http://web.archive.org/web/20140420082330/http://hindini.com/fursatiya/archives/3326
हिन्दी ब्लॉगिंग की कुछ और प्रवत्तियां
By फ़ुरसतिया on September 4, 2012
1. ब्लॉगर मीट और उस के पुरस्कारों को सिरे से निरस्त करने का बहुत-बहुत धन्यवाद! -एक पुरस्कृत मित्र का मेल संदेश।
2.हिन्दी ब्लॉगिंग अभी कुँए जैसी ही है.. लोग अपने आप में ही बाबा बने हुए हैं… जबकि यहाँ तू मुझे पढ़ मैं तुझको पढूं वाली स्थिति ही ज्यादा है-सतीश चंद सत्यार्थी।
पिछली पोस्ट पर मैंने हिन्दी ब्लॉगिंग की कुछ सहज प्रवृत्तियों की चर्चा की थी। उसको तमाम लोगों ने अपने हिसाब से ग्रहण किया। टिप्पणियां दीं। पोस्टें लिखीं। चिरकालीन विघ्नसंतोषी और गुरु घंटाल बताया। सतीश सक्सेना जी ने भी अनूप शुक्ल की कीचड़ में खेलते रहने की आदत की बात कही। डा. अरविन्द मिश्र ने एक जगह कहा कि अगर पैसा टैक्स पेयर्स का होता तो वे आयोजकों से सवाल पूछते। उनके इस बयान से पुष्टि तो नहीं होती लेकिन ऐसा आभास होता है इस आयोजन में आयोजकों का व्यक्तिगत पैसा लगा था या फ़िर ऐसे किसी का जो अपने पैसे को ब्लॉगिंग के उन्नयन के लिये निस्वार्थ भाव से लगा रहा है। ऐसा कोई पैसा नहीं लगा इस आयोजन में जिसे टैक्स पेयर्स का कहा जा सके। खर्चे के आडिट जैसी बात कही जा सके।
मेरी पोस्ट पर जिस तरह लोगों ने तीखी प्रतिक्रियायें दीं उससे देखकर यह लगा कि बात आप कोई भी लिखें लेकिन पढ़ने वाला उसे उसी तरह ग्रहण करता है जिस तरह वह सोचता है। यह भी हिंदी ब्लॉगिंग की एक सहज प्रवृत्ति है।
मैंने अपनी पोस्ट में 12 बातें लिखीं थीं। किसी ने यह नहीं बताया कि उनमें से कौन बात गलत है? सबने पोस्ट के अपने-अपने हिसाब से मतलब निकाले और प्रतिक्रियायें व्यक्त कीं। नाराजगी व्यक्त करने वालों ने भी यह बताना जरूरी नहीं समझा कि वे मेरी किस बात से असहमत हैं। हत्थे से उखड़ने के लिये भी कोई तर्क चाहिये होता है क्या? यह हिंदी ब्लॉगिंग की एक और सहज प्रवृत्ति है।
कुछ लोगों ने बताया कि वे साथी ब्लॉगरों से मिलने-मिलाने आये थे। उनका समय अच्छा बीता। बहुत मजा आया। मैंने भी तो अपनी पोस्ट में यही लिखा था
जैसा कि मैंने पिछली पोस्ट में लिखा- मुझे इस बारे में कोई संदेह नहीं है अगर ऐसा हुआ कभी तो ब्लॉगर पीठ पर विराजने वाला इसी तरह चुना जायेगा जिस तरह ऐतिहासिक इनाम के लिये लोग चुने गये।
मजे की बात है कि बुजुर्ग ब्लॉगर के खिलाफ़ कानूनी कार्यवाही की सूचना पढ़कर उस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न करने वाले साथियों (कार्यक्रम की तारीफ़ में टिप्पणी की उन्होंने) में वे ब्लॉगर साथी भी हैं शामिल हैं जिनकी पोस्टों में बुजुर्गों से दुर्व्यवहार पर अनेकानेक भावुक किस्से मौजूद हैं या फ़िर जिनकी पोस्टों में गाहे बगाहे यह पीड़ा व्यक्त होती रहती है कि आज की पीढ़ी बुजुर्गों से ठीक से व्यवहार नहीं करती।
यह भी हिन्दी ब्लॉगिंग की एक सहज प्रवृत्ति है। आम तौर पर लोग आंख मूंदकर समर्थन या फ़िर विरोध करते हैं। न सिर्फ़ खुद करते हैं बल्कि अगले से भी आशा करते हैं कि वह भी करे। न करे तो उसका समुचित संस्कार किया जाता है।
ब्लॉगिंग बहुत तेज अभिव्यक्ति का माध्यम है। सबसे तेज दुतरफ़ा अभिव्यक्ति। आपके व्यक्तित्व के अनुरूप आपकी प्रतिक्रिया होती है। इसमें इज्जत भी बहुत तेज गति से होती है। बेइज्जती भी उतनी ही तेजी से खराब होती है। वर्ष का श्रेष्ठ सम्मान भी एक क्लिक में हो जाता है। सम्मान पर सवाल उठाने पर नोटिस की सूचना भी अगली क्लिक में मिल जाती है। पकड़कर सम्मानित करती है तो पटककर अपमानित भी। जो इसकी सामर्थ्य है वही इसकी सीमा भी।
किसी के इरादों में खोट की बात मैं नहीं करता लेकिन बार-बार यह कहा जा रहा है कि पैसा टैक्स पेयर्स का नहीं है तो यह जानने की इच्छा जरूर है कि इतने शानदार आयोजन का इंतजाम आयोजक कहां से करते हैं? यह मैं इसलिये भी जानना चाहता हूं कि अगर यह पैसा उन्होंने अपना व्यक्तिगत लगाया है तो आगे के लिये कोई सवाल उठाना बंद कर दूं। क्योंकि अपने पैसे का मनचाहा उपयोग करने के लिये कोई भी स्वतंत्र है। अगर किसी प्रायोजक का है तो उसकी तारीफ़ कर सकूं। यदि किसी अनुदान से मिला है तो अभी नहीं तो देर-सबेर उसके बारे में लोग खुद ही सवाल पूछेंगे।
अपने मित्र की मेल का जबाब मैंने यह दिया था:
कल रात कानपुर से जबलपुर आते हुये मोबाइल पर सतीश चंद्र सत्यार्थी की पोस्ट पढ़ी-हे ब्लॉगर! प्लीज़ गंद मत मचाओ उन्होंने लिखा:
बातें और भी तमाम सारी है। लिखने का मन भी था उनको लेकिन सतीश सत्यार्थी की बात के साथ-साथ प्रवीण शाह की भी बात याद आ गयी :
यह भी हिन्दी ब्लॉगिंग की एक प्रवृत्ति ही है।
सूचना:ऊपर का चित्र सतीश चंद्र सत्यार्थी की पोस्ट से। दोनों कार्टून काजल कुमार के ब्लॉग से। सब कुछ साभार हैं।
इस डर से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाए,
मगध को बनाए रखना है, तो,
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए!
मगध है, तो शांति है!
कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्यवस्था में
दखल न पड़ जाए
मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए!
मगध में न रही
तो कहाँ रहेगी?
क्या कहेंगे लोग?
लोगों का क्या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है,
रहने को नहीं
कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज न बन जाए!
एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रूकता हस्तक्षेप-
वैसे तो मगध निवासिओं
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से-
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुज़रता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है-
मनुष्य क्यों मरता है?
श्रीकांतवर्मा
2.हिन्दी ब्लॉगिंग अभी कुँए जैसी ही है.. लोग अपने आप में ही बाबा बने हुए हैं… जबकि यहाँ तू मुझे पढ़ मैं तुझको पढूं वाली स्थिति ही ज्यादा है-सतीश चंद सत्यार्थी।
पिछली पोस्ट पर मैंने हिन्दी ब्लॉगिंग की कुछ सहज प्रवृत्तियों की चर्चा की थी। उसको तमाम लोगों ने अपने हिसाब से ग्रहण किया। टिप्पणियां दीं। पोस्टें लिखीं। चिरकालीन विघ्नसंतोषी और गुरु घंटाल बताया। सतीश सक्सेना जी ने भी अनूप शुक्ल की कीचड़ में खेलते रहने की आदत की बात कही। डा. अरविन्द मिश्र ने एक जगह कहा कि अगर पैसा टैक्स पेयर्स का होता तो वे आयोजकों से सवाल पूछते। उनके इस बयान से पुष्टि तो नहीं होती लेकिन ऐसा आभास होता है इस आयोजन में आयोजकों का व्यक्तिगत पैसा लगा था या फ़िर ऐसे किसी का जो अपने पैसे को ब्लॉगिंग के उन्नयन के लिये निस्वार्थ भाव से लगा रहा है। ऐसा कोई पैसा नहीं लगा इस आयोजन में जिसे टैक्स पेयर्स का कहा जा सके। खर्चे के आडिट जैसी बात कही जा सके।
मेरी पोस्ट पर जिस तरह लोगों ने तीखी प्रतिक्रियायें दीं उससे देखकर यह लगा कि बात आप कोई भी लिखें लेकिन पढ़ने वाला उसे उसी तरह ग्रहण करता है जिस तरह वह सोचता है। यह भी हिंदी ब्लॉगिंग की एक सहज प्रवृत्ति है।
मैंने अपनी पोस्ट में 12 बातें लिखीं थीं। किसी ने यह नहीं बताया कि उनमें से कौन बात गलत है? सबने पोस्ट के अपने-अपने हिसाब से मतलब निकाले और प्रतिक्रियायें व्यक्त कीं। नाराजगी व्यक्त करने वालों ने भी यह बताना जरूरी नहीं समझा कि वे मेरी किस बात से असहमत हैं। हत्थे से उखड़ने के लिये भी कोई तर्क चाहिये होता है क्या? यह हिंदी ब्लॉगिंग की एक और सहज प्रवृत्ति है।
कुछ लोगों ने बताया कि वे साथी ब्लॉगरों से मिलने-मिलाने आये थे। उनका समय अच्छा बीता। बहुत मजा आया। मैंने भी तो अपनी पोस्ट में यही लिखा था
ब्लॉगर सम्मेलन में आने वाले लोग मात्र और मात्र अपने साथी ब्लॉगरों से मिलने आते हैं। इनाम मिल गया तो सोने में सुहागा। उनको जमावड़े की तरह इस्तेमाल करने की फ़ितरत ब्लॉगर सम्मेलनों की सहज पृवत्ति बनती दिख रही है।जमावड़े की तरह इस्तेमाल करने की फ़ितरत करने की प्रवृत्ति की बात मैंने इसलिये लिखी क्योंकि जिस तरह की रिपोर्टिंग हुयी कि ब्लॉगर पीठ बनेगी। सरकार के पास प्रस्ताव भेजा जायेगा। सरकार के पास कौन प्रस्ताव लेकर जायेगा? क्या कोई नया ब्लॉगर जायेगा जिसने आज ब्लॉग बनाया है? दशक के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर जायेंगे? या फ़िर सर्वश्रेष्ठ टिप्पणीकार? या फ़िर वह बुजुर्ग ब्लॉगर जिसको वर्ष के श्रेष्ठ गीतकार का सम्मान देने की घोषणा की जाती है लेकिन किसी बात पर जब वह अपनी नाराजगी जाहिर करता है तो उसके खिलाफ़ कानूनी कार्यवाही की प्रक्रिया की सूचना दी जाती है।
जैसा कि मैंने पिछली पोस्ट में लिखा- मुझे इस बारे में कोई संदेह नहीं है अगर ऐसा हुआ कभी तो ब्लॉगर पीठ पर विराजने वाला इसी तरह चुना जायेगा जिस तरह ऐतिहासिक इनाम के लिये लोग चुने गये।
मजे की बात है कि बुजुर्ग ब्लॉगर के खिलाफ़ कानूनी कार्यवाही की सूचना पढ़कर उस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न करने वाले साथियों (कार्यक्रम की तारीफ़ में टिप्पणी की उन्होंने) में वे ब्लॉगर साथी भी हैं शामिल हैं जिनकी पोस्टों में बुजुर्गों से दुर्व्यवहार पर अनेकानेक भावुक किस्से मौजूद हैं या फ़िर जिनकी पोस्टों में गाहे बगाहे यह पीड़ा व्यक्त होती रहती है कि आज की पीढ़ी बुजुर्गों से ठीक से व्यवहार नहीं करती।
यह भी हिन्दी ब्लॉगिंग की एक सहज प्रवृत्ति है। आम तौर पर लोग आंख मूंदकर समर्थन या फ़िर विरोध करते हैं। न सिर्फ़ खुद करते हैं बल्कि अगले से भी आशा करते हैं कि वह भी करे। न करे तो उसका समुचित संस्कार किया जाता है।
ब्लॉगिंग बहुत तेज अभिव्यक्ति का माध्यम है। सबसे तेज दुतरफ़ा अभिव्यक्ति। आपके व्यक्तित्व के अनुरूप आपकी प्रतिक्रिया होती है। इसमें इज्जत भी बहुत तेज गति से होती है। बेइज्जती भी उतनी ही तेजी से खराब होती है। वर्ष का श्रेष्ठ सम्मान भी एक क्लिक में हो जाता है। सम्मान पर सवाल उठाने पर नोटिस की सूचना भी अगली क्लिक में मिल जाती है। पकड़कर सम्मानित करती है तो पटककर अपमानित भी। जो इसकी सामर्थ्य है वही इसकी सीमा भी।
किसी के इरादों में खोट की बात मैं नहीं करता लेकिन बार-बार यह कहा जा रहा है कि पैसा टैक्स पेयर्स का नहीं है तो यह जानने की इच्छा जरूर है कि इतने शानदार आयोजन का इंतजाम आयोजक कहां से करते हैं? यह मैं इसलिये भी जानना चाहता हूं कि अगर यह पैसा उन्होंने अपना व्यक्तिगत लगाया है तो आगे के लिये कोई सवाल उठाना बंद कर दूं। क्योंकि अपने पैसे का मनचाहा उपयोग करने के लिये कोई भी स्वतंत्र है। अगर किसी प्रायोजक का है तो उसकी तारीफ़ कर सकूं। यदि किसी अनुदान से मिला है तो अभी नहीं तो देर-सबेर उसके बारे में लोग खुद ही सवाल पूछेंगे।
अपने मित्र की मेल का जबाब मैंने यह दिया था:
हमने न ब्लॉगर मीट को निरस्त किया है न पुरस्कारों को।ब्लॉगिंग सम्मान समारोह की मूल अवधारणा के पूरी तरह खिलाफ़ होने के बावजूद मेरे मन में किसी भी ब्लॉगर साथी को लेकर किसी भी किस्म का असम्मान नहीं है। अपनी कही बातों पर कायम रहते हुये भी अगर किसी सम्मान पाये किसी ब्लॉगर साथी को मेरी टिप्पणी से दुख हुआ हो तो मैं उसके लिये खेद प्रकट करता हूं। सब लोग खूब सम्मान प्राप्त करें। खूब खुश हों। हमारी कही किसी बात के झांसे में आने से बचे।
हमने भोले-भाले ब्लॉगरों को जमावड़े के रूप में इस्तेमाल करने की मंशा का विरोध किया है।
आपको इनाम की बहुत बहुत बधाई। मुबारकबाद।
कल रात कानपुर से जबलपुर आते हुये मोबाइल पर सतीश चंद्र सत्यार्थी की पोस्ट पढ़ी-हे ब्लॉगर! प्लीज़ गंद मत मचाओ उन्होंने लिखा:
हिन्दी ब्लॉगिंग के बारे में अगर सच्चाई बयान की जाए तो यह अभी अपनी शैशव अवस्था से भी बाहर नहीं आयी है. छोटी-छोटी भाषाओं में भी ब्लॉगिंग इससे कहीं ज्यादा समृद्ध है. हमें यह समझना होगा कि किसी भी भाषा में ब्लॉगिंग दो-चार या दस-बीस महान ब्लॉग्स और ब्लॉगर्स से समृद्ध नहीं होती बल्कि हजारों साधारण ब्लॉग्स से होती है. हजारों ऐसे ब्लॉगों से जो बिलकुल नए-नए छोटे-छोटे विषयों पर कलम चला रहे हों. समृद्ध उस भाषा की ब्लॉगिंग कही जायेगी जिसमें सिर्फ लैपटॉप, कैमरे , चित्रकारी, ट्रेवल, चुटकुलों, खाने, बागवानी आदि छोटे-छोटे विषयों पर केंद्रित साईं-पचास विशेषज्ञ ब्लॉग्स हों. जिससे कि लोग गूगल पर जानकारी ढूंढते हुए ब्लॉग्स पर आयें. अभी जो हालात हैं उसमें लोग अपने विचार लिखते हैं ब्लॉग्स पर, जो भी मन में आया. उनको वही पढेगा जो आपका जानकार है. आम जनता के लिए वह किसी काम का नहीं. और यही कारण है कि हिन्दी ब्लॉगिंग अभी तक कॉमर्शियल नहीं हो पाई है. कौन देगा विज्ञापन उस ब्लॉग पर जिसमें आप अपने घर की ही बात किये जा रहे हैं और दूसरे ब्लॉगर्स से लड़े जा रहे हैं. जो वास्तव में हिन्दी ब्लॉगिंग का भला चाहते हैं उनको इसपर किताबें लिखने और सम्मेलन-पुरस्कार से ज्यादा अधिक-से-अधिक विषय केंद्रित ब्लॉग्स के विकास और नए ब्लॉगर्स के प्रोत्साहन पर ध्यान देना चाहिए. ब्लॉगर सम्मेलन की जगह अगर स्कूल-कॉलेजों में हिन्दी ब्लॉगिंग अवेयरनेस के छोटे-छोटे आयोजन किये जाएँ तो वे ज्यादा प्रभावी होंगे. लेकिन ब्लौगरों के आपस में मिलने-जुलने और सार्थक विचार-विमर्श के लिए बैठकों और आयोजनों का भी नियमित रूप से होते रहना भी एक सार्थक प्रक्रिया है.जिस तरह के आयोजन ब्लॉगर सम्मलेनों के बहाने होते हैं उनमें ब्लॉगरों के आपस में मिलने-मिलाने और मीडिया कवरेज के जरिये लोगों तक ब्लॉग की जानकारी मिलने के अलावा और कुछ हासिल नहीं होता था अब तक। समर्थन और विरोध में कुछ पोस्टें आ जाती थीं। इस बार बात कुछ आगे बढ़ी और बात ब्लॉगर पीठ और कानूनी कार्यवाही की संभावना तलाशने तक पहुंची। हिन्दी ब्लॉगिंग की प्रगति के लक्षण हैं ये सब। ब्लॉगिंग को हल्का करके आंकने वाले समझ लें इसे।
बातें और भी तमाम सारी है। लिखने का मन भी था उनको लेकिन सतीश सत्यार्थी की बात के साथ-साथ प्रवीण शाह की भी बात याद आ गयी :
हर ब्लॉगर अपनी मर्जी का मालिक है यहाँ… आप उसको किसी खास तरह से सोचने या किसी खास तरह से बर्ताव करने को बाध्य नहीं कर सकते… आप को उसका कथ्य या कृत्य उचित नहीं लगता तो आप उसके ब्लॉग पर न जायें… इससे अधिक कुछ करना न उचित है और न ही इसकी जरूरत है..इसलिये अपनी पोस्ट यहीं खतम करता हूं।
यह भी हिन्दी ब्लॉगिंग की एक प्रवृत्ति ही है।
सूचना:ऊपर का चित्र सतीश चंद्र सत्यार्थी की पोस्ट से। दोनों कार्टून काजल कुमार के ब्लॉग से। सब कुछ साभार हैं।
मेरी पसंद
कोई छींकता तक नहींइस डर से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाए,
मगध को बनाए रखना है, तो,
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए!
मगध है, तो शांति है!
कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्यवस्था में
दखल न पड़ जाए
मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए!
मगध में न रही
तो कहाँ रहेगी?
क्या कहेंगे लोग?
लोगों का क्या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है,
रहने को नहीं
कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज न बन जाए!
एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रूकता हस्तक्षेप-
वैसे तो मगध निवासिओं
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से-
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुज़रता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है-
मनुष्य क्यों मरता है?
श्रीकांतवर्मा
Posted in बस यूं ही | 72 Responses
पुरस्कारों से संबंधित कोई लेख माने पोस्ट हम न पढे, न पढने का कोई इरादा बनता है।
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..‘अंग्रेजी ग्लोबल है’ (लघुकथा)
फिर भी जो पहलू प्रश्न चिन्ह लिए अब तक खड़े हैं उनके भी शायद जवाब मिल जायेंगे.
मुक्ति जी की कही बात यहाँ दोहराती हूँ..”हिंदी ब्लॉगजगत की यही बात हमें सबसे अधिक भाती है. अंत में सभी मिल जाते हैं हिंदी फिल्मों की तरह हैप्पी एंडिंग ”.
Alpana की हालिया प्रविष्टी..दुनिया की सबसे बड़ी ……..
aradhana की हालिया प्रविष्टी..New Themes: Able and Sight
…और मगध में विचारों की कमी कहाँ है और गंध तो है ही नहीं।
पुस्तक मेले गया था कल.. भवानीप्रसाद मिश्र की कुछ कवितायेँ पढ़ रहा था.. इसे पढ़िए.. बड़ी अच्छी लगी..
http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%A4_%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AB%E0%A4%BC_%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%95%E0%A5%8C%E0%A4%8F_%E0%A4%A5%E0%A5%87_%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%87_/_%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6_%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0
aradhana की हालिया प्रविष्टी..New Themes: Able and Sight
सन्तोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..परिकल्पना के विविध रंग !
:D:D
Rachna की हालिया प्रविष्टी..15 अगस्त 2011 से 14 अगस्त 2012 के बीच में पुब्लिश की गयी ब्लॉग प्रविष्टियाँ आमंत्रित हैं .
ज्यादा खुश मती हो। पुरानी ब्लॉगिंग के आधार पर कभी भी पकड़कर सम्मानित किये जा सकते हो।
परिकल्पना वाले लिंक पर जिस तरह की भाषा उपयोग में लाई गयी है और जिस तरह कानूनी कार्यवाही की बात वो कर रहे हैं, मैं उनसे पूरी तरह असहमत हूँ | ब्लॉग एक खुले मंच की तरह है अगर आप अपने विचार रख सकते हैं तो सामने वाला भी रख सकता है | आप किसी को पुरस्कृत कर रहे हैं, ये बहुत अच्छी बात है, पर आपसे जो सहमत नहीं वो पूरी तरह गलत हैं, ये सोचना भी तो गलत है |
जहाँ तक ब्लॉग्गिंग को समृद्ध बनाने की बात है तो उसे नए लोगो को प्रोत्साहित करके किया जा सकता है | नए लोग आएंगे तो नए आयाम जुडेंगे | नयी बातें पता चलेंगी, नए मुद्दे भी होंगे |
नए लोगो ने कुछ नया लिखा, या पुराने लोगो ने कुछ और बढ़िया और अलग सा लिखा , उसको बाकी लोगो तक लाने के माध्यम का विस्तार होना चाहिए क्यूंकि ब्लोग्स पढ़ने वाले लोग बहुत हैं और यहाँ भी ये समस्या आती जा रही है कि क्या पढ़ें?
बाकी , कविता तो शानदार है ही , ये लाइन्स बढ़िया लगीं:
“कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्यवस्था में
दखल न पड़ जाए
मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए!”
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..अजनबी, तुम जाने पहचाने से लगते हो !!!
अब अवार्ड्स और उससे जुडी कोई पोस्ट नहीं पढनी.. ब्लॉग के परे जहाँ और भी हैं..
अब भाई आपको पसन्द आये न आये लेकिन अगला तो वही भाषा प्रयोग करेगा जो भाषा उसको आती होगी।
बाकी कविता पसंद करने का शुक्रिया। श्रीकांत वर्मा जी सुनते तो खुश हो जाते।
@ पंकज ,
सवालों के जबाब जब नहीं होंगे तो कोई क्या जबाब देगा?
पढो भले ही न लेकिन लिखने का काम शुरु किया तो कुछ दिन लिखते रहो जनता की बेहद मांग पर।
जैसे जैसे हिन्दी ब्लॉगरी समृद्ध हो रही है, उस कड़ाही में उबलते दूध पर चढ़ी मलाई को खाने वाले लोगों का जमावड़ा भी बढ़ेगा।
साहित्यकारी की तरह। जहां कुछ लोग अच्छा साहित्य रचते हैं, बाकी लोग अपनी छिछोरी किताबें लेकिन पुराने साहित्यकारों को सम्मानित कर उस जमात में शामिल होने की कोशिश करते हैं।
हिन्दी ब्लॉगरी पर टैग चस्पा करने की जल्दबाजी इसलिए भी है कि स्वांत सुखाय: लेखन अब चुभने लगा है। जिसे जो चाहे वह लिख देता है। इससे उन्मुक्तता बढ़ रही है, जो कई लोगों को नहीं पचती। यही कारण है कि ब्लॉगरी की दिशा जल्द से जल्द तय करने का प्रयास किया जा रहा है…
सम्मान बांटने वालों से कहना चाहिए, अरे भाई हम तो अपनी ही रौ में बह रहे थे, ये तुम क्या बखेड़ा लेकर आए हो,
वास्तव में जिन लोगों ने इस तरह किनारा किया, वे शांति से अब भी पहले की तरह अपना काम कर रहे हैं, इसका मजा ही अलग है…
sidharth joshi की हालिया प्रविष्टी..अंग लक्षण और शारीरिक चेष्टाएं
आपकी बातें सही हैं। हिंदी ब्लॉगिंग में भी तरह-तरह के लोग हैं। ये भी एक अंदाज है लोगों का।
एक ब्लागर का सब से बड़ा सम्मान तो उस के पाठक हैं। आप के पास पाठक ही नहीं हैं तो आप हजार तमगे लगा कर भी सम्मानित नहीं हैं।
सबसे पहले तो एक बार फ़िर से आपको जन्मदिन की शुभकामनायें।
आपकी बात सही है। इस तरह के कार्यक्रम में पैसे के बारे में कोई नहीं बता रहा कि कैसे जुटाया पैसा? न शायद बतायेंगे।
यह बात एकदम सही है कि लेखक के लिये पाठक ही सबसे बड़ी उपलब्धि है।
जब फर्स्ट इयर में पहली बार फ्री का इंटरनेट और ईमेल आईडी मिला था तब हमारे कुछ मित्रगण खूब ईमेल फॉरवर्ड करते थे. अंट शंट कुछ भी. शुरू शुरू में इन्बोक्स में कुछ भी आया देख हमें भी अच्छा लगता था.. फिर बहुत जल्द रियलाइज़ हुआ कि ऐसे लोग बहुत हैं जो लोट्री वाले ईमेल को भी सीरियसली लेते हैं. नहीं तो ऐसे ईमेल आने कब के बंद हो गए होते !
फिर धीरे धीरे ये भी पता चला कि इंटरनेट पर जो भी ‘विधा’-सुविधा है… खासकर फ्री वाली. वहां ऐसे लोग भरे पड़े हैं. जो यहाँ वहां क्लीक करते चलते हैं. टैग करके क्रांति लाते हैं. और ब्लॉग पर आंय बायं धांय करते रहते हैं [इसका मतलब मुझसे ना पूछा जाया :)]
अब आंय बांय धांय तीरंदाज लोगों का कुछ नहीं किया जा सकता. वो बने रहेंगे.
उनका बना रहना भी हिन्दी ब्लॉगिंग की एक प्रवृत्ति ही है।
हमें फ्री का प्लेटफोर्म मिला है.. जो मन आता है लिखते हैं. जिन्हें अच्छा लगता है पढ़ते हैं. अच्छे लोगों से जान पहचान भी हुई है. बहुत अच्छी अच्छी बातें हैं.
वैसे बाकी भाषाओं के ब्लोगर्स में भी ऐसी भसड होती है क्या. ब्लॉग्गिंग पीठ को इस पर शोध करवाना चाहिए
आपकी ज्ञान भरी बातें सुनकर ज्ञानचक्षु खुल गये।
ब्लॉगर पीठ बनते ही उस पर पीठासीन से अनुरोध करेंगे कि वे इस पर शोध करायें कि बाकी भाषाओं के ब्लोगर्स में भी ऐसी भसड होती है क्या?
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..खजूरी, खड़ंजा, झिंगुरा और दद्दू
जिस पोस्ट की यहाँ बात की जा रही है उसकी भाषा एक साहित्यकार या परिपक्व/ समझदार/ विनम्र इंसान की तो बिलकुल नहीं लगती बाकी किसी की भी हो. सही लिखा आपने, यह पोस्ट एक आइना है लेकिन सामने वाला आँखें मूंदे ही अगड़म- बगड़म बोलने पर उतारू हो तो उसे उसके हाल पर छोड़ देना चाहिए. कितनी बीन बजायेंगे भाई, अपने गालों को दर्द देंगे और कुछ ना होगा.. भैंस तो बौराना ही सीखी है.
कविता फिर से बढ़िया चुनी आपने.
आपकी बातों से सहमत! छोड़ दिया उनके हाल पर।
कविता अच्छी लगी इसके लिये शुक्रिया।
झूम – झूम कर नाच रही छायाएं आधी रात
धूम धाम से निकल रही है बौनों की बारात
कर्म भी बौना , सोच भी बौना
मन का हर कोना है बौना
जो चाहो तुम शामिल होना
होगा बस अपना कद खोना
सबसे बौना , खूब घिनौना
है दुल्हा उस्ताद
ये दल्हनिया बड़ी रंगीली
नखरीली और छैल – छबीली
एक नजर में कर देती ये
बड़े – बड़ो की तबीयत ढीली
इसके फंदे , रंग – बिरंगे
इस हमाम में सारे नंगे
गर्वीले मदमाते जाते
आते बनकर दास
सबने सत्ता की मय पी है
और लंपटता की कै की है
नेता अफसर लेखक बाबा
इसमें वो भी और ये भी है
बुद्धीजीवी बना है नाई
उसने ही तो जुगत भिड़ाई
सत्ता दुल्हनिया के संग वे रचा रहे हैं रास
तज नैतिकता के सरकंडे
समझ सफलता के हथकंडे
खड़े -खड़े क्या देख रहा है
तू भी उठा , हाथ में झंडे
राजा बजा रहा है बाजा
तुझे बुलाए आजा-आजा
चिकन तंदूरी खानी तुझको, या खानी है घास
खुद के हक में तर्क है सारे
प्रतिभाओं के ये हत्यारे
छल बल के इस चक्रव्यूह ने
हा कितने अभिमन्यु मारे
मासूमों के रक्त से , इनके चेहरे पर उल्लास
धूम धाम से निकल रही है, बौनों की बारात
Dipak Mashal की हालिया प्रविष्टी..लघुकथाएं
अनिल जोशी की कविता मौजूं है। इसे पढ़वाने के लिये शुक्रिया।
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से-
आपकी खालिस भाषा पढ़ने आ जाते हैं,
विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..इमिग्रेशन, १२० की रफ़्तार, अलग तरह की कारें और रमादान महीना– जेद्दाह यात्रा भाग–४ (Immigration, Speed of 120Km, Different type of Cars and Ramadan Month Jeddah Travel–4)
सही करते हैं , सही कहते हैं। धन्यवाद!
…
चीयर अप
Kajal Kumar की हालिया प्रविष्टी..कार्टून :- ना, नहीं दूँगा..
सोचते हैं कि सीरियस भी हो जाया करें कभी-कभी। भौकाल बनता है न जरा।
बाकी चीयर अप हैं हमेशा की तरह!
दर्दीयाना छोड़ के कौतुक देखने का आनंद लो ना आप!
eswami की हालिया प्रविष्टी..कटी-छँटी सी लिखा-ई
कौतुक जी तो देख रहे हैं।
आपने कहा -
//हमने न ब्लॉगर मीट को निरस्त किया है न पुरस्कारों को।
हमने भोले-भाले ब्लॉगरों को जमावड़े के रूप में इस्तेमाल करने की मंशा का विरोध किया है। //
– मेरी समझ से यहां न तो कोई भोला है और न ही भाला !
//आम तौर पर लोग आंख मूंदकर समर्थन या फ़िर विरोध करते हैं //
- आपने ये कैसे तय कर लिया ??
// सब लोग खूब सम्मान प्राप्त करें। खूब खुश हों। //
— ये हिन्दी ब्लॊगिंग या ब्लॊगर की सहज प्रवृत्ति बिल्कुल नही है ! मीन- मेख , ईर्ष्या, वन- अप होना, दूसरे की टांग खींचना आदि .. सहज मानवीय या ब्लॊगीय प्रवृत्तियां हैं..
आप खुश हुए क्या जो दूसरों को सलाह दे रहे हैं … ?
और वाह जी वाह! तमाम बौखलाहट और कटाक्ष के बाद आप कहें कि आपको इससे या उससे कोई आपत्ति नही है …..
और ज्यादा कुछ नही बस ये —
जो कहता मै जग को जानूं,
वो जग से अनजान बहुत है
कह्ते सब, पर सुने न कोई,
शोर मे उस, सुनसान बहुत है
“मै” से बाहर कुछ भी ना हो,
भीड़ मे उस वीरान बहुत है ………..
रचना.
//मेरी समझ से यहां न तो कोई भोला है और न ही भाला ! :)//
आप शायद सही कह रही हों। इसलिये आपसे सहमत हो लिये।
//- आपने ये कैसे तय कर लिया ?? //
अपने आठ साल के ब्लॉगिंग के अनुभव से।
//— ये हिन्दी ब्लॊगिंग या ब्लॊगर की सहज प्रवृत्ति बिल्कुल नही है ! मीन- मेख , ईर्ष्या, वन- अप होना, दूसरे की टांग खींचना आदि .. सहज मानवीय या ब्लॊगीय प्रवृत्तियां हैं..
आप खुश हुए क्या जो दूसरों को सलाह दे रहे हैं … ? //
जो होता है वह एकदम वैसा ही थोड़े कहा जाता है भाई! हम सलाह देने के बाद तो खुश हो गये कि अपन का काम पूरा हो गया।
कविता पंक्तियां बहुत खूब हैं। देखिये हम बिना मीन-मेख, ईर्ष्या के यह कह रहे हैं।
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..बंगलोर का सौन्दर्य
eswami की हालिया प्रविष्टी..कटी-छँटी सी लिखा-ई
देखते रहिये कहीं आप मुदित ही होते रहे और कुछ प्रवृत्तियाँ और निवृत्तियाँ इधर-उधर हो जायें।
@ईस्वामी,
सही है। जनता की हरकतों की सहज आवृत्ति को देखना-परखना मजेदार अनुभव है। हम भी उसी जमाने से इस सब के साक्षी हैं।
अभी हिंदी ब्लागिंग में पाठकों को दूसरों का पढने की आदत नहीं है , केवल अपना पढ़ाने की इच्छा है , इसी कारण अपने अपने ग्रुप, गैंग तथा दुकाने चला रखी हैं !
पुरस्कार लेने से पहले यह गौर कर लेना चाहिए कि पुरस्कार दाता और पुरस्कृत की योग्यता का मापदंड क्या है , तभी हम उस “प्रभा” का मान कर पायेंगे !
अथवा १५० पुरस्कार बांटने पर कमसे कम १४० चेले बनते हैं जो कम से कम २ साल तक वाहवाही करेंगे, तदुपरांत उत्पन्न आत्मविश्वास, बरसों तक हीरो बने होने का अहसास बनाए रखेगा !
सौदा बुरा नहीं है…
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..कसम हमें इन प्यारों की – सतीश सक्सेना
Rachna की हालिया प्रविष्टी..15 अगस्त 2011 से 14 अगस्त 2012 के बीच में पुब्लिश की गयी ब्लॉग प्रविष्टियाँ आमंत्रित हैं .
आपने दस चेलों का नुकसान करवा दिया न! उनकी भरपाई कैसे होगी।
लेखक का सबसे बड़ा इनाम उसके पाठक हैं। इस बात से असहमत कैसे हो सकते हैं?
टर्र टर्र, टर्र टर्र
टर्र टर्र, टर्र टर्र
टर्र टर्र, टर्र टर्र
टर्र टर्र, टर्र टर्र
पूरी कबिता पढ़ने के लिए ईहाँ जाइए – http://azdak.blogspot.in/2009/10/blog-post_30.html
आओ आओ घात लगाएं
घेर घेर के लात लगाएं
किसने कहा हम चिरकुट हैं
कहवैये की तो बाट लगाएं
मुक्ता सरिता के बड़ पहुंचे ज्ञानी
हमसे न टकराना ओ अभिमानी
न हमसे दुष्ट तुम खेल करो
सपनों में हमारे न ठेल करो
हुर्र हुर्र चंद्रलोक तक जाना है
हुर्र हुर्र मंदिर वहीं बनाना है
पूरी कविता के लिये लिंक ये है- http://azdak.blogspot.in/2007/06/blog-post_18.html
ये कविता भी गज्ज्जब मौजूं है??????
प्रणाम.
उदाहरण के तौर पर एक तथाकथित बड़े पत्रकार बंधु जिन्होंने इस आयोजन की बेहद कटु आलोचना की, उन्हें ये ही नहीं पता कि पूर्णिमा वर्मन कौन हैं! (यह बात उन्होंने अपनी टिप्पणी में स्वीकारी है!) फिर भी इस आयोजन के विरुद्ध खम ठोंक कर लिख रहे हैं. आयोजन से पहले उन्होंने अपने किसी पोस्ट में प्रतिभागियों के बेसलेस एयरफेयर मिलने की बात भी कही थी! हद है!
एक नॉनसेंस किस्म का मुद्दा उठाया गया कि शिखा वार्ष्णेय मंचासीन हैं और वरिष्ठ पीछे खड़े हैं – तो जो ब्लॉग और उसकी प्रवृत्ति को नहीं जानते वे ही ऐसी बात कह सकते हैं. ब्लॉग में कोई छोटा-बड़ा वरिष्ठ गरिष्ठ नहीं होता. और किसी के लिए होता भी होगा तो वो एक फोटोसेशन का चित्र था जो प्रेस के लिए खासतौर पर आयोजित था जिसमें प्रथम सत्र के मंचासीन अतिथियों के साथ पुरस्कृतों का था.
एक नामालूम से अखबार की सुर्खी – लम्पट शब्द को लेकर भी हो हल्ला मचाया गया. जबकि यह अखबारी सुर्खियाँ बटोरने की शीर्षकीय चालबाजी से अधिक कुछ भी नहीं था.
इस आयोजन के लिए बेसिर-पैर और खालिस टेबल राइटिंग जैसी निम्नस्तरीय आलोचनाओं की बाढ़ सी आई है जिसमें शीत निद्रा से जागा हर ब्लॉगर अपना हाथ धो लेना चाहता है. इसी तरह की निम्नस्तरीय आलोचनाएँ प्रतिष्ठित इंडीब्लॉगीज पुरस्कारों को बंद करने में एक बड़ा कारण रही हैं. जबकि मेरा ये मानना है इस तरह के आयोजन होते रहें तो ब्लॉगिंग में तेजी भी आती है. हालिया उदाहरण को ही लें. बहुत से ब्लॉग शीत निद्रा से उठे और बहुत से नामालूम किस्म के ब्लॉगों की रीडरशिप – क्षणिक ही सही, तेजी से बढ़ी!
जो भी हो, इस नामालूम से आयोजन को, जिसकी खबर एक दिन में फुस्स हो जानी थी, उस पर आपके पिछले पोस्ट ने स्ट्रीसेंड प्रभाव डाल दिया और इस लिहाज से यह बेहद सफल रहा – सप्ताह भर से लोग रस ले ले कर इसकी जमकर लानत-मलामत भी कर रहे हैं तो घोर प्रशंसा भी, जो शायद अगले एक महीने तक जारी रहेगी.
एक बेहद सफल आयोजन का यह शानदार प्रतीक है
मैं आयोजकों को फिर से बधाई देना चाहूंगा और निवेदन भी – भविष्य के आयोजनो में, इस आयोजन की जो जेनुइन कमियाँ गिनाई गई हैं, उन्हें दूर करने का प्रयास करें और इससे भी बढ़िया, बेहतर आयोजन करें.
मेरा मानना है कि ऐसे आयोजन होते रहने चाहिएं – एक नहीं, दर्जनों – ताकि हिंदी ब्लॉग जगत में तो हलचल मची ही रहे और साथ ही उस शहर के निवासियों को ब्लॉगिंग में और भी दिलचस्पी जागे.
रवि की हालिया प्रविष्टी..जीरो लॉस थिअरी का जेनरेलाइजेशन
हलचल तो मचनी चहिये लेकिन हलचल हमारे जैसे बाहर बैठे लोग मचा रहे हैं। शामिल लोग शरीफ़ों की तरह चुप हैं।
बाकी आयोजकों के पास कोई जबाब हो तो बतायें। मुझे कोई शक नहीं अगली बार भी सब कुछ अपने को दोहरायेगा।
रवि की हालिया प्रविष्टी..यात्रा संस्मरण : मेरी मेलबोर्न यात्रा
कल एक ब्लॉग पढ़कर तो मन इतना खिन्न हुआ कि कम्पूटर वगैरह बंद करके सो गया… एक तरफ अभिव्यक्ति के माध्यम ‘ब्लॉगिंग’ के विकास के लिए सम्मेलन, सम्मान और अकादमी की बात और दूसरी तरफ किसी के अपने ब्लॉग पर आलोचना करने पर कानूनी कार्रवाई…. हास्यास्पद भी लगा और तरस भी आया.. अगर परिकल्पना सम्मान और इसके आयोजकों की आलोचना (गलत ही सही) पर किसी को जेल या जुर्माना हो जाये तो फिर तो दुनिया के लाखों ब्लॉगर्स को फांसी हो जानी चाहिए जो ऑस्कर, नोबेल और भारत रत्न जैसे सम्मानों की खुल कर आलोचना करते हैं, पक्षपात के आरोप लगाते हैं और गरियाने में मनमोहन सिंह से लेकर बराक ओबामा तक को कहीं का नहीं छोड़ते..
जमावड़े वाली प्रवृति पर यह कहूँगा कि भारतीय लोग संघ, पीठ, असोसियेशन, संगठन वगैरह अच्छा बनाते हैं. जहाँ दस लोग जमा हुए वहीं एक संगठन बनाने की बात होने लगती है. उसमें एक या दो लोग होते हैं जो खुद पर नेता का टैग लगा कर आत्मसंतुष्टि और लाभ पाते हैं और आसपास भोकाली बांधते हैं और बाकी लोग या तो नादानी में या सब जानकर भी कुछ न कर पाने के कारण पीछे-पीछे चलने लगते हैं. कुछ लोग नौटंकी को समझ कर अपने आपको इससे अलग रखने के लिए संगठन से दूर रहना बेहतर समझते हैं. ऐसे लोग अक्सर ‘खुरपेंचिया, जलने वाला और कानी गाय की अलग बथान’ जैसे एक्सप्रेशंस से नवाजे जाते हैं..
सतीश चंद्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..सबसे पोपुलर पोस्ट्स पर एक भी टिप्पणी नहीं
“एक तरफ अभिव्यक्ति के माध्यम ‘ब्लॉगिंग’ के विकास के लिए सम्मेलन, सम्मान और अकादमी की बात और दूसरी तरफ किसी के अपने ब्लॉग पर आलोचना करने पर कानूनी कार्रवाई…. हास्यास्पद भी लगा और तरस भी आया.”
इसी तरह तो होगा ब्लॉगिंग का विकास। कानूनी कार्रवाई होगी। मामला कोर्ट-कचहरी में जायेगा। चर्चा होगी। विकास होगा। हास्यास्पद और तरस आने लायक बातें करना लोगों के लिये बहादुरी की बात है। क्या कीजियेगा?
शिव कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..देवी अहल्या, भगवान राम और स्टोन माफिया
डा पवन कुमार की हालिया प्रविष्टी..दरिया होने का दम भरते तो है सनम, लेकिन डूबेगे अंजुरी भर पानी मे
कोई प्रौढ़ और इसलिए मैच्योर पांडे जी शास्त्री जी को ‘सठिया गए हैं’ और ‘पछुआ बचुआ हैं ‘ऐसा बोलते हुए पाए जा रहे हैं और , और करता -धर्ता महोदय बताते हैं पैसिव वायस में ‘कानूनी सल्लाह ली जा रही है’ और ‘स्नैप शाट ले लिया गया है’ आदि- आदि |
‘गुरु’ फिल्लम का डायलाग भी चिपकाया जा रहा है
इन शार्ट, सबकी मनोहारी अदाएं नोट की जा रही हैं | संस्कारों की धूम मची हैं | वेद ऋचाएं गूँज रही हैं!
लगता है धर्म का घड़ा भर गया है !!
Manoj Pandey की हालिया प्रविष्टी..चुनाव लड़ने की घोषणा
अब तक जितने भी अंध -समर्थन कर रहे हैं…….उनके यहाँ से ही कार्यक्रम की कमियों को गिन लें…..किसी को समझान च बताने की जरूरत नहीं परिगा.
अब आप तो ठहरे स्थापित च सत्यापित(परिकल्पना के पुरस्कार) से अधिक कुछ लिख दिया तो कहीं ‘सुलग’ न जय………..
जय हो.
लीक पकड़ कर चलते समाया थोडा दायें बांये भी देखना चाहिए…
“अनूप शुक्ल या मैं क्या इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं कि कोई आयोजक उन पर इतना समय जाया करेगा ??”
मैंने इसके जवाब में ऐसा कुछ लिखा था (शब्दशः तो याद नहीं ) -
“मिश्र जी , आयोजक स्वयं क्या इतने होली काऊ या इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं कि उनके सामने आप या अनूप शुक्ल बौने हो गए हैं.”
आजतक यह वहां पब्लिश नहीं हो पाई है , मैंने दो बार ट्राई मारा.
यह २ दिन पहले की बात है , उसके बाद कुछ पोस्ट भी चिपकी हैं और उन पर कुछ कमेंट्स भी आये हैं !
आयोजक महोदय को शायद अचानक अपने ‘महत्त्व’ का भान हो गया है..
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..खजूरी, खड़ंजा, झिंगुरा और दद्दू
जितने उसके दुख में चुप थे उससे ज्यादा सुख में चुप
-समीर लाल ’समीर’
समीर लाल “टिप्पणीकार” की हालिया प्रविष्टी..गाँधी जी का टूटा चश्मा