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rowse: Home / पुरालेख / भारत एक मीटिंग प्रधान देश है
भारत एक मीटिंग प्रधान देश है.एक आवाज सहसा उछली। अनुगूंज फैल गयी दिगदिगान्तर में दस आवाजें सहसा झपट पड़ीं। आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? जवाबी आवाज मिमिंयायी- क्योंकि हम हमेशा मींटिंग करते रहते हैं। आवाजें तेज हो गयीं-तो क्या हुआ?हम मींटिंग करते रहते हैं पर दुनिया जानती है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है।
इस हल्ले के शिकार हुये तिवारी जी। उनकी नींद उचट गयी। बोले-क्या हल्ला मचा रहे हो? अजब आफत है ससुरी। घर में लौंडे नहीं सोने देते । यहां आफिस में जरा नींद लगी तो तुम लोग महाभारत मचाये हो। मामला अपने आप तिवारी जी की अदालत में पहुंच गया। लोग बोले -तिवारी जी, ये बात ही ऐसी कर रहे हैं। कहते हैं भारत एक मीटिंग प्रधान देश है क्योंकि हम लोग दिन भर मींटिंग करते रहते हैं। कल को ये कहेंगे भारत जनसंख्या प्रधान देश है। परसों ये बोलेंगे घोटाला प्रधान देश है। जबकि यह सबको ,यहां तक कि आप तक को ,पता है कि भारत एक कृषिप्रधान देश है।
तिवारी जी ने पूंछा -काहे भाई रामदयाल ई का ऊट-पटांग बोलते रहते हो नेता लोग कि तरह। का अब तुम ई कहोगे कि हम अइसा नहीं बोला या ई बोलोगे कि हमारे कहने का मतलब गलत लगाया गया। रामदयाल की चुप्पी ने तिवारी को चौकाया। इस बीच चायपान से उनकी चेतना जाग गयी थी । रामदयाल की चुप्पी से उनकी शरणागतवत्सलता ने भी कार्यभार ग्रहण किया वे तत्पर हो गये रामदयाल की रक्षा के लिये।
उन्होने पूंछा–आप लोग में से जितने लोग खेती करते हों वो हाथ उठा दें। कोई हाथ नहीं उठा। फिर तिवारी जी ने पूंछा-अब वो लोग हाथ ऊपर करें जो अभी भी जनसंख्या वृद्घि में लगे हैं। सब निगाहें झुक गयीं। यही घोटाले के सवाल पर भी हुआ। अब तिवारी जी उवाचे-अब वो लोग हाथ उठायें जो लोग मींटिंग करते हैं। सभी लोगों ने अपने हाथ के साथ खुद को भी खड़ा कर लिया। अब तिवारी जी ने पूंछा-भाई तुम लोग जो करते हो वही तो ये रामदयाल कह रहा है। खेती तुम करते नहीं। बच्चा पैदा करने लायक रहे नहीं। घोटाला लायक अकल ,बेशरमी है नहीं। ले देके मींटिंग कर सकते हो। करते हो। वही तो कह रहा है रामदयालवा। तो का गलत कह रहा है?काहे उस पर चढ़ाई कर रहे हो?
अब मिमियाने की बारी बहुमत की थी। लोग बोले सब सही कह रहे हैं आप। पर जो हम आज तक पढ़ते आये उसे कैसे नकार दें? तिवारी जी को भी बहुमत के विश्वास को ठेस पहुंचाना अनुचित लगा। बोले-अच्छा तो भाई बीच का रास्ता निकाला जाये। तय हुआ–भारत एक कृषिप्रधान देश है जहां मीटिंगों की खेती होती है. दोनो पक्ष संतुष्ट होकर चाय की दुकान की तरफ गम्यमान हुये।
चाय की दुकान पर मामला सौहार्दपूर्ण हो गया। तय हुआ कि कृषि की महिमा पर तो बहुत कुछ कहा जा चुका है। कुछ मींटिंग के बारे में भी लिखा जाये। किसी ने यह भी उछाला सारा मामला यूनीकोडित होना चाहिये। ताकि किसी को टोकने का मौका न मिले। पता नहीं कितना लिखा गया इसके बाद । पर जो कुछ जानकारी कुछ खास लोगों से मिली वह यहां दी जा रही है।
जब एक से अधिक जीवधारी किसी विषय पर विचार करने को इकट्ठा होते है तो इस प्रकिया को मींटिंग कहते हैं। यहां जीवधारी से तात्पर्य फिलहाल दोपायों से है(चौपाये भी अपने को जीवधारी कहलाने को आतुर, आंदोलनरत है) । जब किसी को कुछ समझ नहीं आता तो तड़ से मींटिंग बुला लेता है। कुछ लोग उल्टा भी करते हैं। जब उनको कुछ समझ आ जाती है तो वे अपनी समझ का प्रसाद बांटने के लिये मींटिंग बुलाते हैं। पर ऐसे लोगों के साथ अक्सर दो समस्यायें आती हैं:-
1.कभी कुछ न समझ आने की हालत में ये लोग बिना मींटिंग के ही जीवन गुजार देते हैं।
2.जिस समझ के बलबूते ये मींटिंग बुलाते हैं वह समझ ऐन टाइम पर छलावा साबित होती है। ज्ञान का बल्ब फ्यूज हो जाता है। जिसे रस्सी समझा था वह सांप निकलता है।
लिहाजा सुरक्षा के हिसाब से कुछ समझ न आने पर मींटिंग बुलाने का तरीका ही चलन में है।
मींटिंग का फायदा लोग बताते हैं कि विचार विमर्श से मतभेद दूर हो जाते हैं। लोगों में सहयोग की भावना जाग्रत होती है। नयी समझ पैदा होती है। कुछ जानकार यह भी कहते हैं– मींटिंग से लोगों में मतभेद पैदा होते हैं। कंधे से कंधा मिलकर काम करने वाले पंजा लड़ाने लगते हैं। ६३ के आंकड़े ३६ में उलट जाते हैं।
मींटिंग विरोधी लोग हिकारत से कहते हैं–जो लोग किसी लायक नहीं, जो लोग कुछ नहीं करते वे केवल मींटिग करते हैं। जबकि मींटिंग समर्थक समुदाय के लोग (‘हे भगवान इन्हें पता नहीं ये क्या कह रहे हैं ‘की उदार भावना धारण करके करके)मानते हैं जीवन में मींटिंग न की तो क्या किया? मींटिंग के बिना जीवन उसी तरह कोई पुछवैया नहीं है जिस तरह बिना घपले के स्कोप की सरकारी योजना को कोई हाथ नहीं लगाता। ऐसे ही एक मींटिंगवीर को दिल का दौरा पड़ा। डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिये। मींटिंगवीर के मित्र बैठ गये। उनके कान में फुसफुसाया -जल्दी चलो साहब मींटिंग में बुला रहे हैं। वो उठ खड़े हुये। चल दिये वीरतापूर्वक मींटिंग करने। यमदूत बैरंग लौट गये। मींटिंग उनकी सावित्री साबित हुयी। खींच लायी सत्यवान को (उनको)मौत के मुंह से.
झणभंगुर मींटिंगें वे होती हैं जिनमें आम सहमति से तुरत-फुरत निर्णय हो जाते हैं। ये आम सहमतियां पूर्वनिर्धारित होती हैं। इन अल्पायु, झणभंगुर मींटिंगों का हाल कुछ-कुछ वैसा ही होता है:-
लेत ,चढावत,खैंचत गाढ़े,काहु न लखा देखि सब ठाढ़े.
(राम ने धनुष लिया,चढ़ाया व खींच दिया कब किया को जान न पाया)
कालजयी मींटिंगों में लोग धुंआधार बहस करते हैं। दिनों, हफ्तों, महीनों यथास्थिति बनी रहती है। काल ठहर जाता है(कालान्तर में सो जाता है) और उजबक की तरह सुनता रहता है-तर्क,कुतर्क.कार्यवाही नोट होती रहती है-हर्फ-ब-हर्फ।
चंचला मींटिंगें नखरीली होती हैं। इनमें मींटिंग के विषय को छोड़कर दुनिया भर की बातें होती हैं। जहां किसी ने विषय को पटरी पर लाने की कोशिस की मींटिंग का समय समाप्त हो जाता है। लोग अगली मींटिंग के लिये लपकते हैं। उनकी रनिंग बिटवीन द मींटिंग देख कर कैफ की रनिंग बिटवीन द विकेट याद आती है।
हर काम सोचसमझ कर आमसहमति से काम करने वाले बिना समझे बूझे रोज मींटिंग करते हैं। शुरुआत वहीं से जहां से कल की थी। खात्मा वहीं जहां कल किया था। बीच का रास्ता वही। सब कुछ वही। केवल कैलेंडर की तारीख बदल गयी। ऐसी ही एक मींटिंग का एक हफ्ते का ब्योरा साहब को दिखाया गया। साहब उखड़ गये हत्थे से। बोले–एक ही बात सात बार लिख लाये। इतना कागज बरबाद किया। लेखक उवाचा–साहब जब आप सातों दिन एक ही बात करोगे तो हम विवरण कैसे अलग लिखें? रही बरवादी तो कागज तो केवल पांच रुपये का बरवाद हुआ। वह नुकसान तो भरा जा सकता है। पर जो समय नुकसान होता है रोज एक ही बात अलापने से उसका नुकसान कैसे पूरा होगा। साहब भावुक हो गये । बोले -अब से रोज एक ही बातें नहीं करूंगा। पर शाम को मींटिंग की शुरुआत,बीच और अंत रोज की ही तरह हुआ।
कुछ बीहड़ मींटिंगबाज होते है। उनका अस्तित्व मींटिंग के लिये,मींटिंग के द्वारा ,मींटिंग के हित में होता है। ऐसे लोग मींटिंग भीरु जीवों को धमकाते हैं:-जादा अंग्रेजी बोलोगे तो रोज शाम की मींटिंग में बैठा देंगे साहब से कह के। सारी स्मार्टनेस हवा हो जायेगी। सारी खेलबकड़ी भूल जाओगे।
संसार में हर जगह कुछ मध्यम मार्गी (आदतन बाई डिफाल्ट)पाये जाते हैं। ऐसे लोग मानते हैं अति हर चीज की बुरी होती है। चाहे वो मींटिंग ही क्यों न हो। ऐसे ही कुछ भावुक लोग करबद्द निवेदनी अंदाज में साहब के पास गये। जान हथेली और दिमाग जेब में रखकर। कोरस में बोले–साहब हम दिन भर मींटिग करते -करते थक जाते हैं। दिन भर कुछ कर नहीं कर पाते । फिर कुछ करने लायक नहीं रहते। हम हर मामले में पिछड़ रहे हैं। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मींटिंगों की संख्या , अवधि कुछ कम की जाये ताकि हम काम पर भी कुछ ध्यान दे सकें।
साहब पसीज गये कामनिष्ठा देखकर लोगों की। बोले–आपका सुझाव अच्छा है। ऐसा करते हैं हम आज ही से रोज शाम की मींटिंग के बाद एक मींटिंग बुला लेते हैं। उसी में सब लोगों के साथ तय कर लेगें। इस विषय पर रोज एक मींटिंग करके मामले को तय कर लेंगे।
साहब के कमरे आकर ही लोग आफिस में जमा हुये । वहीं नारा उछला भारत एक मींटिंग प्रधान देश है.आगे की कथा बताई जा चुकी है।
आप का भी कोई मत है क्या इस बारे में?
मेरी पसन्द
मैं ,
अक्सर,
एक गौरैया के बारे में सोचता हूं,
वह कहाँ रहती है -कुछ पता नहीं।
खैर, कहीं सोच लें,
किसी पिजरें में-
या किसी घोसले में,
कुछ फर्क नहीं पड़ता।
गौरैया ,
अपनी बच्ची के साथ,
दूर-दूर तक फैले आसमान को,
टुकुर-टुकुर ताकती है।
कभी-कभी,
पिंजरे की तीली,
फैलाती,खींचती -
खटखटाती है ।
दाना-पानी के बाद,
चुपचाप सो जाती है -
तनाव ,चिन्ता ,खीझ से मुक्त,
सिर्फ एक थकन भरी नींद।
जब कभी मुनियाँ चिंचिंयाती है,
गौरैया -
उसे अपने आंचल में समेट लेती है,
प्यार से ,दुलार से।
कभी-कभी मुनिया गौरैया से कहती होगी -
अम्मा ये दरवाजा खुला है,
आओ इससे बाहर निकल चलें,
खुले आसमान में जी भर उड़ें।
इस पर गौरैया उसे,
झपटकर डपट देती होगी-
खबरदार, जो ऐसा फिर कभी सोचा,
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।
अनूप शुक्ल
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भारत एक मीटिंग प्रधान देश है
By फ़ुरसतिया on August 12, 2008
मीटिंग
[आज एक नया लेख लिखने का मन था। चिट्ठाचर्चा के चलते नहीं लिख पाया। सो मन किया पुराना ही ठेल दिया जाये। क्या हर्ज है? कुछ है क्या?] भारत एक मीटिंग प्रधान देश है.एक आवाज सहसा उछली। अनुगूंज फैल गयी दिगदिगान्तर में दस आवाजें सहसा झपट पड़ीं। आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? जवाबी आवाज मिमिंयायी- क्योंकि हम हमेशा मींटिंग करते रहते हैं। आवाजें तेज हो गयीं-तो क्या हुआ?हम मींटिंग करते रहते हैं पर दुनिया जानती है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है।
इस हल्ले के शिकार हुये तिवारी जी। उनकी नींद उचट गयी। बोले-क्या हल्ला मचा रहे हो? अजब आफत है ससुरी। घर में लौंडे नहीं सोने देते । यहां आफिस में जरा नींद लगी तो तुम लोग महाभारत मचाये हो। मामला अपने आप तिवारी जी की अदालत में पहुंच गया। लोग बोले -तिवारी जी, ये बात ही ऐसी कर रहे हैं। कहते हैं भारत एक मीटिंग प्रधान देश है क्योंकि हम लोग दिन भर मींटिंग करते रहते हैं। कल को ये कहेंगे भारत जनसंख्या प्रधान देश है। परसों ये बोलेंगे घोटाला प्रधान देश है। जबकि यह सबको ,यहां तक कि आप तक को ,पता है कि भारत एक कृषिप्रधान देश है।
तिवारी जी ने पूंछा -काहे भाई रामदयाल ई का ऊट-पटांग बोलते रहते हो नेता लोग कि तरह। का अब तुम ई कहोगे कि हम अइसा नहीं बोला या ई बोलोगे कि हमारे कहने का मतलब गलत लगाया गया। रामदयाल की चुप्पी ने तिवारी को चौकाया। इस बीच चायपान से उनकी चेतना जाग गयी थी । रामदयाल की चुप्पी से उनकी शरणागतवत्सलता ने भी कार्यभार ग्रहण किया वे तत्पर हो गये रामदयाल की रक्षा के लिये।
उन्होने पूंछा–आप लोग में से जितने लोग खेती करते हों वो हाथ उठा दें। कोई हाथ नहीं उठा। फिर तिवारी जी ने पूंछा-अब वो लोग हाथ ऊपर करें जो अभी भी जनसंख्या वृद्घि में लगे हैं। सब निगाहें झुक गयीं। यही घोटाले के सवाल पर भी हुआ। अब तिवारी जी उवाचे-अब वो लोग हाथ उठायें जो लोग मींटिंग करते हैं। सभी लोगों ने अपने हाथ के साथ खुद को भी खड़ा कर लिया। अब तिवारी जी ने पूंछा-भाई तुम लोग जो करते हो वही तो ये रामदयाल कह रहा है। खेती तुम करते नहीं। बच्चा पैदा करने लायक रहे नहीं। घोटाला लायक अकल ,बेशरमी है नहीं। ले देके मींटिंग कर सकते हो। करते हो। वही तो कह रहा है रामदयालवा। तो का गलत कह रहा है?काहे उस पर चढ़ाई कर रहे हो?
अब मिमियाने की बारी बहुमत की थी। लोग बोले सब सही कह रहे हैं आप। पर जो हम आज तक पढ़ते आये उसे कैसे नकार दें? तिवारी जी को भी बहुमत के विश्वास को ठेस पहुंचाना अनुचित लगा। बोले-अच्छा तो भाई बीच का रास्ता निकाला जाये। तय हुआ–भारत एक कृषिप्रधान देश है जहां मीटिंगों की खेती होती है. दोनो पक्ष संतुष्ट होकर चाय की दुकान की तरफ गम्यमान हुये।
चाय की दुकान पर मामला सौहार्दपूर्ण हो गया। तय हुआ कि कृषि की महिमा पर तो बहुत कुछ कहा जा चुका है। कुछ मींटिंग के बारे में भी लिखा जाये। किसी ने यह भी उछाला सारा मामला यूनीकोडित होना चाहिये। ताकि किसी को टोकने का मौका न मिले। पता नहीं कितना लिखा गया इसके बाद । पर जो कुछ जानकारी कुछ खास लोगों से मिली वह यहां दी जा रही है।
जब एक से अधिक जीवधारी किसी विषय पर विचार करने को इकट्ठा होते है तो इस प्रकिया को मींटिंग कहते हैं। यहां जीवधारी से तात्पर्य फिलहाल दोपायों से है(चौपाये भी अपने को जीवधारी कहलाने को आतुर, आंदोलनरत है) । जब किसी को कुछ समझ नहीं आता तो तड़ से मींटिंग बुला लेता है। कुछ लोग उल्टा भी करते हैं। जब उनको कुछ समझ आ जाती है तो वे अपनी समझ का प्रसाद बांटने के लिये मींटिंग बुलाते हैं। पर ऐसे लोगों के साथ अक्सर दो समस्यायें आती हैं:-
1.कभी कुछ न समझ आने की हालत में ये लोग बिना मींटिंग के ही जीवन गुजार देते हैं।
2.जिस समझ के बलबूते ये मींटिंग बुलाते हैं वह समझ ऐन टाइम पर छलावा साबित होती है। ज्ञान का बल्ब फ्यूज हो जाता है। जिसे रस्सी समझा था वह सांप निकलता है।
लिहाजा सुरक्षा के हिसाब से कुछ समझ न आने पर मींटिंग बुलाने का तरीका ही चलन में है।
मींटिंग का फायदा लोग बताते हैं कि विचार विमर्श से मतभेद दूर हो जाते हैं। लोगों में सहयोग की भावना जाग्रत होती है। नयी समझ पैदा होती है। कुछ जानकार यह भी कहते हैं– मींटिंग से लोगों में मतभेद पैदा होते हैं। कंधे से कंधा मिलकर काम करने वाले पंजा लड़ाने लगते हैं। ६३ के आंकड़े ३६ में उलट जाते हैं।
मींटिंग विरोधी लोग हिकारत से कहते हैं–जो लोग किसी लायक नहीं, जो लोग कुछ नहीं करते वे केवल मींटिग करते हैं। जबकि मींटिंग समर्थक समुदाय के लोग (‘हे भगवान इन्हें पता नहीं ये क्या कह रहे हैं ‘की उदार भावना धारण करके करके)मानते हैं जीवन में मींटिंग न की तो क्या किया? मींटिंग के बिना जीवन उसी तरह कोई पुछवैया नहीं है जिस तरह बिना घपले के स्कोप की सरकारी योजना को कोई हाथ नहीं लगाता। ऐसे ही एक मींटिंगवीर को दिल का दौरा पड़ा। डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिये। मींटिंगवीर के मित्र बैठ गये। उनके कान में फुसफुसाया -जल्दी चलो साहब मींटिंग में बुला रहे हैं। वो उठ खड़े हुये। चल दिये वीरतापूर्वक मींटिंग करने। यमदूत बैरंग लौट गये। मींटिंग उनकी सावित्री साबित हुयी। खींच लायी सत्यवान को (उनको)मौत के मुंह से.
झणभंगुर मींटिंगें वे होती हैं जिनमें आम सहमति से तुरत-फुरत निर्णय हो जाते हैं। ये आम सहमतियां पूर्वनिर्धारित होती हैं। इन अल्पायु, झणभंगुर मींटिंगों का हाल कुछ-कुछ वैसा ही होता है:-
लेत ,चढावत,खैंचत गाढ़े,काहु न लखा देखि सब ठाढ़े.
(राम ने धनुष लिया,चढ़ाया व खींच दिया कब किया को जान न पाया)
कालजयी मींटिंगों में लोग धुंआधार बहस करते हैं। दिनों, हफ्तों, महीनों यथास्थिति बनी रहती है। काल ठहर जाता है(कालान्तर में सो जाता है) और उजबक की तरह सुनता रहता है-तर्क,कुतर्क.कार्यवाही नोट होती रहती है-हर्फ-ब-हर्फ।
चंचला मींटिंगें नखरीली होती हैं। इनमें मींटिंग के विषय को छोड़कर दुनिया भर की बातें होती हैं। जहां किसी ने विषय को पटरी पर लाने की कोशिस की मींटिंग का समय समाप्त हो जाता है। लोग अगली मींटिंग के लिये लपकते हैं। उनकी रनिंग बिटवीन द मींटिंग देख कर कैफ की रनिंग बिटवीन द विकेट याद आती है।
हर काम सोचसमझ कर आमसहमति से काम करने वाले बिना समझे बूझे रोज मींटिंग करते हैं। शुरुआत वहीं से जहां से कल की थी। खात्मा वहीं जहां कल किया था। बीच का रास्ता वही। सब कुछ वही। केवल कैलेंडर की तारीख बदल गयी। ऐसी ही एक मींटिंग का एक हफ्ते का ब्योरा साहब को दिखाया गया। साहब उखड़ गये हत्थे से। बोले–एक ही बात सात बार लिख लाये। इतना कागज बरबाद किया। लेखक उवाचा–साहब जब आप सातों दिन एक ही बात करोगे तो हम विवरण कैसे अलग लिखें? रही बरवादी तो कागज तो केवल पांच रुपये का बरवाद हुआ। वह नुकसान तो भरा जा सकता है। पर जो समय नुकसान होता है रोज एक ही बात अलापने से उसका नुकसान कैसे पूरा होगा। साहब भावुक हो गये । बोले -अब से रोज एक ही बातें नहीं करूंगा। पर शाम को मींटिंग की शुरुआत,बीच और अंत रोज की ही तरह हुआ।
कुछ बीहड़ मींटिंगबाज होते है। उनका अस्तित्व मींटिंग के लिये,मींटिंग के द्वारा ,मींटिंग के हित में होता है। ऐसे लोग मींटिंग भीरु जीवों को धमकाते हैं:-जादा अंग्रेजी बोलोगे तो रोज शाम की मींटिंग में बैठा देंगे साहब से कह के। सारी स्मार्टनेस हवा हो जायेगी। सारी खेलबकड़ी भूल जाओगे।
संसार में हर जगह कुछ मध्यम मार्गी (आदतन बाई डिफाल्ट)पाये जाते हैं। ऐसे लोग मानते हैं अति हर चीज की बुरी होती है। चाहे वो मींटिंग ही क्यों न हो। ऐसे ही कुछ भावुक लोग करबद्द निवेदनी अंदाज में साहब के पास गये। जान हथेली और दिमाग जेब में रखकर। कोरस में बोले–साहब हम दिन भर मींटिग करते -करते थक जाते हैं। दिन भर कुछ कर नहीं कर पाते । फिर कुछ करने लायक नहीं रहते। हम हर मामले में पिछड़ रहे हैं। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मींटिंगों की संख्या , अवधि कुछ कम की जाये ताकि हम काम पर भी कुछ ध्यान दे सकें।
साहब पसीज गये कामनिष्ठा देखकर लोगों की। बोले–आपका सुझाव अच्छा है। ऐसा करते हैं हम आज ही से रोज शाम की मींटिंग के बाद एक मींटिंग बुला लेते हैं। उसी में सब लोगों के साथ तय कर लेगें। इस विषय पर रोज एक मींटिंग करके मामले को तय कर लेंगे।
साहब के कमरे आकर ही लोग आफिस में जमा हुये । वहीं नारा उछला भारत एक मींटिंग प्रधान देश है.आगे की कथा बताई जा चुकी है।
आप का भी कोई मत है क्या इस बारे में?
मेरी पसन्द
मैं ,
अक्सर,
एक गौरैया के बारे में सोचता हूं,
वह कहाँ रहती है -कुछ पता नहीं।
खैर, कहीं सोच लें,
किसी पिजरें में-
या किसी घोसले में,
कुछ फर्क नहीं पड़ता।
गौरैया ,
अपनी बच्ची के साथ,
दूर-दूर तक फैले आसमान को,
टुकुर-टुकुर ताकती है।
कभी-कभी,
पिंजरे की तीली,
फैलाती,खींचती -
खटखटाती है ।
दाना-पानी के बाद,
चुपचाप सो जाती है -
तनाव ,चिन्ता ,खीझ से मुक्त,
सिर्फ एक थकन भरी नींद।
जब कभी मुनियाँ चिंचिंयाती है,
गौरैया -
उसे अपने आंचल में समेट लेती है,
प्यार से ,दुलार से।
कभी-कभी मुनिया गौरैया से कहती होगी -
अम्मा ये दरवाजा खुला है,
आओ इससे बाहर निकल चलें,
खुले आसमान में जी भर उड़ें।
इस पर गौरैया उसे,
झपटकर डपट देती होगी-
खबरदार, जो ऐसा फिर कभी सोचा,
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।
अनूप शुक्ल
सजीव चित्रण, हर दफ़तर की यही कहानी…:)
भारत की व्यवस्था के उपर आपका व्यंग्य फुरसत से बाद में पढूंगा । फिलहाल मैं अपने काम की सीटिंग मे हूं. आप के साथ मिटिंग मे नही । फिर भी सरसरी निगाह से देखने पर आया कि आपका लेख लोगो तक पहुंचे व उनको झकझोरेने वाला है । मै इसे अपनी पत्रिका कृषि वार्ता मे प्रकाशित करने का विचार कर रहां हूं ।
आपका कहना सर्वथा सत्य है कि भिलहाल भारत एक कृषि नहीं अपितु मीटिंग प्रधान देश रह गया है । चाय-पान के ठेलों मे मीटिंग (बगैर सिर-पैर व परिणाम वाला बहस), कर्मचारियों की मीटिंग, अधिकारियों की मीटिंग, राजनेताओं की मीटिंग और तो और संसद मे समस्या सुलझाने के नाम पर गये सांसदो की लेन-देन की मिटिंग …
खैर छोड़ो, मै इस मिटिंग पर और सीटिंग नही कर सकता । बांकी फिर कभी … आपका – जल्दी में … राम शर्मा
※ “… ठेल दिया जाये ? क्या हर्ज है ? कुछ है क्या ? ” ※
क्या अदा है… अरे जब ठेल ही दिया, तो पूछ काहे रहे हो, भाई ?
अपने को समझा रहे हो कि पाठकों को समझ रहे हो ?
पाठक तो मुरीद हैं ही , आपके….सो,
पढ़बे करेंगे, इसमें पूछना क्या ?
रिवीज़न भी तो ज़रूरी है ..
हमने भी कल्लिया !
कविता बहुत बेहतर है लेकिन वो लेख के content से जरा बहुत मेल खाती हो तो ठीक है वरना अपनी पसँद को न ठेलें
और यहाँ कुछ भूमिहीन किसान भी रहते हैं.
neeraj tripathi की हालिया प्रविष्टी..परीक्षाभवन
चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..भ्रष्टाचार और साहित्य