Saturday, April 30, 2022

पैसे ठिकाने लगाने की गारंटी



जब कभी किसी मॉल जाना होता है, उसकी जगर-मगर देखते हैं। खासकर शाम के बाद तो लगता है कि कहीं स्वर्ग है तो यहीं हैं।
स्वर्ग अगर कहीं होगा भी तो उसकी व्यवस्था कैसे होती होगी? स्वर्ग में रहने वाले लोगों की व्यवस्था कौन देखता होगा? उनके लिए खाने-पीने का इंतजाम कैसे होता होगा? साफ-सफाई कैसे होती होगी? क्या स्वर्ग में भी गैरबराबरी होती होगी-जिसके खाते में ज्यादा पुण्य उसका रुतबा ऊंचा, जिसके खाते में कम पुण्य वह रुतबे लाइन में नीचे। क्या पता वहां भी चुनाव होते हों। लेकिन अगर चुनाव होते होंगे तो फिर स्वर्ग और अपनी धरती में क्या अंतर।
बात मॉल की हो रही थी। कल एक मॉल जाना हुआ। लोग मस्त-प्रसन्न-उत्फुल्ल-प्रफुल्लति मुद्रा में चहलकदमी करते दिखे। खूबसूरत लोग। खूबसूरती के मामले में देखा जाए तो मॉल में शहर खूबसूरती का सबसे बड़ा जमावड़ा होता है। सब खूबसूरत लोग लगता अपनी खूबसूरती चेहरों और अदाओं में लादकर मॉल में आते हैं, दिखा-देखकर चले जाते हैं।
किसी भी शहर के मॉल आपके पैसे को ठिकाने लगाने की गारंटी हैं। पैसा लेकर आइये, खाली जेब वापस जाइये।
मॉल में एक्सकेटर पर लोग एक मंजिल से दूसरी पर जा रहे थे। कोई-कोई तो आने-जाने का वीडियो भी बनाते दिखा। कोई सेल्फिया रहा था। कोई नेट सर्फिंग करते उतरते-चढ़ते दिखा। जोड़े से भी लोग लगे थे सेल्फ़ियाने में। घर में जो बचा रह गया होगा प्रेम वह एक-दूसरे पर उड़ेकते हुए यहां फोटोबाजी कर रहे थे-ताकि सनद रहे।
एक एक्सेलेटर के पास तीन महिलाएं बड़ी देर तक खड़ी रहीं। लोगों को चढ़ते उतरते देखती महिलाएं शायद सीढ़ियों पर चढ़ने में हिचक रहीं थीं। बहुत देर तक उनको खड़े देखकर मैने उनका हौसला बढ़ाने की कोशिश की। लेकिन वे मेरे झांसे में नहीं आईं। उनके हाव-भाव से लगा कि वे एक्सेलेटर पर चढ़ने को बहुत कठिन, अपने बस के बाहर मान चुकी थीं। हमने उनके इस भाव को हिलाने की कोशिश की लेकिन वे हमसे बिना सहमत हुए कुछ देर खड़ी देखती रहीं सीढ़ियों को और फिर बाहर की तरफ चल दीं।
हमने सोचा कि जिस देश में महिलाएं जेट चला रहीं हैं वहीं कुछ महिलाएं सीढ़ियों पर चढ़ने में हिचक नहीं। लेकिन यह बात महिलाओं तक ही नहीं सीमित, तमाम पुरुष भी ऐसे ही होंगे। इससे अलग बात यह भी कि ये लोग कम से कम मॉल तक आ गए। शहर की बड़ी आबादी ऐसी भी होगी जो यहां माल तक भी नहीं आ पाती होगी। इसी का विस्तार किया जाए तो देश-दुनिया की तमाम आबादी शहर देखने को तरस जाती होगी। गैर बराबरी की यह विविधता अनूठी है। किसी भी आबादी के तबके से वंचित दूसरा तबका सहज रूप से उपलब्ध हो जाएगा।
एक दुकान में कपड़े देखने आए थे। दो साल पहले बिना नाप/ट्रायल लिए गए थे। फिट नहीं आये। बदलना बाकी था। ट्रायल में हर बार कुछ न कुछ लफड़ा हो जाता। कभी पेट अटक गया, कभी हाथ। अपने शरीर के बेडौलपने पर मुझे अक्सर रश्क भी होता है। मॉल में कपड़े फिट नहीं आते। पैसे बच जाते हैं।
पता चला कि दुकान का किराया साढ़े तीन लाख महीना है। मतलब करीब 35-40 मजदूरों की महीने की तन्ख्वाह।
सामान ज्यादा हो गया तो एक बच्चा साथ भेज दिया नीचे तक पहुँचने। फ्रेंचकट दाढ़ी वाला बच्चा पता चला बीकॉम पढ़े है। देहरादून से पढ़ाई की। अब यहां साफ-सफाई का काम करता है। पिता बिल्डिंग कांट्रेक्टर हैं, नेपाल में काम है। लेकिन कोरोना काल में काम बंद हो गया तो फिलहाल कानपुर में बहन मासकॉम की पढ़ाई करके दिल्ली में काम करती है।
मां के बारे में पूछा तो बताया -'2013 में नहीं रहीं।' उदास हो गया बच्चा मां की याद करके।
हर सवाल के तुरंत और यांत्रिक जबाब। जिंदगी बड़ी जालिम और रूखी टाइप है बालक की। बताया -'काम मिलते ही कहीं और जाएगा। फिलहाल यहीं ठीक है। भीषण गर्मी में माल में नौकरीं सुकून है।
सड़क आ गयी। बच्चा वापस चला गया। सड़क पर ट्रैफिक रेंग रहा है। मेट्रो के लिए खुदाई हो रही है। तेज चलने की तैयारी के लिए शहर ठहरकर इंतजार कर रहा है।

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