदी ब्लाग जगत में सबसे अधिक सहजता से और मौज लेते हुये मैंने किसी के बारे में अगर लिखा है तो वे जीतेंद्र हैं! उनके बारे में मेरे लिखे लेख यहां, यहां और यहां हैं।
रवि रतलामी:हिंदी ब्लागिंग को बढ़ावा देने वाली किसी एक घटना का अगर जिक्र करना हो तो मुझे लगता है कि अभिव्यक्ति में छपा ब्लागिंग से सम्बन्धित रवि रतलामी का यह लेख इस चुनाव में सबसे आगे होगा। हिंदी ब्लागिंग की शुरुआती दौर से अब तक अगर सबसे ज्यादा लेखन करने वाले व्यक्ति का चुनाव करना हो तो उनमें निर्विवाद रूप से रवि भाई सबसे आगे होंगे। अपने ब्लाग, अभिव्यक्ति, प्रभासाक्षी पर नियमित लेखन के अलावा रवि रतलामी रचनाकार पर भी उन लेखकों की रचनायें नियमित रूप से उपलब्ध कराते रहे हैं जिनकी पहुंच नेट तक नहीं है।
निरंतर के संपाद्क मंडल के सक्रिय सदस्य होने के अलावा रवि सोमवार को नितमित अपनी व्यंजल मयी चिट्ठाचर्चा भी करते हैं।
मुक्त सोर्स प्रोग्राम लिनिक्स में रवि रतलामी ने उल्लेखनीय कार्य हुये अनेकानेक उपलब्धियां हासिल कीं। गतवर्ष डा.जगदीश व्योम के साथ सहारा टीवी चैनेल पर रवि रतलामी का साक्षात्कार प्रसारित हुआ तो अडो़स-पड़ोस के लोग उनको कौतूहल से कई दिन देखते रहे।
अपने ब्लाग पर काफ़ी दिन लिखने के बाद रवि रतलामी ने कुछ दिन हिंदिनी पर अपना लेखन जारी रखा। फिर वे व्यापारिक संभावनाऒं की तलाश में वापस
अपने ब्लाग स्पाट पर चले गये। रवि रतलामी ने सामाजिक, तकनीकी, व्यंग्यपरक, राजनीतिक लेख लिखे हैं। अभिव्यक्ति पर अपने ब्लाग पर उनके लेख तकनीकी लेखों के मानक लेख हैं। मुझे लगता है कि जितने सार्थक तकनीकी लेख रवि रतलामी ने लिखे होंगे उतने शायद किसी और ब्लागर ने हिंदी में नहीं लिखें होंगे। अपने कार्टून कोने देशी टून के माध्यम से अब वे कार्टून के क्षेत्र में भी सक्रिय हो गये हैं। व्यंजल के तो वे जनक माने जाते हैं।
मूलत:स्वास्थ्य संबंधी कारणों से अपनी मध्य प्रदेश बिजली विभाग की नौकरी स्वैच्छिक सेवा निवृति के उपरान्त रवि रतलामीआजकल रतलाम में स्वतंत्र लेखन में संलग्न हैं। रवि रतलामी का परिचय आपको यहां और यहां मिल सकता है। उनका जन्मदिवस पर लिया गया साक्षात्कार यहां पर है!
सृजन शिल्पी:अपने गम्भीर लेखन और विचारों से हिंदी ब्लाग जगत को समृद्ध करने वाले सृजन शिल्पी दिल्ली के रहने वाले हैं। अपने शोध परक लेखों से, कतिपय विरोध के बावजूद, अविचलित रहकर अपनी बात तार्किक ढंग से कहने का सृजन शिल्पी पूरी गंभीरता से प्रयास करते रहते हैं। साहित्य से जुड़े व्यक्तियों से संबंधित नामी लेखकों के साहित्यिक अवदानों से वे हिंदी चिट्ठाकारों से परिचित कराते रहे। सम-सामयिक सामाजिक राजनैतिक घटनाऒं पर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं। हाल के दिनों मेंअ आरक्षण समस्या, गांधी जी के महत्व और नेताजी से संबंधित उनके लेखों ने हिंदी ब्लाग जगत में पर्याप्त हलचल पैदा की। साहित्यिक प्रतिभाऒं में नागार्जुन,शमशेर आदि महान कवियों/लेखको से हिंदी ब्लाग जगत के पाठ्कों से परिचित कराया।
समीरलाल: हिंदी ब्लाग जगत में कुंडलिया किंग, लालाजी, मुंडली नरेश, समीरभाई जैसे तमाम संबोधनों से नवाजे जाने वाले समीरजी अपने लिये सबसे मुफ़ीद उपमा स्वामी समीरा नंद की पाते हैं। लगभग एक साल पहले लिखना लिखना शुरू करने वाले समीरलाल की सक्रियता देख कर ऐसा लगता है कि वे सालों से ब्लागिंग करते आ रहे हों। उनके गुदगुदाने वाले लेखों का पाठकों को हमेशा इंतजार रहता है। वे अपने लेखन पर सबसे अधिक टिप्पणियां पाने वाले ब्लागर हैं। नये से नये ब्लागर का निरंतर वे उत्साह बढ़ाते रहते हैं।
अपने जीवन का अधिकांश भाग मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी जबलपुर में बिताने वाले समीरलाल के घरवाले मूलत: पूर्वी उत्तरप्रदेश के रहने वाले हैं। फिलहाल कनाडा में रहकर समीरजी चार्टेड एकाउटेंट के काम से जुड़े हैं।
नियमित लेखन से अपने पाठकों का दिल बहलाते-बहलाते समीरलाल कब दिल को छू जाने वाली बात कह जायें, कहना मुश्किल है। बेहद संवेदनशील समीरजी किसी का दिल दुखाने से बचने का भरसक प्रयास करते हैं
जिस दिन समीरजी का चिट्ठाचर्चा करने का दिन होता है उसके पहले लोग अपने लेख पोस्ट कर देते हैं ताकि समीरजी उनकी कायदे चर्चा कर दे। कल आरकुट में देखा तो उनके प्रशंसकों का लंबा चौड़ा संसार है।
अपनी तमाम व्यस्त गतिविधियों के बावजूद समीरजी नियमित लेखन करते रहते हैं। तरकश में भी उनके लेख बराबर छपते रहते हैं। तरकश पर पिछले वर्ष के अंत में हुये चुनावों में उनको स्वर्ण कलम विजेता के पुरस्कार से नवाजा गया था। उस चुनाव में फर्जी वोटिंग से बचाने के लिये और सही में गुणवत्ता पूर्ण चिट्ठे को चुने जाने के लिये समीरजी ने सुझाव दिया था कि केवल ब्लागर्स ही वोटिंग करें। यहां इंडीब्लागीस में शायद ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है लेकिन समीरजी का प्रसंशक समुदाय दूर-दूर तक फैला है इसलिये उनको चिंता करने की कोई समस्या नहीं है।
बेहद लोकप्रिय चिट्ठाकार समीरलाल के बारे में और अधिक जानकारी के लिये उनकी निरंतर में छपा परिचय भी देख लीजिये। समीरलाल जी के चुनाव प्रचार से संबंधित लेख यहां और यहां देख सकते हैं।
फुरसतिया:नामांकित आठ ब्लागों में से एक फुरसतिया भी है। अगर आप यहां मेरे लेख पढ़ते रहे हैं तो आप बखूबी मुझसे परिचित होंगे। मेरा ब्लाग ही मेरा परिचय है।
मैंने यथासम्भव निष्पक्षता/निर्लिप्तता से अपने सारे साथियों के बारे में आपको बता दिया। आपसे अनुरोध है कि आप अपने कीमती समय से कुछ मिनट निकालकर इन्डीब्लागीस की चुनाव प्रक्रिया में भाग लें।
चुनाव के लिये आप यहां पर जाकर अपना नाम और ई-मेल पता लिख कर भेजें। इसके बाद आपके ई-मेल पर आपको वोट देने के लिये जरूरी लिंक भेजा जायेगा। आप उससे वोटिंग कर सकते हैं। इसमें एक ब्लाग का यू.आर.एल. लिखने की जगह है। उसमें आप अपने ब्लाग का या किसी के भी ब्लाग का नाम लिख सकते हैं या खाली भी छोड़ सकते हैं।
आपसे अनुरोध है आप अपने वोटिंग के अधिकार का प्रयोग करें और हिंदी ब्लागिंग के लिये अधिक से अधिक से वोट करें। खुद करें और अपने मित्रों से करवायें। इतने सारे हिंदी पाठ्कों के रहते अगर वोटिंग संख्या चार अंकों तक भी न पहुंचे तो बड़ी अखरने वाली बात है। खुड वोट दीजिये दोस्तों को भी वोटिंग के लिये उकसाइये।
यह सारी जानकारी देने के पीछे मेरा उद्देश्य अपना प्रचार करना नहीं है न ही अपने लिये वोट मांगना। मेरी केवल यह इच्छा है कि आप लोग उदासीन न रहें। जिस भी ब्लागर को आप चाहते हैं उसे अपना मत दें। कम से कम ऐसा तो न हो कि चार और के हिंदी ब्लागर्स की दुनिया के लोगों के मत उनकी संख्या से भी कम हों।
वैसे पाठकों के लिये यह उपलब्धि होती है कि इंडीब्लागीस में जीते कोई भी आप कुछ बेहतरीन ब्लागों के बारे में जान जाते हैं। वहीं लेखकों को नया पाठक वर्ग मिलता है। यहां तक की उपलब्धि लोगों को मिल गयी है। इसके अलावा जो कुछ है वह आपकी अतिरिक्त दौड़-धूप और पसीने से मिलता है। जितना दौड़-धूप करेंगे उतना आगे जायेंगे, जितना पसीना बहायेंगे उतना स्वाद मिलेगा।
मेरा अनुरोध है कि फोटो ब्लाग वर्ग के लिये आप अपना वोट सुनील दीपक के ब्लाग छायाचित्रकार को दें। हिंदी ब्लागिंग के लिये आप जिसको ठीक समझते हों उसको अपना मत दें। वैसे मेरे अकेले के वोट से अगर चुनाव होता तो मैं अपना वोट रवि रतलामी या सुनील दीपक में से किसी एक को देता। कारण मैं ऊपर बता चुका हूं। नामांकित लोगों में रवि रतलामी हिंदी ब्लाग जगत में अपने लेखन और अब तक के योगदान के लिये तथा सुनील दीपक अपने विविधता पूर्ण एवं जानकारी प्रदान करने वाले लेखन के लिये मेरी पसंद हैं।
एक बात और बता दें। अगर आप सही में अपने प्रिय चिट्ठाकार को जिताना चाहते हैं तो यह भी ध्यान में रखें कि वह चुनाव जीतते ही लिखना कम कर सकता है या बंद कर सकता है। अभी तक का हिंदी ब्लागिंग का यही इतिहास रहा है। आलोक, अतुल, शशिसिंह इसके जीते-जागते उदाहरण हैं। तो सोच-समझकर वोट दीजियेगा। लेकिन यह भी हो सकता है कि जिसे आप जितायें वह पुराने मिथक को तोड़ दे और आपके विश्वास की रक्षा करे।
तो आप प्रजातंत्र के नागरिक होने का सुबूत दीजिये और अपने पसंदीदा ब्लाग के लिये इंडीब्लागीस में मतदान दीजिये। फिर मत कहियेगा बताया नहीं!
Posted in बस यूं ही | 21 Responses
“हुईये वही जो राम रची राखा” …यही सोच कर बैठा हूँ.
चयन हमें करने में शायद तब कुछ आसानी भी होती
अभी पड़ा हूँ पशोपेश में किसको चुन लूँ किसे नकारूँ
सभी नाम इंडीब्लाग में , चुने हुए हैं माणिक- मोती
@ राकेशजी, जरूरी लिंक जोड़ दिये हैं!
कहा जाता है कि अकेला चना भाड़ नही फोडता है पर, जब कई अकेले चने मिलते है तो भाड़ की मजबूरी हो जाती है कि अकेले चने को फोडना ही पड़ेगा।
अवार्ड चाहे जिसे भी मिले, जीत हिन्दी की होनी है। इसलिए भाईयों और शुकुल की बहनो, वोट करो, बढ चढ कर करो। एक से एक बढकर धुरन्धर है (हम खुद को नही गिन रहे) मैदान मे, तो भई हो जाओ शुरु, समय है कम, काम बहुत ज्यादा।
पर अफसोस अफलातून जी परिचय के बिना ही वोट कर आये
जीतू भई ने सही कहा, कोइ भी जीते, हिंदी की जीत होगी।
आपने सही कहा है. तो मित्रों, यदि आप विज्ञापनों से अटे पड़े मेरे लिखे से बोर हो चुके हैं तो मुझे अवश्य वोट दें. जीतकर मैं भी आपको बोर करना बंद कर दूंगा
वैसे, इंडीब्लॉगीज़ में हिन्दी वर्ग के लिए सर्वप्रथम नामांकन मैंने ही किया था और वह फ़ुरसतिया का चिट्ठा था. तो आग्रह है कि मेरे हिस्से के वोट भी फ़ुरसतिया को दिए जाएँ – माना यह जाए कि मैं उनके समर्थन में बैठ गया. और रहा सवाल जीतने के बाद उनके न लिखने का – तो ऐसी कोई संभावना नहीं है. हम हैं ना, एक अनुरोध पर वे चिट्ठापोस्टों की झड़ी लेकर आ जाएंगे.
फिलहाल हमारे सामने महान संकट आन खड़ा हुआ है कि किसको वोट ‘न’ दें।
वाह गुरु जी अपनी पसंद भी बता दी और कह भी रहें हैं कि अपनी मर्जी से वोट दो। अब चुनाव का समय चल ही रहा है तो जरा वोटरों का भी ख्याल (टिप्पणियाँ पढ़ें) करो। शुरुआत हमारी आज की पोस्ट से ही कर दीजिए।
हिन्दी में व्यावसायिक चिट्ठाकारी का वर्तमान और भविष्य
@जीतेंन्द्र, हमपर बेवफाई का इल्जाम लगाऒगे तो चैन से सो नहीं पाऒगे फिर कहोगे सोने के उपाय बताऒ!
@अफलातूनजी, यह अच्छा है कि आपने वोट डाल दिया। वैसे यह जानकारी उन लोगों के लिये खासतौर पर है जिन लोगों ने अभी तक वोट नहीं डाले हैं। आप अभी भी लोगों को बोलिये। मैंने खुद अभी तक अपना वोट नहीं डाला।
@जगदीश भाटिया, अफलातूनजी क्या पता आपको ही वोट देकर आये हों।
@रवि भाई, हमारे समर्थन में बैठिये मत। खड़े रहिये कुछ देर और एक ही दिन की तो और बात है। यह तो मैंने अपनी राय बताई। कोई हमारे-आपके कहने से थोड़े ही वोट करेगा।
@श्रीश पंडितजी, जैसा मैंने कहा कि मेरा जोर वोटिंग पर है। ज्यादा से ज्यादा लोग वोट करें। मैंने अपनी राय बताई। आप अपने मन के हिसाब से वोट दें। आपकी पोस्ट देखी, पसंद आई और मैंने तारीफ़ भी की।
@हिंदी ब्लागर, हां वोटिंग का मामला कुछ कठिन है। मेरे पास ही वोटिंग के लिये कल ही लिंक आ पाई जब मैंने देबाशीष से अनुरोध किया अलग से।
बिल्कुल कुछ ऐसा ही कहने का मन किया जब अपने बारे में लिखे शब्द पढ़े, और मन गदगद हो गया.:-)
बहुत दिनों से काम में व्यस्त चल रहा हूँ और कुछ भी लिखने पढ़ने का समय बहुत कठिनाई से निकाल पाता हूँ, कुछ भी चिट्ठे पढ़े जाने कितने दिन हो गये थे. जब यह लेख पढ़ा तो लगा कि मुझे इंडीब्लोगीज़ के सारे इनाम मिल गये हों. धन्यवाद अनूप. मेरे बस में किसी को कोई वरदान देना नहीं है पर अगर दे सकता तो अवश्य तुम्हें ही देता!
@ अनिल सिन्हाजी, आपका अधिकार आपके द्वारा प्रयोग किये जाने की बधाई!
@सुनीलदीपकजी, आपका गदगदाय मान मन ही मेरे लिये आपका आशीर्वाद है।
@शशि सिंह,ये भाईचारे की भावना भी एक बड़ा कारण है जो मैं लगातार हिंदी ब्लागिंग से जुड़ा हूं।
@रचनाजी,आपके विचार का शुक्रिया कि हम सब जीते हैं। इसी बहाने मैंने सबके परिचय करा दिये।
@संजय बेंगाणी, धन्यवाद कि आपको परिचय अच्छे लगे।
@प्रियंकर, आपके वोट और समर्थन का शुक्रिया!