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जाम के व्यवहारिक उपयोग
By फ़ुरसतिया on December 9, 2011
सड़क
पर जाम सभ्य समाज की अपरिहार्य स्थिति है। वह समाज पिछड़ा हुआ माना जाता है
जहां ट्रैफ़िकजाम नहीं होता। बिनु जाम सब सून! जाम से कुछ लोग परेशान हो
उठते हैं। घबरा जाते हैं। शुरु-शुरु में ऐसा होना सहज बात है। लेकिन जाम से
घबराना नहीं चाहिये। इसको एक चुनौती की तरह लेना चाहिये। डटकर मुकाबला
करना चाहिये। मु्श्किलें इतनी आईं कि आसां हो गयीं मंत्र का जाम करते हुये जाम से निपटना चाहिये।
लेकिन ये बातें तब तक ही काम देती हैं जब तक आप जाम में कभी-कभार फ़ंसे। लेकिन जब जाम रोजमर्रा का हिस्सा बन जाये तो अलग तरह के उपाय करने पड़ते हैं। जैसे राजनीति में जब छोटे-मोटे आरोप कभी-कभी लगते हैं तो लोग उसका खंडन करते हैं। लेकिन जब आरोप नियमित और बड़े-बड़े लगने लगते हैं तो लोग हर आरोप के जबाब में प्रत्यारोप करते हैं। कोई आप पर चोरी का आरोप लगाये तो आप उस पर डकैती, हत्या, बलात्कार, देशद्रोह के आरोप के साथ एक साथ हमला कर दो। अगली बार वह छेड़खानी का आरोप लगाने से पहले भी कई बार सोचेगा। और जब कोई आरोप लगाने के पहले सोचने लगे तो वो क्या खाकर आरोप लगायेगा।
तो हम कह रहे थे कि जब जाम जीवन के लिये रोजमर्रा का बवाल बन जाये तो इससे निपटने के लिये अलग तरह के उपाय करने पड़ेंगे। इसके लिये सबसे पहले तो आप सहअस्तित्व के उदार सिद्धांत का पालन करने हुये इसको मान्यता दे दीजिये। भ्रष्टाचार, जातिवाद, सम्प्रदायवाद, अराजकता आदि की तरह ट्रैफ़िक जाम को भी सहज स्थिति मानते ही जाम लगने पर खलना कम हो जायेगा। मान लीजिये समाज की अन्य सहज बुराइयों की तरह जाम भी एक अपरिहार्य लफ़ड़ा है। हमेशा साथ रहेगा। एक बार यह मान लेते ही आपका आधा काम तो पूरा हो जायेगा। इसके बाद इससे निपटने के उपाय सोचिये।
किसी भी समस्या से निपटने का दो उपाय होते हैं। पहले उपाय सरकारी टाइप का होता है। इसमें उस समस्या से निपटने के उपाय खोजने के लिये एक कमेटी बनती है। फ़िर सब कमेटी। फ़िर एक और कमेटी। फ़िर चार ठो और कमेटी/सब-कमेटी। इस सबमें समय ज्यादा लगता है और पैसा भी ठुकता है। हल कुछ नहीं मिलता।
समस्या से निपटने के लिये दूसरे असरकारी उपाय में समस्या से निपटने के व्यवहारिक उपाय सोचे जाते हैं। व्यवहारिक उपाय सोचने का फ़ायदा यह होता है कि इसमें आम जनता की भागेदारी होती है। विकीपीडिया की तरह कोई भी इसमें योगदान दे सकता है। कोई भी व्यक्ति, कोई भी उपाय सोचकर उसको बिना किसी की अनुमति के उसे अमल में ला सकता है। इसमें पैसा भी बिल्कुल नहीं लगता। किसी घोटाले का कोई खतरा नहीं। तो आइये इसी घराने के कुछ उपाय सोचते हुये जाम की समस्या से निपटने के लिये वह किया जाये जिसे पढ़े-लिखों की भाषा में चिंतन कहा जाता है।
किसी चीज से निपटने का सबसे उत्तम उपाय उसका व्यवहारिक उपयोग करना होता है। उपयोग होते-होते वह चीज खतम हो जाती है। तो आइये देखिये जाम के व्यवहारिक उपयोग क्या हो सकते हैं:
लेकिन ये बातें तब तक ही काम देती हैं जब तक आप जाम में कभी-कभार फ़ंसे। लेकिन जब जाम रोजमर्रा का हिस्सा बन जाये तो अलग तरह के उपाय करने पड़ते हैं। जैसे राजनीति में जब छोटे-मोटे आरोप कभी-कभी लगते हैं तो लोग उसका खंडन करते हैं। लेकिन जब आरोप नियमित और बड़े-बड़े लगने लगते हैं तो लोग हर आरोप के जबाब में प्रत्यारोप करते हैं। कोई आप पर चोरी का आरोप लगाये तो आप उस पर डकैती, हत्या, बलात्कार, देशद्रोह के आरोप के साथ एक साथ हमला कर दो। अगली बार वह छेड़खानी का आरोप लगाने से पहले भी कई बार सोचेगा। और जब कोई आरोप लगाने के पहले सोचने लगे तो वो क्या खाकर आरोप लगायेगा।
तो हम कह रहे थे कि जब जाम जीवन के लिये रोजमर्रा का बवाल बन जाये तो इससे निपटने के लिये अलग तरह के उपाय करने पड़ेंगे। इसके लिये सबसे पहले तो आप सहअस्तित्व के उदार सिद्धांत का पालन करने हुये इसको मान्यता दे दीजिये। भ्रष्टाचार, जातिवाद, सम्प्रदायवाद, अराजकता आदि की तरह ट्रैफ़िक जाम को भी सहज स्थिति मानते ही जाम लगने पर खलना कम हो जायेगा। मान लीजिये समाज की अन्य सहज बुराइयों की तरह जाम भी एक अपरिहार्य लफ़ड़ा है। हमेशा साथ रहेगा। एक बार यह मान लेते ही आपका आधा काम तो पूरा हो जायेगा। इसके बाद इससे निपटने के उपाय सोचिये।
किसी भी समस्या से निपटने का दो उपाय होते हैं। पहले उपाय सरकारी टाइप का होता है। इसमें उस समस्या से निपटने के उपाय खोजने के लिये एक कमेटी बनती है। फ़िर सब कमेटी। फ़िर एक और कमेटी। फ़िर चार ठो और कमेटी/सब-कमेटी। इस सबमें समय ज्यादा लगता है और पैसा भी ठुकता है। हल कुछ नहीं मिलता।
समस्या से निपटने के लिये दूसरे असरकारी उपाय में समस्या से निपटने के व्यवहारिक उपाय सोचे जाते हैं। व्यवहारिक उपाय सोचने का फ़ायदा यह होता है कि इसमें आम जनता की भागेदारी होती है। विकीपीडिया की तरह कोई भी इसमें योगदान दे सकता है। कोई भी व्यक्ति, कोई भी उपाय सोचकर उसको बिना किसी की अनुमति के उसे अमल में ला सकता है। इसमें पैसा भी बिल्कुल नहीं लगता। किसी घोटाले का कोई खतरा नहीं। तो आइये इसी घराने के कुछ उपाय सोचते हुये जाम की समस्या से निपटने के लिये वह किया जाये जिसे पढ़े-लिखों की भाषा में चिंतन कहा जाता है।
किसी चीज से निपटने का सबसे उत्तम उपाय उसका व्यवहारिक उपयोग करना होता है। उपयोग होते-होते वह चीज खतम हो जाती है। तो आइये देखिये जाम के व्यवहारिक उपयोग क्या हो सकते हैं:
- जाम की समस्या बढ़ने पर उससे निपटने के लिये तमाम उपाय सोचे जायेंगे। कुछ लोग जगह-जगह जाम हटाने के लिये स्वयं सेवकों के इंतजाम की वकालत करेंगे। स्वंयसेवकों को पहले मानदेय फ़िर अस्थाई नौकरी देने की बात होगी। इसके बाद स्थाई तो वे खुद या अदालत के आदेश से हो लेंगे। इससे समाज में रोजगार के अवसर बढेंगे।
- इवेंट मैनेजमेंट की तरह ही विश्वविद्यालयों में जाम मैनेजमेंट की कक्षायें शुरू होंगी। बाद में बच्चों को यौन शिक्षा की तर्ज पर जाम से निपटने के गुर भी सिखाने की वकालत शुरू होगी। इससे समाज में अध्यापकों के लिये रोजगार के नये अवसर बनेंगे।
- भाषण के शौकीन लोग जगह-जगह लगे जाम को संबोधित करके अपने शौक पूरे कर सकते हैं। जनप्रतिनिधि बिना पैसे के सिर्फ़ जाम की जगह पर माइक लगाकर अपने समर्थन की अपील कर सकता है। जब जाम बहुत आम बात हो जायेगा तब गरीब जनप्रतिनिधियों के लिये चुनाव लड़ना सस्ता हो जायेगा।
- जब शहरों के लिये जाम आम हो जायेगा तो लोग इस समय का वैकल्पिक उपयोग करना सीख जायेंगे। लोग अपने दोस्तो से कहेंगे- अभी समय नहीं है। जाम में फ़ंसने पर आराम से बात करूंगा फ़ोन पर। नेटवर्किंग/ब्लागिंग के शौकीन लोग जाम में फ़ंसने पर नेटवर्किंग/ब्लागिंग के शौक पूरे कर सकते हैं।
- बच्चे अपने परिवार सहित बाहर जाने पर कापी-किताब लेकर चलेंगे। अगर कहीं जाम में फ़ंसे तो कापी-किताब खोलकर पढ़ने लगेंगे। पिताश्री अपने बच्चे को कोई गणित का सवाल समझाते हुये हड़काऊ मुद्रा में आने ही वाला होगा कि बच्चा बोलेगा – पापा, चलिये जाम खुल गया। पिताश्री उचककर स्कूटर में किक मारते हुये आगे बढ़ लेंगे।
- जाम लगने की स्थिति में उससे निपटने के हाईटेक तरीके खोजे जायेंगे। जाम लगने का कारण आमतौर पर किसी चौपहिया वाहन का खराब हो जाना होता है। जहां वाहन खराब होता है वहां तक क्रेन जाना मुश्किल काम होता है। क्या पता कल को किंगफ़िशर आदि हवाई कंपनियां जाम में फ़ंसे वाहन निकालने का काम करने लगें। तब शायद उनका घाटा भी पूरा हो जाये।
- ऊपर वाले उपाय में क्या पता यह हो कि हवाई कंपनियां डबलरोल करने लगें। दिल्ली से कलकत्ता जाता हुआ कोई जहाज कानपुर के जीटी रोड में जाम में फ़ंसे किसी ट्रक निकालते हुये तब कलकत्ता जाये। यात्रियों में हुई असुविधा के लिये माफ़ी हुये वह जाम खुलवाने की फ़ीस वसूलते हुये अपना घाटा कम करने लगे।
- लंच के डिब्बे दफ़्तर तक पहुंचाने वाले लोगों के कारोबार में भी इजाफ़ा होगा। लोग जाम में फ़ंसने पर इनकी मोबाइल सेवायें लेने लगेंगे। जैसे अभी टैक्सी बुलाते हैं। मेकडोनाल्ड का पिज्जा आर्डर करते हैं। वैसे ही जामप्रधान समाज के लोग डिब्बा वालों को फ़ोन करेंगे- भन्नानापुरवा के पास ट्रांसफ़ार्मर के दस कदम आगे जाम में फ़ंसे हैं। हमारे घर से खाना लेकर यहां डिलिवर करवा दो।
- जाम लोगों को हौसला भी प्रदान कर सकता है। कोई पिद्दी सा आदमी जाम में फ़ंसे होने पर अपने किसी पहलवान दुश्मन को मोबाइल फोन पर ललकारते हुये कह सकता है- अगर असल बाप की औलाद हो और पराग डेरी का दूध पिया है तो आ जाओ निपटने के लिये। घंटाघर के जाम में फ़ंसा हूं। तुझे छ्ठी और सातवीं दोनों का दूध न याद दिला दिया यो नाम बदल देना। पहलवान की एक तो जाम में जाने की हिम्मत नहीं होगी और अगर वो अकल की दुश्मनी के चलते चला भी गया तो जाम में घुसकर उसके फ़रिश्ते भी अपने पिद्धी दुश्मन को खोज नहीं पायेगें।
- कवि लोग जाम में फ़ंसे लोगों को अपनी कवितायें सुना सकते हैं। जनता चाहे भी तो भाग नहीं सकती। कवि बाद में डींग हांकते हुये कह सकता है- हज्जारों ( कहेगा वह लाक्खों ही) की भीड़ के सामने मैंने अपनी ये वाली कविता पढ़ी। चिलचिलाती, भद्दर दोपहरी में। पब्लिक हिली तक नहीं। चुपचाप सुनती रही।
- आने वाले समय में जाम तमाम प्रेमकथाओं की शुरुआत के कारण बनेंगे। दो-तीन-चार घंटे साथ ही जाम में फ़ंसे होने पर लोग समय बिताने के लिये कुछ काम करने की तर्ज पर प्रेमाख्यान शुरु करने लगेंगे। हो सकता है जाम खुलने तक आख्यान समाप्त हो जाये। अगले दिन फ़िर किसी जाम में मिलने पर कहानी फ़िर आगे बढ़ सकती है। बाद में अपनी कहानी बताते हुये लोग कहें- हम पहली बार मेडिकल कालेज चौराहे वाले जाम में मिले थे……
कुछ सालों बाद जाम इतना अधिक समय लेने लगेगा कि तमाम काम काज लोग जाम में ही निपटाने की तैयारी कर जाम में ही अपाइन्ट्मेंट ले लेंगे कि ,फ़लाने तुम कल रामा देवी चौराहे पे जाम में मिलना ,वहीं अंगूठी की रस्म कर लेंगे ,गाडी में बैठे बैठे ….या पी.डब्लू.डी. वाले रोड पे ही जाम में नौकरियों के लिये इंजीनियरिंग कालेज के बच्चों को बुलायेंगे और वहीं कैम्पस इंटरव्यू ले लेंगे ….इत्यादि इत्यादि ।शायद आपको भी कोई जाम के कुछ व्यवहारिक उपयोग सूझ रहे हों। अगर सही में ऐसा है तो बताइये न।
Posted in बस यूं ही | 15 Responses
आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..स्ट्रींग सिद्धांत : इतिहास और विकास
जाम में हम ब्लॉगर भी अपनी कई पोस्टें लिख सकते हैं.वैसे आपकी यह पोस्ट राम देवी चौराहे के पास लगे जाम में तो नहीं लिखी गई ?
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..कुछ कह नहीं पाता !
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉग लेखन की बाध्यतायें
प्रणाम.
आजकल जाम में 15 मिनट अतिरिक्त लग रहे हैं, सो एक बार विचार आया कि सवेरे का नाश्ता रास्ते में निपटाया जाये।
शायद, जाम जब बढ़ेगा, तो यह करना होगा!
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉगिंग और टिप्पणी प्रणाली की स्केलेबिलिटी (बनाम अमर्त्यता)
बाबा “दिन में तो कोई आसार नहीं है, शाम को लौटते वक़्त ध्यान रखना, और जब दिन भर जाम न मिले तो रात में दो “जाम” लगा लेना !!! समझे!!!”
और इस तरह कई बाबा लोगों का धंधा चल निकलेगा…कुछ एयरलाइंस जिनका “जाम” का भी धंधा है वो भी चल पड़ेंगी!!! (पता नहीं क्यूँ आप की दोनों पोस्ट में मैं “जाम” में अटक गया हूँ )
धुंआधार पोस्ट है ….
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..साल्ट लेक सिटी ट्रिप…
चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..चक्की- एक समीक्षा
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..वी आई पी ब्लागों का बी पी आई(ब्लॉग पापुलरिटी इंडेक्स यानि चिठ्ठा लोकप्रियता सूचकांक )
जाम न हुआ विशुद्ध गणित हो गया
जाम से रोजगार भी बढेगा… सुबह का चाय-नाश्ता लोग जाम में ही किया करेंगे. मुझे चाय-गर्म चाय, और पुलिस-बूट-पुलिस (पोलिस) सुनाई दे रहा है. रेलवे स्टेशन वाला माहौल दिख रहा है बड़ा चौराहा पर. टाइम पास… मूंगफली… गर्मागर्म टाइम पास
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..माल में माल ही माल (पटना ९)