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ब्लॉगिंग, फ़ेसबुक और ट्विटर
By फ़ुरसतिया on December 12, 2011
पिछले
काफ़ी समय से इस तरह की बातें हो रही हैं कि ब्लॉग पोस्टें कम लिखीं जा
रही हैं। लोग फ़ेसबुक और ट्विटर पर ज्यादा रहने लगे हैं। लोग व्यस्त हो गये
हैं। इसके कारण क्या हैं! आदि-इत्यादि।
कुछ इसी तरह के सवाल मुझसे पिछले हफ़्ते मनीषा पाण्डेय ने भी किये। वे शायद इंडिया टुडे के लिये कोई लेख लिखने वाली हैं। उसी सिलसिले में सवाल करते हुये उन्होंने मुझसे पूछा- “लोगों का ब्लॉग लेखन कम हो गया है। आपको इसका कारण क्या लगता है? क्या फ़ेसबुक पर लोग ज्यादा सक्रिय हैं इसलिये लोगों का ब्लॉग लेखन कम हो गया है।”
पहले भी लोग इस तरह की स्थापनायें दे चुके हैं और उनसे असहमत होने की भी मुझे कभी कोई जरूरत महसूस नहीं हुई। लेकिन उस दिन मनीषा का सवाल सुनने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं तो ब्लॉगजगत का नुमाइंदा हूं। यह महसूसते ही मैंने उनसे प्रति सवाल किया- आपको किसने बताया कि ब्लॉग लिखना कम हो गया है। कौन से आंकड़े हैं आपके पास? कहीं ऐसा तो नहीं कि फ़ेसबुक और ट्विटर पर अभिव्यक्ति की आसानी के चलते यह धारणा बना ली हो कि ब्लॉग लिखना कम हो गया है।
इसके बाद और तमाम बातें हुईं। बातचीत के दौरान और बाद में भी मैंने इस बारे में काफ़ी सोचा। मुझे लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी संकलक के अभाव में सही आंकड़े न होने के चलते लोग इस बात पर लगभग एकमत हो गये हैं कि ब्लॉग पर लिखना कम हो गया है।
हमने जब ब्लॉगिंग शुरु की थी (अगस्त,2004) तो कुल जमा तीस ब्लॉगर थे। नियमित लिखने वालों की भी लिखने की आवृत्ति हफ़्ते में एक-दो लेख अधिकतम थी। हमारा डायल टोन जमाने का पहला संकलक चिट्ठाविश्व। आज लिखी पोस्ट की सूचना दो दिन बाद देता था। दो-चार टिप्पणियां भी निहाल कर देतीं थीं ब्लॉगरों को। सौ ब्लॉग पूरे होने में दो साल लगे। ये सौ ब्लॉग भी कुल बने ब्लॉगों की संख्या थी। नियमित लेखन वाले लोग इनसे बहुत कम ही थे। साल-सवा पहले जब चिट्ठाजगत निष्क्रिय हुआ तब तक करीब अठारह हजार ब्लॉग उससे जुड़ चुके थे। उस समय हर माह करीब हजार-डेढ़ हजार ब्लॉग हर माह चिट्ठाजगत से जुड़ रहे थे। ये तो वे ब्लॉग थे जिनके बारे में चिट्ठाजगत को जानकारी थी या फ़िर ब्लॉगर उनसे संपर्क कर रहे थे। कुल ब्लॉगों की संख्या तो और ज्यादा होगी।
संकलक के अभाव में यह कहना मुश्किल है कि ब्लॉग बनने की गति क्या है और प्रतिदिन छपने वाली पोस्टों की संख्या क्या है लेकिन यह तय बात है कि ब्लॉग धड़ाधड़ अब भी बन रहे हैं और लोग पोस्टें भी लिख रहे हैं। फ़िर यह बात कैसे फ़ैली कि ब्लॉगिंग कम हो गयी है।
हुआ शायद यह कि कुछ लोग जो पहले से लिख रहे थे और जिनके पाठक भी काफ़ी थे उनमें से कुछ लोगों का लिखना कम हुआ। फ़ेसबुक और ट्विटर जैसे ज्यादा तुरंता माध्यम पर वनलाइनर या एकपैराग्राफ़ीय टिप्पणी मारकर या कोई फ़ोटो/वीडियो-सीडियो शेयर करना ,ट्विट/रिट्विट करना अपेक्षाकृत आसान है। किसी के लिखे-पढ़े को लाइक करके फ़ूट लेना भी सहज है (भले ही वह किसी के मौत की खबर हो)। इसके बनिस्बत ब्लॉग पर अभिव्यक्ति थोड़ा ज्यादा मेहनत मांगती है। इसलिये और इसके अलावा और कारणों से भी लोग फ़ेसबुक पर ज्यादा सक्रिय दिखते हैं। इससे यह धारणा बना लिया जाना सहज ही है कि फ़ेसबुक/ट्विटर के चलते ब्लॉग लिखना कम हो गया है।
फ़ेसबुक और ट्विटर माध्यमों की तुरंता क्षमता को देखकर मन फ़िर से कहने को करता है:
लेकिन फ़ेसबुक की सीमायें भी हैं। आपकी कही बात को यह यह आपके दोस्तों तक ही पहुंचाता है। इसके बाहर के दायरे में आप अनजान हैं। गुमनाम हैं। यह संख्या भी 5000 है। एकाध वाक्य से ज्यादा की बात कहने का वहां रिवाज नहीं है। दूसरे फ़ेसबुक पर अपनी कही बात और बहस को खोजना मुश्किल काम है। ब्लॉगपोस्ट खोजने के मुकाबले तो बहुतै मुश्किल!
टिवटर के लिये भी आपको फ़ालो किये जाने के आपका सेलेब्रिटी होना या समझदार/विटी होना जरूरी है। ये दोनों शर्त पूरी होना थोड़ा कठिन है।
आम आदमी की अभिव्यक्ति के लिये ब्लॉग जैसी सुविधायें और किसी माध्यम में नहीं है। आपकी बात अनगिनत लोगों तक पहुंचती है। जो मन आये और जित्ता मन आये लिखिये। अपने लिखे को दुबारा बांचिये। तिबारा ठीक करिये। लोग आपके पुराने लिखे को पढ़ेंगे। टिपियायेंगे। आपको एहसास दिलायेंगे कि आपके अच्छा सा लिखा है कभी। फ़ेसबुक और ट्विटर की प्रवृत्ति केवल आज की बात करने की है। बीती हुयी अभिव्यक्ति इन माध्यमों के लिये अमेरिकियों के लिये रेडइंडियन की तरह गैरजरूरी सी हो जाती है!
ब्लॉग, फ़ेसबुक और ट्विटर की अक्सर लोग तुलना करते हैं। फ़ालोवर की संख्या की सीमाओं के चलते अगर आपके फ़ेसबुक और ट्विटर के खाते की पहुंच होनूलूलू और टिम्बकटू तक हो सकती है तो आपके ब्लॉग की पहुंच पूरी दुनिया तक होगी जिसमें होनूलूलू और टिम्बकटू भी समाये हुये हैं। आप अगर ब्लॉगर, फ़ेसबुक और ट्विटरिया तीनों हैं तो आप कभी न कभी निश्चित तौर पर फ़ेसबुक और ट्विटर पर जमा चिल्लर को अपनी ब्लॉग गुल्लक में डालते रहेंगे।
कुछ लोगों के न लिखने से यह सोचा जाना कि ब्लॉगिंग के दिन बीत गये शायद सही नहीं है। ब्लॉगिंग की प्रवृत्ति ही शायद ऐसी है कि लोग लिखना शुरु करते हैं ,उत्साह होने पर दनादन लिखते हैं, फ़िर किसी कारण कम लिखते हैं और फ़िर कम-ज्यादा लिखना चलता रहता है। अगर कुछ लोगों ने लिखना कम किया है तो ऐसे भी हैं जो कि एक-एक दिन में तीन-तीन,चार-चार पोस्ट लिख रहे हैं और सब एक से एक बिंदास! किसी माध्यम जुड़े कुछ लोगों की क्षमताओं को उस माध्यम की क्षमतायें मानना सही नहीं होगा।
मुझे नहीं लगता कि ब्लॉगिंग कि अभिव्यक्ति के किसी अन्य माध्यम से कोई खतरा है। फ़ेसबुक और ट्विटर से बिल्कुलै नहीं है। इन सबको ब्लॉगर अपने प्रचार के लिये प्रयोग करता है। इनसे काहे का खतरा जी!
ब्लॉगिंग आम आदमी की अभिव्यक्ति का सहज माध्यम है। आम आदमी इससे लगातार जुड़ रहा है। समय के साथ कुछ खास बन चुके लोगों के लिखने न लिखने से इसकी सेहत पर असर नहीं पड़ेगा। अपने सात साल के अनुभव में मैंने तमाम नये ब्लॉगरों को आते , उनको अच्छा , बहुत अच्छा लिखते और फ़िर लिखना बंद करते देखा है। लेकिन नये लोगों का आना और उनका अच्छा लिखने का सिलसिला बदस्तूर जारी है- पता लगते भले देर होती हो समुचित संकलक के अभाव में।
जरूरी नहीं है फ़िर भी ये कहना चाहते हैं कि हम ब्लॉग, फ़ेसबुक और ट्विटर तीनों का उपयोग करते हैं। समय कम होता है तो फ़ेसबुक/ट्विटर का उपयोग करते हैं लेकिन जब भी मौका मिलता है दऊड़ के अपने ब्लॉग पर आते हैं पोस्ट लिखने के लिय- जैसे आज आये!
कुछ इसी तरह के सवाल मुझसे पिछले हफ़्ते मनीषा पाण्डेय ने भी किये। वे शायद इंडिया टुडे के लिये कोई लेख लिखने वाली हैं। उसी सिलसिले में सवाल करते हुये उन्होंने मुझसे पूछा- “लोगों का ब्लॉग लेखन कम हो गया है। आपको इसका कारण क्या लगता है? क्या फ़ेसबुक पर लोग ज्यादा सक्रिय हैं इसलिये लोगों का ब्लॉग लेखन कम हो गया है।”
पहले भी लोग इस तरह की स्थापनायें दे चुके हैं और उनसे असहमत होने की भी मुझे कभी कोई जरूरत महसूस नहीं हुई। लेकिन उस दिन मनीषा का सवाल सुनने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं तो ब्लॉगजगत का नुमाइंदा हूं। यह महसूसते ही मैंने उनसे प्रति सवाल किया- आपको किसने बताया कि ब्लॉग लिखना कम हो गया है। कौन से आंकड़े हैं आपके पास? कहीं ऐसा तो नहीं कि फ़ेसबुक और ट्विटर पर अभिव्यक्ति की आसानी के चलते यह धारणा बना ली हो कि ब्लॉग लिखना कम हो गया है।
इसके बाद और तमाम बातें हुईं। बातचीत के दौरान और बाद में भी मैंने इस बारे में काफ़ी सोचा। मुझे लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी संकलक के अभाव में सही आंकड़े न होने के चलते लोग इस बात पर लगभग एकमत हो गये हैं कि ब्लॉग पर लिखना कम हो गया है।
हमने जब ब्लॉगिंग शुरु की थी (अगस्त,2004) तो कुल जमा तीस ब्लॉगर थे। नियमित लिखने वालों की भी लिखने की आवृत्ति हफ़्ते में एक-दो लेख अधिकतम थी। हमारा डायल टोन जमाने का पहला संकलक चिट्ठाविश्व। आज लिखी पोस्ट की सूचना दो दिन बाद देता था। दो-चार टिप्पणियां भी निहाल कर देतीं थीं ब्लॉगरों को। सौ ब्लॉग पूरे होने में दो साल लगे। ये सौ ब्लॉग भी कुल बने ब्लॉगों की संख्या थी। नियमित लेखन वाले लोग इनसे बहुत कम ही थे। साल-सवा पहले जब चिट्ठाजगत निष्क्रिय हुआ तब तक करीब अठारह हजार ब्लॉग उससे जुड़ चुके थे। उस समय हर माह करीब हजार-डेढ़ हजार ब्लॉग हर माह चिट्ठाजगत से जुड़ रहे थे। ये तो वे ब्लॉग थे जिनके बारे में चिट्ठाजगत को जानकारी थी या फ़िर ब्लॉगर उनसे संपर्क कर रहे थे। कुल ब्लॉगों की संख्या तो और ज्यादा होगी।
संकलक के अभाव में यह कहना मुश्किल है कि ब्लॉग बनने की गति क्या है और प्रतिदिन छपने वाली पोस्टों की संख्या क्या है लेकिन यह तय बात है कि ब्लॉग धड़ाधड़ अब भी बन रहे हैं और लोग पोस्टें भी लिख रहे हैं। फ़िर यह बात कैसे फ़ैली कि ब्लॉगिंग कम हो गयी है।
हुआ शायद यह कि कुछ लोग जो पहले से लिख रहे थे और जिनके पाठक भी काफ़ी थे उनमें से कुछ लोगों का लिखना कम हुआ। फ़ेसबुक और ट्विटर जैसे ज्यादा तुरंता माध्यम पर वनलाइनर या एकपैराग्राफ़ीय टिप्पणी मारकर या कोई फ़ोटो/वीडियो-सीडियो शेयर करना ,ट्विट/रिट्विट करना अपेक्षाकृत आसान है। किसी के लिखे-पढ़े को लाइक करके फ़ूट लेना भी सहज है (भले ही वह किसी के मौत की खबर हो)। इसके बनिस्बत ब्लॉग पर अभिव्यक्ति थोड़ा ज्यादा मेहनत मांगती है। इसलिये और इसके अलावा और कारणों से भी लोग फ़ेसबुक पर ज्यादा सक्रिय दिखते हैं। इससे यह धारणा बना लिया जाना सहज ही है कि फ़ेसबुक/ट्विटर के चलते ब्लॉग लिखना कम हो गया है।
फ़ेसबुक और ट्विटर माध्यमों की तुरंता क्षमता को देखकर मन फ़िर से कहने को करता है:
ये दुनिया बड़ी तेज चलती है ,मेरा अपना अनुभव यह है कि फ़ेसबुक और ट्विटर (गूगल बज का भी) का उपयोग ज्यादातर ब्लॉगरों ने संकलक के विकल्प के रूप में किया है। जिन लोगों के पास और भी मसाला है लिखने को उन्होंने भले वहां चेंपा लेकिन ज्यादातर लोगों ने अपने नये-पुराने लेखों की सूचनायें शेयर की वहां। इसके अलावा यहां जा रहे हैं/वहां से आ रहे हैं/ गर्मी है/सर्दी है/ चाय पी रहे हैं/पान चबा रहे हैं घराने की सूचनायें सटाने के साथ अपनी फोटुओं के एलबम के रूप में लोगों ने फ़ेसबुक का उपयोग किया। जन्मदिन आदि की बधाई देना भी सहज बनाया है फ़ेसबुक ने। फ़्रेंडबनाना/अनफ़्रेंड करना तो खैर उसका मूल काम है।
बस जीने के खातिर मरती है।
पता नहीं कहां पहुंचेगी ,
वहां पहुंचकर क्या कर लेगी ।
लेकिन फ़ेसबुक की सीमायें भी हैं। आपकी कही बात को यह यह आपके दोस्तों तक ही पहुंचाता है। इसके बाहर के दायरे में आप अनजान हैं। गुमनाम हैं। यह संख्या भी 5000 है। एकाध वाक्य से ज्यादा की बात कहने का वहां रिवाज नहीं है। दूसरे फ़ेसबुक पर अपनी कही बात और बहस को खोजना मुश्किल काम है। ब्लॉगपोस्ट खोजने के मुकाबले तो बहुतै मुश्किल!
टिवटर के लिये भी आपको फ़ालो किये जाने के आपका सेलेब्रिटी होना या समझदार/विटी होना जरूरी है। ये दोनों शर्त पूरी होना थोड़ा कठिन है।
आम आदमी की अभिव्यक्ति के लिये ब्लॉग जैसी सुविधायें और किसी माध्यम में नहीं है। आपकी बात अनगिनत लोगों तक पहुंचती है। जो मन आये और जित्ता मन आये लिखिये। अपने लिखे को दुबारा बांचिये। तिबारा ठीक करिये। लोग आपके पुराने लिखे को पढ़ेंगे। टिपियायेंगे। आपको एहसास दिलायेंगे कि आपके अच्छा सा लिखा है कभी। फ़ेसबुक और ट्विटर की प्रवृत्ति केवल आज की बात करने की है। बीती हुयी अभिव्यक्ति इन माध्यमों के लिये अमेरिकियों के लिये रेडइंडियन की तरह गैरजरूरी सी हो जाती है!
ब्लॉग, फ़ेसबुक और ट्विटर की अक्सर लोग तुलना करते हैं। फ़ालोवर की संख्या की सीमाओं के चलते अगर आपके फ़ेसबुक और ट्विटर के खाते की पहुंच होनूलूलू और टिम्बकटू तक हो सकती है तो आपके ब्लॉग की पहुंच पूरी दुनिया तक होगी जिसमें होनूलूलू और टिम्बकटू भी समाये हुये हैं। आप अगर ब्लॉगर, फ़ेसबुक और ट्विटरिया तीनों हैं तो आप कभी न कभी निश्चित तौर पर फ़ेसबुक और ट्विटर पर जमा चिल्लर को अपनी ब्लॉग गुल्लक में डालते रहेंगे।
कुछ लोगों के न लिखने से यह सोचा जाना कि ब्लॉगिंग के दिन बीत गये शायद सही नहीं है। ब्लॉगिंग की प्रवृत्ति ही शायद ऐसी है कि लोग लिखना शुरु करते हैं ,उत्साह होने पर दनादन लिखते हैं, फ़िर किसी कारण कम लिखते हैं और फ़िर कम-ज्यादा लिखना चलता रहता है। अगर कुछ लोगों ने लिखना कम किया है तो ऐसे भी हैं जो कि एक-एक दिन में तीन-तीन,चार-चार पोस्ट लिख रहे हैं और सब एक से एक बिंदास! किसी माध्यम जुड़े कुछ लोगों की क्षमताओं को उस माध्यम की क्षमतायें मानना सही नहीं होगा।
मुझे नहीं लगता कि ब्लॉगिंग कि अभिव्यक्ति के किसी अन्य माध्यम से कोई खतरा है। फ़ेसबुक और ट्विटर से बिल्कुलै नहीं है। इन सबको ब्लॉगर अपने प्रचार के लिये प्रयोग करता है। इनसे काहे का खतरा जी!
ब्लॉगिंग आम आदमी की अभिव्यक्ति का सहज माध्यम है। आम आदमी इससे लगातार जुड़ रहा है। समय के साथ कुछ खास बन चुके लोगों के लिखने न लिखने से इसकी सेहत पर असर नहीं पड़ेगा। अपने सात साल के अनुभव में मैंने तमाम नये ब्लॉगरों को आते , उनको अच्छा , बहुत अच्छा लिखते और फ़िर लिखना बंद करते देखा है। लेकिन नये लोगों का आना और उनका अच्छा लिखने का सिलसिला बदस्तूर जारी है- पता लगते भले देर होती हो समुचित संकलक के अभाव में।
जरूरी नहीं है फ़िर भी ये कहना चाहते हैं कि हम ब्लॉग, फ़ेसबुक और ट्विटर तीनों का उपयोग करते हैं। समय कम होता है तो फ़ेसबुक/ट्विटर का उपयोग करते हैं लेकिन जब भी मौका मिलता है दऊड़ के अपने ब्लॉग पर आते हैं पोस्ट लिखने के लिय- जैसे आज आये!
Posted in बस यूं ही | 71 Responses
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अच्छे खासे लोगो को ऐसा करते देखा है! बुरा भी लगता है लेकिन क्या करें !
आशीष श्रीवास्तव ‘झालीया वाले!’ की हालिया प्रविष्टी..स्ट्रींग सिद्धांत: विसंगतियों का निराकरण
Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..डिग्री ही नहीं शिक्षा भी जरुरी.
घनश्याम मौर्य की हालिया प्रविष्टी..अगर कहीं मैं अपने घर में
हाँ, संकलक की कमी बहुत अधिक खलती है. ये एक ऐसा मंच था, जहाँ ब्लॉग के आंकड़े तो एकत्र हो ही जाते थे, ब्लॉगर भी एक-दूसरे से परिचित होते थे.
पूजा के लिए तो मैं तो मैं कहूँगी ‘थ्री चियर्स फॉर पूजा’ज एनर्जी’ वो बज़ और फेसबुक पर भी उतनी ही ऐक्टिव है. और बज़ के जाने से बहुत दुखी भी थी
aradhana की हालिया प्रविष्टी..दिए के जलने से पीछे का अँधेरा और गहरा हो जाता है…
पूजा के तो कहने ही क्या हैं। वे तो धक्काड़े से लेखन कर रही हैं आजकल।
ट्विटर पर मैने देखा कि कुछ लोगों में विषय की समझ और गम्भीरता ज्यादा है। कूड़ा तो हर जगह है।
ब्लॉगजगत में (मुझे लगता है) कटपेस्टिया टिप्पणियाँ बढ़ गई हैं।
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..पंड़िला महादेव
टिप्पणियां कटपेस्टिया शायद इसलिये भी हैं क्योंकि लोग ज्यादातर किसी की बुराई नहीं लेना चाहते। इसके चक्कर में ज्यादातर अच्छी-भली टिप्पणियां कर देते हैं लोग।
इस बारे में हमने अपने विचार कुछ समय पहले लिखे थे, फुरसत मिले तो नज़र डाल लीजियेगा.
ब्लॉगिंग का दुश्मन : ट्विटर? : http://www.jitu.info/merapanna/?p=१५१७
Jitu की हालिया प्रविष्टी..कुन फाया, कुन : एक रूहानी अहसास
ब्लॉगिंग का अपना नशा है.किसी गंभीर विषय पर आप गद्य या पद्य द्वारा अपनी भड़ास निकाल सकते हैं,जो छपास के अभाव में डायरियों में ही दर्ज रह जाता !
फेसबुक की लत छूट चुकी है,ट्विटर पर यदा-कदा भ्रमण कर लेते हैं पर ब्लॉगिंग पर नशा तारी है ! जब तक खुमारी नहीं मिटती,लिखना और घोखना जारी रहेगा !
पोस्ट-शेयर करने में ज़रूर ये दोनों टूल हैं !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..चार क्षणिकाएँ !
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..ग्यान और भाखा – राहुल सांकिर्ताएन
मैं तो ब्लॉग में ही चिपका रहना पसंद करता हूँ। फेस बुक या ट्यूटर का इस्तेमाल रफ कापी की तरह किया जा सकता है। एकाध लाइन दिमाग में आई.. लिख दी। एकाध फोटू, खींची.. चिपका दी। फिर फुर्सत मिला तो स्केच की हुई पंक्तियों को जोड़-जाड़ कर अच्छी सी पोस्ट लिख दी।
आप दऊड़ के आते हैं ब्लॉग में हम हच्च से बैठे रहते हैं ब्लगिये में। हां..तांक झांक करने की आदत अभी भी बनी हुई है सो नहीं ‘आउट लुक’ तो फेस बुक ही सही …हम मुस्कान लगायेंगे लेकिन कमेंट में फिर वही भयानक फोटू दिखलाई देगा। ई कैसे ठीक होगा…!
आज ही बल्कि अभी अभी आपने ट्विटर पर मुझे फालो किया ,मैं धन्य हो गया! बाकी यही विषय इन दिनों फैशन में है …अब ये सारे वैकल्पिक मीडिया जो हैं उनके अपने अपने गुण दोष हैं -फेसबुक ने काफी गुणवत्ता और बढ़त हासिल कर ली है और हर लिहाज से यूजर फ्रेंडली भी है ..ब्लॉग की कोई भी गतिविधि ऐसी नहीं है जो आप फेसबुक से संचालित नहीं कर सकते हों …नोट्स में लम्बी पोस्ट लिख सकते हैं ..और फेसबुक जितना द्रुत है प्रतिक्रियाओं या इंटरैकटिव होने में अब ब्लॉग ,कम से कम हिन्दी ब्लॉग नहीं दिखते..फेसबुक पर मित्रता का अम्बार लगा है -कुछ भी लिखिए अगले पल अनुमोदन या विरोध के गूँज अनुगूंज उठ जाती है ….जो ब्लॉग जगत से मायूस थे फेसबुक उनका नया ठीहा ठिकाना बन गया है ….तड़ा तड टिप्पणियाँ हिलोर रहे हैं -ऊपर के एकाध टिप्पणीकर्ता ब्लॉगर भले ही ब्लॉग जगत के सामने फेसबुक को कम आंके …उन्हें छींक आने मात्र से इस मान्वाईय आयोग पर विषद चर्चा छिड़ते देखी है हमने -जो किसी भी मामले में कम स्तरीय भी नहीं है …..
ब्लॉग जगत में निश्चय ही एक मरघटी का माहौल बन रहा है ..हमें कोई खुशफहमी नहीं पालनी चाहिए ….
आज ही बल्कि अभी अभी आपने ट्विटर पर मुझे फालो किया ,मैं धन्य हो गया! बाकी यही विषय इन दिनों फैशन में है …अब ये सारे वैकल्पिक मीडिया जो हैं उनके अपने अपने गुण दोष हैं -फेसबुक ने काफी गुणवत्ता और बढ़त हासिल कर ली है और हर लिहाज से यूजर फ्रेंडली भी है ..ब्लॉग की कोई भी गतिविधि ऐसी नहीं है जो आप फेसबुक से संचालित नहीं कर सकते हों …नोट्स में लम्बी पोस्ट लिख सकते हैं ..और फेसबुक जितना द्रुत है प्रतिक्रियाओं या इंटरैकटिव होने में अब ब्लॉग ,कम से कम हिन्दी ब्लॉग नहीं दिखते..फेसबुक पर मित्रता का अम्बार लगा है -कुछ भी लिखिए अगले पल अनुमोदन या विरोध के गूँज अनुगूंज उठ जाती है ….जो ब्लॉग जगत से मायूस थे फेसबुक उनका नया ठीहा ठिकाना बन गया है ….तड़ा तड टिप्पणियाँ हिलोर रहे हैं -ऊपर के एकाध टिप्पणीकर्ता ब्लॉगर भले ही ब्लॉग जगत के सामने फेसबुक को कम आंके …उन्हें छींक आने मात्र से इस मानवीय आवेग पर विषद चर्चा छिड़ते देखी है हमने -जो किसी भी मामले में कम स्तरीय नहीं होती …..
ब्लॉग जगत में निश्चय ही एक मरघटी का माहौल बन रहा है ..हमें कोई खुशफहमी नहीं पालनी चाहिए ….
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..आखिर कितनी गंदी है यह ‘गंदी फिल्म"?
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..लेखक बड़ा या ब्लॉगर ?
आज तमाम नए पुराने प्लेटफ़ॉर्मों में देखें – जागरण जंक्शन ब्लॉग, नवभारत टाइम्स ब्लॉग , वेबदुनिया, रेडिफ तथा तमाम और जगह नित्य सैकड़ों की संख्या में ब्लॉग बन रहे हैं, हजारों फल-फूल रहे हैं, और अब तो अंग्रेजी ब्लॉगों के भारतीय हिंदी ब्लॉग लेखक यदा कदा अपने अंग्रेजी ब्लॉगों में बेतकल्लुफी से हिंदी ब्लॉग पोस्टें बीच बीच में लिखने लगे हैं.
रवि की हालिया प्रविष्टी..आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ – Stories from here and there – 29
अब तो इतने ब्लॉग हमारे मुहल्ले से ही हैं (बकौल फुरसतिया), और हमारी एक एक पोस्ट को दो-तीन हजार लोग पढ़ते हैं (चोरी करते हैं, अखबारों में बिना अनुमति व क्रेडिट के छापते हैं… इत्यादि इत्यादि..) और आप कहते हैं कि ब्लॉग लेखन कम हो गया है?
रवि की हालिया प्रविष्टी..आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ – Stories from here and there – 30
ब्लॉग और फेसबुक/ट्विटर में मूल अंतर है ‘आर्काइव’ की सुविधा का…फेसबुक की उम्र चौबीस घंटे है अखबार की तरह…ताज़ा समाचार वहीँ से मिलता है और त्वरित टिप्पणियां, प्रतिक्रियाएं भी…इसके कारण ब्लॉग पर टिपण्णी का कारोबार भी कुछ मंदा पड़ा है ये मानते हैं हम. पर जिन लोगों को लगता है की वो ऐसा कुछ लिख रहे हैं जो कुछ साल बाद भी पढने लायक रहेगा, वो ये चीज़ें फेसबुक पर नहीं कर सकते. ट्विटर तो गिनती में ही नहीं आता हमारे जैसे लोगों के लिए. भूले भटके झाँख आते हैं. फेसबुक दोस्तों से गपियाने, फोटो देखने और चिरकुटई करने का पन्ना है हमारे लिए.
हम फेसबुक का इस्तेमाल ब्लॉग शेयर करने के लिए करते हैं…पहले हमें लज्जा आती थी, खुद का प्रचार करने में पर जब से चिट्ठाजगत बंद हुआ और दोस्तों ने ब्लॉग मेल करने के लिए हल्ला शुरू किया फेसबुक पर शेयर करके निश्चिंत हुए. मुझे आज भी ब्लॉग संकलक की जरूरत महसूस होती है…नए ब्लोग्स पढने का सबसे आसान तरीका था…और फिर चिट्ठाचर्चा. इन दोनों के बंद और मंद पड़ने के कारण नए ब्लोग्स पढने में थोड़ी दिक्कत होती है.
हमें तो ब्लॉग का भविष्य उज्जवल दिखता है. आपने बेहद प्रासंगिक पोस्ट लिखी है, सरे पहलुओं को छूते हुए. उदहारण के तौर पर अपना नाम देख कर बहुत्ते अच्छा लगा. धन्यवाद अनूप जी.
Puja Upadhyay की हालिया प्रविष्टी..दुनिया का सबसे झूठा वाक्य
FB aur blogging mei ..dono ke istmaal karne ke purpose mei bahut antar hai,…fb/blogging/twitter sab apni -apni jagah apni importance rakhte hain…koi kisi ki jagah nahin le sakta …
और खिलन्दड़ों को तो सब पसंद होता ही है
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..पढाई-लिखाई
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..सेमिनार रिपोर्ट… डेटलाइन लखनऊ (कल्याण से लौटकर)
Amit kumar Srivastava की हालिया प्रविष्टी.."बिखरी बिखरी सी …"
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..ग्यान और भाखा – राहुल सांकिर्ताएन
बाकी सब अपनी जगह है लेकिन ब्लॉग तो ब्लॉग है. हम भी इधर उधर का जमा ब्लॉग पर तो पोस्ट करेंगे ही भले ब्लॉग को उधर शेयर न करें
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..माल में माल ही माल (पटना ९)
शायद ही और कोई ऐसा माध्यम हैं जहां माध्यम की मैयत मध्यम के जरिये ही निकाल दी जाती हैं
अपनी बात कहने का सशक्त माध्यम हैं ब्लॉग , पढने के लिये हजारो हिंदी ब्लॉग हैं यहाँ वहाँ जहां ब्लॉगर बस लिख रहा हैं
फ्री माध्यम अभी भी कुछ के लिये इस लिये गूगल के साथ ही विलोम हो सकता हैं भ्रमित ब्लोगर जो साहित्य का तमगा अपने लेखन के लिये पाने आये थे चेत कर अपना डोमेन / बेक उप ले लेते हैं
गूगल में है , नहीं , था , क्यूँ , कैसे सर्च करके पढने के शौक़ीन पढ़ रहे हैं और ब्लॉग का मजा ले रहे हैं
ब्लॉग वाणी के निधन के पश्चात घर की ब्लोगिंग बंद होगयी सो सामाजिक दर्पण से कुछ बदल रही हैं
ये अच्छे आसार हैं की अब ब्लोगर आप के ट्रेड मार्क हा हा यानी मौज से ऊपर है और ये ब्लॉग का ख़तम होना नहीं हैं ये ब्लॉग का अपने सही रूप में वापस आना हैं यानी न्यूट्रल लेखन अपने और अपने जैसो के लिये
rachna की हालिया प्रविष्टी..एक भारतीये ब्लॉगर के इंग्लिश ब्लॉग पर एक अमेरीकन महिला का पत्र छपा हैं ।
खैर, मुझे तो ब्लॉग्गिंग बहुत पसंद है..:)
बकिया, हम बालकों के ‘श्रीलाल शुक्ल’ औ ‘परसाई’ तो आप ही हैं………..इस विधा के लेखक बहुत-बहुत कम ही
लोग हैं……अतः: आप अपनी मौलिकता बनाये रखेंगे तो आपके गंभीर पाठक का बहुत भला होगा…………..
अधिक हम लिख नहीं सकते टाइम की बात है, बचत कर आपके मित्र मंडली के गुलशन में वागबा कर आते हैं.
प्रणाम.
जब जहां जैसी जरुरत …वहीं धायं धायं !
चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..दाढ़ी-मूँछ
बस जीने के खातिर मरती है।
वाकई एक दम से दिल को छू जाने वाली कविता…..!
shefali की हालिया प्रविष्टी..कोई अन्ना को समझाओ कि…..
पद्म सिंह की हालिया प्रविष्टी..जब अलबेला खत्री स्टेशन से उठाए गए … सांपला ब्लागर मीट 24-12-11 (भाग-1)
१. जनसंख्या और इंटरनेट प्रयोग करने वालो की तुलना में हिंदी चिट्ठाकारी बहुत ही कम बढ़ी है जब की फेसबुक या ट्विट्टर से जुड़ने वाला युवा और किशोर वर्ग बहुत बड़ा है और ज्यादा तेज़ी से बढ़ा है- क्या आपका बेटा चिट्ठाकारी करता है या वो और उसके तमाम मित्र फेसबुक पर हैं? कोइ तुलना ही नहीं है. मेरे व्यक्तिगत समूह में से तमाम लोग फेसबुक अकाऊंट बना कर बैठे हैं और अपडेट करते हैं , कई ऐसे लोग भी हैं जो कतई नेट-सेवी नहीं हैं – चिट्ठाकारी कितने करते थे? फिर फेसबुक पर भी सारे गलत-सलत ही सही अंग्रेजी में ही लिख रहे हैं.
२. आज हमारे पास एक के बजाय बीस एग्रीगेटर होते यदि युवा वर्ग में चिट्ठाकारी के लिए जोश होता – एक-दो थे वो भी गए. वैसे भी आम भारतीय युवा लकीर का फ़कीर है – क्रिएटिव नहीं है और चिट्ठाकारी में क्रियेटिविटी लगती है – वो अपनी पार्टीज के फोटो शेयर करने में व्यस्त है.
३. गैर चिट्ठाकारो में चिट्ठाकारी आज भी एक शुगल या खब्त के रूप में देखी जाती है – इसे विधा का दर्जा आज भी नहीं मिला है- अभी भी इसमें कोइ कमाई नहीं है. और कंटेंट की गुणवत्ता भी अंग्रेजी से अनुवाद भरोसे है. आज तो भास्कर और वेबदुनिया जैसे अखबार भी टैबलाईड नुमा हैं – यु ट्यूब के फन्नी वीडियो दिखा रहे हैं. सच तो ये है की मौलिकता है ही नहीं. हिंदी कम हिंगलिश ज्यादा – क्या टीवी और क्या वेब.
eswami की हालिया प्रविष्टी..सपना आगे जाता कैसे?
ब्लोगिंग में कमी मूलत : तभी महसूस होती है जब आपके परिचित जाने माने मित्र लिखना कम कर देते हैं . उन्हें पढने या टिप्पणी प्राप्त करने की आदत सी पड़ी होती है . इसलिए न आने पर कुछ मिसिंग लगता है .
फेसबुक पर जो सामग्री मिलती है वह अक्सर वाहियात और मीनिंगलेस होती है .
हमें तो यही लगता है की ब्लोगिंग आपकी एक पहचान बनाती है . जबकि फ़ेसबुक पर आप भीड़ में बस एक और चेहरा हैं .