http://web.archive.org/web/20140419213333/http://hindini.com/fursatiya/archives/482
तेली की वह घानी है
जिसमे आधा तेल है
आधा पानी है।
धूमिल
राजनीति की मंडी बड़ी नशीली है,
इस मंडी ने सारी मदिरा पी है।
रामेंन्द्र त्रिपाठी
कल संसद में कुल जमा तीन सांसदों ने एक-एक करोड़ रुपये सदन के पटल पर पलट दिये। सदन शर्मसार हो गयी। शर्मसार किस लिये हुयी ये सबके लिये अलग-अलग मुद्दा है। कुछ लोगों के लिये इसलिये कि ये सांसदों की खरीद बिक्री हो रही है। कुछ के लिये इसलिये कि ससुरी बात 25 करोड़ की हुयी थी बाकी के चौबीस करोड़ किधर गये। मतलब सांसदों की बिक्री में भी घोटाला।
देश के कुछ ऐसे समर्पित लोग भी हैं जो भ्रष्टाचार के प्रति समर्पित हैं। वे किसी भुलावे में नहीं हैं। उनका मानना है कि देश को कोई चीज आगे ले जा सकती है तो वह सिर्फ़ भ्रष्टाचार है। ऐसे ही एक समर्पित भ्रष्टाचारी से हुयी पुरानी मुलाकात का विवरण आप देखिये। शायद आपको लगे कि उनकी बात में कुछ दम है।
मेरा असमंजस अधिक देर तक साथ नहीं दे पाया। पता चला कि देश के शीर्षतम भ्रष्टाचारियों का सम्मेलन हो रहा था। सभी की चिन्ता पिछले वर्ष के दौरान घटते भ्रष्टाचार को लेकर थी। मुख्य वक्ता ‘भ्रष्टाचार उन्नयन समिति’ का अध्यक्ष था। वह दहाड़ रहा था:-
मित्रों,आज हमारा मस्तक शर्म से झुका है। चेहरे पर लगता है किसी ने कालिख पोत दी । हम कहीं मुंह दिखाने लायक न रहे। हमारे रहते पिछले साल देश में भ्रष्टाचार कम हो गया। कहते हुये बड़ा दुख होता है कि विश्व के तमाम पिद्दी देश हमसे भ्रष्टाचार में कहीं आगे हैं। दूर क्यों जाते हैं पड़ोस में बांगलादेश, जिसे अभी कल हमने ही आजाद कराया वो, आज हमें भ्रष्टाचार में पीछे छोड़कर सरपट आगे दौड़ रहा है।
मित्रों ,यह समय आत्ममंथन का है। विश्लेषण का है। आज हमें विचार करना है कि हमारे पतन के बुनियादी कारण क्या हैं ?आखिर हम कहां चूके ?क्या वजह है कि आजादी के पचास वर्ष बाद भी हम भ्रष्टाचार के शिखर तक नहीं पहुंचे। दुनिया के पचास देश अभी भी हमसे आगे हैं । क्या मैं यही दिन देखने के लिये जिन्दा हूं? हाय भगवान तू मुझे उठा क्यों नहीं लेता?
कहना न होगा वीर रस से मामला करुण रस पर पहुंच चुका था। वक्ता पर भावुकता का हल्ला हुआ। उसका गला और वह खुद भी बैठ गया। श्रोताओं में तालियों का हाहाकार मच गया।
कहानी कुछ आगे बढती कि संचालक ने कामर्शियल ब्रेक की घोषणा कर दी। बताया कि कार्यक्रम किन-किन लोगों द्घारा प्रायोजित थे। प्रायोजकों में व्यक्तियों नहीं वरन् घोटालों का जलवा था। स्टैम्प घोटाला,यू टी आई घोटाला आदि युवा घोटालों के बैनरों में आत्मविश्वास की चमक थी। पुराने,कम कीमत के घोटाले हीनभावना से ग्रस्त लग रहे थे। अकेले दम पर सरकार पलट देने वाले निस्तेज बोफोर्स घोटाले को देखकर लगा कि किस्मत भी क्या-क्या गुल खिलाती है।
कामर्शियल ब्रेक लंबा खिंचता पर ‘भ्रष्टाचार कार्यशाला’ का समय हो चुका था। कार्यशाला में जिज्ञासुओं की शंकाओं का समाधान होना था। शंका समाधान प्रश्नोत्तर के रूप में हुआ। कुछ शंकायें और उनके समाधान निम्नवत हैं:-
सवाल:गतवर्ष की अपेक्षा भ्रष्टाचार में पिछङने के क्या कारण हैं?आपकी नजरों में कौन इस पतन के लिये जिम्मेंदार है?
जवाब:अति आत्म विश्वास,अकर्मण्यता,लक्ष्य के प्रति समर्पणका अभाव मुख्य कारण रहे पिछड़ने के। इस पतन के लिये हम सभी दोषी हैं।
सवाल:आपका लक्ष्य क्या है?
जवाब: देश को भ्रष्टाचार के शिखर पर स्थापित करना।
सवाल:कैसे प्राप्त करेंगे यह लक्ष्य?
जवाब:हम जनता को जागरूक बनायेंगे। इस भ्रम ,दुष्प्रचार को दूर करेंगे कि भ्रष्टाचार अनैतिक,अधार्मिक है। जब भगवान खुद चढावा स्वीकार करते हैं तो भक्तों के लिये यह अनैतिक कैसे होगा?
सवाल: तो क्या भ्रष्टाचार का कोई धर्म से संबंध है?
जवाब:एकदम है.बिना धर्म के भ्रष्टाचारी का कहां गुजारा? जो जितना बडा भ्रष्टाचारी है वो उतना बडा धर्मपारायण है। मैं रोज पांच घंटे पूजा करता हूं। कोई देवी-देवता ऐसा नहीं जिसकी मैं पूजा न करता हूं। भ्रष्टाचार भी एक तपस्या है।
सवाल:तो क्या सारे धार्मिक लोग भ्रष्ट होते हैं?
जवाब:काश ऐसा होता! मेरा कहने का मतलब है कि धर्मपारायण व्यक्ति का भ्रष्ट होना कतई जरूरी नहीं है । परन्तु एक भ्रष्टाचारी का धर्मपारायणहोना अपरिहार्य है।
सवाल:कुछ प्रशिक्षण भी देते हैं आप?
जवाब:हां नवंबर माह में देश भर में जोर-शोर से आयोजित होने वाले सतर्कता सप्ताह में हर सरकारी विभाग में अपने स्वयंसेवकों को भेजते हैं।
सवाल:सो किसलिए?
जवाब:असल में वहां भ्रष्टाचार उन्मूलन के उपाय बताये जाने का रिवाज है,सारे पुराने उपाय तो हमें पता हैं पर कभी कोई नया उपाय बताया जाये तो उसके लागू होने के पहले ही हम उसकी काट खोज लेते हैं। गफलत में नहीं रहते हम। कुछ नये तरीके भी पता चलते हैं घपले करने के।
सवाल:आपके सहयोगी कौन हैं?
जवाब:वर्तमान व्यवस्था। नेता,अपराधी,कानून का तो हमें सक्रिय सहयोग काफी पहले से मिलता रहा है। इधर अदालतों का रुख भी आशातीत सहयोगत्मक हुआ है। कुल मिलाकर माहौल भ्रष्टाचार के अनुकूल है।
सवाल:जो बीच-बीच में आपके कर्मठ,समर्पित भ्रष्टाचारी पकड़े जाते हैं उससे आपके अभियान को झटका नहींलगता?
जवाब:झटका कैसा? यह तो हमारे प्रचार अभियान का हिस्सा एक है
। इसके माध्यम से हम लोगों को बताते हैं कि देखो कितनी संभावनायें हैं इस काम में। लोग जो पकड़े जाते हैं वो लोगों के रोल माडल बनते हैं। हमारा विजय अभियान आगे बढता है.
सवाल:आपकी राह में सबसे बडा अवरोध क्या है भ्रष्टाचार के उत्थान की राह में?
जवाब: जनता । अक्सर जनता नासमझी में यह समझने लगती कि हम कोई गलत काम कर रहे हैं। हालांकि आज तस्वीर उतनी बुरी नहीं जितनी आज से बीस साल पहले थी। आज लोग इसे सहज रूप में लेते हैं। यह अपने आप में उपलब्धि है।
सवाल: क्या आपको लगता है कि आप अपने जीवन काल में भ्रष्टाचार के शिखर तक देश को पहुंचा पायेंगे?
जवाब:उम्मीद पर दुनिया कायम है। मेरा रोम-रोम समर्पित है भ्रष्टाचार के उत्थान के लिये। मुझे पूरी आशा कि हम जल्द ही तमाम बाधाओं को पार करके मंजिल तक पहुंचेंगे।
अभी कार्यशाला चल ही रही थी कि शोर सुनायी दिया। आम जनता जूते,चप्पल,झाड़ू-पंजा आदि परंपरागत हथियारों से लैस भ्रष्टाचारियों की तरफ आक्रोश पूर्ण मुद्रा में बढी आ रही थी। कार्यशाला का तंबू उखड़ चुका था। बंबू बाकी था। हमने शंका समाधान करने वाले महानुभाव की प्रतिक्रिया जानने के लिये उनकी तरफ देखा पर तब तक देर हो चुकी थी। वो महानुभाव जनता का नेतृत्व संभाल चुके थे- ‘मारो ससुरे भ्रष्टाचारियों ‘को चिल्लाते हुये भ्रष्टाचारियों को पीटने में जुट गये थे।
हल्ले से मेरी नींद टूट गयी। मुझे लगा शिखर बहुत दूर नहीं है।
वनवासी सा गाते रोते,
अब पता चला इस दुनिया में,
सोने के हिरन नहीं होते.
संबध सभी ने तोङ लिये,
चिंता ने कभी नहीं तोङे,
सब हाथ जोङ कर चले गये,
पीङा ने हाथ नहीं जोङे.
सूनी घाटी में अपनी ही
प्रतिध्वनियों ने यों छला हमें,
हम समझ गये पाषाणों में,
वाणी,मन,नयन नहीं होते.
मंदिर-मंदिर भटके लेकर
खंडित विश्वासों के टुकङे,
उसने ही हाथ जलाये-जिस
प्रतिमा के चरण युगल पकङे.
जग जो कहना चाहे कहले
अविरल द्रग जल धारा बह ले,
पर जले हुये इन हाथों से
हमसे अब हवन नहीं होते.
–कन्हैयालाल बाजपेयी
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे
By फ़ुरसतिया on July 23, 2008
भ्रष्ट हमारे
हमारे देश की संसदतेली की वह घानी है
जिसमे आधा तेल है
आधा पानी है।
धूमिल
राजनीति की मंडी बड़ी नशीली है,
इस मंडी ने सारी मदिरा पी है।
रामेंन्द्र त्रिपाठी
कल संसद में कुल जमा तीन सांसदों ने एक-एक करोड़ रुपये सदन के पटल पर पलट दिये। सदन शर्मसार हो गयी। शर्मसार किस लिये हुयी ये सबके लिये अलग-अलग मुद्दा है। कुछ लोगों के लिये इसलिये कि ये सांसदों की खरीद बिक्री हो रही है। कुछ के लिये इसलिये कि ससुरी बात 25 करोड़ की हुयी थी बाकी के चौबीस करोड़ किधर गये। मतलब सांसदों की बिक्री में भी घोटाला।
देश के कुछ ऐसे समर्पित लोग भी हैं जो भ्रष्टाचार के प्रति समर्पित हैं। वे किसी भुलावे में नहीं हैं। उनका मानना है कि देश को कोई चीज आगे ले जा सकती है तो वह सिर्फ़ भ्रष्टाचार है। ऐसे ही एक समर्पित भ्रष्टाचारी से हुयी पुरानी मुलाकात का विवरण आप देखिये। शायद आपको लगे कि उनकी बात में कुछ दम है।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे
कुछ देर बाद मैंने पाया कि मैं एक सभा में हूं। मेरे चारो तरफ लटके चेहरों का हुजूम है। मैंने लगभग मान लिया था कि मैं किसी शोकसभा में हूं। पर मंच से लगभग दहाड़ती हुई ओजपूर्ण आवाज ने मेरा विचार बदला। मुझे लगा कि शायद कोई वीर रस का कवि कविता ललकार रहा हो। पर यह विचार भी ज्यादा देर टिक नहीं सका। मैंने कुछ न समझ पाने की स्थिति में यह तय माना कि हो न हो कोई महत्वपूर्ण सभा हो रही हो.मेरा असमंजस अधिक देर तक साथ नहीं दे पाया। पता चला कि देश के शीर्षतम भ्रष्टाचारियों का सम्मेलन हो रहा था। सभी की चिन्ता पिछले वर्ष के दौरान घटते भ्रष्टाचार को लेकर थी। मुख्य वक्ता ‘भ्रष्टाचार उन्नयन समिति’ का अध्यक्ष था। वह दहाड़ रहा था:-
मित्रों,आज हमारा मस्तक शर्म से झुका है। चेहरे पर लगता है किसी ने कालिख पोत दी । हम कहीं मुंह दिखाने लायक न रहे। हमारे रहते पिछले साल देश में भ्रष्टाचार कम हो गया। कहते हुये बड़ा दुख होता है कि विश्व के तमाम पिद्दी देश हमसे भ्रष्टाचार में कहीं आगे हैं। दूर क्यों जाते हैं पड़ोस में बांगलादेश, जिसे अभी कल हमने ही आजाद कराया वो, आज हमें भ्रष्टाचार में पीछे छोड़कर सरपट आगे दौड़ रहा है।
मित्रों ,यह समय आत्ममंथन का है। विश्लेषण का है। आज हमें विचार करना है कि हमारे पतन के बुनियादी कारण क्या हैं ?आखिर हम कहां चूके ?क्या वजह है कि आजादी के पचास वर्ष बाद भी हम भ्रष्टाचार के शिखर तक नहीं पहुंचे। दुनिया के पचास देश अभी भी हमसे आगे हैं । क्या मैं यही दिन देखने के लिये जिन्दा हूं? हाय भगवान तू मुझे उठा क्यों नहीं लेता?
कहना न होगा वीर रस से मामला करुण रस पर पहुंच चुका था। वक्ता पर भावुकता का हल्ला हुआ। उसका गला और वह खुद भी बैठ गया। श्रोताओं में तालियों का हाहाकार मच गया।
कहानी कुछ आगे बढती कि संचालक ने कामर्शियल ब्रेक की घोषणा कर दी। बताया कि कार्यक्रम किन-किन लोगों द्घारा प्रायोजित थे। प्रायोजकों में व्यक्तियों नहीं वरन् घोटालों का जलवा था। स्टैम्प घोटाला,यू टी आई घोटाला आदि युवा घोटालों के बैनरों में आत्मविश्वास की चमक थी। पुराने,कम कीमत के घोटाले हीनभावना से ग्रस्त लग रहे थे। अकेले दम पर सरकार पलट देने वाले निस्तेज बोफोर्स घोटाले को देखकर लगा कि किस्मत भी क्या-क्या गुल खिलाती है।
कामर्शियल ब्रेक लंबा खिंचता पर ‘भ्रष्टाचार कार्यशाला’ का समय हो चुका था। कार्यशाला में जिज्ञासुओं की शंकाओं का समाधान होना था। शंका समाधान प्रश्नोत्तर के रूप में हुआ। कुछ शंकायें और उनके समाधान निम्नवत हैं:-
सवाल:गतवर्ष की अपेक्षा भ्रष्टाचार में पिछङने के क्या कारण हैं?आपकी नजरों में कौन इस पतन के लिये जिम्मेंदार है?
जवाब:अति आत्म विश्वास,अकर्मण्यता,लक्ष्य के प्रति समर्पणका अभाव मुख्य कारण रहे पिछड़ने के। इस पतन के लिये हम सभी दोषी हैं।
सवाल:आपका लक्ष्य क्या है?
जवाब: देश को भ्रष्टाचार के शिखर पर स्थापित करना।
सवाल:कैसे प्राप्त करेंगे यह लक्ष्य?
जवाब:हम जनता को जागरूक बनायेंगे। इस भ्रम ,दुष्प्रचार को दूर करेंगे कि भ्रष्टाचार अनैतिक,अधार्मिक है। जब भगवान खुद चढावा स्वीकार करते हैं तो भक्तों के लिये यह अनैतिक कैसे होगा?
सवाल: तो क्या भ्रष्टाचार का कोई धर्म से संबंध है?
जवाब:एकदम है.बिना धर्म के भ्रष्टाचारी का कहां गुजारा? जो जितना बडा भ्रष्टाचारी है वो उतना बडा धर्मपारायण है। मैं रोज पांच घंटे पूजा करता हूं। कोई देवी-देवता ऐसा नहीं जिसकी मैं पूजा न करता हूं। भ्रष्टाचार भी एक तपस्या है।
सवाल:तो क्या सारे धार्मिक लोग भ्रष्ट होते हैं?
जवाब:काश ऐसा होता! मेरा कहने का मतलब है कि धर्मपारायण व्यक्ति का भ्रष्ट होना कतई जरूरी नहीं है । परन्तु एक भ्रष्टाचारी का धर्मपारायणहोना अपरिहार्य है।
सवाल:कुछ प्रशिक्षण भी देते हैं आप?
जवाब:हां नवंबर माह में देश भर में जोर-शोर से आयोजित होने वाले सतर्कता सप्ताह में हर सरकारी विभाग में अपने स्वयंसेवकों को भेजते हैं।
सवाल:सो किसलिए?
जवाब:असल में वहां भ्रष्टाचार उन्मूलन के उपाय बताये जाने का रिवाज है,सारे पुराने उपाय तो हमें पता हैं पर कभी कोई नया उपाय बताया जाये तो उसके लागू होने के पहले ही हम उसकी काट खोज लेते हैं। गफलत में नहीं रहते हम। कुछ नये तरीके भी पता चलते हैं घपले करने के।
सवाल:आपके सहयोगी कौन हैं?
जवाब:वर्तमान व्यवस्था। नेता,अपराधी,कानून का तो हमें सक्रिय सहयोग काफी पहले से मिलता रहा है। इधर अदालतों का रुख भी आशातीत सहयोगत्मक हुआ है। कुल मिलाकर माहौल भ्रष्टाचार के अनुकूल है।
सवाल:जो बीच-बीच में आपके कर्मठ,समर्पित भ्रष्टाचारी पकड़े जाते हैं उससे आपके अभियान को झटका नहींलगता?
जवाब:झटका कैसा? यह तो हमारे प्रचार अभियान का हिस्सा एक है
। इसके माध्यम से हम लोगों को बताते हैं कि देखो कितनी संभावनायें हैं इस काम में। लोग जो पकड़े जाते हैं वो लोगों के रोल माडल बनते हैं। हमारा विजय अभियान आगे बढता है.
सवाल:आपकी राह में सबसे बडा अवरोध क्या है भ्रष्टाचार के उत्थान की राह में?
जवाब: जनता । अक्सर जनता नासमझी में यह समझने लगती कि हम कोई गलत काम कर रहे हैं। हालांकि आज तस्वीर उतनी बुरी नहीं जितनी आज से बीस साल पहले थी। आज लोग इसे सहज रूप में लेते हैं। यह अपने आप में उपलब्धि है।
सवाल: क्या आपको लगता है कि आप अपने जीवन काल में भ्रष्टाचार के शिखर तक देश को पहुंचा पायेंगे?
जवाब:उम्मीद पर दुनिया कायम है। मेरा रोम-रोम समर्पित है भ्रष्टाचार के उत्थान के लिये। मुझे पूरी आशा कि हम जल्द ही तमाम बाधाओं को पार करके मंजिल तक पहुंचेंगे।
अभी कार्यशाला चल ही रही थी कि शोर सुनायी दिया। आम जनता जूते,चप्पल,झाड़ू-पंजा आदि परंपरागत हथियारों से लैस भ्रष्टाचारियों की तरफ आक्रोश पूर्ण मुद्रा में बढी आ रही थी। कार्यशाला का तंबू उखड़ चुका था। बंबू बाकी था। हमने शंका समाधान करने वाले महानुभाव की प्रतिक्रिया जानने के लिये उनकी तरफ देखा पर तब तक देर हो चुकी थी। वो महानुभाव जनता का नेतृत्व संभाल चुके थे- ‘मारो ससुरे भ्रष्टाचारियों ‘को चिल्लाते हुये भ्रष्टाचारियों को पीटने में जुट गये थे।
हल्ले से मेरी नींद टूट गयी। मुझे लगा शिखर बहुत दूर नहीं है।
मेरी पसंद
आधा जीवन जब बीत गयावनवासी सा गाते रोते,
अब पता चला इस दुनिया में,
सोने के हिरन नहीं होते.
संबध सभी ने तोङ लिये,
चिंता ने कभी नहीं तोङे,
सब हाथ जोङ कर चले गये,
पीङा ने हाथ नहीं जोङे.
सूनी घाटी में अपनी ही
प्रतिध्वनियों ने यों छला हमें,
हम समझ गये पाषाणों में,
वाणी,मन,नयन नहीं होते.
मंदिर-मंदिर भटके लेकर
खंडित विश्वासों के टुकङे,
उसने ही हाथ जलाये-जिस
प्रतिमा के चरण युगल पकङे.
जग जो कहना चाहे कहले
अविरल द्रग जल धारा बह ले,
पर जले हुये इन हाथों से
हमसे अब हवन नहीं होते.
–कन्हैयालाल बाजपेयी
आज की पुरस्कृत टिप्पणी होनी चाहिये,
भई वाह, दिल खुस कित्ता कोटा वाले ने ।
धंधे से लौट के आता हूँ, तो जो बन सकेगा..वह चढ़ाऊँगा यहाँ !
अभी तो अवलोकन मात्र करके भाग रहा हूँ, यहाँ से !
हबड़ तबड़ में स्वाद नहीं आयेगा, पंडित जी !
छपते ही नहीं पढ़ी तो मजा किरकिरा हो गया जी।
लगता है, कल आपकी कुछ लाइनें मेरे यहाँ शायद भूलवश छूट गयीं थीं ..
अभी टेबल साफ करते समय बरामद हुईं । अमानत आपकी है, सो आपको
सादर लौटा रहा हूँ । इसको दाब लूँ, अभी इतना भी भ्रष्ट नहीं हुआ हूँ, मैं !
” आख़िर हमारी ईमानदारी को जनता व चंद हाफ़ टोन्ड सिरफिरे सेपेरेटा
ब्यूरोक्रेट, बाबू वगैरह क्यों नहीं देखते ? हमारे बीच कुछ जयचंद घुस आये
हैं, जो पैसा लेकर भी काम नहीं करते, मिल बाँट कर नहीं खाते । बस,इनकी
वज़ह से ही भ्रष्टाचार को अनाचार का दर्ज़ा मिल रहा है ।
वक़्त का तक़ाज़ा है, कि अगले अधिवेशन में एक राष्ट्रीय भ्रष्टता संहिता पारित
किया जाय, इस कार्य के लिये ‘ भाई गि्रगिट ठस्स पैंतरा ‘ ने अपनी सेवायें देने
का सहर्ष प्रस्ताव रखा है । ( करतल ध्वनि ) शांत शांत..शांत रहिये,
तो कुछ नये उत्साही भ्रष्टजन पैसा हज़म कर जाते हैं, अपनी सेवाओं से कन्नी
काट लेते हैं । मिल-बाँटने कर खाने के सुनहरे नियम का पालन नहीं करते, जिससे
हम मुफ़्त बदनाम होते हैं ।
आज भ्रष्टाचार के चलते ही टेढ़े मे्ढ़े सरकारी नियमों से जनता को कितनी
राहत है, यह पूरे विश्व से छिपा नहीं है । मीडिया को भी साथ लेकर चलने में हम
पूरी तरह सफल नहीं हुये हैं । हमारा इस वर्ष का लक्ष्य यह भी है, कि शत प्रतिशत
मीडिया हमारे साथ हो जाये । फिर किसी को हमारे खेला की भनक भी न होगी ..
अब हमारा समूहगान होगा उसके बाद सभी भाई पतली गली से एक एक कर
निकल लें ।
..आवाज़ दो कि हम भ्रष्ट हैं, हाँ जी भ्रष्ट है..भ्रष्टता हमारी रगों में..”
( धड़ धड़ धड़ , दरवाज़ा खोलो..पुलिस..धड़ धड़ )
भाईयों,बाकी गान अगले अधिवेशन में । अभी आप लोग निकलिये वरना यहीं
आपको अपनी ज़ेबें हल्की करनी पड़ेगी, ये चोट्टे यहाँ भी आ गये… “
आजकल आप लापरवाह होते जा रहे हैं, अनूप जी ! इसको मँगवा लीजिये,
हो सकता है, मौका लगते ही हम कल से ही भ्रष्ट हो जायें । बोलो सत्यमेव जायःते !!
ज्ञानदत्त जी का गूगल रीडर भ्रष्ट हो गया है,
फ़ुरसतिया के आलेख दिखाने के पैसे खुल
के नहीं माँग रहा है, पर करप्ट हो गया है !!
लकड़ी मँहगी हो रही तू मरेगा कब
अरुण गौतम
akgautam@indiatimes.com