Sunday, August 03, 2008

ईमानदारी – खरीद न सको तो मैनेज कर लो

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29 responses to “ईमानदारी – खरीद न सको तो मैनेज कर लो”

  1. अजित वडनेरकर
    सही विश्लेषण । ईमानदारी की जीत सामने वाला पक्ष होने कहां देता है , हमेशा ही मैनेज होती आई है।
  2. vipin
    sahi soch….
    aur achcha lekhn
  3. अफ़लातून
    अनूप की व्याख्या से सहमत ।
  4. ई-स्वामी
    प्रेमचंद महान लेखक थे और उनके चरित्र भी महानता लिये हुए थे, यहां तक की उनकी कथाओं के खलनायक भी. इसीलिये वैसे चरित्र बस कथाओं में ही मिलते हैं. कविता जबरदस्त है – ये सेट हो गई अपनी रैंकिग में पीले वासंती चांद के बाद दूसरे नंबर पर और तीसरे पर है “पुन: तपेगी वात झरेंगे पीले-पीले पात सहेंगे मौसम के आघात”!
  5. bhuvnesh
    आपके निष्‍कर्ष से सहमत हूं……वाकई प्रेमचंद जो संदेश देना चाह रहे थे उसे लोगों ने समझा नहीं…..जैसे गांधी ने गीता को अहिंसा की प्रेरणा देने वाला बताया है जबकि वास्‍तविकता इससे अलग है
  6. balkishan
    अपना अपना ख्याल है.
    सोचना आपका भी सही ही है.
    सुदर विश्लेषण.
  7. Gyan Dutt Pandey
    बड़ी कन्फ्यूज करती है यह पोस्ट। आगे और सोचेंगे।
  8. Pramendra Pratap Singh
    प्रेमचन्‍द्र जी की कृतियाँ अमर है, हर कृति अपनी जगह एक अलग सीख देती है ।
  9. परमजीत बाली
    एक दम सटीक विश्लेषण किया है। आप की पसंद भी बहुत बढिया लगी।
  10. ghughutibasuti
    आपसे सहमत हूँ।
    घुघूती बासूती
  11. मीनाक्षी
    आपकी व्याख्या से पूरी तरह से सहमत लेकिन आज समाज में ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जाएँगे जहाँ ईमानदारी ही नहीं दूसरे मानवीय मूल्यों को भी दबा दिया जाता है हालाँकि इन तत्त्बों की महत्ता का बखान कम नही हुआ.
  12. अशोक पाण्‍डेय
    आपका मन ठीक कहता है। नमक के भूतपूर्व दारोगा सेठ की नौकरी को ठुकरा दिए होते तो ईमानदारी की वास्‍तविक जीत होती। लेकिन व्‍यावहारिक जीवन में जैसा अक्‍सर होता है, उन्‍हें हालात से समझौता करना पड़ा। समय का यही यथार्थ है। चूंकि प्रेमचंद यथार्थवादी साहित्‍यकार थे, इसलिए उन्‍होंने युग के यथार्थ को दर्शाया।
    और यह बात तो आपने लाख टके की कह दी है – ‘ ऐसी ईमानदारी कौन काम की? काहे के ईमानदार? नौकरी तो ससुरे बेइमन्टे के यहां ही कर रहे हैं। ‘
  13. lovely kumari
    आपका नजरिया बिल्कुल सही और तर्कसंगत है.मैंने भी कभी कभी ऐसा सोंचा .निर्मला की भी कुछ बातें मुझे हजम नही होती .
  14. anitakumar
    बात तो आप सही कह रहे हैं। आप की सोच के हिसाब से देखा जाए तो प्रेमचंद जी अपने समय से कहीं आगे थे।इस लिए जहां एक ईमानदारऔर स्वाभिमानी का मन इस बात को पचा नहीं पा रहा कि दरोगा ने भ्रष्ट की ही नौकरी कर ली वहीं ये भी तो सच है कि गरीबी सारे मुल्यों पर ग्रहण लगा देती है।
    कविता बहुत सुंदर है
    जिस तट पर प्यास बुझाने से
    अपमान प्यास का होता हो
    उस तट पर प्यास बुझाने से
    प्यासा मर जाना बेहतर है।
  15. राज भाटिया
    हम तो आप के इस शेर के कायल हे जी..
    जिस तट पर प्यास बुझाने से
    अपमान प्यास का होता हो
    उस तट पर प्यास बुझाने से
    प्यासा मर जाना बेहतर है।
  16. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    आप जिस आदर्श की बात कर रहे हैं उसपर चलने वालों की संख्या नगण्य सी है। नमक के दरोगा जी की ईमानदारी को सेठ ने इस रूप में विश्लेषित किया होगा कि ये जिस मालिक के नौकर हैं उसके आदेशों का अनुपालन पूरी तन्मयता से करते हैं। इसमें निजी स्वार्थ या उचित अनुचित क बारे में व्यक्तिगत सोच का हस्तक्षेप नहीं होने देते। बस यही कर्तव्यपरायणता उसे भा गयी होगी। इधर दरोगा जी सड़क पर आने के बाद अपनी जीविका तलाशने के फेर में आकर्षक प्रस्ताव ठुकराने की स्थिति में नहीं रह गये होंगे। वह भी तब जब वह चतुराई भरी प्रशंसा के साथ मिल रही हो।
    प्रेमचंद की कहानियों के नायक किसी बड़े आदर्श को ढोने के बजाय समाज में फैली विसंगतियों, कुप्रथाओं, भेदभाव की विडम्बनाओं मे जीने वाले वास्तविक पात्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनके भीतर वे तमाम कमजोरियाँ भी विद्यमान हैं जो मनुष्य को देवत्व से अलग करती हैं।
  17. दिनेशराय द्विवेदी
    भाई ईमानदारी की जरूरत बेईमानों को बहुत है। वे ही उस की कीमत भी जानते हैं और वह इतनी गरीब है कि मैनेज हो जाती है।
  18. लावण्या
    सत्यवादी हरिस्चन्द्र की कथा से कौन अनजान होगा ?
    सत्य की राह पर चलना, तलवार की नुकीली धार पर,
    रक्त बहाते हुए, आह भी ना निकले इतना कठिन होता है –
    आपका मनोमँथन स्वस्थ है
    -प्रेमचँदजी की कला यहीँ जीत जाती है
    जब ऐसे मनोमँथन को जन्म देती है -
    कविता वीररस से भरी, उत्कृष्ट है -
    - लावण्या
  19. डा.अमर कुमार
    .
    यह तो टाइम टाइम की बात है, गुरु
    प्रेमचंद इस ज़माने में लिखते होते तो शायद कहानी ऎसी न बनती ।
    बल्कि मुझे तो शक़ है, कि वो ऎसी कोई कहानी लिखने की सोचते भी या नहीं ?
    उन्हें तो हमेशा खटका ही लगा रहता कि, अलग अलग कोर्स में लगी उनकी किताबें कहीं सरका न दी जायें ।
    बेचारे कहानियों के संशोधित संस्करण निकालने में ही खप जाते, क्योंकि आज का लिखा ‘ प्रो ‘ एक चुनाव के बाद तो ‘ एन्टी ‘ घोषित हो जाता ! बेचारे दफ़्तरों में ज़ेड सेक्यूरिटी के लिये अर्ज़ी पकड़े घूमा करते, उर्दू लिपि में लिखी कहानी को बजरंगी और संघी हिंदी में टपने ही न देते, साथ में उनके ख़ुद के ही टपका दिये जाने का ख़ौफ़ उनसे इंगलैंड के किसी बंगले में अतुकांत कवितायें लिखवा रहा होता ।
    ख़ैर इतनी टिप्पणी तो डकार गये, अब काहे परेसान हो गुरु ? अपना मन मत खराब करो, जरा समझा करो,
    जाओ, हाथ मुँह धोके ख़ाना खाओ, अउर तनिक काम वाम लगा के चुप्पे सो जाओ,
    आजकल दफ़्तर रोज़ही देर से पहुँच रहे हो ।
    काहे परेशान हो गुरु ?
  20. सतीश पंचम
    ईस प्रकार का नजरिया देखकर खुशी हुई कि चलो साहित्य पर कुछ तो सार्थक बहस हो रही है, वरना ज्यादातर तो साहित्य के नाम पर केवल ठेलमठेल मची हुई सी जान पडती थी।
  21. Dr .Anurag
    आपकी सोच भले ही कुछ कहे .पर आज भी आप अपने बच्चे को बचपन यही सिखायेंगे की बेटे इमानदारी अच्छी चीज़ है ये ओर बात है की वक़्त के साथ साथ वो इसे मनेज करना सीख जाया ?दरअसल इमानदारी अपनी जगह वही खड़ी है ,बदले हम ओर आप है ….रावण का पुतला साल दर साल बढ़ा हो रहा है…क्यों ?प्रेमचंद ने वाजिब ही लिखा है साहेब
  22. DR-RC SHARMA SONKHARA
    BAHUT ACCHA KAFFI PRASANGIC LEKHA. SADHUBAD…
  23. ashok
    aapne sahi likha….imandari ko manage karne ki pratha badi purani hai.
  24. vinay
    no
  25. zIA kHAN
    Prem chand ji jis samajh main rehte the us hisab se un ka sochna sahi tha parantuu aaj k is bhrasht samaj main imandar ka baiman bade achche dhang se istemal kar rahe hai…
  26. palak
    premchand एक mahan lekhak थे [और हमेशा rahenge ]unke kahani n sirf hamme shiksha देती है पर ईमानदारी पर एक bahut अच्छा पाठ भी सिखाती है .
  27. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] ईमानदारी – खरीद न सको तो मैनेज कर लो [...]
  28. sunil nayak (raipur)
    आपकी इस कहानी या लेख को पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. धन्यवाद
  29. parth
    आपकी कहानी बड़ी अछि हे! ऐसी कहानी और भी लिखो.

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