Monday, September 28, 2020

परसाई के पंच-52

 1. जिन मनीषियों ने संसार को दुखमय कहा है, उन्होंने यह तब कहा होगा, जब उनके घर आटा नहीं रहा होगा !

2. सरकार कहती है कि हमने चूहे पकड़ने के लिये चूहेदानियां रखी हैं। एकाध चूहेदानी की हमने भी जांच की है। उसमें घुसने के छेद से भी बड़ा छेद पीछे से निकलने के लिये है। चूहा इधर फ़ंसता है और उधर से निकल जाता है। पिंजड़े बनाने वाले और चूहे पकड़ने वाले चूहों से मिले हुये हैं। वे इधर हमें पिंजड़ा दिखाते हैं और चूहे को छेद दिखा देते हैं। हमारे माथे पर सिर्फ़ चूहेदानी का खर्च बढ रहा है।
3. हजारों मील दूर से अमरीका से पराया गेंहू तो आ सकता है, पर 150 मील दूर से अपना गेंहू नहीं आ सकता। अपनी हर चीज की रफ़्तार कम हो गयी है। विदेशी पैसा कैसे दौड़कर आता है, अपना पैसा रेंगता है।
4. कुसंस्कारों की जड़ें बड़ी गहरी होती हैं।
5. लोग जिस चीज से सबसे ज्यादा चिढते हैं वह है, अच्छा उदाहरण ! अच्छा उदाहरण एक बार बन जाने पर आदमी अच्छाई का गुलाम बन जाता है।
6. तारीफ़ करके आदमी से कोई भी बेवकूफ़ी करायी जा सकती है।
7. कई दूकानदारों की मीठी बातें जो व्यापारिक चतुरता है, मानवीयता के नाम से बाजार में चलती हैं। मेरा आलस्य भलमनसाहत के रूप में चलता है।
8. मैं भला हूं, क्योंकि आलसी आदमी हूं। बुरा होने के लिये हाथ,पांव और मन को हिलाना पड़ता है।
9. हम ’भला’ उसी को कहेंगे जो ’बेचारा’ हो । जब तक हम किसी को बेचारा न बना दें, तब तक उसे भला नहीं कहेंगे।
10. किसी को ’भला’ कहना उसकी प्रशंसा नहीं है। उसे ’बेचारा’ करके दया प्रकट करना है। जो हर काम के लिये चन्दा दे देता है, वह ’बेचारा’ भला आदमी है। जो रिक्शावाला कम पैसे लेता है, वह बेचारा भला आदमी है। जो लेखक बिना पैसे लिये अखबार के लिये लिख देता है, उसे सम्पादक बेचारा भला आदमी कहते हैं। टिकट कलेक्टर बेचारा भला आदमी है, क्योंकि वह बिना टिकट निकल जाने देता है।
11. मुझे इस ’बेचारा भला आदमी’ से डर लगता है। अगर देखता हूं कि मेरे बगल में ऐसा आदमी बैठा है, जो मुझे ’बेचारा भला आदमी’ कहता है, तो जेब संभाल लेता हूं। क्या पता वह जेब काट ले।

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