कल इतवार था। कई काम सोचे थे करने को। कुछ किताबें , कुछ लेख। सोचा था हम भी कुछ लिख लेंगे। फ़िल्म भी देखने की मंशा थी। कुछ नया सीखने का भी मन था। उर्दू सोचते हैं पढ़ना सीख लें , शाहजहांपुर में रहते। कम्प्यूटर पर भी मन करता है काम करना कुछ और सीख लें। एक्सेल की किताबें मंगाई हैं ऑनलाइन । सोचते हैं कुछ अच्छे से सीख लें।
इतने काम एक अकेले इतवार के कंधे पर लाद दिए। इतवार बेचारा डरा-डरा आया। चेहरे पर शिकायत चिपकाए -'एक हमी बचे हैं सब काम के लिए। बाकी दिन खाली मौज मनाएंगे?'
शिकायत भले चेहरे पर चिपकी हो लेकिन मुंह से बोला कुछ नहीं। शरीफ लोगों की तरह चुपचाप सह जाने का भाव। शरीफ लोग बेचारे हमेशा लफड़ों से बचते हैं। उनको हमेशा डर लगता है कि कुछ बोले तो उनकी शराफत वाली पोस्ट छिन जाएगी। 'शरीफ बेरोजगार'हो जाएंगे। भूतपूर्व शरीफ। डरते हैं कि कुछ कहा और किसी ने कह दिया -'शक्ल से शरीफ दिखते हो लेकिन हरकतें ऐसी।' तो बेचारे कहीं मुंह दिखाने के काबिल न रहेंगे।
इसी डर के मारे शरीफ लोग कुछ भी नया करने से बचते हैं। इंतजार करते हैं कि जब सब लोग करने लगेंगे तो वे भी करने लगेंगे। शरीफ लोगों को लगता है कि उनका सब कुछ भले छिन जाए लेकिन शराफत का तमगा न छिने। इसीलिए जहां कोई इधर-उधर की बात हुई शरीफ लोग फौरन कट लेते हैं। वो कहा है न दुष्यंत जी ने:
'लहूलुहान नजारों का जिक्र आया तो
शरीफ लोग उठे और दूर जाकर बैठ गए।'
हम भी कहां की बात किधर मोड़ दिए। बात हो रही थी इतवार की और किस्से सुनाने लगे शराफत के। यह तो ऐसे ही हुआ कि लाइव बातचीत में विषय कुछ दिया जाए और लोग बोलते कुछ और रहें।
अरे हां लाइव की बात भली याद आई। कोरोना काल में जबसे मिलना-जुलना कम हुआ आन लाइन बातचीत बहुत बढ़ गयी है। वीडियो कांफ्रेंसिंग बढ़ी है। आन लाइन इन्टरव्यू बढ़े हैं। कविता पाठ, कहानी पाठ, व्यंग्यपाठ बढ़े हैं। इतवार , शनिवार खासतौर पर 'क्या मेरी बात सुनाई दे रही है?' के कब्जे में चले गए हैं।
ऑनलाइन बातचीत का नजारा यह है कि दिन में इत्ते सत्र मित्रों के प्लान हैं कि किसको सुने, किसको छोड़े , समझ मे नहीं आता। एक ही दिन में कई बारातें निपटाने की जिम्मेदारी जैसी बात। घण्टे-घण्टे भर के सत्र। बीस-बाइस लोग। हो रहे हैं ऑनलाइन सत्र।
ऑनलाइन सत्र के भी मजेदार नेपथ्य होते हैं। उधर ऑनलाइन श्रोता बने बैठे हैं इधर दोस्तों से चैटिंग चल रही है:
-अब ये लम्बा झेलायेगा।
-तो क्या झेलो। तुमने सुनाया तो उसको भी हक़ है झेलाने का।
-हम तो आडियो-वीडियो बन्द करके आंख मूंदकर बतिया रहे।
-अरे अध्यक्ष जी भी पढ़ेंगे। अध्यक्षता का मतलब यह थोड़ी की पाठ भी करेगें। अजीब बकैती है।
-हम तो लॉगआउट कर रहें यार बोर हो गए। हमको दूसरी जगह आन लाइन होना है।
इसी तरह की बतकहियों के बीच ऑनलाइन प्रसारण होता है। जो सामाजिक मीडिया दो-पांच मिनट की पोस्ट को बड़ी मानता है वो फिलहाल घण्टे भर के ऑनलाइन की भरमार कर रहा। लोग बाद में सुनते है। अपने हिसाब। नया चलन है । देखना है कितनी दूर जाएगा।
अरे बात तो इतवार की हो रही थी। लेकिन वह तो कल था। आज तो सोमवार है। सोमवार को इतवार के किस्से सुनने की किसको फुरसत।
चला जाये सोमवार अपने जलवे और खूबसूरती के साथ इंतजार कर रहा है। आपका सोमवार शुभ हो।
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