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सड़क पर जाम, एक नया झाम
By फ़ुरसतिया on December 6, 2011
समय के साथ तमाम परिभाषायें बदल जाती हैं।
पहले दूरी का मात्रक मील/किलोमीटर हुआ करता था। फ़िर घंटे/दिन हुआ। किदवई नगर से स्टेशन आधा घंटा की दूरी पर है। चमनगंज से फ़जलगंज एक घंटा। भन्नाना पुरवा से माल रोड पौन घंटा।
इधर जाम ने दूरी के सारे मात्रकों का हुलिया बिगाड़ के धर दिया है। हर मात्रक में जाम का हिस्सा शामिल हो गया है। अगर जाम नहीं मिला तो आधा घंटा। अगर जाम मिल गया तो खुदा मालिक। जाम ने दुनिया की सारी दूरियां बराबर कर दी हैं। आप हो सकता है कि लखनऊ से लंदन जित्ते समय में पहुंच जायें उत्ते समय में( जाम कृपा से) लखनऊ से कानपुर न पहुंच सकें। शहरों में रहने वाले लोग जाम से उसी तरह डरते हैं जिस तरह शोले फ़िल्म में गांव वाले गब्बर सिंह से डरते थे। शहरातियों की जिंदगी में ट्रैफ़िक-जाम उसी तरह् घुलमिल गया है जिस तरह नौकरशाही में भ्रष्टाचार।
जाम की खूबसूरती यह है कि यह हर गाड़ी को समान भाव से अटकाता है। मारुति 800 और हीरो हांडा में यह कोई भेदभाव नहीं करता। खड़खड़े और टेम्पो को बराबर महत्व देता है। टाटा का ट्रक और बजाज की मोटरसाइकिल इसको समान रूप से प्रिय हैं। यह सबको समान भाव से अपने प्रेमपास में लपेटता है। जाम के ऊपर कोई यह आरोप नहीं लगा कि उसने कोई गाड़ी घूस लेकर निकाल दी।
जाम का दर्शन दिव्य है। जाम में फ़ंसा हुआ आदमी कोलम्बस हो जाता है। वह दायें-बांये,आगे-पीछे, अगल-बगल से होकर जाम से निकल भागना चाहता है। जाम में फ़ंसा हुआ हर व्यक्ति मुक्ति का अमेरिका पाना चाहता है। लेकिन जाम उसे और फ़ंसा देता है। वापस भारत में पटक देता है। हर गलत साइड से निकलता आदमी दूसरे को रांग साइड चलने के टोंकता है। हर चालक आपसे जरा सा साइड देने की बात करता है।
कुछ गीत अगर आज के समय में दुबारा लिखे जाते तो उनमें जाम जरूर शामिल होता:
हम तुम्हे चाहते हैं ऐसे, मरने वाला कोई जिंदगी चाहता हो जैसे
अगर आज लिखा तो शायद लिखा जाता तो शायद इस तरह बनता-
हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे, जाम में फ़ंसा कोई उससे निकलना चाहता हो जैसे
मरने का अनुभव हरेक को नहीं होता। लेकिन जाम के अनुभव की बात से यह गाना ज्यादा अपीलिंग होता। ज्यादा लोगों तक पहुंचता।
सडकों में जाम लगने के कारण मांग और आपूर्ति वाले घराने के हैं। गाड़ियां ज्यादा सड़कें कम। ज्यादा समय नहीं लगेगा जब शहरों में गाड़ियों का कुल क्षेत्रफ़ल शायद शहरों की सड़कों के क्षेत्रफ़ल से आगे निकल जाये। सड़कें का कुल क्षेत्रफ़ल कम गाड़ियों का ज्यादा। आज भी गाड़ी बेचने वाली कंपनिया तमाम तरह के आफ़र दे रही हैं। कल को शायद वे गाड़ी बेंचने के लिये गाड़ी के साथ एकाध किलोमीटर सड़क भी उपहार में दें। गाड़ी के साथ शहर से साठ किलोमीटर दूर एक किलोमीटर की सड़क आपकी गाड़ी के लिये मुफ़्त में। आप कभी भी वहां ले जाकर अपनी गाड़ी चला सकते हैं। पहली बार गाड़ी ले जाने की व्यवस्था कंपनी की तरफ़ से की जायेगी। इसके बाद आपको खुद ले जानी होगी।
इस समस्या से निपटने के लिये तमाम व्यवहारिक/तकनीकी उपाय भी सोचें जायेंगे। जाम का आने वाले समय में क्या प्रभाव हो सकता है देखिये तो सही:
लेकिन यह पोस्ट करने समय हम यह भी सोच रहे हैं कि कोई मंहगाई/भूख से पटकनी खाया इंसान अगर इसे देखेगा तो शायद कहे, ” ससुर के नाती -जाम की समस्या तो बढ़ती गाड़ियों के चलते हुयी जो कि दो सदी पहले से बनना शुरू हुई। लेकिन आदमी तो न जाने कब से बनना शुरु हुआ था इस दुनिया में। उसके पेट में भूख का जाम तो सदियों से लगा हुआ है। भूख से मरता आदमी कब तुम्हारी चिंता के दायरे में आयेगा?”
हमें कौनौ जबाब नहीं सूझता सिवाय इसे पोस्ट करके फ़ूट लेने के!
नोट: फ़ोटो फ़्लिकर से साभार। पोस्ट का आइडिया पंकज से बातचीत करते हुये आया। उनको आभार कहने पर क्या पता वो बुरा मान जाये इसलिये सिर्फ़ बता दिया।
पहले दूरी का मात्रक मील/किलोमीटर हुआ करता था। फ़िर घंटे/दिन हुआ। किदवई नगर से स्टेशन आधा घंटा की दूरी पर है। चमनगंज से फ़जलगंज एक घंटा। भन्नाना पुरवा से माल रोड पौन घंटा।
इधर जाम ने दूरी के सारे मात्रकों का हुलिया बिगाड़ के धर दिया है। हर मात्रक में जाम का हिस्सा शामिल हो गया है। अगर जाम नहीं मिला तो आधा घंटा। अगर जाम मिल गया तो खुदा मालिक। जाम ने दुनिया की सारी दूरियां बराबर कर दी हैं। आप हो सकता है कि लखनऊ से लंदन जित्ते समय में पहुंच जायें उत्ते समय में( जाम कृपा से) लखनऊ से कानपुर न पहुंच सकें। शहरों में रहने वाले लोग जाम से उसी तरह डरते हैं जिस तरह शोले फ़िल्म में गांव वाले गब्बर सिंह से डरते थे। शहरातियों की जिंदगी में ट्रैफ़िक-जाम उसी तरह् घुलमिल गया है जिस तरह नौकरशाही में भ्रष्टाचार।
जाम की खूबसूरती यह है कि यह हर गाड़ी को समान भाव से अटकाता है। मारुति 800 और हीरो हांडा में यह कोई भेदभाव नहीं करता। खड़खड़े और टेम्पो को बराबर महत्व देता है। टाटा का ट्रक और बजाज की मोटरसाइकिल इसको समान रूप से प्रिय हैं। यह सबको समान भाव से अपने प्रेमपास में लपेटता है। जाम के ऊपर कोई यह आरोप नहीं लगा कि उसने कोई गाड़ी घूस लेकर निकाल दी।
जाम का दर्शन दिव्य है। जाम में फ़ंसा हुआ आदमी कोलम्बस हो जाता है। वह दायें-बांये,आगे-पीछे, अगल-बगल से होकर जाम से निकल भागना चाहता है। जाम में फ़ंसा हुआ हर व्यक्ति मुक्ति का अमेरिका पाना चाहता है। लेकिन जाम उसे और फ़ंसा देता है। वापस भारत में पटक देता है। हर गलत साइड से निकलता आदमी दूसरे को रांग साइड चलने के टोंकता है। हर चालक आपसे जरा सा साइड देने की बात करता है।
कुछ गीत अगर आज के समय में दुबारा लिखे जाते तो उनमें जाम जरूर शामिल होता:
हम तुम्हे चाहते हैं ऐसे, मरने वाला कोई जिंदगी चाहता हो जैसे
अगर आज लिखा तो शायद लिखा जाता तो शायद इस तरह बनता-
हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे, जाम में फ़ंसा कोई उससे निकलना चाहता हो जैसे
मरने का अनुभव हरेक को नहीं होता। लेकिन जाम के अनुभव की बात से यह गाना ज्यादा अपीलिंग होता। ज्यादा लोगों तक पहुंचता।
सडकों में जाम लगने के कारण मांग और आपूर्ति वाले घराने के हैं। गाड़ियां ज्यादा सड़कें कम। ज्यादा समय नहीं लगेगा जब शहरों में गाड़ियों का कुल क्षेत्रफ़ल शायद शहरों की सड़कों के क्षेत्रफ़ल से आगे निकल जाये। सड़कें का कुल क्षेत्रफ़ल कम गाड़ियों का ज्यादा। आज भी गाड़ी बेचने वाली कंपनिया तमाम तरह के आफ़र दे रही हैं। कल को शायद वे गाड़ी बेंचने के लिये गाड़ी के साथ एकाध किलोमीटर सड़क भी उपहार में दें। गाड़ी के साथ शहर से साठ किलोमीटर दूर एक किलोमीटर की सड़क आपकी गाड़ी के लिये मुफ़्त में। आप कभी भी वहां ले जाकर अपनी गाड़ी चला सकते हैं। पहली बार गाड़ी ले जाने की व्यवस्था कंपनी की तरफ़ से की जायेगी। इसके बाद आपको खुद ले जानी होगी।
इस समस्या से निपटने के लिये तमाम व्यवहारिक/तकनीकी उपाय भी सोचें जायेंगे। जाम का आने वाले समय में क्या प्रभाव हो सकता है देखिये तो सही:
- सड़कों पर गाड़ी रखने की जगह कम होने के चलते गड़ियां इस तरह की बनने लगेंगी कि उनको चारपाई की तरह खड़ा करके धर दिया जायेगा।
- घर आकर जैसे कपड़े खूंटियों पर टांग दिये जाते हैं वैसे ही गाड़ियों को भी दीवारों पर टांगने की व्यवस्था होने लगे।
- गाड़ियों के फ़ौरन खोलने की व्यवस्था होने लगे। जो हिस्सा अटका जाम में उसको लपेट के अंदर कर लिया और निकल गये।
- गाडियों को तहाकर होल्डाल की तरह लपेट सकने का जुगाड़ होने लगे गाड़ियों में।
- गाड़ियां इत्ती हल्की बनने लगें कि चारपाई की तरह उसको सर पर उठाकर जाम के झाम से निकल जाने का जुगाड़ हो।
- हर गाड़ी अपने साथ एकाध किलोमीटर फ़ोल्डिंग सड़क लेकर चले शायद। जहां फ़ंसे अपनी गाड़ी से सड़क निकाली, बिछायी और फ़ुर्र से निकल लिये।
- घर से निकलने से पहले ज्योतिषियों की सेवायें लेने लगें लोग! ज्योतिषी लोग आपके गंतव्य और गाड़ी की कुंडली मिलाकर देखें और बतायें कि कित्ते गुण मिलते हैं। जिस मामले में गुण कम मिलें उस तरफ़ आप न जायें। जिधर मिल जायें उधर निकल लें। क्या पता कल को जाम के कारण हमेशा ठिकाने से दूर रह जाने वाली गाड़ियों के लिये कालसर्प योग पूजा की व्यवस्था भी हो जाये।
- लोग जाम के चलते रात-विरात यात्रा करने लगें। फ़िर सूनसान अंधेरे में होने वाले अपराध कम हो जायेंगे। लोग शायद सलाह देने लगें- दिन के उजाले में चलने की क्या जरूरत। रात को निकलना चाहिये जब सड़कों पर खूब गाड़ियां चलती हैं।
- शहरों में सड़क के लिये जगह कम होने के कारण गाड़ियों के चलने के लिये गांवों में सड़क बनाई जायें। इससे गांवों का मजबूरी में विकास होने लगे।
- शहरों की सड़कों पर जाम के चलते देहात से शहर आने वालों का पलायन रुक जायेगा। लोग कहेंगे कि जब शहर में जाकर जाम में ही फ़ंसना है तो अपना गांव क्या बुरा है। यहां भी तो अब जाम की व्यवस्था करा दी है सरकार ने।
- हो सकता है आने वाले समय में शहर में लगने वाला जाम शहर की समृद्धि का पैमाना बन जाये। औसत पांच घंटे वाले जाम को औसत तीन घंटे जाम वाले शहर से ज्यादा समृद्ध माना जाये ।
लेकिन यह पोस्ट करने समय हम यह भी सोच रहे हैं कि कोई मंहगाई/भूख से पटकनी खाया इंसान अगर इसे देखेगा तो शायद कहे, ” ससुर के नाती -जाम की समस्या तो बढ़ती गाड़ियों के चलते हुयी जो कि दो सदी पहले से बनना शुरू हुई। लेकिन आदमी तो न जाने कब से बनना शुरु हुआ था इस दुनिया में। उसके पेट में भूख का जाम तो सदियों से लगा हुआ है। भूख से मरता आदमी कब तुम्हारी चिंता के दायरे में आयेगा?”
हमें कौनौ जबाब नहीं सूझता सिवाय इसे पोस्ट करके फ़ूट लेने के!
नोट: फ़ोटो फ़्लिकर से साभार। पोस्ट का आइडिया पंकज से बातचीत करते हुये आया। उनको आभार कहने पर क्या पता वो बुरा मान जाये इसलिये सिर्फ़ बता दिया।
Posted in बस यूं ही | 50 Responses
जब ज्यादा जाम हो जाय तो कार को चारपाई मोड में कन्वर्ट करके बीच सड़क खटियानुमा बनाकर सोया भी जा सकता है। लोग करतें रहें पें पें पों पो……। पूछने पर कहा भी जा सकता है कि हमने तो इसी फीचर के पैसे दिये हैं, अब तुम्हारी कार में चारपाई मोड नहीं है तो तुम जागते रहो, हमारी कार में है तो हम चले सोने
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..चकचोन्हर बालम…..मादलेन बबुनी………
इससे पहले कि अगली योजना में आपके इन अभियांत्रिक सुझावों पर विचार करते हुए आपको योजना आयोग की यांत्रिकी शाखा का अध्यक्ष बना दिया जाए, पेटेंट करवा लीजिए!!
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..चोर चोर मौसेरे भाई!!
२००५-06 में मालवाहक वाहन ४४ लाख से अधिक, बसें दस लाख के करीब…सभी पंजीकृत वाहन थे 890-900- लाख। अब देखिए इतने वाहन हैं फिर भी सब तमाशा…और कुल सड़कें थीं ४० लाख किलोमीटर लम्बी…
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..इस शहर में हर शख़्स परेशान-सा क्यों है
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अजी फूट कर के कहाँ जाइयेगा?
जहाँ जाइयेगा, जामै पाइयेगा!
ज्ञान दत्त पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉगिंग और टिप्पणी प्रणाली की स्केलेबिलिटी (बनाम अमर्त्यता)
जाम से निकलने के तरीके अद्भुत हैं…इनको अभी से पेटेंट करा लीजिये.
Puja Upadhyay की हालिया प्रविष्टी..या फिर कहरवा – धा-गे-न-ति-नक-धिन…
दो टोस्ट के बीच में लगाया जाता हैं जेम
सड़क पर झाम या झाम में सड़क ..
बाकी तो पोस्ट बड़ी साईंस फिक्शनल है -कुछ आईडिया चुराने के काबिल हैं ….
“रात भर जाम से जाम टकराएगा,
जब नशा छायेगा, तब मजा आएगा”
PD की हालिया प्रविष्टी..लफ्ज़ों से छन कर आती आवाजें
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..गूगल का गणित
Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..डिग्री ही नहीं शिक्षा भी जरुरी.
आपको बतायें..एकदम सच्ची-सच्ची लिख रहे हैं कि ई जाम में पेट्रोल की फुकाई देख के एक दिन निकल पड़े बेटे की साइकिल लेकर दफ्तर। देखें कैसे नहीं चला पाते हैं! १० किमी गये..१० किमी आये। जाम में जब सबका पेट्रोल फूंक रहा था तो बड़ा मजा आ रहा था अपनी बुद्धिमानी पर। घर लौटे तो एक पैर जवाब दे चुका था। पैदल चलना भी चलना दूभर हो गया । बीस साल बाद बीस किमी साइकिल चलाने का परिणाम ई निकला कि दूसरे दिन पैदल भी घर से निकलने लायक नहीं रहे। लोगो ने सलाह दी…एक्कै बार में इत्ता काहे चलाये धीरे-धीरे चलाइये। वैसे एक बात तो पक्की है कि महंगाई..मोटापा..जाम..पेट्रोल सबकी समस्या का परमानेंट हल है साइकिल चलाना। महज १५ मिनट देर से पहुंचे थे उस दिन ऑफिस। अभी हिम्मत नहीं हारे हैं। एक बढ़िया साइकिल खरीदने का मूड बना रहे हैं।
….मस्त पोस्ट।
आईडिया सब एक से एक झमाझम हैं। आज दो जगह वर्तनी पर निगाह का जाम लगा और आशा हुई थी कि आपने जानबूझकर टोके जाने का झोल छोड़ा है। बहुत निराशा हुई, आप टोके नहीं गये:)
बड़ी सार्थक पोस्ट है सरजी।
संजय @ मो सम कौन? की हालिया प्रविष्टी..नशा है सबमें मगर रंग नशे का है जुदा……..
आपका शुक्रिया है जी। लेकिन ई बड़ा गल्त किये कि वर्तनी की गलती देखकर भी आप भी नहीं बताये अभीतक। अब हमको खुद खोजना पड़ेगा।
वैसे जाम एक और होता है, “जाम में डूब गयी यारों मेरे जीवन की हर शाम” वाला जाम | यमक अलंकार की एक कविता चिपकाये देते हैं…
जाम जाम ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय |
या पीये हंस जाये जग, वा देखे बौराय |
नमस्ते….
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..साल्ट लेक सिटी ट्रिप…
जाम की फ़ितरत ही ऐसी होती है कि अपना जाम सबसे बड़ा लगता है।
यमक अलंकार का प्रयोग चकाचक है जी!
कुछ सालों बाद जाम इतना अधिक समय लेने लगेगा कि तमाम काम काज लोग जाम में ही निपटाने की तैयारी कर जाम मॆं ही अपाइन्ट्मेंट ले लेंगे कि ,फ़लाने तुम कल रामा देवी चौराहे पे जाम में मिलना ,वहीं अंगूठी की रस्म कर लेंगे ,गाडी में बैठे बैठे ….या पी.ड्ब्लू.डी. वाले रोड पे ही जाम में नौकरियों के लिये इंजीनियरिंग कालेज के बच्चों को बुलायेंगे और वहीं कैम्पस इंटरव्यू ले लेंगे ….इत्यादि इत्यादि ।
Amit kumar Srivastava की हालिया प्रविष्टी.."ऊ ला ला ……."
सही है। जाम के ये व्यवहारिक उपयोग हैं। इनका लाभ उठाना चाहिये। शुरु किया जाये।
आपने अपने आईडिये को निकलकर भागने का मौका नहीं दिया.. अद्भुत.. कहाँ कहाँ तलक सोच जाते हैं आप
किस्से तो अभी न जाने कित्ते हैं। सोचते कहां है जी। ये तो अपने-आप की बोर्ड पर अवतार होता है।
aradhana की हालिया प्रविष्टी..दिए के जलने से पीछे का अँधेरा और गहरा हो जाता है…
कुछ दिन बाद गंतव्य पहुँचने पर लोग पार्टी का भी इंतजाम करेंगे ,लोग मुबारक करेंगे….आप जाम से बच-बचा के आ गए !
अब तो जाम से ज़्यादा सड़क से डर लगने लगा है !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..कुछ कह नहीं पाता !
प्रणाम.
बहुत है छ्टांक भर की टिप्पणी काम चलाने को!
घनश्याम मौर्य की हालिया प्रविष्टी..साहब की कॉलबेल
लखनऊ में भी लगने लगेगा जाम! घबराइये मती! अपनी बारी का इंतजार करिये।
भेजा कर देता है बंद काम
अरे जाम में फ़ंसे श्रीमान
क्यों करते हो जाम-जाम
लेकर हरि का नाम
क्यों नहीं चढ़ा लेते एक जाम
हलक से उतरते ही जाम का काम तमाम
न कहीं ट्रैफ़िक न कहीं जाम
मित्रों इस मर्ज का यही है समाधान
आगे से रखन इसका ध्यान!
क्या तुकबंदी करी है जाम के बहाने! वाह!
इसके अलावा जाम से दो बातें हमेशा दिमाग में आती हैं: पहली ये कि सबको लगता है कि जाम उसके चलते नहीं है. जबकि वो भी उसी भीड़ का हिसा होता है.
दूसरी: कानपुर में बिना माँ-बहन किये ट्रैफिक में से निकल नहीं सकते. ख़ास कर सिग्नल पर जहाँ ट्रेन जाने के बाद गेट खुलता है
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..माल में माल ही माल (पटना ९)
जब तुम कानपुर में पढ़ते थे तब जाम बच्चा टाइप होते होंगे। आज के जाम सब जवान हो गयें हैं। और भी कई आयाम जुड़ गये हैं। आओ कभी देखो आकर!
एक शब्द या विषय पर ऐसा अनोखा आप ही लिख सकते हैं…परनाम आपकी लेखनी/प्रतिभा को…
क्या जो लिखा है ना आपने…क्या कहें…?? बस,लाजवाब !!!!
चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..चक्की- एक समीक्षा