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अपन तो बोर हो रहे हैं
By फ़ुरसतिया on February 2, 2012
कल
अपन काफ़ी देर बैठे-बैठे बोर हो गये! सीधे नहीं पूरा तरीके से हुये भाई!
प्रोसीजर फ़ालो किया! पहले काफ़ी देर तक कुछ किये बिना बैठे रहे! फ़िर सोचते
रहे! घर-परिवार के बारे में! फ़िर थोड़ा अनमने हुये! फ़िर हल्का सा उदास और तब
फ़िर जाकर फ़ाइनली बोर हुए!
अब जब इतना मेहनत करके बोर हुये तो फ़िर लगातार बोर होते रहे काफ़ी देर तक! न्यूटन के जड़त्व के नियम का सम्मान करते हुये! ठीक वैसे ही जैसे अपनी क्रिकेट कर रही है आजकल! एक बार हारी तो हारती ही चली जा रही! अब इसमें लोग धुंआधार बहस कर रहे हैं। कोई बैट्समैन को दोष दे रहा है कोई बालर को! तो कोई कप्तान को! न्यूटन साहब के जड़त्व के नियम के सम्मान वाली वाली बात कोई नहीं कर रहा है!
जब बहुत देर बोर हो लिये तो अगला कदम अपना स्टेटस अपडेट करने का किया। GMail पर स्टेटस सटा दिया -बोर हो रहे हैं
जैसे ही स्टेटस सटाया कि कई मित्र आ गये सवाल पूछने कि बोर क्यों हो रहे हैं?
हमने कहा कि भाई यह स्थिति है अपन की! हम कोई अपने आप थोड़ी चाह रहे हैं बोर होना।
अगले मित्र ने टोंका – बोर हो रहे हैं लेकिन मुस्करा क्यों रहे हैं? उनको मेरी बोरियत से तकलीफ़ नहीं थी। मुस्कराहट से एतराज था। वो तो कहो दोस्ती का लिहाज कर गये वर्ना कह सकते थे – बोर होते समय मुस्कराते हुये शर्म नहीं आती!
एक और मित्र ने कहा- बोर हो रहे हैं- हा,हा,हा,हा!
अगले आये उन्होंने दो ठो लिंक थमा दिये कि इसको पढो बोरियत दूर हो जायेगी! बाद में पता लगा कि वे हमको बड़ी बोरियत देकर छोटी से निजात दिलाना चाहते थे!
कुछ ने सलाह दी कुछ लिखूं! किसी ने कहा कुछ पढूं! इससे बोरियत दूर होगी! एक ने तो और दोनों व्यायाम एक साथ करने की सलाह दी और कहा -कुछ पढो-लिखो! बोरियत दूर हो जायेगी!
मामला इतना उलझाऊ हो गया कि दोस्त लोग मुझसे ही मेरी बोरियत का कत्ल करवाने पर उतारू हो गये! वो तो कहो मैं झांसे में नहीं आया वर्ना दिन भर की मेहनत से पैदा की गयी, पाली पोसी बोरियत का हमारे ही हाथो खून हो जाता! दोस्त लोग तो फ़ूट लेते हमारे ऊपर बोरियत के कत्ल का इल्जाम लगता! मुझे मेरे गृहस्थ धर्म से भटका देते भाई लोग अनजाने में।
घर से 510 किमी दूर बैठे हुये सच्चे गृहस्थ का यह परम कर्तव्य होता है कि वह समय निकालकर नियमित रूप से बोर होता रहे! घर से बाहर निकलते ही बोरियत का स्टाक लादकर निकलना चाहिये एक सच्चे गृहस्थ को! घर की नियमित चिंता करनी चाहिये! हम वही कर रहे थे कल लेकिन दोस्त लोग मेरे बोरियत यज्ञ में ब्लागरों की तरह व्यवधान पैदा करते रहे! एक भाई तो बोले न हो चिट्ठाचर्चा ही कर दीजिये!
शाम को बच्चे ने फोन पर गणित का एक सवाल पूछा! हम फ़ोन पर ही तरीका बता दिये! फ़िर उससे पूछते रहे कि निकला कि नहीं? कई बार पूछने पर बच्चा बोर हो गया होगा! बाद में उससे सवाल का उत्तर पूछा! नोट कर लिया! फ़िर आज कई बार सवाल खुद किया तो जो उत्तर उसने बताया था उससे मुलाकात ही नहीं हुई! सोचा आजकल के बच्चे लापरवाह हैं! इसके बाद पता चला कि अपन जो गुणा-भाग कर रहे थे उसमें मामला इधर-उधर हो गया था। बोरियत में कैलकुलेशन तक गड़बड़ा जाता है!
यहां मौसम चकाचक है! सुबह धूप पसरी/ खिली रहती है! धूप के पसरने से लगता है कि धूप निठल्ली है! न कोई काम न कोई धाम! रोज सुबह आकर शहर के ऊपर बेपरवाह पसर जाती है! धूप खिली है से लगता है जैसे मेहनत करके खिली है! खिलने में जिम्मेदारी वाली बात है! कान्फ़ीडेंस है! पसरने में लापरवाही! बिन्दासपन! धूप के पसरने में लगता है कि कोई खानदानी रसूख वाला मामला है! जैसे नेतागिरी में बाप के नाम का इस्तेमाल करके बच्चे राजनीति के आंगन में पसर जाते हैं! उनका अपने बाप की सन्तान होना ही उनको बेपरवाह बनाता है! खिलने में मेहनत करनी पड़ती है! पसरने में सिर्फ़ पसर जाना होता है!
अखबार में आज किसी ने लिखा- शहर मुस्करा रहा है! दिन खुशनुमा! सुनहरी /पीली घूप खिली रहती है। पता नहीं क्यों लोग इसको गुलाबी ठंड कहते हैं। मौसम खुशनुमा शायद इसलिये लगता है इन दिनों क्यों बाहर का तापमान शरीर के तापमान के काफ़ी नजदीक रहता है। शरीर बाहर से न ऊर्जा ज्यादा लेता है और न ज्यादा बाहर देना होता है। न किसी को कुछ ज्यादा लेना ने किसी से कुछ अधिक लेना! आत्मनिर्भरता के नजदीक! खुशहाल रहने के लिये शायद यह जरूरी है कि न आप किसी पर ज्यादा निर्भर रहें न आप पर कोई बहुत लदा रहे!
कई दिनों से वही पुरानी-सुरानी खबरें सुनकर बोर हो रहे थे। आज खबर देखी कि नोयडा/दिल्ली में किसी के यहां छापा पड़ा! दो -तीन सौ करोड़ के अल्ले-पल्ले की बरामदगी बताई गयी है! 25 जगह छापे पड़े! फोटो देखी तो लगा कि जिसके यहां छापा पड़ा था उसने लगता है तीन-चार दिन से दाड़ी तक नहीं बनाई थी! अपन तो बोर हो गये अगले का चेहरा ही देखकर! ऐसे दो-तीन सौ करोड़ फ़ोकट का पैसा रखने से क्या फ़ायदा जब ससुर तुमको दाड़ी बनाने तक की फ़ुरसत नहीं।
और भी तमाम सारी बातें हैं। लेकिन वो सुनाकर आपको बोर नहीं करना चाहते! अभी तो अपन अकेले ही बोर हो रहे हैं! आप मस्त रहिये
अब जब इतना मेहनत करके बोर हुये तो फ़िर लगातार बोर होते रहे काफ़ी देर तक! न्यूटन के जड़त्व के नियम का सम्मान करते हुये! ठीक वैसे ही जैसे अपनी क्रिकेट कर रही है आजकल! एक बार हारी तो हारती ही चली जा रही! अब इसमें लोग धुंआधार बहस कर रहे हैं। कोई बैट्समैन को दोष दे रहा है कोई बालर को! तो कोई कप्तान को! न्यूटन साहब के जड़त्व के नियम के सम्मान वाली वाली बात कोई नहीं कर रहा है!
जब बहुत देर बोर हो लिये तो अगला कदम अपना स्टेटस अपडेट करने का किया। GMail पर स्टेटस सटा दिया -बोर हो रहे हैं
जैसे ही स्टेटस सटाया कि कई मित्र आ गये सवाल पूछने कि बोर क्यों हो रहे हैं?
हमने कहा कि भाई यह स्थिति है अपन की! हम कोई अपने आप थोड़ी चाह रहे हैं बोर होना।
अगले मित्र ने टोंका – बोर हो रहे हैं लेकिन मुस्करा क्यों रहे हैं? उनको मेरी बोरियत से तकलीफ़ नहीं थी। मुस्कराहट से एतराज था। वो तो कहो दोस्ती का लिहाज कर गये वर्ना कह सकते थे – बोर होते समय मुस्कराते हुये शर्म नहीं आती!
एक और मित्र ने कहा- बोर हो रहे हैं- हा,हा,हा,हा!
अगले आये उन्होंने दो ठो लिंक थमा दिये कि इसको पढो बोरियत दूर हो जायेगी! बाद में पता लगा कि वे हमको बड़ी बोरियत देकर छोटी से निजात दिलाना चाहते थे!
कुछ ने सलाह दी कुछ लिखूं! किसी ने कहा कुछ पढूं! इससे बोरियत दूर होगी! एक ने तो और दोनों व्यायाम एक साथ करने की सलाह दी और कहा -कुछ पढो-लिखो! बोरियत दूर हो जायेगी!
मामला इतना उलझाऊ हो गया कि दोस्त लोग मुझसे ही मेरी बोरियत का कत्ल करवाने पर उतारू हो गये! वो तो कहो मैं झांसे में नहीं आया वर्ना दिन भर की मेहनत से पैदा की गयी, पाली पोसी बोरियत का हमारे ही हाथो खून हो जाता! दोस्त लोग तो फ़ूट लेते हमारे ऊपर बोरियत के कत्ल का इल्जाम लगता! मुझे मेरे गृहस्थ धर्म से भटका देते भाई लोग अनजाने में।
घर से 510 किमी दूर बैठे हुये सच्चे गृहस्थ का यह परम कर्तव्य होता है कि वह समय निकालकर नियमित रूप से बोर होता रहे! घर से बाहर निकलते ही बोरियत का स्टाक लादकर निकलना चाहिये एक सच्चे गृहस्थ को! घर की नियमित चिंता करनी चाहिये! हम वही कर रहे थे कल लेकिन दोस्त लोग मेरे बोरियत यज्ञ में ब्लागरों की तरह व्यवधान पैदा करते रहे! एक भाई तो बोले न हो चिट्ठाचर्चा ही कर दीजिये!
शाम को बच्चे ने फोन पर गणित का एक सवाल पूछा! हम फ़ोन पर ही तरीका बता दिये! फ़िर उससे पूछते रहे कि निकला कि नहीं? कई बार पूछने पर बच्चा बोर हो गया होगा! बाद में उससे सवाल का उत्तर पूछा! नोट कर लिया! फ़िर आज कई बार सवाल खुद किया तो जो उत्तर उसने बताया था उससे मुलाकात ही नहीं हुई! सोचा आजकल के बच्चे लापरवाह हैं! इसके बाद पता चला कि अपन जो गुणा-भाग कर रहे थे उसमें मामला इधर-उधर हो गया था। बोरियत में कैलकुलेशन तक गड़बड़ा जाता है!
यहां मौसम चकाचक है! सुबह धूप पसरी/ खिली रहती है! धूप के पसरने से लगता है कि धूप निठल्ली है! न कोई काम न कोई धाम! रोज सुबह आकर शहर के ऊपर बेपरवाह पसर जाती है! धूप खिली है से लगता है जैसे मेहनत करके खिली है! खिलने में जिम्मेदारी वाली बात है! कान्फ़ीडेंस है! पसरने में लापरवाही! बिन्दासपन! धूप के पसरने में लगता है कि कोई खानदानी रसूख वाला मामला है! जैसे नेतागिरी में बाप के नाम का इस्तेमाल करके बच्चे राजनीति के आंगन में पसर जाते हैं! उनका अपने बाप की सन्तान होना ही उनको बेपरवाह बनाता है! खिलने में मेहनत करनी पड़ती है! पसरने में सिर्फ़ पसर जाना होता है!
अखबार में आज किसी ने लिखा- शहर मुस्करा रहा है! दिन खुशनुमा! सुनहरी /पीली घूप खिली रहती है। पता नहीं क्यों लोग इसको गुलाबी ठंड कहते हैं। मौसम खुशनुमा शायद इसलिये लगता है इन दिनों क्यों बाहर का तापमान शरीर के तापमान के काफ़ी नजदीक रहता है। शरीर बाहर से न ऊर्जा ज्यादा लेता है और न ज्यादा बाहर देना होता है। न किसी को कुछ ज्यादा लेना ने किसी से कुछ अधिक लेना! आत्मनिर्भरता के नजदीक! खुशहाल रहने के लिये शायद यह जरूरी है कि न आप किसी पर ज्यादा निर्भर रहें न आप पर कोई बहुत लदा रहे!
कई दिनों से वही पुरानी-सुरानी खबरें सुनकर बोर हो रहे थे। आज खबर देखी कि नोयडा/दिल्ली में किसी के यहां छापा पड़ा! दो -तीन सौ करोड़ के अल्ले-पल्ले की बरामदगी बताई गयी है! 25 जगह छापे पड़े! फोटो देखी तो लगा कि जिसके यहां छापा पड़ा था उसने लगता है तीन-चार दिन से दाड़ी तक नहीं बनाई थी! अपन तो बोर हो गये अगले का चेहरा ही देखकर! ऐसे दो-तीन सौ करोड़ फ़ोकट का पैसा रखने से क्या फ़ायदा जब ससुर तुमको दाड़ी बनाने तक की फ़ुरसत नहीं।
और भी तमाम सारी बातें हैं। लेकिन वो सुनाकर आपको बोर नहीं करना चाहते! अभी तो अपन अकेले ही बोर हो रहे हैं! आप मस्त रहिये
Posted in बस यूं ही | 37 Responses
और उसी पोस्ट से एक और डेडली वाला “आप तो बड़े लकी हैं जी, बोर हो रहे हैं”
और रही छापे की बात, तो पैसा गिनने में टाइम निकल गया होगा इसलिए दाढ़ी नहीं बना पाया होगा
चकाचक पोस्ट है जी !!!
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..बस एक दिन….
Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..मियाँ की जूती मियाँ के सिर.
फिर भी कोई बात नहीं, “तब तक बोर हो लीजिए जब तक लोग आप से बोर नहीं हो जाते।” (यह थ्योरी भी न्यूटन के कोई न कोई नियम से प्रभावित ही लगता है।)
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..सूफ़ीमत का विकास-2
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..जादूगर
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..१-घण्टे बजाने पर रोक नहीं , २ – कश्मीर से मिशनरी को बाहर जाने के आदेश दिए गये !
aradhana की हालिया प्रविष्टी..दिए के जलने से पीछे का अँधेरा और गहरा हो जाता है…
amit srivastava की हालिया प्रविष्टी.." सोने की जगह तो फिक्स हो गई….."
संजय @ मो सम कौन… की हालिया प्रविष्टी..नशा है सबमें मगर रंग नशे का है जुदा……..
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..पापा को भी प्यार चाहिए -सतीश सक्सेना
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..गर्दन की मोच
लैप में इंटरनेटी लैपटॉप और जेब में ३जी स्मार्ट मोबाइल के रहते आप बोर हो रहे हैं!
आपकी झूठ की पोल तो अभी ही खुल गई जब नकली बोरियत में यह असली बोरियत पोस्ट निकल आई!…
रवि की हालिया प्रविष्टी..आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ – Stories from here and there – 74
आपकी बोरियत भी मौज के साथ आती है , उससे पोस्ट निकलती है ….
भगवान् ऐसी बोरियत सबको दे …….बच्चन ने कहा था
कह तो सकते है कहकर कुछ जी हल्का कर लेते है
उस पार नियति का मानव से व्यवहार न जाने का होगा ….
आशीष श्रीवास्तव
प्रणाम.
विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..अब IRCTC की वेबसाईट अच्छा काम कर रही है।
amit की हालिया प्रविष्टी..गाजर का हलवा…..
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..बीमार ब्लॉगर क्या सोचता है ?
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..विश्वनाथ जी की जय हो!
सादर
दीपक
सादर
पंकज मणि त्रिपाठी
अति सुंदर |
मेरे ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित हैं |
अपनी प्रतिक्रिया आवश्य दें |
http://kumar2291937.blogspot.com
atamprakashkumar की हालिया प्रविष्टी..लड़ रहे नेता यहाँ संसद भवन में
मस्त पोस्ट!!
abhi की हालिया प्रविष्टी..वो लड़की जो खुश रहना जानती थी