http://web.archive.org/web/20140419214924/http://hindini.com/fursatiya/archives/2628
नित नमन मां नर्मदे
By फ़ुरसतिया on February 21, 2012
डॉ. विजय तिवारी “किसलय” से यह हमारी तीसरी मुलाकात थी। सबसे पहली बार अपन समीरलाल के बेटे के विवाह के मौके
पर मिले थे। दूसरी बार पिछले वर्ष जबलपुर में मुलाकात हुई। उस मौके पर ही
विजय तिवारी जी के सौजन्य से ज्ञानरंजन जी से मुलाकात भी हु्यी। इस बार
मुलाकात उनके घर पर ही थी। मौका भी खास था। 5 फ़रवरी को डा.विजय तिवारी का
जन्मदिन पड़ता है। इसी मौके पर उनके द्वारा रचित नर्मदाष्टक नित नमन मां नर्मदे की संगीतबद्ध सीडी का लोकार्पण हुआ। कार्यक्रम विजय तिवारी जी के घर में हुआ।
पिछले ही महीने जबलपुर आना हुआ हमारा। घर की याद में मन उचका-उचका रहता है। हर हफ़्ते चित्रकूट एक्सप्रेस पर सवार होकर घर भाग आते हैं। 5 फ़रवरी को इतवार की छुट्टी और उसके बाद 7
अक्तूबरफ़रवरी को भी छुट्टी होने के चलते मौका और दस्तूर दोनो थे कि एक दिन की
छुट्टी लेकर घर आ जाते। लेकिन विजय जी ने पहले ही 5 फ़रवरी का दिन अपने लिये
बुक करवा लिया था। लिहाजा जबलपुर ही रह गये उस सप्ताहांत में।
समय के बारे में विजय जी के कड़क निर्देश थे कि ठीक दो बजे पहुंच जायें। पता एस.एम.एस. से भेज दिया। फ़ोन पर घर के बारे में जानकारी लेते हुये समय से पन्द्रह मिनट पहले उनके घर के पास पहुंच गये। कार्यक्रम घर में ही होना था। घर सजा-संवरा तैयार था।
लगभग हमारे साथ ही राजेश पाठक भी पहुंचे। उन्होंने कार्यक्रम का संचालन किया। हम पहले मिले नहीं थे लेकिन उन्होंने मुझे पहचान लिया। ऐसा उन्होंने बताया। जैसे छंटे हुये लोगों के हुलिया जारी कर दिये जाते हैं वैसे ही विजय जी ने मेरे बारे में लोगों को बता रखा था इसलिये कई लोगों ने कहा- हां विजय जी ने आपके बारे में बताया था।
अनूप शुक्ल ब्लॉगर हैं सुनकर एक ने जो बयान जारी किया उसका लब्बोलुआब यह था ब्लॉगर का मतलब तो समीरलाल होता है।
साहित्यकार, पत्रकार, कलाकार, समाजसेवी, धर्माचार्य, परिवारीजन, यार-दोस्त, गली-मोहल्ले वाले सभी तो थे वहां। लोग आते गये, हाल भरता गया।
पहले कार्यक्रम ऊपर के नये बने हाल में होना था। लेकिन बुजुर्गवार अमृतलाल वेगड़ जी को जीना चढ़ने में होने वाली तकलीफ़ के चलते कार्यक्रम नीचे के हाल में शिफ़्ट किया गया। घरवालों ने जुटकर कार्यक्रम स्थल फ़टाफ़ट बदल दिया।
गुप्तेश्वर पीठ के महंत डॉ स्वामी मुकुंद दास जी को अगले कार्यक्रम में जाना था। इसलिये ज्यादा देर न करते हुये नियत समय से कुछ ही देर बाद कार्यक्रम शुरु हुआ।
हाल में ही सोफ़े का मंच बना था। बेगड़ जी और महंतजी के साथ हमें भी मंच पर बैठा दिया गया। महंत जी के बगल में बैठकर हम संकोच से सिकुड़ गये। बाद में शिब्बूदादा को भी जब मंच पर बुलाया गया तो हमने झट से उनके लिये जगह खाली कर दी। विनम्रतापूर्वक किनारे हो गये। उनको महंत जी के बगल में बैठा दिया। किनारे होकर थोड़ा सहज हो गये। विनम्रता और सहजता का संबंध भी पता लगा। लेकिन किनारे होने का नुकसान यह हुआ कि जब सीडी का लोकार्पण हुआ तो सामने सीडी दिखाते हुये हमारा फोटो आया नहीं
राजेश पाठक जी ने शानदार संचालन करते हुये सबको अतिथियों को माला-फ़ूल पहनवाया। शाल सम्मान भी हुआ। विजय जी को खूब माले पड़े। जन्मदिन पर एकदम किसलय लग रहे थे विजय जी।
डॉ. विजय तिवारी “किसलय”सभी ने अपने-अपने व्याख्यान में विजयजी द्वारा रचित नर्मदाष्टक की सराहना की। जिन बच्चों ने इसे गाया था उनकी भी खूब तारीफ़ हुई। शिब्बू दादा ने बच्चों की खूब तारीफ़ करते हुये उनको सीख भी दी कि वे अपनी सीखने की ललक बनाये रखें। सभी वक्ताओं ने नर्मदा जी की के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की।नवयुग कालेज के प्रो. दुबे जी ने तो हमसे क्षमायाचना करते हुये ( गोया हम गंगाजी के वकील हैं) कहा- गंगा ज्येष्ठ हैं लेकिन नर्मदा श्रेष्ठ हैं। दो जीवन दायिनी नदियां इस तुलनात्मक अध्ययन को सुनकर मुस्करायी होंगी। प्रो. दुबेजी ने अपनी आशु शैली में अद्भुत / मजेदार अंदाज में अपनी बात कही।
विजय जी ने इस गीत की रचनाप्रक्रिया, उसके गीतबद्ध होने की प्रक्रिया और लोगों के सहयोग के किस्से बताये। सभी को उन्होंने आभार भी दिया।
गिरीश बिल्लौरे ने ब्लाग के बारे में बताते हुये लोगों का आव्हान किया कि वे अपनी रचनायें उनको दें ताकि वे उनको इंटरनेट पर डाल सकें।
आखिर में वेगड़ जी ने अपनी बात कही। शुरुआत से ही लग गया कि बुजुर्गवार का हास्यबोध अद्भुत है। अस्सीपार के बेगड़ जी ने अपनी नर्मदा यात्रा के कुछ संस्मरण सुनाये। उनको सुनना और उनसे संवाद करना अद्भुत अनुभव है। जब वेगड़ जी बोल रहे थे तो उनकी श्रीमती जी उनको सामने से स्निग्ध स्मित से निहार रही थीं। उनको देखकर लगा कि सुन्दरता उमर की मोहताज नहीं होती।
वेगड़ जी अपनी किताब तीरे-तीरे नर्मदा भी अपने साथ लाये थे। सत्तर रुपये की यह किताब उन्होंने विजय जी के जन्मदिन के मौके पर पचास रुपये में लोगों को दी। मैंने पूरे पैसे देने की पेशकश तो उन्होंने मना कर दिया और कहा कि आज तो पचास रुपये ही लेंगे। किताब में 200 से अधिक पृष्ठ हैं। रोचक शैली में लिखी इस संस्मरण पुस्तक को हमने दो दिन में ही बांच लिया। अब बाकी की दो किताबें भी बांचनी हैं। बेगड़ जी के बारे में विस्तार से फ़िर कभी।
वेगड़ जी द्वारा विजय तिवारी जी के प्रति स्नेह के चलते अपनी किताब पर बीस रुपये की छूट देने से याद आया कि परसाई जी ने अपने मित्र मायाराम सुरजन को डेढ रुपये की किताब स्नेह के बहाने दो रुपये में टिका दी थी। स्नेह के चलते कीमत ऊपर-नीचे हो ही जाती है।
तमाम आत्मीय लोग वहां मौजूद थे। हमारी फ़ैक्ट्री के ही साज जबलपुरी भी मिले। और लोगों से भी मुलाकात हुई। कुछ मिलाकर घर से बाहर घरेलू माहौल मिला एक दिन।
नित नमन मां नर्मदे कई लोगों के मोबाइल की रिंग ट्यून बन चुका है। अगले दिन जबलपुर के सभी अखबारों में इस लोकार्पण की रपट जारी की जिसके कि हम भी गवाह रहे। उन अखबारी कतरनों को तो डा.विजय तिवारी जी दिखायेंगे आपको फ़िलहाल तो आप नर्मदा स्तुति सुनिये -नित नमन मां मर्मदे।
पिछले ही महीने जबलपुर आना हुआ हमारा। घर की याद में मन उचका-उचका रहता है। हर हफ़्ते चित्रकूट एक्सप्रेस पर सवार होकर घर भाग आते हैं। 5 फ़रवरी को इतवार की छुट्टी और उसके बाद 7
समय के बारे में विजय जी के कड़क निर्देश थे कि ठीक दो बजे पहुंच जायें। पता एस.एम.एस. से भेज दिया। फ़ोन पर घर के बारे में जानकारी लेते हुये समय से पन्द्रह मिनट पहले उनके घर के पास पहुंच गये। कार्यक्रम घर में ही होना था। घर सजा-संवरा तैयार था।
लगभग हमारे साथ ही राजेश पाठक भी पहुंचे। उन्होंने कार्यक्रम का संचालन किया। हम पहले मिले नहीं थे लेकिन उन्होंने मुझे पहचान लिया। ऐसा उन्होंने बताया। जैसे छंटे हुये लोगों के हुलिया जारी कर दिये जाते हैं वैसे ही विजय जी ने मेरे बारे में लोगों को बता रखा था इसलिये कई लोगों ने कहा- हां विजय जी ने आपके बारे में बताया था।
अनूप शुक्ल ब्लॉगर हैं सुनकर एक ने जो बयान जारी किया उसका लब्बोलुआब यह था ब्लॉगर का मतलब तो समीरलाल होता है।
साहित्यकार, पत्रकार, कलाकार, समाजसेवी, धर्माचार्य, परिवारीजन, यार-दोस्त, गली-मोहल्ले वाले सभी तो थे वहां। लोग आते गये, हाल भरता गया।
पहले कार्यक्रम ऊपर के नये बने हाल में होना था। लेकिन बुजुर्गवार अमृतलाल वेगड़ जी को जीना चढ़ने में होने वाली तकलीफ़ के चलते कार्यक्रम नीचे के हाल में शिफ़्ट किया गया। घरवालों ने जुटकर कार्यक्रम स्थल फ़टाफ़ट बदल दिया।
गुप्तेश्वर पीठ के महंत डॉ स्वामी मुकुंद दास जी को अगले कार्यक्रम में जाना था। इसलिये ज्यादा देर न करते हुये नियत समय से कुछ ही देर बाद कार्यक्रम शुरु हुआ।
हाल में ही सोफ़े का मंच बना था। बेगड़ जी और महंतजी के साथ हमें भी मंच पर बैठा दिया गया। महंत जी के बगल में बैठकर हम संकोच से सिकुड़ गये। बाद में शिब्बूदादा को भी जब मंच पर बुलाया गया तो हमने झट से उनके लिये जगह खाली कर दी। विनम्रतापूर्वक किनारे हो गये। उनको महंत जी के बगल में बैठा दिया। किनारे होकर थोड़ा सहज हो गये। विनम्रता और सहजता का संबंध भी पता लगा। लेकिन किनारे होने का नुकसान यह हुआ कि जब सीडी का लोकार्पण हुआ तो सामने सीडी दिखाते हुये हमारा फोटो आया नहीं
राजेश पाठक जी ने शानदार संचालन करते हुये सबको अतिथियों को माला-फ़ूल पहनवाया। शाल सम्मान भी हुआ। विजय जी को खूब माले पड़े। जन्मदिन पर एकदम किसलय लग रहे थे विजय जी।
डॉ. विजय तिवारी “किसलय”सभी ने अपने-अपने व्याख्यान में विजयजी द्वारा रचित नर्मदाष्टक की सराहना की। जिन बच्चों ने इसे गाया था उनकी भी खूब तारीफ़ हुई। शिब्बू दादा ने बच्चों की खूब तारीफ़ करते हुये उनको सीख भी दी कि वे अपनी सीखने की ललक बनाये रखें। सभी वक्ताओं ने नर्मदा जी की के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की।नवयुग कालेज के प्रो. दुबे जी ने तो हमसे क्षमायाचना करते हुये ( गोया हम गंगाजी के वकील हैं) कहा- गंगा ज्येष्ठ हैं लेकिन नर्मदा श्रेष्ठ हैं। दो जीवन दायिनी नदियां इस तुलनात्मक अध्ययन को सुनकर मुस्करायी होंगी। प्रो. दुबेजी ने अपनी आशु शैली में अद्भुत / मजेदार अंदाज में अपनी बात कही।
विजय जी ने इस गीत की रचनाप्रक्रिया, उसके गीतबद्ध होने की प्रक्रिया और लोगों के सहयोग के किस्से बताये। सभी को उन्होंने आभार भी दिया।
गिरीश बिल्लौरे ने ब्लाग के बारे में बताते हुये लोगों का आव्हान किया कि वे अपनी रचनायें उनको दें ताकि वे उनको इंटरनेट पर डाल सकें।
आखिर में वेगड़ जी ने अपनी बात कही। शुरुआत से ही लग गया कि बुजुर्गवार का हास्यबोध अद्भुत है। अस्सीपार के बेगड़ जी ने अपनी नर्मदा यात्रा के कुछ संस्मरण सुनाये। उनको सुनना और उनसे संवाद करना अद्भुत अनुभव है। जब वेगड़ जी बोल रहे थे तो उनकी श्रीमती जी उनको सामने से स्निग्ध स्मित से निहार रही थीं। उनको देखकर लगा कि सुन्दरता उमर की मोहताज नहीं होती।
वेगड़ जी अपनी किताब तीरे-तीरे नर्मदा भी अपने साथ लाये थे। सत्तर रुपये की यह किताब उन्होंने विजय जी के जन्मदिन के मौके पर पचास रुपये में लोगों को दी। मैंने पूरे पैसे देने की पेशकश तो उन्होंने मना कर दिया और कहा कि आज तो पचास रुपये ही लेंगे। किताब में 200 से अधिक पृष्ठ हैं। रोचक शैली में लिखी इस संस्मरण पुस्तक को हमने दो दिन में ही बांच लिया। अब बाकी की दो किताबें भी बांचनी हैं। बेगड़ जी के बारे में विस्तार से फ़िर कभी।
वेगड़ जी द्वारा विजय तिवारी जी के प्रति स्नेह के चलते अपनी किताब पर बीस रुपये की छूट देने से याद आया कि परसाई जी ने अपने मित्र मायाराम सुरजन को डेढ रुपये की किताब स्नेह के बहाने दो रुपये में टिका दी थी। स्नेह के चलते कीमत ऊपर-नीचे हो ही जाती है।
तमाम आत्मीय लोग वहां मौजूद थे। हमारी फ़ैक्ट्री के ही साज जबलपुरी भी मिले। और लोगों से भी मुलाकात हुई। कुछ मिलाकर घर से बाहर घरेलू माहौल मिला एक दिन।
नित नमन मां नर्मदे कई लोगों के मोबाइल की रिंग ट्यून बन चुका है। अगले दिन जबलपुर के सभी अखबारों में इस लोकार्पण की रपट जारी की जिसके कि हम भी गवाह रहे। उन अखबारी कतरनों को तो डा.विजय तिवारी जी दिखायेंगे आपको फ़िलहाल तो आप नर्मदा स्तुति सुनिये -नित नमन मां मर्मदे।
Posted in सूचना | 32 Responses
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..यहाँ न तो लिंग भेद है और न ही गुलाब
मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी
रवीन्द्र ठाकुर मार्ग, बानगंगा,
भोपाल(म.प्र.)-462 003
दूरभाष- (0755)2553084
ashish की हालिया प्रविष्टी..मधु -उत्सव
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..और इक साल गया!!
Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..ऐसी वाणी बोलिए.
उनके बारे में विस्तार से लिखियेगा। इंतजार रहेगा।
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..सेवाग्राम – साफ सुथरा स्टेशन
सादर नमस्कार.
आपके ब्लॉग पर “नित नमन माँ नर्मदे ” पोस्ट पढी.
पोस्ट में इतनी बारीकी से वृत्तांत वर्णन है कि हमें भी उन सभी बातों का एक बार फिर अपनी स्मरण और ध्यान करना पडा . हमें पाया भी कि आपने तो कार्यक्रम का हू-ब-हू चित्रण किया है.
सच में आपके आने से कार्यक्रम में चार चाँद लग गए.
कार्यक्रम अपनों की उपस्थिति से ही सफल होते हैं उनके विचारों से सार्थक बनते हैं. ये सब हमारे अपने डॉ स्वामी मुकुंद दास जी, बुजुर्गवार श्री वेगड़ जी, श्री कामता सागर जी, श्री शिब्बू दादा जी, प्रिय अग्रज डॉ. हरि शंकरजी दुबे, श्री ओंकार श्रीवास्तव जी, राजेश पाठक प्रवीण जी, यशोवर्धन जी, भाई राजीव, रमाकांत, बसंतमिश्र, अरुण, प्रमोदजी, देवेश जी एवं मेरे बच्चों के स्नेह और मेहनत का ही सुफल है.
हम सभी के आभारी हैं.
- विजय तिवारी ‘किसलय”
Dr. Vijay Tiwari “KIslay” की हालिया प्रविष्टी..नर्मदाष्टक ‘नित नमन माँ नर्मदे के लोकार्पण अवसर के छाया चित्र.
7 अक्तूबर -यहाँ कैसे आ गया ?
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..मटर की फलियाँ
मस्त रिपोर्टिंग है, वेगड़ जी के बारे में और पुस्तकों के बारे में जानने की उत्सुकता हो रही है, सो आपके फ़िर कभी का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा।
साज़ जी और बेगड़ जी के बारे में विस्तार से लिखियिगा ..हम इंतज़ार करेंगे….
आशीष श्रीवास्तव
चित्रकूट एक्सप्रेस , आपको हर हफ्ते घर पंहुचा रही है ! किसी ज़माने में यह कानपुर बांदा एक्सप्रेस हुआ करती थी अपने छात्र जीवन की रोज की सवारी !
गिरीश बिल्लोरे मुकुल की हालिया प्रविष्टी..वर्जनाओं के विरुद्ध खड़े : सोच और शरीर
abhi की हालिया प्रविष्टी..वो लड़की जो खुश रहना जानती थी
समीर लाल “पुराने जमाने के टिप्पणीकार” की हालिया प्रविष्टी..साहित्य में संतई की राह…
.यहाँ पर पूरा लेखा जोखा मिल गया..मज़ा आ गया.
बधाई विजय जी