Tuesday, October 10, 2023

कचरा आर्ट से बनी कलाकॄति



सबेरे मार्निंग वाकर समूह के साथियों के साथ चाय पीने के बाद सैफ Saif Aslam Khan में साथ उनकी बनाई कलाकृति देखने गए। उनकी मोटरसाइकिल के पीछे बैठकर।
शाहजहाँपुर आफिसर्स कालोनी की के तिराहे पर बने छुटके पार्क में गांधी जयंती के मौके पर सैफ की डिजाइन की हुई कलाकृति का लोकार्पण हुआ। स्वच्छता ही सेवा अभियान के अंतर्गत छावनी परिषद शाहजहांपुर द्वारा प्लास्टिक की प्रयोग की गई बोतलों को ग्लोब के आकार में जोड़कर इस कलाकॄति का निर्माण किया गया। पुरानी बोतलों से बनाई इस कलाकॄति को 'कचरा आर्ट' नाम दिया गया। प्रयोग की हुई वस्तुओं से बनी कृति को 'कचरा आर्ट' नाम दिया गया। इससे यह भी लगता है कि यह बेकार का काम है। कुछ और बेहतर नाम रखा जा सकता था।
प्लाष्टिक ग्लोब में बोतलें एक गोलाकार जाली से के ऊपर तारों से बंधी थीं। कुल 1032 बोतलों से बना था प्लास्टिक ग्लोब। ग्रीन फ्यूचर कलेक्टिव संस्था और आर्टिस्ट सैफ ने मिलकर इस ग्लोब को बनाया था। प्रदेश के कैबिनेट मंत्री जी ने इसका लोकार्पण किया था। सैफ के नाम से सैफ गायब था। बोर्ड में उनका नाम असलम खान लिखा था। साथ न होते और बताते नहीं तो हम समझ ही न पाते कि इसके बनाने में सैफ की भी कोई भूमिका है। जल्दबाजी में ऐसे नाम गायब होते हैं।
बाद में छावनी बोर्ड के अधिकारियों से बातचीत करने पर पता चला कि प्लास्टिक ग्लोब की कुल लागत तकरीबन 70-75 हजार रुपये आई।
चंडीगढ़ के राकगार्डन की तर्ज पर बनाये इस प्लास्टिक ग्लोब जैसी अनेक योजनाएं हैं सैफ के पास। एक पत्रिका निकलना भी उनकी योजना में शामिल है। उत्साह भी है। लोग सराहना भी करते हैं। लेकिन योजनाओं में अमल के लिए पैसे की दरकार होती है। उसका इंतजाम शाहजहांपुर में रहते मुश्किल है। लेकिन उम्मीद तो है।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी सैफ शाहजहांपुर आने के पहले दिल्ली में काम करते थे। वहां काम मिल जाता था। आमदनी भी होती थी। शाहजहांपुर में दोनों की किल्लत है। गए साल पिताजी के न रहने से घर संभालने की जिम्मेदारी भी आ गयी है। बहुत कठिनाइयां हैं कला की दुनिया की।
सैफ को अपनी भतीजी को स्कूल छोड़ने के लिए निकलना था। जाने के पहले कुछ फोटो और सेल्फी ली हमने। बाद में स्कूल जाते एक बच्चे को पकड़कर उससे भी फोटो खिंचवाई। इस आस में कि क्या पता कोई फोटो अच्छा आ जाये। बच्चा सेंट पॉल में पढ़ता है। ग्यारह में। चलते-चलते उसने हमारी फोटो खींचकर मोबाइल वापस कर दिया। सैफ अपनी भतीजी की छोड़ने चले गए। अपन पैदल वापस चल दिये।
पैदल वापस आते हुए स्कूल से लाउडस्पीकर पर गाया जाता राष्ट्रगान सुनाई दिया। सुनते ही हम फुटपाथ पर खड़े हो गए। राष्ट्रगान खत्म होने पर आगे बढ़े। आगे बीच सड़क पर दो घोड़े शांत , सावधान मुद्रा में खड़े दिखे। ऐसे जैसे वे भी राष्ट्रगान सुनकर ही सावधान हो गए हों। लेकिन वे बाद में बहुत देर तक उसी मुद्रा में खड़े रहे तो लगा कि वे ऐसे ही निठल्ले खड़े हैं। पोज देने वाली स्टाइल में। उनको देखकर लगा कि जानवर भी इंसानों की तरह अपने निठल्लेपन को अनुशासन बताना सीख गये हैं। संगत का असर ।
हम उनकी बगल से होते हुए निकले, उनकी फोटो खींची तब भी वे ऐसे ही चुपचाप खड़े रहे। इससे लगा कि वे शायद धूप सेंकने के लिए खड़े हो गए हों। टैनिंग के मूड से। उनसे कुछ पूछना ठीक नहीं लगा। किसी की निजता में उल्लंघन क्या करना।
आहिस्ते-आहिस्ते चलते हुए हम मार्निंग वाकर ग्रुप की बेच के बगल से होते हुए वापस गेस्ट हाउस आ गए। अगले दिन फिर गए सुबह तो वहां मिश्र जी ने शेरो-शाइरी भी सुनी गई।

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