प्रेम जनमेजय जी द्वारा पुस्तक मेले के मौके पर एक ’जबरियन टाइप’ करवाई गयी तारीफ़। सामने किताब और माइक , बगल में लेखक और पुस्तक मेले का सहज खुशनुमा माहौल ने मिलकर प्रेम जी में अतिरिक्त उद्दात्ता का संचार कर दिया और उन्होंने जो कहा वह यहां पेश है। ’बुरा न मानो होली है’ के बहाने।
पहले तो अनूप को बहुत बहुत बधाई। क्या है कि अक्सर इनकी सक्रियता सोशल मीडिया पर देखता हूं तो सोचता हूं कि इनकी सक्रियता किताबों पर उतरकर कब आयेगी? उसका कारण क्या है कि ये बेबाकी से अपनी बात कहते हैं। ये कभी अपनी रचनाओं में या कभी-कभी टिप्पणी में कभी सोचता नहीं है कि कोई व्यक्ति इससे नाराज तो नहीं हो जायेगा और व्यंग्य की सबसे बड़ी शर्त यही होती है कि जब आप यह सोचते हैं कि कोई व्यक्ति आपसे नाराज नहीं हो जायेगा वहीं आप अपने व्यंग्य को भोथरा करना शुरु कर देते हैं अन्यथा आप कबीर होकर व्यंग्य करते हैं , कह देते हैं उसके बाद प्रतिक्रिया जो आती है (आती रहे)।
अनूप की रचनाओं में मैंने यही देखा है। यह जो इनका व्यंग्य संकलन है – ’सूरज की मिस्ड कॉल’ इसका नाम ही एक अलग तरह का है। भाई सुभाष Subhash Chander ने जैसा कहा एक पठनीयता है। वह पठनीयता तभी आ पाती है जब आपकी सोच जो है रचना की हो। अन्यथा अगर आपकी सोच टिप्पणी की हो कि इस चीज पर टिप्पणी मुझे करनी है तो वह रचनात्मकता उसमें नहीं आयेगी। रचनात्मकता आने पर ही व्यंग्य भी उसमें आयेगा, हास्य भी आयेगा । रचना साहित्य की दृष्टि से पहले रचना होनी चाहिये उसके बाद ही वह व्यंग्य , कहानी कविता या कुछ बनती है। इसीलिये अनूप को पढना मुझे अच्छा लगता है कि मुझे लगता है कि मैं एक अच्छी रचना पढ रहा हूं। मैं बधाई देता हूं। विस्तार से इस दुल्हन के बारे में, जिसका घूंघट आज उधाड़ा गया है, विस्तार पढूंगा और कहूंगा क्योंकि कहना मुझे अच्छा लगता है।
इन्होंने अभी एक किताब और सम्पादित की थी Alok Puranik पर – ’आलोक पुराणिक-व्यंग्य का एटीएम’ वह बहुत महत्वपूर्ण काम है। मुझे अच्छा लगा कि इन्होंने मुझसे उसमें लिखवा भी लिया। लिखकर भी अच्छा लगा। हम लोगों का तो ऐसा है कि कोई क्षेत्र ऐसा नहीं जो प्रतिबंधित हो। ये अगर किसी काम में जुट जाते हैं तो उसे खत्म करके ही छोड़ते हैं। इनकी खास बात है, अभी एक संकलन आया है चहलकदमियां, तो व्यंग्य में इनकी चहलकदमियां बहुत अच्छी लगती हैं। मैं बधाई देता हूं।
सूचना: आलोक पुराणिक जी के बारे में लिखी जिस किताब का जिक्र यहां हुआ वह आलोक पुराणिक जी के ५१ वें जन्मदिन के मौके पर तैयार की गयी। इसमें उनके घरवालों, मित्रों, प्रशंसकों, आलोचकों के लेख, आलोक पुराणिक जी को व्यंग्य यात्रा सम्मान मिलने की अविकल रिपोर्टिंग , आलोक पुराणिक जी के साक्षात्कार और आलोक जी की चुनिंदा रचनायें और शेरो शायरियां संकलित हैं। पन्द्रह-बीस दिन की मेहनत में तैयार की गई २९५ पेज की यह किताब आलोक पुराणिक के बारे में शोध करने वालों के लिये बहुत उपयोगी है। किताब रुझान प्रकाशन से आई है। लिंक यह रहा।
और जिस किताब का जिक्र करते हुए बात की प्रेम जी ने -' सूरज की मिस्ड कॉल' उसका लिंक नीचे दिया है। इस पुस्तक पर उप्र हिंदी संस्थान का वर्ष 2017 का सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ' अज्ञेय' सम्मान भी मिला। http://rujhaanpublications.com/product/suraj-ki-missed-call/
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