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…एक ब्लॉगर-पत्नी के नोट्स
By फ़ुरसतिया on December 1, 2011
कल का दिन हमारे घरेलू जीवन में ऐतिहासिक टाइप का रहा। कल दोपहर को हमारी श्रीमती जी
का फोन आया। हम एक मीटिंग में थे सो कहा अभी बात करते हैं। कुछ देर बाद जब
फोन किया तो पता चला उन्होंने अपने ऑफ़िस में खाली समय का दुरुपयोग करते
हुये अपनी डायरी में कुछ लिख डाला। हमने उत्साहित होकर कहा -अरे वाह! सुनाओ जरा! उन्होंने जो सुनाया वह यह था:
तुम्हारे दफ़्तर से लौटने पर
हम साथ-साथ चाय पियेंगे,
टीवी देखेंगे, बातें करेंगे।
बिना देखे देखेंगे किताबों में अपनी ही बातें
साथ ही किसी कोने में पड़ा रिमोट
बिना कहे सुनेंगे
इधर-उधर बिखरे अनकहे शब्द।
छूकर देखेंगे तुम्हारे में मेरा होना
और भी न जाने क्या कुछ!
लेकिन तुम्हारे लौटने पर
तुम्हारे हाथों में ब्लैकबेरी का मोबाइल
उसी में डूबते-तैरते-खिसकते हुये
तुम हो जाते हो कमरे से बाहर।
मैं तुम्हारे इंतजार में
कमरे को इधर-उधर ताकती हूं
आंखें मूंदकर सोचते हुये
समय को आगे-पीछे देखती हूं।
तुम्हारे कदमों की आहट से
मैं आंखें खोलती हूं
मोबाइल पर थिरकती उंगलियां अब
लैपटाप पर चलने लगती हैं।
मैं उनींदी आंखों से
फ़िर से अतीत में झांकती हूं
कभी-कभी यह भी सोचती हूं
तुम तो ऐसे न थे।
वैसे कविता में व्यक्त भावना का एहसास हमें बहुत पहले से था। हम आज से छह साल पहले ही लिख चुके हैं- हम जब से ब्लागर हुये घरवालों की नजरों में गिर गये है.गैरजिम्मेदार आइटम हो गये है। जिसको अपने ब्लाग के सिवा किसी से भी मतलब नहीं है। छह साल पहले की धारणा की पुष्टि इस कविता से हुई। हमारी ओस की बूंद और जीवन के उजास ने जो लिखा वह उनकी बड़ी दीदी के मुताबिक हमारे सारे नहलों पर झन्नाटेदार दहला रहा। सौ सुनार की एक लुहार की माना उन्होंने इस कविता को। अभी सतीश पंचम का पेटी-बाजा एपीसोड चल ही रहा था इसबीच यह व्यथा कथा सामने आ गयी। इससे पता चला है कि नियमित ब्लागिंग में जुटे जीवनसाथियों की क्या भावनायें होती होंगी।
श्रीमतीजी की डायरी देखने पर पता चला कि बात इस कविता तक ही नहीं सीमित रही। कुछ और लाइनें थीं जिनका लब्बो-उआब यह था कि हमको अपना ध्यान अपने बच्चे को पढ़ाने-लिखाने में लगाना चाहिये।
इसके अलावा कुछ और सम-सामयिक तुकबंदिया भी थीं। अपने आसपास के जीवन में बिखरे तमाम तनाव को समेटकर उन्होंने इस तुकबंदी में धर दिया है।
घर में पति का प्रेसर
किचन में कुकर का प्रेसर
बस स्टाप पर बस का प्रेसर
जिधर देखो प्रेसर ही प्रेसर।
जनता पर मंहगाई का प्रेसर
बच्चों पर पढ़ाई का प्रेसर
सरकार पर अन्ना का प्रेसर
किराने पर वालमार्ट का प्रेसर
जिधर देखो प्रेसर ही प्रेसर।
सचिन पर सेचुंरी का प्रेसर
वकील पर कचहरी का प्रेशर
कुंआरों पर शादी का प्रेसर
देश पर आबादी का प्रेसर।
जिधर देखो प्रेसर ही प्रेसर।
अपनी पत्नी की डायरी के ये नोट्स हम उनसे पूछे बिना जबरिया पोस्ट कर रहे हैं। क्या पता इसके चलते कुछ और ब्लागर पत्नियों/जीवन साथियों के नोट्स सामने आ जायें।
तुम तो ऐसे न थे
मैं अक्सर सोचती हूं कितुम्हारे दफ़्तर से लौटने पर
हम साथ-साथ चाय पियेंगे,
टीवी देखेंगे, बातें करेंगे।
बिना देखे देखेंगे किताबों में अपनी ही बातें
साथ ही किसी कोने में पड़ा रिमोट
बिना कहे सुनेंगे
इधर-उधर बिखरे अनकहे शब्द।
छूकर देखेंगे तुम्हारे में मेरा होना
और भी न जाने क्या कुछ!
लेकिन तुम्हारे लौटने पर
तुम्हारे हाथों में ब्लैकबेरी का मोबाइल
उसी में डूबते-तैरते-खिसकते हुये
तुम हो जाते हो कमरे से बाहर।
मैं तुम्हारे इंतजार में
कमरे को इधर-उधर ताकती हूं
आंखें मूंदकर सोचते हुये
समय को आगे-पीछे देखती हूं।
तुम्हारे कदमों की आहट से
मैं आंखें खोलती हूं
मोबाइल पर थिरकती उंगलियां अब
लैपटाप पर चलने लगती हैं।
मैं उनींदी आंखों से
फ़िर से अतीत में झांकती हूं
कभी-कभी यह भी सोचती हूं
तुम तो ऐसे न थे।
वैसे कविता में व्यक्त भावना का एहसास हमें बहुत पहले से था। हम आज से छह साल पहले ही लिख चुके हैं- हम जब से ब्लागर हुये घरवालों की नजरों में गिर गये है.गैरजिम्मेदार आइटम हो गये है। जिसको अपने ब्लाग के सिवा किसी से भी मतलब नहीं है। छह साल पहले की धारणा की पुष्टि इस कविता से हुई। हमारी ओस की बूंद और जीवन के उजास ने जो लिखा वह उनकी बड़ी दीदी के मुताबिक हमारे सारे नहलों पर झन्नाटेदार दहला रहा। सौ सुनार की एक लुहार की माना उन्होंने इस कविता को। अभी सतीश पंचम का पेटी-बाजा एपीसोड चल ही रहा था इसबीच यह व्यथा कथा सामने आ गयी। इससे पता चला है कि नियमित ब्लागिंग में जुटे जीवनसाथियों की क्या भावनायें होती होंगी।
श्रीमतीजी की डायरी देखने पर पता चला कि बात इस कविता तक ही नहीं सीमित रही। कुछ और लाइनें थीं जिनका लब्बो-उआब यह था कि हमको अपना ध्यान अपने बच्चे को पढ़ाने-लिखाने में लगाना चाहिये।
इसके अलावा कुछ और सम-सामयिक तुकबंदिया भी थीं। अपने आसपास के जीवन में बिखरे तमाम तनाव को समेटकर उन्होंने इस तुकबंदी में धर दिया है।
जिधर देखो प्रेसर ही प्रेसर
आफ़िस में बॉस का प्रेशरघर में पति का प्रेसर
किचन में कुकर का प्रेसर
बस स्टाप पर बस का प्रेसर
जिधर देखो प्रेसर ही प्रेसर।
जनता पर मंहगाई का प्रेसर
बच्चों पर पढ़ाई का प्रेसर
सरकार पर अन्ना का प्रेसर
किराने पर वालमार्ट का प्रेसर
जिधर देखो प्रेसर ही प्रेसर।
सचिन पर सेचुंरी का प्रेसर
वकील पर कचहरी का प्रेशर
कुंआरों पर शादी का प्रेसर
देश पर आबादी का प्रेसर।
जिधर देखो प्रेसर ही प्रेसर।
अपनी पत्नी की डायरी के ये नोट्स हम उनसे पूछे बिना जबरिया पोस्ट कर रहे हैं। क्या पता इसके चलते कुछ और ब्लागर पत्नियों/जीवन साथियों के नोट्स सामने आ जायें।
Posted in बस यूं ही | 66 Responses
आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..स्ट्रींग सिद्धांत : परिचय
आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..स्ट्रींग सिद्धांत : परिचय
कर रहा है।
हमेशा ‘पेटी-बाजा’ (लैपटाप) में घुसे रहने वाले पतिदेव को देख पत्नी कहेंगी –
कुछ दिनों से पिया हम से ना बोलता
होsss
कुछ दिनों से पिया हम से ना बोलता
न हमारा घूँघटवा का पट खोलता
इस गुप-चुप का …..
इस गुप-चुप का भेद देखो आज निकला
संईया तो बड़ा ‘पेटीबाज’ निकला
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..जिन्दगी का एक एपिसोड ऐसा भी रहा……
टिप पे पीटने का प्रेशर………………
प्रणाम.
क्यों सबको डरा रहे हो…….शुभकामनायें आपको !
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..साल्ट लेक सिटी ट्रिप…
जो समय हमें परिवार को देना चाहिए,वह ई ब्लॉगरी लिए लेती है.
इतने सारे प्रेसर में वकील पर कचहरी का प्रेशर वास्तविक है !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..जब हम गमज़दा हो जाएं !
आपकी हालत के तो हम खुद गवाह हैं। लेकिन वहां हमारे वही सदुपदेश लागू होंगे जो घटनास्थल पर दिये गये थे। बाकी परिवार का समय जब ब्लागरी को दिया जायेगा तो कभी न कभी तो हल्ला मचेगा ही!
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..फॉरेन दूकान इंडिया में!
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..योद्धा महापंडित: राहुल सांकृत्यायन (भाग-3)
कानून वाली चोट से तो बच गये! लेकिन बेकार चीज होने बात आज भी उतनी ही सही है जितनी आज से पांच साल पहले थी। बल्कि अब ज्यादा विश्वास से ऐसा बताया जाता है।
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..कौए की निजी ज़िंदगी
एलर्ट हो जाइए. ये एक चेतावनी है. कहीं ‘उनको’ भी नेटरोग लग गया ना तो खाने के लाले पड़ जायेंगे
aradhana की हालिया प्रविष्टी..दिए के जलने से पीछे का अँधेरा और गहरा हो जाता है…
लेकिन ये खाने के लाले पड़ने की धमकी वाली बात कहकर कहीं यह तो नहीं बता रही हो कि एक रास्ता यह भी है उपचार का कि दाना पानी बन्द कर दिया जाये!
घनश्याम मौर्य की हालिया प्रविष्टी..इंदिरा गोस्वामी जी का निधन
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..आठ बिगहा पर आगे चर्चा
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..आठ बिगहा पर आगे चर्चा
और अब आप भी आ ही गए पत्नी की पोस्ट अपने ब्लॉग पर लेकर
बधाई
हम तो उस दिन खुश हो जिस दिन तीनो पत्नियां अपना अपना ब्लॉग लिखे
अपनी श्रीमती जी को सुन्दर कविता के लिए हमारी बधाई पहुंचाईयेगा .
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..जीना यहाँ.. मरना यहाँ ..
और आपकी प्रेसरिया कविता पढ़के तो हमका भी प्रेसर आ गया.
रवि की हालिया प्रविष्टी..आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ – Stories from here and there – 19
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..Rim acquires Gist!
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..नये फिल्म समीक्षक
१. अपना लिखना कम किया जाये।
२.उनका लिखना शुरू किया जाये और उनके लिखने की मात्रा अपने से अधिक करवायी जाये।
तब ही कुछ सुधार होता दीखेगा उनको।
अब देखिये आप कौन सा उपाय अमल में लाते हैं।
यूरोपियन वित्तीय समस्या के हल की तरह इसका भी एक ही समाधान दिख रहा है और वो है एक और नया ब्लॉग ! भले ही बेस्ट हल नहीं है लेकिन और कोई चारा भी तो नहीं है
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..माल में माल ही माल (पटना ९)
ऑफ़िस में ,जब आप मीटिंग में अति व्यस्त होंगे,उसी बीच भाभी जी का फ़ोन आयेगा “जरा बताइये ,बरह में “ज्ञ” कैसे लिखते हैं ????
उनके ब्लाग का नाम दीजिये “फ़ुरसतिया की फ़ुरसत”
Amit kumar Srivastava की हालिया प्रविष्टी.."वर्गमूल"
अब कवियों की खिंचाई करके दिखाइये
अनूप जी आपको तो पसीजना ही है…(मिन्स सुधरना ही है…!)
हमें यक़ीन है…
saprem abhivadan .
Bhai mja aa gya ….Tum to aise na the , Behad dil chasp kavita… . vaki hr bloger ki bibi ke sath yhi anubhuti hai . Mera bhi kuchh yhi hal hai . bahut dant padti hai . meri bibi ne ap ki ye kavita padhi aur kahne lagi ” dekh lo jb inka ye hal hai to mai bhi kl se tumhen net pr nahi baithne doongi . kya aafat kra di aapne sir !………..apke blog pr pahli bar saubhagy se aa gya hoon . Hm se ap se achhe to Govind ji hain kam se km ye lafda to nahi palte …….
fir bhi sahity ke liye is tyag ko main Pranam karta hoon …..ap mahan hain sir .. bhabhi ji se hath jodkr hm log unhen mna lenge ap likhte rhen sir …….. l
हमारे यहाँ तो बच्चे त्रस्त हुए रहते हैं हमसे।
अगली बार आप अपने बच्चों की डायरी पर हाथ साफ करें।
Kavita Vachaknavee की हालिया प्रविष्टी..`पुरवाई’ में रम्य-रचना : "रंगों का पंचांग"
शेफ़ाली जी, एकदम शानदार..
भाभी जी से कहिये कि बहुत बहुत प्यारी कविता है और उनकी पार्टी को बाहर से हमारा भी समर्थन है