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अमृतलाल वेगड़जी से मुलाकात
By फ़ुरसतिया on February 25, 2012
दो दिन पहले वेगड़जी से मिलना हुआ।
वेगड़जी की किताब ’तीरे-तीरे नर्मदा’ पढी तो मन किया उनकी बाकी दो किताबें भी पढ़ी जायें। पता चला कि किताबें या यूनिवर्सल में मिल सकती हैं या फ़िर वेगड़जी के यहां। सोचा जब लेनी ही हैं तो वेगड़जी से ही क्यों न ली जायें। उनसे मिलना भी हो जायेगा।
वेगड़जी को फोन किया। जिस कार्यक्रम में मुलाकात होने का हवाला मैंने दिया वे उसको तुरंत याद नहीं कर पाये। सीडी विमोचन की बात उनके दिमाग से इधर-उधर हो गयी थी। मैंने फ़िर मेहनत करके याद दिलाया तो याद आ गया। किताब के लिये पूछा तो उन्होंने बताया कि किताबें यूनिवर्सल बुक स्टाल में मिल जायेंगी या फ़िर उनके यहां। मैंने कहा -हमें तो आपसे लेनी हैं। मिलना भी है।
घर का पता बताते हुये उन्होंने कई मार्ग निर्देशक बताये। हम किसी से परिचित न थे। बोले फ़िर कैसे आयेंगे? हमने कहा पहुंच जायेंगे। फ़ाइनल पता याद रखा – राउट टाउन स्टेडियम के पास, आस्था मेडिकल स्टोर के पीछे। तीन पत्ती चौराहा और प्रसूतिका गृह के आसपास उनका घर होने की बात विजय तिवारी जी ने बताई थी।
आधे घंटे में हम आस्था मेडिकल स्टोर के पास पहुंच गये। पूछते-पांछते। वहां से भी पूछते हुये उनके घर पहुंच गये। बड़े से घर के गेट के अन्दर पहुंचकर एक छोटे से बच्चे पूछा-वेगड़जी यहीं रहते हैं? उनसे मिलने आये हैं।
बच्चे ने पूछा- कौन वेगड़जी?
हमें झटका लगा। वेगड़जी के घर में पूछा जा रहा है कौन वेगड़जी? लेकिन बच्चा भी सही था। वेगड़जी के परिवार में सभी लोग तो वेगड़ हैं।
हमने बताया- अमृतलाल वेगड़जी मिलना है।
बच्चा हमको वेगड़जी के पास ले गया। वे परिवार के साथ टेलीविजन देख रहे थे। बोले- चलिये अपने कमरे में चलते हैं।
इसके बाद काफ़ी देर तक वेगड़जी से बातचीत होती रही। उन्होंने ’नर्मदा परिकम्मा’ से जुड़े अपने तमाम अनुभव सुनाये। अपनी किताबों, उसके अनुवादों, चित्र प्रदर्शनियों के बारे में बताया। हमने वेगड़जी के बारे में पिछली पोस्ट पर आये कमेंट मोबाइल से पढ़कर सुनाये। भारतीय नागरिक और ज्ञानजी की टिप्पणी सुनकर वे खुश हो गये। उनको ज्ञानजी के प्रतिदिन गंगाभ्रमण और उसपर पोस्ट ठेलन की जानकारी दी। इसके बाद फ़ोन लगाकर ज्ञानजी और वेगड़जी की बातचीत भी संपन्न करा दी। दोनों जने मगन-मन बातें करते रहे। पैसे ठुके हमारे।
हमने वेगड़जी से पूछा – आपको नर्मदा परिक्रमा करने का विचार कैसे आया?
इस पर वेगड़जी ने बताया- प्रकृति और सौन्दर्य से प्रेम की प्रकृति मुझे अपने पिता से मिली है। मैं अपने चित्र बनाने के लिये नर्मदा तट के आसपास जाता रहता था। पहले आसपास फ़िर दूर-दराज के गांव-देहात में अपने चित्र/स्केच के लिये दृष्य देखने जाते थे। वहीं पर नर्मदा परिक्रमा करते लोग दिखे/मिले। फ़िर मन किया कि नर्मदा की परिक्रमा की जाये। पचास की उमर के आसपास शुरुआत करके टुकड़ों-टुकड़ों में परिक्रमा शुरु की/पूरी की। इस बारे में नर्मदात्रयी की प्र्थम पुस्तक “सौंन्दर्य की नदी नर्मदा” में उन्होंने लिखा है:
कांताजी ने , जिनको कि वेगड़जी अपना वन-वुमन सेन्सर बोर्ड कहते हैं, वेगड़जी के बारे में “अमृतस्य नर्मदा” में मेरे पति शीर्षक से एक लेख लिखा है। उन्होंने लिखा है:
इस बीच वेगड़जी के सुपुत्र भी आये। उन्होंने जानकारी दी कि बेगड़की सारी कृतियां और चित्र इंटरनेट पर डालने के लिये उन्होंने वेगड़.इन के नाम से साइट रजिस्टर करा ली है। जल्दी ही इस पर काम शुरु होगा।
इस किताबों को पढ़ना मजेदार अनुभव है। बेगड़जी मूलत: चित्रकार हैं। लेकिन रंगो के साथ जितने वे सहज होंगे शब्दों के खेल में उससे कम मजा नहीं लेते। कांताजी ने उनके लेखन के बारे में बताते हुये लिखा है:
वेगड़जी से मिलना एक अद्भुत अनुभव रहा।
वेगड़जी की तीनों किताबें सौंदर्य की नदी नर्मदा, अमृतस्य नर्मदा और तीरे-तीरे नर्मदा के प्रकाशक का पता निम्न है:
मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी
रवीन्द्र ठाकुर मार्ग, बानगंगा,
भोपाल(म.प्र.)-462 003
दूरभाष- (0755)2553084
वेगड़जी की किताब ’तीरे-तीरे नर्मदा’ पढी तो मन किया उनकी बाकी दो किताबें भी पढ़ी जायें। पता चला कि किताबें या यूनिवर्सल में मिल सकती हैं या फ़िर वेगड़जी के यहां। सोचा जब लेनी ही हैं तो वेगड़जी से ही क्यों न ली जायें। उनसे मिलना भी हो जायेगा।
वेगड़जी को फोन किया। जिस कार्यक्रम में मुलाकात होने का हवाला मैंने दिया वे उसको तुरंत याद नहीं कर पाये। सीडी विमोचन की बात उनके दिमाग से इधर-उधर हो गयी थी। मैंने फ़िर मेहनत करके याद दिलाया तो याद आ गया। किताब के लिये पूछा तो उन्होंने बताया कि किताबें यूनिवर्सल बुक स्टाल में मिल जायेंगी या फ़िर उनके यहां। मैंने कहा -हमें तो आपसे लेनी हैं। मिलना भी है।
घर का पता बताते हुये उन्होंने कई मार्ग निर्देशक बताये। हम किसी से परिचित न थे। बोले फ़िर कैसे आयेंगे? हमने कहा पहुंच जायेंगे। फ़ाइनल पता याद रखा – राउट टाउन स्टेडियम के पास, आस्था मेडिकल स्टोर के पीछे। तीन पत्ती चौराहा और प्रसूतिका गृह के आसपास उनका घर होने की बात विजय तिवारी जी ने बताई थी।
आधे घंटे में हम आस्था मेडिकल स्टोर के पास पहुंच गये। पूछते-पांछते। वहां से भी पूछते हुये उनके घर पहुंच गये। बड़े से घर के गेट के अन्दर पहुंचकर एक छोटे से बच्चे पूछा-वेगड़जी यहीं रहते हैं? उनसे मिलने आये हैं।
बच्चे ने पूछा- कौन वेगड़जी?
हमें झटका लगा। वेगड़जी के घर में पूछा जा रहा है कौन वेगड़जी? लेकिन बच्चा भी सही था। वेगड़जी के परिवार में सभी लोग तो वेगड़ हैं।
हमने बताया- अमृतलाल वेगड़जी मिलना है।
बच्चा हमको वेगड़जी के पास ले गया। वे परिवार के साथ टेलीविजन देख रहे थे। बोले- चलिये अपने कमरे में चलते हैं।
इसके बाद काफ़ी देर तक वेगड़जी से बातचीत होती रही। उन्होंने ’नर्मदा परिकम्मा’ से जुड़े अपने तमाम अनुभव सुनाये। अपनी किताबों, उसके अनुवादों, चित्र प्रदर्शनियों के बारे में बताया। हमने वेगड़जी के बारे में पिछली पोस्ट पर आये कमेंट मोबाइल से पढ़कर सुनाये। भारतीय नागरिक और ज्ञानजी की टिप्पणी सुनकर वे खुश हो गये। उनको ज्ञानजी के प्रतिदिन गंगाभ्रमण और उसपर पोस्ट ठेलन की जानकारी दी। इसके बाद फ़ोन लगाकर ज्ञानजी और वेगड़जी की बातचीत भी संपन्न करा दी। दोनों जने मगन-मन बातें करते रहे। पैसे ठुके हमारे।
हमने वेगड़जी से पूछा – आपको नर्मदा परिक्रमा करने का विचार कैसे आया?
इस पर वेगड़जी ने बताया- प्रकृति और सौन्दर्य से प्रेम की प्रकृति मुझे अपने पिता से मिली है। मैं अपने चित्र बनाने के लिये नर्मदा तट के आसपास जाता रहता था। पहले आसपास फ़िर दूर-दराज के गांव-देहात में अपने चित्र/स्केच के लिये दृष्य देखने जाते थे। वहीं पर नर्मदा परिक्रमा करते लोग दिखे/मिले। फ़िर मन किया कि नर्मदा की परिक्रमा की जाये। पचास की उमर के आसपास शुरुआत करके टुकड़ों-टुकड़ों में परिक्रमा शुरु की/पूरी की। इस बारे में नर्मदात्रयी की प्र्थम पुस्तक “सौंन्दर्य की नदी नर्मदा” में उन्होंने लिखा है:
कभी-कभी मैं अपने आप से पूछता हूं, यह जोखिम भरी यात्रा मैंने क्यों की? और हर बार मेरा उत्तर होता, “अगर मैं यह यात्रा न करता तो मेरा जीवन व्यर्थ जाता।” जो जिस काम के लिये बना हो, उसे वह काम करना ही चाहिये। और मैं नर्मदा पदयात्रा के लिये बना हूं।वेगड़जी की पत्नी, कांता जी , को मैंने उनके बारे में लिखा पढ़ाया-
किन्तु, जबतक इस सत्य का पता मुझे चलता ,मैं 50 के करीब पहुंच चुका था। प्रथम पदयात्रा मैंने 1977 में की और अंतिम 1987 में। इस ग्यारह वर्षों के दौरान की गई दस यात्राओं का वृत्तांत है इस पुस्तक में। साथ ही कुछ रेखांकन भी हैं, जो मैंने इन यात्राओं के दौरान किये।
जब वेगड़जी बोल रहे थे तो उनकी श्रीमती जी उनको सामने से स्निग्ध स्मित से निहार रही थीं। उनको देखकर लगा कि सुन्दरता उमर की मोहताज नहीं होती।तो मुस्कराकर उन्होंने कहा- अब से जब कभी किसी कार्यक्रम में इनके साथ जाऊंगी तो इनकी तरफ़ नहीं देखा करूंगी।
कांताजी ने , जिनको कि वेगड़जी अपना वन-वुमन सेन्सर बोर्ड कहते हैं, वेगड़जी के बारे में “अमृतस्य नर्मदा” में मेरे पति शीर्षक से एक लेख लिखा है। उन्होंने लिखा है:
45 वर्षों के साथ में मैने उनके विविध रूप देखे। मैंने उन्हें खुश देखा, नाराज देखा, उदास और दुखी देखा, रोते देखा और खिलाखिलाकर हंसते देखा। मन के दृढ नहीं हैं। अतिशयोक्ति बहुत करते हैं, आत्मप्रशंसा उससे भी अधिक। मैं रोकती हूं तो कहते हैं, मैं किसी की निंदा नहीं करता। परनंदा से आत्मप्रशंसा अच्छी। आडंबरहीन और डरपोक से लगने वाले इस इनसान को देखकर मन में यही बात आती है कि नर्मदा तट की 2624 किमी की कठिन और खतरनाक पदयात्रा इन्होंने कैसे की होगी।शायद यही देखने के लिये नर्मदाकी दूसरी कठिन और खतरनाक पदयात्रा में कांताजी ने बेगड़जी के साथ थीं। वेगड़जी ने यह यात्रा 75 वर्ष की उमर के बाद की।
इस बीच वेगड़जी के सुपुत्र भी आये। उन्होंने जानकारी दी कि बेगड़की सारी कृतियां और चित्र इंटरनेट पर डालने के लिये उन्होंने वेगड़.इन के नाम से साइट रजिस्टर करा ली है। जल्दी ही इस पर काम शुरु होगा।
इस किताबों को पढ़ना मजेदार अनुभव है। बेगड़जी मूलत: चित्रकार हैं। लेकिन रंगो के साथ जितने वे सहज होंगे शब्दों के खेल में उससे कम मजा नहीं लेते। कांताजी ने उनके लेखन के बारे में बताते हुये लिखा है:
प्रत्येक लेख पांच या छह बार लिखते हैं। काट-छांट बहुत करते हैं। कहते हैं, जिस प्रकार मेरे शरीर में चरबी नहीं है, उसी प्रकार मेरे लेखन में भी चरबी नहीं है।वैसे तो सभी किताबों में वेगड़जी ने उपमायें जबर दी हैं। पूरा मजा लेने के लिये तो सब किताबें पढ़नी होंगी। एक उदाहरण यहां देखिये:
धरती से बहर निकलते ही सूर्य चिल्लाया-”टैक्सी!” लेकिन बाद में मैंने इसे काट दिया। सूर्य तो है चिर पदयात्री। न तो उसे सात अश्ववाले रथ की न ही चौदह या इक्कीस हार्स-पावर वाली टैक्सी की जरूरत है। फ़िर लिखा था,” ऊषा लगातार रंग बदल रही है मानो नवजात सूर्य के पोतड़े बदल रही हो।” लेकिन बाद में इसे काट दिया। फ़िर लिखा था,” सूरज आकाश में ऐसे घुस आया है मानो किसी खेत में कोई मवेशी घुस आया हो।”देर तक बैठने का फ़ायदा हुआ कि नाश्ता भी मिला। तीनों किताबों के कुल दाम 195 रुपये हैं। लेकिन उन्होंने जिद करने के बावजूद कुल 180 रुपये ही लिये। शुभाशीष आटोग्राफ़ अलग से। पहली पुस्तक सौंदर्य की नदी नर्मदा का अंग्रेजी अनुवाद पेंग्विन ने छापा है। 250 रुपये की वह किताब भी 150 में अपनी आटोग्राफ़ के साथ दे दी। चलते-चलते मेरे प्रति और अनुराग आया तो अपनी चित्रों की एक बुकलेट भी उपहार में दे दी।
वेगड़जी से मिलना एक अद्भुत अनुभव रहा।
वेगड़जी की तीनों किताबें सौंदर्य की नदी नर्मदा, अमृतस्य नर्मदा और तीरे-तीरे नर्मदा के प्रकाशक का पता निम्न है:
मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी
रवीन्द्र ठाकुर मार्ग, बानगंगा,
भोपाल(म.प्र.)-462 003
दूरभाष- (0755)2553084
Posted in संस्मरण | 28 Responses
धन्यवाद.
आपने मुझे एक किस्सा याद दिला दिया. ग्यारहवें में पढ़ते थे, मैं और मेरा एक मित्र अपने एक अभिन्न मित्र “दीपक” भसीन के घर गए. उससे भसीन भसीन करते रहते थे, जब उसके घर पहुंचे और आवाज लगाने का नंबर आया तो भसीन शब्द याद आया. उसका पहला नाम याद करते रहे, दिया, बल्ब, लालटेन, ट्यूब लाईट जैसे शब्द याद आते रहे, न याद आया तो दीपक. लिहाजा लौट आये कि सीनिअर भसीन साहब न निकल आयें.
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..रेत का समंदर
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..रेत का समंदर
हाँ,आपके ‘पाँच रूपइया बारह आना’हमें भी दिली अफ़सोस है !किसी लेखक के लिए इत्ती रकम जाया करना समझदारी नहीं है !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..इक किरन मेरी नहीं !
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..बस एक दिन….
..वेगड़ जी से परिचय कराने के लिए आभार । मौका मिलते ही पढ़ेंगे ..तीरे तीरे नर्मदा।
किताबें तीनों पढिये! पढ़ने में क्या वणिकता!
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..परीक्षा
‘पैसे ठुके हमारे’ दूसरी तरफ – फायदे में कौन रहा जी?
नर्मदा परिक्रमा पर एक किताब बहुत पहले दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी से पढ़ी थी, सच कहूं तो लेखक का नाम याद नहीं आ रहा लेकिन बहुत रोमांचक विवरण था और मन में आया भी था की कभी मौका लगा तो…….
पुस्तक प्राप्ति का जुगाड़ बैठाते हैं, इतनी तारीफ़ ज्ञानदत्त जी और आप कर रहे हैं तो निसंदेह पठनीय पुस्तकें होंगी|
sanjay की हालिया प्रविष्टी..जाग जाग, रुक रुक…….
पोस्ट से ही झलक रहा है की ये मीटिंग कितनी अच्छी रही होगी
बाई द वे, ये भी बताएं की किताब को केवल डाक के जरिये ही मंगाया जा सकता है या बुक-स्टोर पर उपलब्ध भी है?
abhi की हालिया प्रविष्टी..वो लड़की जो खुश रहना जानती थी
कोई से मिले तो अपन तो हैं ही! लेकिन हम आपका अनुरोध तब स्वीकार करेंगे जब आप जनवरी की अपनी पोस्ट वो लड़की जो खुश रहना जानती है के आगे की पोस्ट लिखकर पोस्ट कर देंगे।
आपसे भी तो मिलना है
आशीष श्रीवास्तव
उन गदगद लोगों ने श्रीमती और श्री वेगड़ को एक साथ बिठाया और उनकी परिक्रमा जी।
मेरे मन में आया कि जैसे शिव-पार्वती की परिक्रमा कर गणपति को विश्व की परिक्रमा का पुण्य़ मिल गया था, उन तीस लोगों को वेगड़ दम्पति की परिक्रमा कर नर्मदामाई की परिक्रमा का पुण्य़ मिल गया होगा!
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..यह 2G घोटाले से देश को कितना घाटा हुआ?
बहुत अच्छा लिखा आपने । जबलपुर वैसे भी साहित्यकारों का तीर्थ है । आप तीर्थवासी है और वेगड़जी तीर्थस्वरूप ।
जै हो…
अजित वडनेरकर की हालिया प्रविष्टी..सफ़र के दूसरे पड़ाव का विमोचन
यह संयोग ही है कि वेगड़ जी की तीनों पुस्तकें इकट्ठी पढ़ डाली मैंने एकाध महीने पहले! अद्भुत हैं यह – सारा कुछ एक साथ, यात्रा-वृत्तांत, कथा, स्मरण, चित्र और कविता।
और हाँ ऑनलाइन मँगायीं थीं – http://www.jainsonbookworld.com/ से!
हिमांशु की हालिया प्रविष्टी..Columns