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अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
एक चिट्ठी शिवजी के नाम
परम प्रिय भाई शिवजी,
अत्र कुशलम तत्रास्तु।
दीगर समाचार यह है कि इधर हम छठे पे कमीशन में कित्ते पैसे मिलेंगे, कौन उधार चुकाया जायेगा, कैसे फ़िर से कंगाल हुआ जायेगा ई सब निहायत स्ट्रेटिजिक प्लान बनाने में अरझे हुये थे कि पता चला आप पर जैंटेलमेन की आफ़त आ गिरी। सुना तो ये भी की आपके पर भी निकल आये हैं।
हमने पहले तो सोचा कि हम भी जैंटेलमैनी मुबारक हो कहते बधाई-सधाई टिका दें काहे से कुछ लोग बोले जेंटेलमैंन माने सभ्य आदमी होता है। लेकिन हमारे कुछ खालिस कनपुरिया दोस्त, जिनको ई सब चोचलों की ज्यादा जानकारी रहती है, उई सब कहन लगे कि जेंटेलमैन माने सभ्य आदमी आक्स्फ़ोर्ड डिक्शनरी के हिसाब से होता होगा। कनपुरिया शब्दकोश में इसका कुछ औरे मतलब है। हम पूछा सो क्या है गुरुदेव शीघ्र बतायें जानने की तीव्र इच्छा है।
हमने आदतन एतराज करने का प्रयास किया कहते हुये कि जेंटील इसी जमाने में शुरू हुआ लेकिन जेटेंलमैन तो बहुत दिन पहले से पाये जाते हैं। फ़िर जेटिलमैन और जेटील का जोड़ कैसे हुआ?
इस पर हमको आदमी हो कि पायजामा कहते हुये बड़े प्यार से समझाया गया- अरे भाई जब पहले जैंटेलमैन होते थे तब जेंटील न था। अब जेंटील है जेंटेलमैन नहीं पाये जाते। लेकिन चूंकि दोनों एक ही जैसे लगते हैं इसलिये इनको एक ही दल में रहना पड़ेगा इनको। आखिर अनुशासन भी तो कोई चीज होती है! शब्द कोई मौकापरस्त सांसद तो होते नहीं जो जब मौका मिला पलटी मार गये।
वैसे भी प्रत्यक्षाजी की बात का ज्यादा गम नहीं करना चाहिये। उन्होंने खुद कहा है- फिर साबित हुआ कि पहला इम्प्रेशन हमेशा सही नहीं होता । इसका मतलब है -वे अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने की मंशा रखती हैं। आपको उन पर भरोसा करना चाहिये। आज वे कह रही हैं तो कल पुनर्विचार कर भी देंगी। दुख है तो दुख हरने वाले भी होंगे। वैसे तो आप खुदै पर्याप्त समर्थ हो और बहुत दिन तक ये जेंटेलमैनी बांध के रख न पायेगी आपको। जैसे चिरई बुद्धि नहीं वैसे ही जैंटेलमैन भी न रहेंगे। रहना भी चाहेंगे तो हम आपको बहुत दिन तक जेंटेलमैनी के जंगल में भटकने न देंगे।
बिना सेल टैक्स, खेल टैक्स की एक सौ पचहत्तर रुपये की बोतल के सामने बैठे हुये आप मुस्कराते रहे। आपकी हिम्मत की दाद देता हूं। छा गये गुरु, मान गये आपके जिगरे को। हम जब देबाशीष से मिलने गये पूना और चाय के दाम देखे साठ रुपये तो घबरा गये थे। हम साठ रुपये में बोल गये आप एक सौ पचहत्तर झेल गये। वहां डटे रहे आप धन्य हैं। धन्य है वह ब्लागर डाट काम जिसने आप जैसे वीर ब्लागर को जन्म दिया।
आप लोगों ने कुछ लोगों की तारीफ़ की कुछ को गालियां दीं। अब जो हो गया सो गया लेकिन ज्यादा किसी को गरिया के पंगे लेने से क्या फ़ायदा? यहां मोहल्ले वालों का कोई भरोसा नहीं। कब किस बात पर बखेड़ा खड़ा कर दें। और हमारी तारीफ़ ज्यादा मत किया करें भाई। ये ठीक है लेकिन फ़िर भी क्या एक ही सच बार-बार दोहराना?
आपने फोन ज्ञानजी के हाल-चाल जानने चाहे हैं। ज्ञानजी का अब क्या बतायें? वे आजकल हमसे बड़े खफ़ा और खुश दोनों हैं। खफ़ा और खुश एक साथ कैसे हैं आपको अचरज लग रहा होगा लेकिन सच यही है। बताते हैं।
हुआ यह कि दो दिन पहले ज्ञानजी कानपुर आये थे। स्टेशन से बतियाये तो हमने समीरलाल की वर्षा-पुराण वाली पोस्ट के बारे में जिक्र किया। कहा घर आइये सुनवाते हैं। ज्ञानजी हड़बड़ा के उसे स्टेशनै पर पढ़ लिये। सुने भी। बाद में पता चला कि पोस्ट /पाडकास्ट सुनते ही उनकी तबियत गड़बड़ा गयी और वे चौरी-चौरा से चोरी-चोरी चुपके-चुपके वापस इलाहाबाद निकल लिये।
हमने उनकी तारीफ़ करते हुये कहा भी हमने कहा -आप तबियत बहलाने के लिये ब्लागिंग करिये, कुछ पढ़िये। लेकिन ज्ञानजी की नाराजगी बरकरार थी। बोले – कम्प्यूटर तो फोड़ देने का मन करता है। हमें समझ में आ गया कि वे सोच रहे होंगे काश इस कम्प्यूटर की जगह सुकुल का सर होता तो वे अपने इरादे कार्यान्वयित कर डालते। बाद में एक पोस्ट लिख देते- मित्रों, एक पोस्ट भी आदमी को बहकाने के लिये काफ़ी होती है। बहरहाल!
हमने आगे कहा भी- ज्ञानजी आप अगर हमारी तरह सुनते तो आपका यह हाल न होता और जो आपका तीस-चालीस टिप्पणियों का नुकसान प्रतिदिन हो रहा है सो न होता। ज्ञानजी ने पूछा-किस तरह सुनता? हमने बताया- हम जब भी कोई कविता का पाडकास्ट सुनते हैं, खासकर समीरलाल जैसे महान ब्लागर की जिनकी श्रंगार रस की कविता भी पाडकास्टित होकर रौद्र रस से शुरू होती होकर वीर रस की धरती पर ही टहलती है, तो पहले तो अपने लैपटाप का आडियो पहने न्यूनतम पर कर देते हैं फ़िर उसको ’म्यूट’(आवाज बंद) करके तब सुनते हैं। सबसे बढिया इफ़ेक्ट आता है ऐसे में पाडकास्ट का।
लेकिन शिव भाई, अभी तो ज्ञानजी हमसे आधा-खुश हैं आधा नाराज। लेकिन हम यह सोचकर डरे हुये हैं कि जब यह नीलगाय भगाने का कार्यक्रम होगा तो क्या ट्रेन से यात्री न भाग खड़े होंगे? यह बात ज्ञानजी को कैसे बतायें? हम दुविधा में हैं।
लेकिन अभी एक बात पता चली है। अभी नोयडा-फ़ोयडा, मेरठ-सेरठ में जो हड़ताल-फ़ड़ताल में गोली-सोली चली-वली और उसमें कुछ लोग-सोग मारे-वारे गये तो उसमें हाकिम-साकिम लोगों ने सुझाव-फ़ुझाव दिया है कि लोगों के ऊपर गोली-सोली चलाने-वलाने से अच्छा ये रहेगा कि इसी टाइप के पाडकास्ट-वाडकास्ट चालू कर दिये जायें। जहां जनता-फ़नता बबाल-सवाल करे फ़ौरन चला दो इसी तरह के पाडकास्ट-साडकास्ट- भागिये बारिशों का मौसम है।
पब्लिक फ़ूट लेगी। दुबारा आंदोलन-सांदोलन का नाम न लेगी। ये होगा ब्लागिंग का गांधीवाधी उपयोग।
पाडकास्ट की बात चली तो एक सच्चा किस्सा और सुनाते हैं। हमारे बहुत अच्छे मित्र हैं। वे अपना गाना एक दिन रिकार्ड करके हमको सुनाये। हमने कहा- भाई ई तो बहुत भयानक है। बोले -तुमको गाने की समझ नहीं है। भाभीजी को सुनवाओ, वो इसका मर्म समझेंगे। अब बताओ भैया शिवजी भाभीजी के कान में कोई छन्नी लगी है और भयानकता कोई चाय की पत्ती जो उनके कान से निकलकर भयावह आवाज मधुरी बानी हो जायेगी।
हमने साफ़ कह दिया- भाईजी, हम आपकी इज्जत करते हैं क्योंकि उसमें कोई पैसा नहीं लगता। लेकिन हम अपनी पत्नी के जान के दुश्मन भी तो नहीं कि उनको बेबजह इत्ता कष्ट दें। माना कि वे नारी हैं लेकिन हमारी भी तो पत्नी हैं। हम उनको कष्ट देकर अपराध बोध सिवा क्या पायेंगे?
अगले दिन पता लगा वे मोहल्ले भर में अपने गाने की सीडी सब भाभियों सुनवा आये। भाभियां अपना सर पकड़े अपने पतियों के फ़ोड़ रही हैं। हमारी पत्नीजी हमको निहारते हुये कह रही हैं- सच, तुम कित्ते अच्छे हो जी। हमारा कित्ता ख्याल रखते हो।
और तो और जिन माननीय मैथिलीजी के यहां ब्लागवाणी में रजिस्ट्री कराने के लिये दे मेल पे मेल ठेलते हैं नवागंतुक ब्लागर , उन मैथिलीजी की शुरुआत ब्लाग उड़ाका की मानद उपाधि से हुयी। उनकी सफ़ाई के बाद मामला साफ़ हुआ। आज वे सब उपाधियां भारत के अतीत गौरव की तरह भूली-बिसरी चीज हो गयी हैं। ऐसे ही आपका भी ये अस्थायी पुछल्ला आपके साथ ज्यादा दिन नहीं टिकने वाला। समय के साथ सब हवा हो जायेगा।
न वो दिन रहे न ये रहेंगे। आप ज्यादा परेशान न हों। भगवान सबका भला देखता है। देखने के अलावा वो बेचारा कुछ कर भी नहीं सकता। जो करना है वो बहुराष्ट्रीय कम्पनियां कर रही हैं। बाजार कर रहा है। भगवान भी अपने किसी नये एडीशन के आने का इंतजार कर रहा है। आप भी करें।
चिट्ठी पढ़कर फ़ाड़ दीजियेगा। डर लगता है कि न जाने कौन ब्लागर टीप के अपने ब्लाग पर मौलिक पत्र कहकर छाप दे।
बकिया चकाचक है,
आपका शुभाकांक्षी,
फ़ुरसतिया
२. कि ब्लॉगर बन गया जेंटलमैन….
३.छुटके से ब्लागर तेरा दरद न जाने कोय
४. प्रियंकर- एक प्रीतिकर मुलाकात
५. अथ पूना ब्लागर भेंटवार्ता कथा…
६.बारिशों का मौसम है…
७. सबसे बुरा दिन
८. ब्लाग चोरी से बचने के कुछ सुगम उपाय
९.प्रत्यक्षा- जन्मदिन के बहाने बातचीत
जब कई प्रकाशवर्ष दूर से
सूरज भेज देगा
‘लाइट’ का लंबा-चौड़ा बिल
यह अंधेरे और अपरिचय के स्थायी होने का दिन होगा|
पृथ्वी मांग लेगी
अपने नमक का मोल
मौका नहीं देगी
किसी भी गलती को सुधारने का
क्रोध में कांपती हुई कह देगी
जाओ तुम्हारी लीज़ खत्म हुई
यह भारत के भुज बनने का समय होगा|
सबसे बुरा दिन वह होगा
जब नदी लागू कर देगी नया विधान
कि अबसे सभ्यताएं
अनुज्ञापत्र के पश्चात ही विकसित हो सकेंगी
अधिकृत सभ्यता-नियोजक ही
मंजूर करेंगे बसावट और
वैचारिक बुनावट के मानचित्र
यह नवप्रवर्तन की नसबंदी का दिन होगा
भारत और पाकिस्तान के बीच
विवाद का नया विषय होगा
सहस्राब्दियों से बाकी
सिंधु सभ्यता के नगरों को आपूर्त
जल के शुल्क का भुगतान
मुद्रा कोष के संपेरों की बीन पर
फन हिलाएंगी खस्ताहाल बहरी सरकारें
राष्ट्रीय गीतों की धुन तैयार करेंगे
विश्व बैंक के पेशेवर संगीतकार
आर्थिक कीर्तन के कोलाहल की पृष्ठभूमि में
यह बंदरबांट के नियम का अंतरराष्ट्रीयकरण होगा
शास्त्र हर हाल में
आशा की कविता के पक्ष में है
सत्ता और संपादक को सलामी के पश्चात
कवि को सुहाता है करुणा का धंधा
विज्ञापन युग में कविता और ‘कॉपीराइटिंग’ की
गहन अंतर्क्रिया के पश्चात
जन्म लेगी ‘विज्ञ कविता’
यह नई विधा के जन्म पर सोहर गाने का दिन होगा
सबसे बुरा दिन वह होगा
जब जुड़वां भाई
भूल जाएगा मेरा जन्म दिन
यह विश्वग्राम की
नव-नागरिक-निर्माण-परियोजना का अंतिम चरण होगा ।
प्रियंकर
अत्र कुशलम तत्रास्तु।
दीगर समाचार यह है कि इधर हम छठे पे कमीशन में कित्ते पैसे मिलेंगे, कौन उधार चुकाया जायेगा, कैसे फ़िर से कंगाल हुआ जायेगा ई सब निहायत स्ट्रेटिजिक प्लान बनाने में अरझे हुये थे कि पता चला आप पर जैंटेलमेन की आफ़त आ गिरी। सुना तो ये भी की आपके पर भी निकल आये हैं।
हमने पहले तो सोचा कि हम भी जैंटेलमैनी मुबारक हो कहते बधाई-सधाई टिका दें काहे से कुछ लोग बोले जेंटेलमैंन माने सभ्य आदमी होता है। लेकिन हमारे कुछ खालिस कनपुरिया दोस्त, जिनको ई सब चोचलों की ज्यादा जानकारी रहती है, उई सब कहन लगे कि जेंटेलमैन माने सभ्य आदमी आक्स्फ़ोर्ड डिक्शनरी के हिसाब से होता होगा। कनपुरिया शब्दकोश में इसका कुछ औरे मतलब है। हम पूछा सो क्या है गुरुदेव शीघ्र बतायें जानने की तीव्र इच्छा है।
प्रियंकर-शिवजी
गुरुदेव काम भर का नखरा मारकर उवाचे। बोले- जेंटेलमैन शब्द का उद्भव
जेंटील से हुआ है। जेंटील से कपड़े धोये जाते हैं। धोया जायेगा तो फ़ींचा भी
जायेगा। फ़ींचते-फ़ींचते कपड़ा जब लत्ता (अरे वही जिसके लिये कहा गया- तन पर नहीं लत्ता, पान खायें अलबत्ता) बन जाता है उसी को जेंटीलमैन कहा जाता है। वही अपभ्रंश होते-होते जेंटेलमैन बन गया। हमने आदतन एतराज करने का प्रयास किया कहते हुये कि जेंटील इसी जमाने में शुरू हुआ लेकिन जेटेंलमैन तो बहुत दिन पहले से पाये जाते हैं। फ़िर जेटिलमैन और जेटील का जोड़ कैसे हुआ?
इस पर हमको आदमी हो कि पायजामा कहते हुये बड़े प्यार से समझाया गया- अरे भाई जब पहले जैंटेलमैन होते थे तब जेंटील न था। अब जेंटील है जेंटेलमैन नहीं पाये जाते। लेकिन चूंकि दोनों एक ही जैसे लगते हैं इसलिये इनको एक ही दल में रहना पड़ेगा इनको। आखिर अनुशासन भी तो कोई चीज होती है! शब्द कोई मौकापरस्त सांसद तो होते नहीं जो जब मौका मिला पलटी मार गये।
बहुत
दिन तक ये जेंटेलमैनी बांध के रख न पायेगी आपको। जैसे चिरई बुद्धि नहीं
वैसे ही जैंटेलमैन भी न रहेंगे। रहना भी चाहेंगे तो हम आपको बहुत दिन तक
जेंटेलमैनी के जंगल में भटकने न देंगे।
अब आप तो इसे समझ गये लेकिन आप इसे प्रियंकर जी को मत पढ़वाइयेगा। ऊ क्या है कि हम जब भी कोई कायदे की बात कहते हैं तो वे तड़ से पोयटिक जस्टिस की तलवार लेकर भड़ से तर्क/बात की गरदन उड़ा देते हैं। अभी जो प्रियंकरजी किलकिल च पुलकित कोलगेटिया मुस्कान
मारते हुये आपकी तरफ़ निहारते हुये मुस्कराने और खिलखिलाने के पुल पर खड़े
हैं वे ही प्रियंकरजी जहां प्रत्यक्षाजी की जेंटेलमैन वाली बात पर सवाल
उठते देखेंगे वे फ़ौरन से पेश्तर एक लम्बीईईईईईईईईईईई सी टिप्पणी ठेल देंगे
बताते हुये कि अमिधा, लक्षणा,व्यंजना, आनुनासिक-सानुनासिक हिसाब से सुकुल
का एतराज खारिज किया जाता है। माने कि पोयटिक जस्टिस के अखाड़े में सुकुल का
तर्क चारो खाने चित हो गया। भगवान बचाये इन पी.पी.पी.पी.पी. से
(प्रत्यक्षा प्रियंकर पोयटिक पूलिंग पहलवानों ) से।वैसे भी प्रत्यक्षाजी की बात का ज्यादा गम नहीं करना चाहिये। उन्होंने खुद कहा है- फिर साबित हुआ कि पहला इम्प्रेशन हमेशा सही नहीं होता । इसका मतलब है -वे अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने की मंशा रखती हैं। आपको उन पर भरोसा करना चाहिये। आज वे कह रही हैं तो कल पुनर्विचार कर भी देंगी। दुख है तो दुख हरने वाले भी होंगे। वैसे तो आप खुदै पर्याप्त समर्थ हो और बहुत दिन तक ये जेंटेलमैनी बांध के रख न पायेगी आपको। जैसे चिरई बुद्धि नहीं वैसे ही जैंटेलमैन भी न रहेंगे। रहना भी चाहेंगे तो हम आपको बहुत दिन तक जेंटेलमैनी के जंगल में भटकने न देंगे।
प्रत्यक्षा
जो आपके ऊपर आरोप लगा कि आपने प्रत्यक्षा जी की फोटो काहे नहीं खींची तो
आपको संस्कृति वाला दांव लगा देना चाहिये था। कह देते कि प्रत्यक्षाजी भले
प्रियंकरजी की मुंह बाये जम्हुआई
फ़ोटो सटा दें लेकिन वे हमारी मेहमान हैं हमारी संस्कृति हमें इस बात की
इजाजत नहीं देती कि हम अपने मेहमान की अलसाई सी फोटो कहीं
लगायें।(प्रत्यक्षाजी की अभी तक जित्ती भी फ़ोटो हमने अभी तक देखी सब अलस
आलस्य मुद्रा में देखीं। इसीलिये हम बहुत पहले कह भी चुके हैं- आलस्य उनका ठिठौना है
) अगर बात संस्कृति से न सलटती तो परंपरा की गोद में बैठ जाते। कह देते कि
कलकत्ता में ब्लागर मिलन ब्लागर में ब्लागर की खिंचाई भले की जाती हो
लेकिन ब्लागर के फ़ोटो खींचने की परम्परा नहीं है। प्रमाण के लिये प्रियंकरजी-फ़ुरसतिया मीट का हवाला दे देते।
ज्यादा
किसी को गरिया के पंगे लेने से क्या फ़ायदा? यहां मोहल्ले वालों का कोई
भरोसा नहीं। कब किस बात पर बखेड़ा खड़ा कर दें। और हमारी तारीफ़ ज्यादा मत
किया करें भाई। ये ठीक है लेकिन फ़िर भी क्या एक ही सच बार-बार दोहराना?
ई परम्परा वाला हथियार है न उससे आप बालकिशनजी को भी निपटा सकते हैं। जो उन्होंने आरोप लगाया कि
मिल लिये तब बता रहे हैं। आप उनसे कहते कि यहां ब्लागर मीट करने के बाद
बताने की परम्परा है। आपको ही कहां बताये थे प्रियंकरजी कि वे फ़ुरसतिया से
मिलने वाले हैं। परम्परा का निर्वाह होना चाहिये और अगली बार कोई बालकिशुन
को भी उलाहना देता पाया जायेगा- बताये नहीं अकेले-अकेले बतिया लिये?बिना सेल टैक्स, खेल टैक्स की एक सौ पचहत्तर रुपये की बोतल के सामने बैठे हुये आप मुस्कराते रहे। आपकी हिम्मत की दाद देता हूं। छा गये गुरु, मान गये आपके जिगरे को। हम जब देबाशीष से मिलने गये पूना और चाय के दाम देखे साठ रुपये तो घबरा गये थे। हम साठ रुपये में बोल गये आप एक सौ पचहत्तर झेल गये। वहां डटे रहे आप धन्य हैं। धन्य है वह ब्लागर डाट काम जिसने आप जैसे वीर ब्लागर को जन्म दिया।
आप लोगों ने कुछ लोगों की तारीफ़ की कुछ को गालियां दीं। अब जो हो गया सो गया लेकिन ज्यादा किसी को गरिया के पंगे लेने से क्या फ़ायदा? यहां मोहल्ले वालों का कोई भरोसा नहीं। कब किस बात पर बखेड़ा खड़ा कर दें। और हमारी तारीफ़ ज्यादा मत किया करें भाई। ये ठीक है लेकिन फ़िर भी क्या एक ही सच बार-बार दोहराना?
आपने फोन ज्ञानजी के हाल-चाल जानने चाहे हैं। ज्ञानजी का अब क्या बतायें? वे आजकल हमसे बड़े खफ़ा और खुश दोनों हैं। खफ़ा और खुश एक साथ कैसे हैं आपको अचरज लग रहा होगा लेकिन सच यही है। बताते हैं।
हुआ यह कि दो दिन पहले ज्ञानजी कानपुर आये थे। स्टेशन से बतियाये तो हमने समीरलाल की वर्षा-पुराण वाली पोस्ट के बारे में जिक्र किया। कहा घर आइये सुनवाते हैं। ज्ञानजी हड़बड़ा के उसे स्टेशनै पर पढ़ लिये। सुने भी। बाद में पता चला कि पोस्ट /पाडकास्ट सुनते ही उनकी तबियत गड़बड़ा गयी और वे चौरी-चौरा से चोरी-चोरी चुपके-चुपके वापस इलाहाबाद निकल लिये।
दरवाजे पर खटका होते ही न जाने कित्ते निर्बुद्धियों को आइये-आइये ज्ञानजी कहा तथा आगन्तुक और हम दोनों शर्मिन्दा हुये। हालत यह हुई कि शाम तक शर्मिन्दा होते-होते शर्म का पुलिन्दा बन गये।
हमने शाम तक पलक-पांवड़े बिछाके , झमाझम पकौड़े तलवा के ज्ञानजी के आने
का इंतजार किया। दरवाजे पर खटका होते ही न जाने कित्ते निर्बुद्धियों को आइये-आइये ज्ञानजी
कहा तथा आगन्तुक और हम दोनों शर्मिन्दा हुये। हालत यह हुई कि शाम तक
शर्मिन्दा होते-होते शर्म का पुलिन्दा बन गये। शाम को जब फोन किया तो पता
चला कि ज्ञानजी इलाहाबाद में बिस्तरगत हो गये हैं। बार-बार कह रहे थे आपने
जानते-बूझते हुये समीरलाल जी का वर्षा-पुराण हमको काहे सुनवाया? हमें
क्यों डराया? आप तो ऐसे न थे। हमने उनकी तारीफ़ करते हुये कहा भी हमने कहा -आप तबियत बहलाने के लिये ब्लागिंग करिये, कुछ पढ़िये। लेकिन ज्ञानजी की नाराजगी बरकरार थी। बोले – कम्प्यूटर तो फोड़ देने का मन करता है। हमें समझ में आ गया कि वे सोच रहे होंगे काश इस कम्प्यूटर की जगह सुकुल का सर होता तो वे अपने इरादे कार्यान्वयित कर डालते। बाद में एक पोस्ट लिख देते- मित्रों, एक पोस्ट भी आदमी को बहकाने के लिये काफ़ी होती है। बहरहाल!
हमने आगे कहा भी- ज्ञानजी आप अगर हमारी तरह सुनते तो आपका यह हाल न होता और जो आपका तीस-चालीस टिप्पणियों का नुकसान प्रतिदिन हो रहा है सो न होता। ज्ञानजी ने पूछा-किस तरह सुनता? हमने बताया- हम जब भी कोई कविता का पाडकास्ट सुनते हैं, खासकर समीरलाल जैसे महान ब्लागर की जिनकी श्रंगार रस की कविता भी पाडकास्टित होकर रौद्र रस से शुरू होती होकर वीर रस की धरती पर ही टहलती है, तो पहले तो अपने लैपटाप का आडियो पहने न्यूनतम पर कर देते हैं फ़िर उसको ’म्यूट’(आवाज बंद) करके तब सुनते हैं। सबसे बढिया इफ़ेक्ट आता है ऐसे में पाडकास्ट का।
भाईजी,
हम आपकी इज्जत करते हैं क्योंकि उसमें कोई पैसा नहीं लगता। लेकिन हम अपनी
पत्नी के जान के दुश्मन भी तो नहीं कि उनको बेबजह इत्ता कष्ट दें। माना कि
वे नारी हैं लेकिन हमारी भी तो पत्नी हैं।
रही बात खुशी की तो ज्ञानजी से अगले दिन एक मीटिंग में पूछा गया कि जो
नील गाय ट्रेन की पटरियों पर आकर मर जाती हैं और रेलवे ट्रैफ़िक में व्यवधान
पैदा करती हैं उनसे बचाव का क्या उपाय है। ज्ञानजी ने फ़ौरन सुझाव दिया कि
समीरलाल का पाडकास्ट जगह-जगह बजाया जाये। सुनते ही नीलगाय भाग जायेंगी।
ज्ञानजी के सुझाव की टेस्टिंग कर ली गयी है। बस अमल में लाना है। इससे वे
हमसे किंचित खुश हैं। लेकिन शिव भाई, अभी तो ज्ञानजी हमसे आधा-खुश हैं आधा नाराज। लेकिन हम यह सोचकर डरे हुये हैं कि जब यह नीलगाय भगाने का कार्यक्रम होगा तो क्या ट्रेन से यात्री न भाग खड़े होंगे? यह बात ज्ञानजी को कैसे बतायें? हम दुविधा में हैं।
लेकिन अभी एक बात पता चली है। अभी नोयडा-फ़ोयडा, मेरठ-सेरठ में जो हड़ताल-फ़ड़ताल में गोली-सोली चली-वली और उसमें कुछ लोग-सोग मारे-वारे गये तो उसमें हाकिम-साकिम लोगों ने सुझाव-फ़ुझाव दिया है कि लोगों के ऊपर गोली-सोली चलाने-वलाने से अच्छा ये रहेगा कि इसी टाइप के पाडकास्ट-वाडकास्ट चालू कर दिये जायें। जहां जनता-फ़नता बबाल-सवाल करे फ़ौरन चला दो इसी तरह के पाडकास्ट-साडकास्ट- भागिये बारिशों का मौसम है।
पब्लिक फ़ूट लेगी। दुबारा आंदोलन-सांदोलन का नाम न लेगी। ये होगा ब्लागिंग का गांधीवाधी उपयोग।
पाडकास्ट की बात चली तो एक सच्चा किस्सा और सुनाते हैं। हमारे बहुत अच्छे मित्र हैं। वे अपना गाना एक दिन रिकार्ड करके हमको सुनाये। हमने कहा- भाई ई तो बहुत भयानक है। बोले -तुमको गाने की समझ नहीं है। भाभीजी को सुनवाओ, वो इसका मर्म समझेंगे। अब बताओ भैया शिवजी भाभीजी के कान में कोई छन्नी लगी है और भयानकता कोई चाय की पत्ती जो उनके कान से निकलकर भयावह आवाज मधुरी बानी हो जायेगी।
हमने साफ़ कह दिया- भाईजी, हम आपकी इज्जत करते हैं क्योंकि उसमें कोई पैसा नहीं लगता। लेकिन हम अपनी पत्नी के जान के दुश्मन भी तो नहीं कि उनको बेबजह इत्ता कष्ट दें। माना कि वे नारी हैं लेकिन हमारी भी तो पत्नी हैं। हम उनको कष्ट देकर अपराध बोध सिवा क्या पायेंगे?
अगले दिन पता लगा वे मोहल्ले भर में अपने गाने की सीडी सब भाभियों सुनवा आये। भाभियां अपना सर पकड़े अपने पतियों के फ़ोड़ रही हैं। हमारी पत्नीजी हमको निहारते हुये कह रही हैं- सच, तुम कित्ते अच्छे हो जी। हमारा कित्ता ख्याल रखते हो।
लोग
बताते हैं कि समीरलाल बहुत स्लिम-ट्रिम टाइप के थे। विनम्रता से दोहरे-
चौहरे होते-होते छरहरे से शरीर का स्वामी इत्ता भरा-भरा सा हो गया है। इनके
अन्दर जो स्वास्थ्य का सागर ठाठे मारता है उनमें सारी की सारी विनम्रता की
हवा (नामानुरूप) भरी पड़ी है।
आखिर में यही कहना चाहता हूं कि आप दुखी मत हों। आपको जो जेंटेलमैन की
उपाधि दी गयी है उसे आप अपने नाम को चरितार्थ करते हुये अपना कंठहार
बनाइये। नीलकंठ इस उपाधि को नीले दांत(ब्लू टूथ) की तरह नये जमाने का उपहार
समझिये। यहां किसके ऊपर आरोप नहीं लगे बताइये भला? समीरलाल जी को बेहतरीन
ब्लागर का इनाम मिला उन्होंने उफ़ तक नहीं की। विनम्रता पूर्वक ग्रहण किया।
बेहतरीन उदीयमान चिट्ठाकार का इनाम मिला- चुपचाप उदय हो लिये। विनम्रता
पूर्वक। उनकी विनम्रता भी गजब की है। लोग बताते हैं कि समीरलाल बहुत
स्लिम-ट्रिम टाइप के थे। विनम्रता से दोहरे- चौहरे होते-होते छरहरे से
शरीर का स्वामी इत्ता भरा-भरा सा हो गया है। इनके अन्दर जो स्वास्थ्य का
सागर ठाठे मारता है उनमें सारी की सारी विनम्रता की हवा (नामानुरूप) भरी
पड़ी है। अगर इनके अन्दर से विनम्रता निकाल दो भारतीय किसान की तरह तन्वंगे
हो जायें।और तो और जिन माननीय मैथिलीजी के यहां ब्लागवाणी में रजिस्ट्री कराने के लिये दे मेल पे मेल ठेलते हैं नवागंतुक ब्लागर , उन मैथिलीजी की शुरुआत ब्लाग उड़ाका की मानद उपाधि से हुयी। उनकी सफ़ाई के बाद मामला साफ़ हुआ। आज वे सब उपाधियां भारत के अतीत गौरव की तरह भूली-बिसरी चीज हो गयी हैं। ऐसे ही आपका भी ये अस्थायी पुछल्ला आपके साथ ज्यादा दिन नहीं टिकने वाला। समय के साथ सब हवा हो जायेगा।
न वो दिन रहे न ये रहेंगे। आप ज्यादा परेशान न हों। भगवान सबका भला देखता है। देखने के अलावा वो बेचारा कुछ कर भी नहीं सकता। जो करना है वो बहुराष्ट्रीय कम्पनियां कर रही हैं। बाजार कर रहा है। भगवान भी अपने किसी नये एडीशन के आने का इंतजार कर रहा है। आप भी करें।
चिट्ठी पढ़कर फ़ाड़ दीजियेगा। डर लगता है कि न जाने कौन ब्लागर टीप के अपने ब्लाग पर मौलिक पत्र कहकर छाप दे।
बकिया चकाचक है,
आपका शुभाकांक्षी,
फ़ुरसतिया
संबंधित कड़ियां
१. ब्लॉगरों में क्या सुर्खाब के पर लगे होते हैं ?२. कि ब्लॉगर बन गया जेंटलमैन….
३.छुटके से ब्लागर तेरा दरद न जाने कोय
४. प्रियंकर- एक प्रीतिकर मुलाकात
५. अथ पूना ब्लागर भेंटवार्ता कथा…
६.बारिशों का मौसम है…
७. सबसे बुरा दिन
८. ब्लाग चोरी से बचने के कुछ सुगम उपाय
९.प्रत्यक्षा- जन्मदिन के बहाने बातचीत
मेरी पसंद
प्रियंकर
सबसे बुरा दिन वह होगाजब कई प्रकाशवर्ष दूर से
सूरज भेज देगा
‘लाइट’ का लंबा-चौड़ा बिल
यह अंधेरे और अपरिचय के स्थायी होने का दिन होगा|
पृथ्वी मांग लेगी
अपने नमक का मोल
मौका नहीं देगी
किसी भी गलती को सुधारने का
क्रोध में कांपती हुई कह देगी
जाओ तुम्हारी लीज़ खत्म हुई
यह भारत के भुज बनने का समय होगा|
सबसे बुरा दिन वह होगा
जब नदी लागू कर देगी नया विधान
कि अबसे सभ्यताएं
अनुज्ञापत्र के पश्चात ही विकसित हो सकेंगी
अधिकृत सभ्यता-नियोजक ही
मंजूर करेंगे बसावट और
वैचारिक बुनावट के मानचित्र
यह नवप्रवर्तन की नसबंदी का दिन होगा
भारत और पाकिस्तान के बीच
विवाद का नया विषय होगा
सहस्राब्दियों से बाकी
सिंधु सभ्यता के नगरों को आपूर्त
जल के शुल्क का भुगतान
मुद्रा कोष के संपेरों की बीन पर
फन हिलाएंगी खस्ताहाल बहरी सरकारें
राष्ट्रीय गीतों की धुन तैयार करेंगे
विश्व बैंक के पेशेवर संगीतकार
आर्थिक कीर्तन के कोलाहल की पृष्ठभूमि में
यह बंदरबांट के नियम का अंतरराष्ट्रीयकरण होगा
शास्त्र हर हाल में
आशा की कविता के पक्ष में है
सत्ता और संपादक को सलामी के पश्चात
कवि को सुहाता है करुणा का धंधा
विज्ञापन युग में कविता और ‘कॉपीराइटिंग’ की
गहन अंतर्क्रिया के पश्चात
जन्म लेगी ‘विज्ञ कविता’
यह नई विधा के जन्म पर सोहर गाने का दिन होगा
सबसे बुरा दिन वह होगा
जब जुड़वां भाई
भूल जाएगा मेरा जन्म दिन
यह विश्वग्राम की
नव-नागरिक-निर्माण-परियोजना का अंतिम चरण होगा ।
प्रियंकर
मैथलीजी वाला जिक्र कर घाव हरे कर दिये…
बाकी चकाचक.
भाई, आज का दिन ही ख़राब है । मंगल तो भया नहीं.. और अमंगल से भी हारा,
मंगल भवन..अमंगल हारी । चिच पर टहल रहा हूँ, हाज़त सटकी हुई है । अब ई
मैटर देख सुन के मेरा शिखंडी दहाड़ें ले रहा है, लेकिन लिख नहीं सकते..
ई-स्वामी ने स्टे आर्डर ले रखा है,अब इस्तगासा ख़ारिज़ हो तो कुछ बोलूँ भी !
सब ठाठ पड़ा रह जायेगा.. जब बाँध चलेगा बंज़ारा
आदरणीय मुशर्रफ़ जी का हाल देख कर, पहले ही मन
कैसा कैसा हो रहा है, अब ईहाँ भी… ख़ैर छोड़िये !
मुसाफ़िर हूँ यारों.. देखें नया ठिकाना
मुझे तो चलते जाना है..
यह थोड़ा रहा सहा भी स्वीकार किया जाये..
स्वामी ने मेरा जियरा ऎसा धड़का रखा है, कि..
मैं तो यह भी नहीं कह सकता,कि..
लरज़ते लबों से निकले.. “ओह यू आर नाटी, बेबी ! “, पर भला
हज़ार ज़ैंटलमैनी कुर्बान करने का किसके दिल में ‘ मन डोले.. तन डोले ‘ नहीं होने लगेगा ?
लेकिन मैं तो साढ़े चार में से साढ़े चार घटाने में ही अपना माथा पटक रहा हूँ, स्वामी !
बहुत ही भयंकर.
लिखी तो शिवजी को और साथ में लपेट लिए समीरजी, ज्ञान दद्दा और भी कईयों को.
भाई गजब है.
समीर भाई के स्वस्थ और ज्ञान दद्दा के अस्वस्थ होने का राज बता दिया आपने अच्छा किया. बहुत चिंता लगी थी.
भविष्य में हमें क्या करना है ये बताने के लिए भी धन्यवाद.
आनंद आ गया.
॰और हमारी तारीफ़ ज्यादा मत किया करें भाई। ये ठीक है लेकिन फ़िर भी क्या एक ही सच बार-बार दोहराना?”
“खासकर समीरलाल जैसे महान ब्लागर की जिनकी श्रंगार रस की कविता भी पाडकास्टित होकर रौद्र रस से शुरू होती होकर वीर रस की धरती पर ही टहलती है, तो पहले तो अपने लैपटाप का आडियो पहने न्यूनतम पर कर देते हैं फ़िर उसको ’म्यूट’(आवाज बंद) करके तब सुनते हैं। सबसे बढिया इफ़ेक्ट आता है ऐसे में पाडकास्ट का।”
धांसू
आज कल आलोक पुराणिक की जगह समीर जी आप की फ़ायरिंग लाइन में हैं? आलोक जी क्या चारों खाने चित्त हो गये?
एक्सेलट पोस्ट
पूरा मन लगा कर पढ़े हैं कविता और उसकी एसिन उपयोगिता-वाह!! यह तो कालजयी रचना बन पड़ी लगे है..साधुवाद फुरसतिया जी का.
पाडकास्ट की बात चली तो एक सच्चा किस्सा और सुनाते हैं। हमारे बहुत अच्छे मित्र हैं।
कोई कन्फ्यूजन बाकी न रहे, यह भी हम ही थे. तब दो ठो कविता भेजे थे इनको. उसमें जिसे पॉडकास्ट किया, उसे कम खराब बताया गया था अतः पॉडकास्ट की गई.
अब हिम्मत आ गई है तो नया पॉडकास्ट तैयार किया जा रहा है विरह गीत का-गा कर. ज्ञान जी को निश्चित उससे आराम लगेगा और आप को तो जरुरे ही.
जैन्टलमैन की परिभाषा डायरी में नोट कर लिया हूँ. काम आयेगी.
मजा आ गया.आज अरसे से इन्तजार था जिस आईटम का, वो आपने पेश करके आपने सिद्ध कर लिया कि असल राखी सावंत आप ही हैं ब्लॉग जगत के (आईटम ब्लॉगर) बाकी के सारे फाल्स.
लगे रहिये-इसी तरह एक ही अखाड़े में कईयों को पछाड़ते. जय हो, फुरसतिया महाराज की!!!
मैं तो अपेक्षा कर रहा था कि समीर लाल “उड़न तश्तरी वाले” यह पोस्ट पढ़ कर अपनी विनम्रता त्याग स्लिम ट्रिम हो जायेंगे। पर ऊपर की उनकी टिप्प्णियां देख कर लगता है कि उनसे उनका विनम्रत्व कोई छीन नहीं सकता। लिहाजा; उनके स्लिम होने की आशा करना व्यर्थ है। उल्टे प्रसन्नमन उन्होंने कुछ छंटाक चोला बढ़ा ही होगा!
हमसे अस्वस्थ होने पर भी टिप्पणी करवा लेना इस पोस्ट की सफलता है और समीर लाल जी को नाराज न कर पाना इस पोस्ट की भीषण विफलता!
वाह, सावन में हरियराई फुरसतिया पोस्ट!
बड़ा खयाल !!!!
:0
शिवजी तो ’जेन्टील’ भये, मारे गये समीर ।
आप भी ना – अब क्या कहेँ!
और समीर भाई की पुस्ट पे टीप्पणी वर्षा तो थमने का नाम ही नहीँ ले रही –
आप भी हँसे या नहीँ ?
अनूप भार्गव जी का दोहा ओरीजीनल है – नोट किया जाये !
ज्ञान भाई साहब,
ये आपको दुबारा ब्लोग लेखन से जोडने का उपाय ही दीखे है मुझे तो !
अब शिव भाई और प्रत्यक्षा जी कहाँ चले गये ? पूरी रामायण तो आपके
“राम -भरत मिलाप ” से शुरु हुई ..और प्रियँकर भाई का नाम नहीँ दीख रहा !!!
वे कहाँ हैँ ?
- लावण्या
क्या ग़ज़ब का लिखा हो। हमारे तो छक्के ही छूट गए।