Tuesday, May 28, 2024

मुस्कान अभी तक टैक्स फ्री है

  


सबेरे-सबेरे टहलते हुए बड़े रोचक नजारे दिखते हैं। दिखते तो हर समय हैं लेकिन टहलने का काम आमतौर पर सुबह होता है तो उसी समय दिखते हैं।
सुबह टहलने निकले तो सामने से एक जोड़ा आता दिखा। उनके अंदाज-ए-टहलाई से लगा कि मियां-बीबी रहे होंगे। साथ-साथ टहलते हुए भी दोनों के बीच इतनी दूरी थी कि उनके बीच से एक पूरा परिवार निकल जाए। कोरोना काल की टहलाई कर थे। दूरी अलबत्ता दो की जगह चार से भी ज्यादा गज हो गयी थी।
दूसरे जोड़े ने अगल-बगल की दूरी को आगे-पीछे की दूरी में बदल दिया था। पति आगे, पत्नी पीछे। अनुगामिनी सी। ऐसा नहीं कि मियां की स्पीड तेज हो, बीबी की धीमी। दोनों समान गति से एक दूसरे से समान दूरी बनाए टहल रहे थे।
एक आदमी कुत्तों के साथ टहल रहा था। कुत्ते उसके इशारे पर जीभ निकाले इधर-उधर मुंह करते टहल रहे थे। कुत्ते उछल-कूद करते हुए अपनी मर्जी से टहलने का नाटक कर रहे थे लेकिन चल आदमी के पीछे ही रहे थे। कुत्तों की हरकतें किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के इशारे पर चलती सरकारों सरीखी लग रही थीं जो नाटक भले अपनी जनता के भलाई का करें लेकिन नीतियां उन कम्पनियों की अनुमति से ही बनाती हैं जिनके चंदे से वे सत्ता में आईं हैं।
सरकारें भी एहसान फरामोश होने से परहेज करती हैं।
टहलते हुए नहर किनारे चले गए। जगह-जगह छठ पूजा की शुभकामनाओं के होर्डिंग लगे थे जिनको विधायक निधि से बनवाया गया था। ताकतवर जनप्रतिनिधियों की शुभकामनाओं की इतनी भरमार देखकर लगा कि इंच दर इंच पसरी शुभकामनाओं के बावजूद कैसे इतना अशुभ होता रहता है। लगता है शुभकामनाओं में मिलावट है। कौन जांच करवाए।
नहर के पानी का बहाव हमारे विपरीत था। हमारी सोच में तमाम दिनों से नहर के पानी का बहाव जिधर अंकित है, वास्तव में पानी उसकी उल्टी तरफ बहता है। जब भी पानी देखते हैं , बहाव की दिशा दिमाग में दुरुस्त करते हैं। लेकिन अगली बार फिर लगता है कि पानी उल्टी तरफ बह रहा है। दिमाग में नहर के पानी की दिशा 'सेव' नहीं होती।
यह बात देश-दुनिया पर भी लागू होती है। दुनिया चाहे जिधर जा रही हो लेकिन लोग उसको अपनी सोची हुई दिशा में जाते ही देखते हैं। दुनिया की तमाम आबादी इसी तरह 'दिशा मण्डूक' होती है। ऐसे लोग अपनी सोच के कुतुबनुमें तोड़कर अपने नायक के पास धर देते हैं यह सोचते हुए कि हम क्यों सोचने का काम करें। जो करेगा यही करेगा, इसको नायक बना लिया, हमारा काम खत्म। उनको पता नहीं होता कि उनका नायक भी अपनी अक़्क़ल का क़ुतुबनुमा किसी और के पास रखकर आया है।
थोड़ी दूर तक पक्की सड़क के बाद कच्ची जमीन और पगडण्डी शुरू हो गयी। लगा किसी जंगल में आ गए। दाईं तरफ एक आदमी उकड़ू बैठा अपने सामने मोबाइल का पर्दा लगाए निपटने में तल्लीन था। उसकी साइकिल बगल में खड़ी थी। सामने पनकी पावर हाउस की चिमनी धुंआ उगल रही थी।
लौटते में एक जगह कुछ लोग खड़े दिखे। हम उनके बगल से होते हुए अंदर हो गए। देखा सड़क किनारे तरण ताल बना था। पानी अलबत्ता नहीं था। आधे में घास उगी थी, आधा सूखा था तरण ताल। सूखे सीमेन्ट वाले हिस्से में कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे।
तरण ताल के किनारे कुछ लोग , जिनमें अधिकांश बुजुर्ग थे, बाबा रामदेव घराने की एक्सरसाइज करने में जुटे थे। एक बुजुर्ग अपने पेट को इतनी तेजी से घुमा रहे थे कि हमको डर लगा कहीं उनके पेट की चूड़ियां न खुल जाएं।
बगल में शाखा का झंडा लगा था। किसी ने कहा कि झण्डा उतारने की जिम्मेदारी जिसकी है वह तो दौरे पर गया है।बुजुर्ग लोग ही दिखे वहाँ। लगता है इस वाली शाखा में युवा लोग कम आते हैं।
झंडे की बात आगे बढ़ी तो किसी ने कहा -'हमारा समर्थन नहीं चाहिए अब उनको।' बात और भी आगे बढ़ी। कुछ हंसने लगे तो कुछ बतियाने। उनकी बातें सुनते हुए लगा कि सोशल मीडिया में चलने वाली बहसें हमारे आस-पास भी कितनी तेजी से पसरती हैं।
रास्ते में तमाम जान-पहचान के लोग मिले। कई लोगों ने नमस्ते किया। हमने भी किया। कई लोगों के नाम हमको नहीं पता। पूछने की हिम्मत भी नहीं होती। डर लगता है कि अगला सोचेगा कि पचीसों नमस्ते डकारने के बाद अब नाम पूछ रहा है।
सड़क किनारे आदमी तेजी से टहलते हुए अचानक उल्टे चलने लगा। ऐसा लगा जैसे कोई विकास की बात करता हुआ नेता अचानक कहे-'प्यारे देश वासियों, मैं आपको स्वर्णिम अतीत में ले चलता हूँ। जो मजा वहाँ है वो यहाँ नहीं मिलेगा।' हमारे देखते-देखते वह आदमी फिर पलट गया और सीधे चलने लगा।
लोग अपने नेताओं से कितना कुछ सीखते हैं।
आगे एक महिला सड़क के बीच के डिवाइडर पर बैठी दूसरी महिला से बतिया रही थी जो कि डिवाइडर के नीचे सड़क पर बेतकुल्फ़ी से फसक्का मारकर बैठी थी। सड़क से गुजरते वाहन उससे बचते हुए निकलते जा रहे थे।
एक बच्ची सड़क पर रनिंग करती जा रही थी। धीरे-धीरे। एक आदमी उसके बगल में साइकिल चलाते हुए उसको कुछ निर्देश दे रहा था। बच्ची उसके निर्देशों को चुपचाप सुनते हुए दौड़ती जा रही थी। क्या पता कल को किसी अखबार में बच्ची इंटरव्यू देते हुए कहे-'मैंने अपने दौड़ने का अभ्यास अर्मापुर में किया था। रोज दौड़ती थी मैं।'
लौटते हुए सूरज भाई आसमान से मुस्कराते हुए गुडमार्निंग कर रहे थे। उनकी देखादेखी सड़क किनारे के अमलताश और गुलमोहर भी सुप्रभात करने लगे। हमने भी कर दिया। दोनों मुस्कराने लगे।
सबकी मुस्कान को याद करके अपन भी मुस्करा रहे हैं। मुस्कान अभी तक टैक्स फ्री है। आप भी मुस्करा लीजिए।

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