Sunday, October 08, 2023

प्रोटोकॉल का हल्ला और सुबह की चाय

 



मार्निंग वाकर ग्रूप मतलब ‘सुबह टहलुआ समूह’ के सदस्यों के साथ काफी देर तक बतियाये। गपियाये। कोई भी नया साथी आये उससे नए सिरे से मुलाक़ात। सीतापुर वाले मुंशी जी के बारे में पता चला कि बहुत दिन से दिखे नहीं। चने बेचने वाला बच्चा भी नहीं दिखा।
अपन बेंच नंबर सात वाली फुटपाथ की तरफ थे। सामने की तरफ वाली फुटपाथ पर लगी बेंचों पर लोग बैठे थे। कसरत कर रहे थे। बतिया रहे थे। सड़क पर आते-जाते लोगों को देख रहे थे। बदले में लोग भी उनको देखते हुए गुजर रहे थे। किसी ने कहा भी है –‘आप जो व्यवहार लोगों के साथ करेंगे, लोग भी आपके साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे।‘
कुछ देर बाद तय हुआ कि चाय पी जाए। सबेरे बिना दूध की पी हुई आधी चाय यादों में कसक रही थी। मंदिर के पीछे बनी चाय की दूकान की तरफ जाते हुए तिराहे पर नया खुला ‘भारत ढाबा’ दिखा। लोगों ने बताया कि काफी गुलजार रहता है। लोग आते हैं। बैठते हैं। खाते-पीते हैं। बतियाते हैं। मीटिंग प्वाइंट जैसा कुछ। तिराहे के पास खाली पडी जमीन को जंगले से घेरकर बने ढाबे में मेज-कुर्सी रखी हुई थी। सुबह नहीं खुलता है ढाबा।
ढाबे को देखकर हमको याद आया कि पहले यहां ठेले वाले फल, सब्जी , भुट्टे और तमाम चीजें बेंचा करते थे। अब ढाबा खुल जाने के बाद वे कहाँ खड़े होते होंगे। पहले सुरक्षा कारणों से यहाँ किसी दूकान चलाने की अनुमति देने की बात सोची भी नहीं जाती थी। बदली परिस्थितियों में आमदनी के सभी संभावित मौके भुनाए जाने के समय में जहाँ से भी संभव हो, पैसा आना चाहिए।
चाय की दूकान की तरफ जाते हुए साथ के एक सज्जन ने पूछा –“ढाबे में बैठकर चाय पीने में आपके लिए प्रोटोकाल की कोई समस्या तो नहीं होगी?’
हमने कहा –‘ढाबे में चाय पीने में क्या प्रोटोकाल?’ दोस्तों के साथ ढाबे में बैठकर चाय पीने से भी क्या किसी प्रोटोकाल का उल्लंधन होता है? इंसान के साथ इंसान की मुलाक़ात का भी कोई प्रोटोकाल होता है क्या ?
होता नहीं है लेकिन आधुनिक होते समाज में प्रोटोकाल का हल्ला बड़ी तेजी से बढ़ा है। लोग अपने जनप्रतिनिधियों , बड़े अधिकारियों से सहज रूप में मिल नहीं सकते। यह प्रोटोकाल कभी सुरक्षा कारणों से लगता है और बाकिया पद के चलते। ऊँचे पद के साथ लोगों के यह एहसास होता है कि आम लोगों से मिलने-जुलने से उनके रुतबे में कभी हो जायेगी। अक्सर उनको उनके मातहत अपने साहब को यह एहसास दिलाते हैं कि आम लोगों से मिलने आपका रुआब कम हो जाएगा।
कल भी ऐसा हुआ। शाम को कुछ लोग मिलने आये तो बताया कि वे आ तो पहले गए थे लेकिन दरबान ने बताया कि साहब आराम कर रहे हैं। हमको ताज्जुब हुआ। हम तो दिन भर निठल्ले बैठे थे। न किसी को आने से रोकने के लिए कहा था । न आराम करने की बात । लेकिन मिलने वालों को इन्तजार कराया गया। प्रोटोकाल की महिमा अनंत हैं।
प्रोटोकाल की बात से जावेद अख्तर जी का सुनाया एक संस्मरण याद आया। छात्र जीवन में नेहरु जी उनके संस्थान आये थे। नेहरू जी के विदा होते समय जावेद साहब भागते हुए उनकी कार के फुटरेस्ट पर चढ़ गए और अपनी आटोग्राफ बुक नेहरू जी के सामने करके बोले –‘आटोग्राफ प्लीज।‘ नेहरू जी ने अचकचा कर उनको देखा और उनकी आटोग्राफ बुक में दस्तखत कर दिए। आज के समय दुनिया के किसी भी देश के प्रधानमत्री/राष्ट्रपति से इतनी सुगमता से मिलना और दस्तखत लेने की सोच भी नहीं सकते।
चाय की दूकान चाय आई। ग्लास में दूध की चाय देखकर मन खुश हुआ। खुशी में इजाफा करते हुए पकौड़ियाँ भी आयीं। बतरस के बीच सब चाय और पकौड़ी को आनंद के साथ उदरस्थ किया गया। वहां फोटोग्राफी और विडियोग्राफी भी हुई। वीडियो कमेंट्री के साथ यहाँ लगा है।
चलते समय हमने लपककर चाय के पैसे दे दिए। हिसाब नहीं पूछा इस लिए कि अगर हिसाब पूछेंगे तो फिर पैसे देने से रह जायेंगे। एतराज हुआ भी। चाय वाला भी इधर-उधर ताकता हुआ लेने , न लेने की मुद्रा में खड़ा रहा। हमने जबरियन पैसे उसकी कमीज की ऊपर की जेब में ठूस दिए। जेब में पैसे ठूंसने से नोट थोड़ा भुनभुनाया होगा। थोड़ी सलवटें भी आ गयीं उसके ठूंसे जाने से। उसको अपनी बेइज्जती भी खराब होती लगी होगी कि आज की तारीख में सबसे बड़ा नोट होने के बावजूद उसके साथ सुबह-सुबह इतनी जबरदस्ती हो।
चाय पीने के दौरान दूकान वाले ने बताया कि इसी महीने से किराया बढ़ गया है। पचास रूपया रोज हो गया है। किराए की बढ़ोत्तरी की सूचना देने के साथ ही उसने दूकान की छत से दिखते आसमान को दिखाया। हमने कहा –‘हो जाएगी मरम्मत भी। चिंता न करो।‘ वह कुछ बोला नहीं लेकिन हमारे कहने के बावजूद उसके चेहरे से चिंता के भाव गए नहीं।
चिंता जहाँ भी जाती है, वहां तसल्ली से रहती है। वापस आने की हडबडी नहीं रहती उसको। उसको इस बात की कोई फिकर नहीं रहती कि उसकी रिहायश से किसी को कोई तकलीफ है कि नहीं। चिंता की ख़ासियत है कि वो आती तेज़ी से है लेकिन जाती बहुत धीमे से है।
पैसे देकर अपन दूकान के बाहर आ गए। बाकी पैसे भी –‘चिल्लर धरे रहो’ वाले अंदाज में उससे लिए नहीं।
चाय की दूकान से निकलकर मार्निंग वाकर तो अपने-अपने घरों की तरफ प्रयाण कर गए । अपन सैफ Saif Aslam Khan की मोटर साइकिल पर बैठकर कैंट में पर्यावरण दिवस के मौके पर उनकी बनाई कृति देखने चल दिए ।

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