Tuesday, December 06, 2011

सड़क पर जाम, एक नया झाम

http://web.archive.org/web/20140419215723/http://hindini.com/fursatiya/archives/2425

सड़क पर जाम, एक नया झाम

समय के साथ तमाम परिभाषायें बदल जाती हैं।
पहले दूरी का मात्रक मील/किलोमीटर हुआ करता था। फ़िर घंटे/दिन हुआ। किदवई नगर से स्टेशन आधा घंटा की दूरी पर है। चमनगंज से फ़जलगंज एक घंटा। भन्नाना पुरवा से माल रोड पौन घंटा।
इधर जाम ने दूरी के सारे मात्रकों का हुलिया बिगाड़ के धर दिया है। हर मात्रक में जाम का हिस्सा शामिल हो गया है। अगर जाम नहीं मिला तो आधा घंटा। अगर जाम मिल गया तो खुदा मालिक। जाम ने दुनिया की सारी दूरियां बराबर कर दी हैं। आप हो सकता है कि लखनऊ से लंदन जित्ते समय में पहुंच जायें उत्ते समय में( जाम कृपा से) लखनऊ से कानपुर न पहुंच सकें। शहरों में रहने वाले लोग जाम से उसी तरह डरते हैं जिस तरह शोले फ़िल्म में गांव वाले गब्बर सिंह से डरते थे। शहरातियों की जिंदगी में ट्रैफ़िक-जाम उसी तरह् घुलमिल गया है जिस तरह नौकरशाही में भ्रष्टाचार।
जाम की खूबसूरती यह है कि यह हर गाड़ी को समान भाव से अटकाता है। मारुति 800 और हीरो हांडा में यह कोई भेदभाव नहीं करता। खड़खड़े और टेम्पो को बराबर महत्व देता है। टाटा का ट्रक और बजाज की मोटरसाइकिल इसको समान रूप से प्रिय हैं। यह सबको समान भाव से अपने प्रेमपास में लपेटता है। जाम के ऊपर कोई यह आरोप नहीं लगा कि उसने कोई गाड़ी घूस लेकर निकाल दी।
जाम का दर्शन दिव्य है। जाम में फ़ंसा हुआ आदमी कोलम्बस हो जाता है। वह दायें-बांये,आगे-पीछे, अगल-बगल से होकर जाम से निकल भागना चाहता है। जाम में फ़ंसा हुआ हर व्यक्ति मुक्ति का अमेरिका पाना चाहता है। लेकिन जाम उसे और फ़ंसा देता है। वापस भारत में पटक देता है। हर गलत साइड से निकलता आदमी दूसरे को रांग साइड चलने के टोंकता है। हर चालक आपसे जरा सा साइड देने की बात करता है।
कुछ गीत अगर आज के समय में दुबारा लिखे जाते तो उनमें जाम जरूर शामिल होता:
हम तुम्हे चाहते हैं ऐसे, मरने वाला कोई जिंदगी चाहता हो जैसे
अगर आज लिखा तो शायद लिखा जाता तो शायद इस तरह बनता-
हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे, जाम में फ़ंसा कोई उससे निकलना चाहता हो जैसे
मरने का अनुभव हरेक को नहीं होता। लेकिन जाम के अनुभव की बात से यह गाना ज्यादा अपीलिंग होता। ज्यादा लोगों तक पहुंचता।
सडकों में जाम लगने के कारण मांग और आपूर्ति वाले घराने के हैं। गाड़ियां ज्यादा सड़कें कम। ज्यादा समय नहीं लगेगा जब शहरों में गाड़ियों का कुल क्षेत्रफ़ल शायद शहरों की सड़कों के क्षेत्रफ़ल से आगे निकल जाये। सड़कें का कुल क्षेत्रफ़ल कम गाड़ियों का ज्यादा। आज भी गाड़ी बेचने वाली कंपनिया तमाम तरह के आफ़र दे रही हैं। कल को शायद वे गाड़ी बेंचने के लिये गाड़ी के साथ एकाध किलोमीटर सड़क भी उपहार में दें। गाड़ी के साथ शहर से साठ किलोमीटर दूर एक किलोमीटर की सड़क आपकी गाड़ी के लिये मुफ़्त में। आप कभी भी वहां ले जाकर अपनी गाड़ी चला सकते हैं। पहली बार गाड़ी ले जाने की व्यवस्था कंपनी की तरफ़ से की जायेगी। इसके बाद आपको खुद ले जानी होगी।
इस समस्या से निपटने के लिये तमाम व्यवहारिक/तकनीकी उपाय भी सोचें जायेंगे। जाम का आने वाले समय में क्या प्रभाव हो सकता है देखिये तो सही:
  1. सड़कों पर गाड़ी रखने की जगह कम होने के चलते गड़ियां इस तरह की बनने लगेंगी कि उनको चारपाई की तरह खड़ा करके धर दिया जायेगा।
  2. घर आकर जैसे कपड़े खूंटियों पर टांग दिये जाते हैं वैसे ही गाड़ियों को भी दीवारों पर टांगने की व्यवस्था होने लगे।
  3. गाड़ियों के फ़ौरन खोलने की व्यवस्था होने लगे। जो हिस्सा अटका जाम में उसको लपेट के अंदर कर लिया और निकल गये।
  4. गाडियों को तहाकर होल्डाल की तरह लपेट सकने का जुगाड़ होने लगे गाड़ियों में।
  5. गाड़ियां इत्ती हल्की बनने लगें कि चारपाई की तरह उसको सर पर उठाकर जाम के झाम से निकल जाने का जुगाड़ हो।
  6. हर गाड़ी अपने साथ एकाध किलोमीटर फ़ोल्डिंग सड़क लेकर चले शायद। जहां फ़ंसे अपनी गाड़ी से सड़क निकाली, बिछायी और फ़ुर्र से निकल लिये।
  7. घर से निकलने से पहले ज्योतिषियों की सेवायें लेने लगें लोग! ज्योतिषी लोग आपके गंतव्य और गाड़ी की कुंडली मिलाकर देखें और बतायें कि कित्ते गुण मिलते हैं। जिस मामले में गुण कम मिलें उस तरफ़ आप न जायें। जिधर मिल जायें उधर निकल लें। क्या पता कल को जाम के कारण हमेशा ठिकाने से दूर रह जाने वाली गाड़ियों के लिये कालसर्प योग पूजा की व्यवस्था भी हो जाये।
  8. लोग जाम के चलते रात-विरात यात्रा करने लगें। फ़िर सूनसान अंधेरे में होने वाले अपराध कम हो जायेंगे। लोग शायद सलाह देने लगें- दिन के उजाले में चलने की क्या जरूरत। रात को निकलना चाहिये जब सड़कों पर खूब गाड़ियां चलती हैं।
  9. शहरों में सड़क के लिये जगह कम होने के कारण गाड़ियों के चलने के लिये गांवों में सड़क बनाई जायें। इससे गांवों का मजबूरी में विकास होने लगे।
  10. शहरों की सड़कों पर जाम के चलते देहात से शहर आने वालों का पलायन रुक जायेगा। लोग कहेंगे कि जब शहर में जाकर जाम में ही फ़ंसना है तो अपना गांव क्या बुरा है। यहां भी तो अब जाम की व्यवस्था करा दी है सरकार ने।
  11. हो सकता है आने वाले समय में शहर में लगने वाला जाम शहर की समृद्धि का पैमाना बन जाये। औसत पांच घंटे वाले जाम को औसत तीन घंटे जाम वाले शहर से ज्यादा समृद्ध माना जाये ।
इन उपायों को देखकर आपको अंदाजा लग गया होगा कि हम जाम की समस्या से कित्ता हलकान हैं।
लेकिन यह पोस्ट करने समय हम यह भी सोच रहे हैं कि कोई मंहगाई/भूख से पटकनी खाया इंसान अगर इसे देखेगा तो शायद कहे, ” ससुर के नाती -जाम की समस्या तो बढ़ती गाड़ियों के चलते हुयी जो कि दो सदी पहले से बनना शुरू हुई। लेकिन आदमी तो न जाने कब से बनना शुरु हुआ था इस दुनिया में। उसके पेट में भूख का जाम तो सदियों से लगा हुआ है। भूख से मरता आदमी कब तुम्हारी चिंता के दायरे में आयेगा?”
हमें कौनौ जबाब नहीं सूझता सिवाय इसे पोस्ट करके फ़ूट लेने के! :)
नोट: फ़ोटो फ़्लिकर से साभार। पोस्ट का आइडिया पंकज से बातचीत करते हुये आया। उनको आभार कहने पर क्या पता वो बुरा मान जाये इसलिये सिर्फ़ बता दिया। :)

50 responses to “सड़क पर जाम, एक नया झाम”

  1. सतीश पंचम
    गाड़ियों को फोल्ड करके चारपाई की तरह जाम में से निकलने का आइडिया तो गजब रहा :)
    जब ज्यादा जाम हो जाय तो कार को चारपाई मोड में कन्वर्ट करके बीच सड़क खटियानुमा बनाकर सोया भी जा सकता है। लोग करतें रहें पें पें पों पो……। पूछने पर कहा भी जा सकता है कि हमने तो इसी फीचर के पैसे दिये हैं, अब तुम्हारी कार में चारपाई मोड नहीं है तो तुम जागते रहो, हमारी कार में है तो हम चले सोने :)
    सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..चकचोन्हर बालम…..मादलेन बबुनी………
  2. सलिल वर्मा
    बस सरकार पहुँचती ही होगी आपतक कि वो ज़रा भ्रष्टाचार के जाम में क्या उलझे, आपने पूरा का पूरा आइडिया हाइजैक कर लिया… आपने जिन तथाकथित ओरिजिनल सलाहों को यहाँ पेश किया है वह सरकार के मस्तिष्क में कब से कुलबुला रहे हैं.. यकीन न हो तो किसी भी प्रवक्ता से जाम के विषय पर पूछ लीजिए.. अपने ब्रेड पर फ्रूट जाम लगाकर उसको उदरस्थ करते हुए यही सब बांचेंगे!!
    इससे पहले कि अगली योजना में आपके इन अभियांत्रिक सुझावों पर विचार करते हुए आपको योजना आयोग की यांत्रिकी शाखा का अध्यक्ष बना दिया जाए, पेटेंट करवा लीजिए!!
    सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..चोर चोर मौसेरे भाई!!
  3. dhirendra pandey
    मान गए गुरु मज़ा आ गया क्या बढ़िया जां कि पीड़ा को व्यंग कि अभिव्यक्ति दी है
  4. चंदन कुमार मिश्र
    समाधान यह भी होगा कि गाड़ियों को हवाई जहाज की तरह हवा में कई स्तरों पर चलाया जाय। एक तो ऊपर इतनी दूर तक जगह है कि जमीन पर एक गाड़ी इतनी जगह में सैकड़ों गाड़ियाँ लग जाएंगी …वैसे पहला उपाय आपको परिवहन विभाग को सुझाना चाहिए। तुरंत खबर करिए मंत्रालय को…
    २००५-06 में मालवाहक वाहन ४४ लाख से अधिक, बसें दस लाख के करीब…सभी पंजीकृत वाहन थे 890-900- लाख। अब देखिए इतने वाहन हैं फिर भी सब तमाशा…और कुल सड़कें थीं ४० लाख किलोमीटर लम्बी…
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..इस शहर में हर शख़्स परेशान-सा क्यों है
  5. ज्ञान दत्त पाण्डेय
    हमें कौनौ जबाब नहीं सूझता सिवाय इसे पोस्ट करके फ़ूट लेने के!
    —————-
    अजी फूट कर के कहाँ जाइयेगा?
    जहाँ जाइयेगा, जामै पाइयेगा!
    ज्ञान दत्त पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉगिंग और टिप्पणी प्रणाली की स्केलेबिलिटी (बनाम अमर्त्यता)
  6. Puja Upadhyay
    ई सब ब्लॉग्गिंग भी तो एक ठो जामे है…जो आया कहिंयो भाग नहीं पाता है…यहीं अटक के रह जाता है, थोडा इधर ताकता है थोडा उधर :)
    जाम से निकलने के तरीके अद्भुत हैं…इनको अभी से पेटेंट करा लीजिये. :)
    Puja Upadhyay की हालिया प्रविष्टी..या फिर कहरवा – धा-गे-न-ति-नक-धिन…
  7. rachna
    अगर आप ट्रैफिक जाम ना कहे ट्रैफिक जेम कहे तो आप को खुद अहसास हो की जेम का क्या हश्र हैं
    दो टोस्ट के बीच में लगाया जाता हैं जेम
  8. arvind mishra
    शीर्षक देखते ही दिमाग ने इसका उल्था किया
    सड़क पर झाम या झाम में सड़क ..
    बाकी तो पोस्ट बड़ी साईंस फिक्शनल है -कुछ आईडिया चुराने के काबिल हैं ….
  9. PD
    हमको तो किसी महान शायर का लिखा ये शेर याद आ रहा है -
    “रात भर जाम से जाम टकराएगा,
    जब नशा छायेगा, तब मजा आएगा”
    PD की हालिया प्रविष्टी..लफ्ज़ों से छन कर आती आवाजें
  10. प्रवीण पाण्डेय
    यहाँ पर सोसायटीओं में बहुमंजिला पार्किंग बनने चालू हो गये हैं। यहाँ भी दूरी घंटों में ही बतायी जाती है, वह भी दिन के भिन्न समय में भिन्न।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..गूगल का गणित
  11. shefali
    ओरिजिनल आइडियाज़ ….एक से बढ़कर एक …सभी पेटेंट करने लायक ….
  12. Shikha Varshney
    आईडिया सभी जबर्दस्त्त हैं .जल्दी पटेंट करा लीजिए नहीं तो बाहरी देश ले उडेंगे ..जाम ने आजकल यहाँ भी लोगों को जाम किया हुआ है.
    Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..डिग्री ही नहीं शिक्षा भी जरुरी.
  13. देवेन्द्र पाण्डेय
    हमारी दुखती रग पर हाथ धर दिया आपने। रोज ही झेलते हैं जाम। ससुर के नाती ई कम्पनी वाले एक्को आइ़डिया चुरा लेते तो कित्ता अच्छा होता। कुछ तो मुक्ति मिलती।
    आपको बतायें..एकदम सच्ची-सच्ची लिख रहे हैं कि ई जाम में पेट्रोल की फुकाई देख के एक दिन निकल पड़े बेटे की साइकिल लेकर दफ्तर। देखें कैसे नहीं चला पाते हैं! १० किमी गये..१० किमी आये। जाम में जब सबका पेट्रोल फूंक रहा था तो बड़ा मजा आ रहा था अपनी बुद्धिमानी पर। घर लौटे तो एक पैर जवाब दे चुका था। पैदल चलना भी चलना दूभर हो गया । बीस साल बाद बीस किमी साइकिल चलाने का परिणाम ई निकला कि दूसरे दिन पैदल भी घर से निकलने लायक नहीं रहे। लोगो ने सलाह दी…एक्कै बार में इत्ता काहे चलाये धीरे-धीरे चलाइये। वैसे एक बात तो पक्की है कि महंगाई..मोटापा..जाम..पेट्रोल सबकी समस्या का परमानेंट हल है साइकिल चलाना। महज १५ मिनट देर से पहुंचे थे उस दिन ऑफिस। अभी हिम्मत नहीं हारे हैं। एक बढ़िया साइकिल खरीदने का मूड बना रहे हैं।
    ….मस्त पोस्ट।
  14. संजय @ मो सम कौन?
    एफ़.एम. रेडियो के शुरुआती दौर में एक विज्ञापन आता था जिसमें गाडि़यों की पों-पों के बीच फ़ंसा बंदा पीछे वाले को डपटता सुनाई देता था ’ऊपर से ले जा’ और इसके बाद बुदबुदाहट सी सुनाई देती थी, प्योर दिल्ली स्टाईल पंजाबी भाषा की।
    आईडिया सब एक से एक झमाझम हैं। आज दो जगह वर्तनी पर निगाह का जाम लगा और आशा हुई थी कि आपने जानबूझकर टोके जाने का झोल छोड़ा है। बहुत निराशा हुई, आप टोके नहीं गये:)
    बड़ी सार्थक पोस्ट है सरजी।
    संजय @ मो सम कौन? की हालिया प्रविष्टी..नशा है सबमें मगर रंग नशे का है जुदा……..
  15. देवांशु निगम
    इस बात पे लड़ाई हो सकती है अगर मैं ये कहूं की गुडगाँव वाले ट्रैफिक जाम से सबसे ज्यादा आहत हैं (और इसी लिए पंकज ने ये बात आपसे शेयर की) क्यूंकि जाम लगना अब शहर के लिए स्टेटस की बात हो गयी है, जितना लम्बा जाम उतना बड़ा शहर, और अगर कोई ये कहे “जनाब आपके शहर में तो जाम १० मिनट में खुल जाता है हमारे यहाँ देखिये आधे घंटे से पहले तो गाडी हिलती भी नहीं है, ये होता है जाम” | सामने वाला बुरा मान जाये , आपके घर तो क्या आपके शहर ना आये वापस ( इसे कुछ अनचाहे अतिथियों को भगाने और दुबारा उनके ना आने के लिए भी उपयोग किया जा सकता है, क्यूंकि इन्सान ये सुन सकता है की वो बहुत घटिया है पर ये नहीं सुन सकता की उसके शहर में जाम छोटा लगता है :) )….
    वैसे जाम एक और होता है, “जाम में डूब गयी यारों मेरे जीवन की हर शाम” वाला जाम | यमक अलंकार की एक कविता चिपकाये देते हैं…
    जाम जाम ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय |
    या पीये हंस जाये जग, वा देखे बौराय |
    नमस्ते….
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..साल्ट लेक सिटी ट्रिप…
  16. Amit kumar Srivastava
    ऑफ़िस देर से पहुँचने का सबसे अच्छा बहाना है ’जाम’ ।
    कुछ सालों बाद जाम इतना अधिक समय लेने लगेगा कि तमाम काम काज लोग जाम में ही निपटाने की तैयारी कर जाम मॆं ही अपाइन्ट्मेंट ले लेंगे कि ,फ़लाने तुम कल रामा देवी चौराहे पे जाम में मिलना ,वहीं अंगूठी की रस्म कर लेंगे ,गाडी में बैठे बैठे ….या पी.ड्ब्लू.डी. वाले रोड पे ही जाम में नौकरियों के लिये इंजीनियरिंग कालेज के बच्चों को बुलायेंगे और वहीं कैम्पस इंटरव्यू ले लेंगे ….इत्यादि इत्यादि ।
    Amit kumar Srivastava की हालिया प्रविष्टी.."ऊ ला ला ……."
  17. पंकज उपाध्याय
    जाम में फ़ंसने के किस्से भी सरेआम हुये…
    आपने अपने आईडिये को निकलकर भागने का मौका नहीं दिया.. अद्भुत.. कहाँ कहाँ तलक सोच जाते हैं आप :-)
  18. aradhana
    हम्म, कारें तहा के तो रखी ही जाने लगी हैं, मल्टीस्टोरीड पार्किंग में. अब तो सड़कों की भी तहों पर तहें बन रही हैं. जो हाइवे अथोरिटी वाले हैं, उनको कुछ आइडिया हियाँ से भी लेना चाहिए :)
    aradhana की हालिया प्रविष्टी..दिए के जलने से पीछे का अँधेरा और गहरा हो जाता है…
  19. संतोष त्रिवेदी
    इसी जाम के झाम से बचने के लिए अपन पैदल ही कोलंबस बन के निकल लेते हैं.बाबू और बड़का टाइप के लोग काले शीशों के अंदर से उचक-उचक कर मौका-मुआयना करके फिर सिर-महाराज को अंदर घुसेड़ लेते हैं.कुछ लोग तो महाभारत के पात्र बन जाते हैं और इस तरह जब वे अपने ठिकाने पहुँचते हैं तो एक लंबी सांस लेते हैं.
    कुछ दिन बाद गंतव्य पहुँचने पर लोग पार्टी का भी इंतजाम करेंगे ,लोग मुबारक करेंगे….आप जाम से बच-बचा के आ गए !
    अब तो जाम से ज़्यादा सड़क से डर लगने लगा है !
    संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..कुछ कह नहीं पाता !
  20. sanjay jha
    आपके विचारों के कण-कण में विराजमान आईडिया के सुनामी में हम तो फसें रह गए……………बरी मुस्किल से छटांक भर टिपण्णी सटाया है………………….
    प्रणाम.
  21. घनश्‍याम मौर्य
    हमेशा की तरह झन्‍नटेदार। वैसे हम लखनऊवासियों को इस तरह के जाम का स्‍वाद हाल ही में चखना पड़ा था जब लखनऊ में बसपा की रैली, कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षा और आई0बी0पी0एस0 की परीक्षा एक ही दिन पड़े थे।
    घनश्‍याम मौर्य की हालिया प्रविष्टी..साहब की कॉलबेल
  22. डा. बी.एस.चौहान
    जब लग जाता है जाम
    भेजा कर देता है बंद काम
    अरे जाम में फ़ंसे श्रीमान
    क्यों करते हो जाम-जाम
    लेकर हरि का नाम
    क्यों नहीं चढ़ा लेते एक जाम
    हलक से उतरते ही जाम का काम तमाम
    न कहीं ट्रैफ़िक न कहीं जाम
    मित्रों इस मर्ज का यही है समाधान
    आगे से रखन इसका ध्यान!
  23. Abhishek
    हमेशा की तरह मस्त पोस्ट :)
    इसके अलावा जाम से दो बातें हमेशा दिमाग में आती हैं: पहली ये कि सबको लगता है कि जाम उसके चलते नहीं है. जबकि वो भी उसी भीड़ का हिसा होता है.
    दूसरी: कानपुर में बिना माँ-बहन किये ट्रैफिक में से निकल नहीं सकते. ख़ास कर सिग्नल पर जहाँ ट्रेन जाने के बाद गेट खुलता है :)
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..माल में माल ही माल (पटना ९)
  24. Ranjana
    जय हो !!!!
    एक शब्द या विषय पर ऐसा अनोखा आप ही लिख सकते हैं…परनाम आपकी लेखनी/प्रतिभा को…
    क्या जो लिखा है ना आपने…क्या कहें…?? बस,लाजवाब !!!!
  25. चंद्र मौलेश्वर
    जाम जाम है, आम व खास में भेद नहीं करता! मगर अब दिन फिरने वाले हैं क्योंकि हवा में उड़ने वाली गाडियां बाज़ार में आने वाली है। तब जाम पिए ड्राइवर की भी झरती नहीं होगी… बडे मज़े होंगे :)
    चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..चक्की- एक समीक्षा
  26. ePandit
    आपके ५ नम्बर आइडिये को तो हम साइकिल पर खूब प्रयोग करते थे। जहाँ जगह कम हुयी साइकिल उठाकर चट से निकल लेते थे, एक बार गाड़ियों वाले हमें देखकर जरूर जलते होंगे। खैर साइकिल छूटने के बाद वो मजा नहीं रहा।
  27. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] सड़क पर जाम, एक नया झाम [...]

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