Saturday, December 15, 2012

चल भाग -बड़ा आया दुनिया निपटाने वाला

http://web.archive.org/web/20140420081417/http://hindini.com/fursatiya/archives/3740

चल भाग -बड़ा आया दुनिया निपटाने वाला

इधर देखा लोग बता रहे हैं कि इक्कीस दिसम्बर को प्रलय होने वाली है। प्रलय मतलब दुनिया खल्लास।

पता नहीं किसकी दुनिया उजड़ने वाली है। किसका प्लान है हफ़्ते भर बाद दुनिया को फ़ेयरवेल देने का मुला हम तो न शामिल होंगे इस कार्यक्रम में। तमाम काम पड़े निपटाने को। काम निपटाने के पहले दुनिया कैसे निपटा दें भाई? जिसको प्रलय बुलानी हो बुलाये।बैठाये- खिलाये-पिलाये। अपन के पास तो टाइम नहीं प्रलय को लिफ़्ट देने का। आयेगी भी तो कह देंगे फ़िर कभी आना भाई अभी अपन बहुत बिजी हैं। ज्यादा जिद करेगी आने की तो गुस्से का नाटक करके कह देंगे- गेट लास्ट

आप ही सोचिये पहाड़ों पर ताजा बर्फ़ गिरी है। खूबसूरत धूप खिली है। फ़ूल महके हैं। कित्ते लोग वहां पहुंचे हैं बर्फ़ देखने। बर्फ़ कोट पहनकर लुढ़कने-पुढ़कने। वहां के दुकान वाले बोहनी-बट्टा होने की बात सोचकर खुश हो रहे होंगे। मुस्कराते हुये फोटो खिंचवा रहें होंगे लोग। और भी कित्ते दिलकश नजारे होंगे दुनिया भर में। बताओ ऐसे में कौन अहमक है जो दुनिया खतम करना चाहेगा। लगता है योजना आयोग का किसी सिरफ़िरे बाबू ने प्लान बनाया होगा और साहब के दस्तखत के पहले ही प्रलय की योजना की घोषणा का सर्कुलर निकाल दिया होगा। हल्ला मचेगा तो एकाध दिन के लिये सस्पेंड हो जायेगा ससुरा।

अगले हफ़्ते घर जाना है हमको। क्रिसमस की छुट्टी से सटा के तीन छुट्टियां निकालनी हैं। कैजुअल लीव निपटानी हैं। साल का हिसाब-किताब करना है।खोया-पाया तय करना है। अगले साल की कसमें खानी हैं। सबको नया साल मुबारक करना है। अब कोई कहे कि दुनिया खतम करो तो भला हम मान लेंगे? कह देंगे उससे- चल भाग, बड़ा आया दुनिया निपटाने वाला। फ़ूट यहां से। आई से- गेट्टाउट!
दुनिया निपटाने वाले को इत्ती तो अकल होनी चाहिये कि गिनती तो कर लेता पहले कि कित्ती दुनियायें हैं दुनिया भर में। हर एक की तो अपनी अलग दुनिया है। किसी-किसी की तो कई-कई दुनियां हैं। एक ही शहर के लोग अलग-अलग दुनिया में रहते हैं। देश का देखेंगे तो और भी वैराइटी हो जायेगी दुनिया में। कोई इक्कीसवीं सदी में रह रहा है कोई पन्द्रहवीं में तो कोई ग्याहरवीं में। किसी का मन उन्नीसवीं सदी में बसता है तो किसी का बाइसवीं में। ऐसे भी नमूने हैं जो भौतिक रूप से इक्कीसवीं सदी में रहता है लेकिन दिमाग सोलहवीं सदी में रखता है। रहन-सहन के लिये एक से एक आधुनिक साधन इस्तेमाल करता है लेकिन अकल गये के जमाने की इस्तेमाल करता है। प्रेमियों को गोली मार देता है। औरतों को गुलाम समझता है। इश्किया गाने सुनता है लेकिन प्रेम को पाप समझता है।

साधन में भी बहुत विविधता है। किसी के लिये खाने का इंतजाम नहीं है तो कोई पचाने को हलकान है। किसी को दिहाड़ी बीस रुपये नहीं मिलती, किसी को लाखों गिनने की फ़ुरसत नहीं। किसी के पास तन ढकने के लिये कपड़े नहीं हैं, कोई एक कपड़ा दोबारा नहीं पहनता। ऐसी रंग-बिरंगी दुनिया को कैसे एक ही तरीके से निपटाया जा सकता है।

हरेक तरह की दुनिया निपटाने का तरीका अलग-अलग होता है। पंद्रहवीं सदी तलवार से निपटती थी तो उन्नीसवीं सदी तोप से। बीसवीं के लिये परमाणु बम चाहिये। बाइसवीं शायद किसी इंटरनेट वायरस से खतम हो। फ़िर लोगों की अपनी-अपनी पसंद भी होगी भाई। कोई कुछ करके जाना चाहता है, किसी को कुछ करना पड़े उसी में मरन हो जाती है, कोई को अंखियों की गोली से मरना पसंद है तो कोई जुदा होकर मरना चाहता है। कोई देश के लिये जान देना चाहता है, कोई प्रेम के लिये । किसी का कोई मकसद है तो कोई बेमकसद ही विदाई लेना चाहता है। कोई आखिरी सांस तक घूस लेना चाहता है किसी की नियति में लुटते हुये जाना तय है।
ये कौन बौढ़म है जो विविध स्तरीय , बहुरंगी दुनिया को एक ही तरीके से खतम करना चाहता। प्रदूषण नियंत्रण वालों को पता चल गया तो तगड़ा जुर्माना ठोंक देंगे।

तो भाई जिसको अपनी दुनिया खतम करनी हो खतम करे। हम तो न शामिल होंगे इस फ़िजूल के काम में। वैसे भी हम हर काम अपने घर वालों से पूछकर करते हैं। अभी पूछेंगे तो डांट पड़ जायेगी - गैस बुक करानी है, मकान की किस्त जमा करनी है, एल.टी.सी. पर जाना है, बच्चे की पढ़ाई देखनी है, अम्मा की दवाई लानी है, महीने का सामान खरीदना है, डांट खानी है, इतवार को पिक्चर देखने जाना है। न जाने कित्ते तो काम बाकी हैं। ये सब काम छोड़कर दुनिया खतम करने का निठल्लापन सूझ रहा है तुम्हें। लो आधा कप चाय और पी लो फ़िर काम से लगो!

इसलिये भैये अपन तो इस प्रलय प्रोग्राम में भाग न ले पायेंगे। जिसको लेना हो ले। हमें तो एक ठो बहुत पुरानी कविता याद आ रही है:

विदा की बात मत करना
अभी मदहोश सांसों के कनक कंगन नहीं फ़ूले
अम्बर की अटारी में नखत नूपुर नहीं झुले।
न काजर आंज पायी है, न जूड़ा बांध पायी है
यहां भिनसार की बेला उनीदे आंख आयी है।
कह दो मौत से जाकर न जब तक जी भर जिंदगी जीं लें
विदा की बात मत करना।


आपका क्या प्रोग्राम है?

16 responses to “चल भाग -बड़ा आया दुनिया निपटाने वाला”

  1. Alpana
    वाह!वाह!!बहुत खूब लिखा है .
    …………….
    ये पंक्तियाँ तो जबरदस्त हैं–:)
    ‘जो भौतिक रूप से इक्कीसवीं सदी में रहता है लेकिन दिमाग सोलहवीं सदी में रखता है।’
    ऐसे सज्जन यहाँ-वहाँ हर जगह मिलेंगे ,मैं तो इस वाक्य में सोलहवीं नहीं बारहवीं सदी कहना ज्यादा उपयुक्त समझती हूँ.
    इस एक पंक्ति पर बहुत -कुछ लिखा जा सकता है.वीरवार को ही एक घटना हुई थी उसका ज़िक्र करती मगर अभी नहीं फिर कभी सही.
    वैसे अखबार में आया है कि जहाँ से यह खबर उड़ी है उसी देश में लोग इस ख़ास दिन को ज़ोर शोर से मना रहे हैं!
    ———–
    अभी -अभी एक ताज़ा खबर सुनी है कि ‘हेवनली बोडिस’ ने तकनीकी कारणों से इस प्रलय दिन को अगले साल २१-१२-२०१३ तक के लिए टाल दिया गया है :)..
    Alpana की हालिया प्रविष्टी..बरसे मेघ…अहा!
  2. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    अपन का भी कोई इरादा नहीं है
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..वालमार्ट जी आइए… स्वागत गीत
  3. ajit gupta
    अजी यह खबर कहाँ से आयी है? अमेरिका से तो नहीं आयी? क्‍योंकि वहाँ एक सिरफिरे ने मासूम बच्‍चों का कत्‍लेआम कर दिया है, तो उसने सोचा होगा कि दुनिया खत्‍म ही हो रही है तो कुछ काम मैं भी कर दूं। बहुत ही सशक्‍त व्‍यंग्‍य है। एकदम धांसू टाइप का।
    ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..हे भगवान! मुझे दुनिया का सबकुछ दे दो
  4. संतोष त्रिवेदी
    …. अभी तो मीलों चलना है !
  5. देवांशु निगम
    पिछले महीने ही मनेजर ने कहा था की दिसंबर के आखिरी हफ्ते में दो एक्स्ट्रा छुट्टी ले लेना, हम तो छुट्टी लेकर रहिबे, प्रलय ना आन देब :)
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..रोते हुए आते हैं सब !!!
  6. sanjay jha
    वैसे तो इस दुनिया में टिके रहने को कुछ खास नहीं……….पर आपका सोच-विचार को, जोर के देखते हैं तो
    …….. चल भाग, बड़ा आया दुनिया निपटाने वाला। फ़ूट यहां से। आई से- गेट्टाउट!…… कहने का दिल करता है………
    कविता मुरझाये फूलों को खिलाने के लिए काफी है……………..
    प्रणाम.
  7. प्रवीण पाण्डेय
    क्रिसमस का क्या भरोसा, हम तो २१ के पहले ही घूम आते हैं।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..पढ़ते पढ़ते लिखना सीखो
  8. ashish rai
    मतलब कविता तो कालजयी है , और बाकि सब रापचिक फुरसतिया .
  9. shikha varshney
    हाँ जी और नहीं तो क्या ..और भी गम हैं ज़माने में प्रलय का स्वागत करने के सिवा :):)…
    सुबह बना दी आपने …मजा आ गया.
  10. ankit
    “भैये अपन तो इस प्रलय प्रोग्राम में भाग न ले पायेंगे”
    चिंता न कीजिये अगर आप प्रोग्राम में भाग नहीं ले पाए. अगले साल फिर ऐसा ही प्रलय का प्रोग्राम बनेगा… फुर्सत हो तो तब मज़ा ले लीजियेगा
    ankit की हालिया प्रविष्टी..तुम हो कौन बे
  11. arvind mishra
    विदाई का चिंतन!
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..Sunset from Ganges Rajghat Bridge top,Varanasi.
  12. देवेन्द्र पाण्डेय
    दुनियाँ मिटने न मिटने वाली बातें अभी भी चल रही हैं!
  13. संजय @ मो सम कौन
    यूँ ही चलेगी:)
    संजय @ मो सम कौन की हालिया प्रविष्टी..ये आना भी कोई आना है फ़त्तू?….
  14. VMTripathi
    PARLE i mean parlaiiya wali batiya pe ta hum ihe kaheb ki uhe masal ba na ki aapan kaan na tove auur kauwa ke peechhe laggi le ke daudi lagave
  15. वीरेन्द्र कुमार भटनागर
    आपकी पोस्ट पढ़कर वाकई मज़ा आ गया।
    “अब कहीं जाके जीने का सही अन्दाज़ आया, कौन सिरफिरा कहता है कि अज़ाब आया, अज़ाब आया”।
  16. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] चल भाग -बड़ा आया दुनिया निपटाने वाला [...]

Friday, December 14, 2012

भक्त कल्याण कोचिंग सेंटर

http://web.archive.org/web/20140420081202/http://hindini.com/fursatiya/archives/3728

भक्त कल्याण कोचिंग सेंटर

नारद जी धरती पर डेपुटेशन पर आये हैं। स्वर्ग के हाल-चाल बताने लगे।
बता रहे थे आजकल स्वर्ग में देवताओं की आबादी बढ़ गयी है। रहने की दिक्कत है। साधन कम हो गये हैं। देवता झल्लाते रहते हैं। कुछ तो कहते हैं ससुर इससे मजे में तो हम मृत्युलोक में थे। क्या ऐश थी वहां।
कुछ देवताओं ने अर्जी भी लगाई कि उनको वापस धरती पर भेज दिया जाये ताकि वे वहां आराम से रह सकें। लेकिन उनकी अर्जी खारिज हो गयी इस आधार पर कि अगर वे वापस गये तो स्वर्ग की छवि गड़बड़ हो जायेगी। लोग स्वर्ग में आने के लिये जो मेहनत करते हैं, पुण्य करते हैं, देवताओं को चढ़ावा चढ़ाते हैं वो सब कम हो जायेगा। आमदनी कम हो जायेगी। आमदनी में कमी कोई कैसे सह सकता है। अमेरिका उपद्रवियों को हथियार तक बेचता रहता है ताकि आमदनी होती रहे। लिहाजा सब देवता स्वर्गलोक में रहने को मजबूर हैं।
कुछ देवताओं ने धरती पर अपने-अपने भक्तों की भलाई के लिये बहुत खींच तान की। छोटे देवता अपने भक्तों की भलाई के लिये काफ़ी कुछ करना चाहते हैं लेकिन कर नही पाते। कारण पता चलता है कि उनकी भलाई से किसी शक्तिशाली देवता के भक्त के हित बाधित होते हैं। जूनियर देवता, सीनियर देवता के जलवे के आगे निस्तेज हो जाते हैं। अपनी शक्ति वर्धन के उपाय करते हैं। मत्युलोक में अपने मंदिर बढ़वाने के लिये भक्तों को उत्साहित करते हैं। भक्त जमीन की कमी की बात कहते हैं तो देवता उनके दिमाग में आइडिया भेजते हैं कि- वत्स-सड़क के बीच डिवाइडर पर मंदिर बना, कूड़ाघर के ऊपर बना, नदीतट पर बना, नाले पर नींव धर, वीराने में आबाद कर। जहां जगह मिले कब्जा कर और मंदिर बना। धर्म के काम करने में संकोच मती कर।
नारद जी बताने लगे कि पुराने देवता कुछ करते-धरते नहीं। संयुक्त राष्ट्रसंघ के स्थायी सदस्य सरीखे खाली अपने पावरफ़ुल भक्तों के पक्ष में ’वरदान वीटो’ लगाते रहते हैं।
पता चला कि अब तो देवता लोग वरदान भी देने के चक्कर में नहीं पड़ते। न किसी भक्त की पुकारपर भागते हुये मत्युलोक आते हैं। हर जगह उन्होंने मंदिरों पर अपने ’प्रार्थना टावर’ टाइप बना रखे हैं। प्रार्थनायें ’प्रार्थना टावर’ पर रिसीव करते हैं। ज्यादातर प्रार्थनाओं में कोई न कोई कमी बताकर भक्त को वापस कर देते हैं। जैसे कि- प्रार्थना पूरे मन से नहीं की है। स्वर में आर्तता का फ़्लेवर कम है। अभी पर्याप्त कष्ट नहीं है। ये दुख भले के लिये है।
यह देखकर कभी-कभी तो लगता है कि भगवान लोग के ’प्रार्थना टावर’ से तो भले मत्युलोक के सामान बेचने वालों के सर्विस सेंटर अच्छे जहां उपभोक्ता फ़ोरम की धमकी देने पर कुछ तो काम हो जाता है।
भगवान लोगों को ऊपर से सब कुछ दिखता है। वे भक्तों की चालबाजियों से हलकान रहते हैं। देखते हैं भक्त लोग एक साथ कई देवताओं को साधते हैं। एक सी कार्तरता से परस्पर विरोधी भगवान को पटाते हैं। भगवानों को गुस्सा तो बहुत आता है लेकिन क्या करें अब भक्त तो बदल नहीं सकते। जो है उससे ही निभाते हैं।
कुछ-कुछ देवता तो बहुत उत्साही हो जाते हैं। अपने भक्तों की भलाई के लिये आपस में उत्तरीय-पीताम्बर तक फ़ाड़ डालते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि वे ऐसा इसलिये करते हैं ताकि आगे चलकर प्रधान देवता बन सकें। बहस करने के लिये , गाली-गलौज करने के नये-नये तरीके सीखने के लिये विभिन्न देशों की संसदों की वीडियो क्लिप देखते रहते हैं।
देवताओं की अपने भक्त बढ़ाने की ललक के ये हाल हैं कि वे छुप-छुपकर नरक की कैंटीन में जाकर चाय पीने के बहाने मत्युलोक से आये छंटे नेताओं से उनके वोटबैंक बढ़ाने के अनुभव सुनाने की जिद करते है। कुछ शातिर नरकवासियों ने तो बाकायदा भक्त बढ़ाने की तरकीब सिखाने के कोचिंग सेंटर तक खोल रखे हैं। नौनिहाल देवता घंटो वहां नोट्स लेते रहते हैं। वे ’भक्त कैलकुलस’,’चेला प्रोग्रामिंग’ के रट्टे लगाते हैं। एकदम कोटा और कानपुर की कोचिंग सेंटरों जैसा सीन दिखता है।
नारद जी से हमें और भी बहुत कुछ जानकारी मिली स्वर्ग के बारे में। बताने लगे बस ये समझ लीजिये कि देवता लोग अपने भक्तों के भले के लिये उसी तरह कटिबद्ध रहते हैं जैसे यहां जनप्रतिनिधि लोग देश के भले के लिये पिले रहते हैं। जैसे यहां मार-पीट, खून-खराबा तक कर डालते हैं जनता के विकास के लिये वैसे ही देवता भी अपने भक्तों के लिये क्या-क्या नहीं कर डालते हैं।
अब मुझे कुछ-कुछ पता चल रहा है कि कैसे जगह-जगह सड़कों के बीच डिवाइडर पर फ़ुटपाथों पर मंदिर क्यों प्रकट हो रहे हैं। दुनिया भर में भक्ति भावना क्यों बढ़ रही है। भगवान अपने भक्तों के क्ल्याण में जुटे हुये हैं।

17 responses to “भक्त कल्याण कोचिंग सेंटर”

  1. संतोष त्रिवेदी
    …जय हो देवताओं की….शायद यहाँ पढ़कर हमारा आर्तनाद सुन लें :-)
  2. sanjay jha
    हा हा हा ………
    बहस करने के लिये , गाली-गलौज करने के नये-नये तरीके सीखने के लिये विभिन्न देशों की संसदों की वीडियो क्लिप देखते रहते हैं………………….
    नौनिहाल देवता घंटो वहां नोट्स लेते रहते हैं। वे ’भक्त कैलकुलस’,’चेला प्रोग्रामिंग’ के रट्टे लगाते हैं। एकदम कोटा और कानपुर की कोचिंग सेंटरों जैसा सीन दिखता है।…………………
    भगवानजी के हालत ऐसे हैं …………….. तो भक्तों का क्या होगा????????
    एक-दम्मै टाप्चिक है…..
    प्रणाम.
  3. सिद्धार्थ जोशी
    परस्‍पर विरोधी देवताओं से आर्तस्‍वर में पुकार।
    एक बार मैंने एक नेताजी के मुंह से सुना कि तबादला हुआ कर्मचारी भूखी गाय की तरह होता है, हर दरवाजे पर मुंह मारता हुआ चलता है, शायद कहीं रोटी या कुछ खाने को मिल जाए…
    यह आर्त पुकार भी कुछ ऐसी ही होती होगी… ;)
  4. ajit gupta
    सच है स्‍वर्ग में इतने ठाट नहीं होंगे जितने धरती पर नेताओं और अफसरों के हैं।
    ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..राजा के दरबारियों की वर्दी
  5. दीपक बाबा
    गर देवता आ जाएँ धरती पर…… हर महीने कुछ न कुछ सोने का आभूषण बेचेंगे तभी रोटी नसीब हो पाएगी. :)
    दीपक बाबा की हालिया प्रविष्टी..१२-१२-१२ का जादू : ट्रेन में शादी.
  6. shikha varshney
    जय हो जय हो ..आखिर देवताओं को भी चस्का लगना ही था धरती की ऐश का.
  7. प्रवीण पाण्डेय
    नारदजी की रिपोर्ट सबका भाग्य तय करेगी..कुछ खिलाया पिलाया जा सकता है?
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..हृदय हमारा
  8. arvind mishra
    फंतासी और व्यंग का यह काकटेल फ़ुरसतिया ब्रांड है :-) कार्तरता हिन्दी का कोई नया शब्द है क्या ?
  9. shefali
    सही कहा …..
  10. prashant
    अब मस्जिदों और मजारों के बारे में भी ऐसी ही सनसनाती हुई रचना पढ़ने को मिलेगी. है न.
  11. prashant
    जो सड़कों पर प्रगट हो गये हैं ऐसे मन्दिरों के साथ.
  12. देवांशु निगम
    नारद जी कोई confidentiality का बांड तो साइन नहीं कराये रहे आपसे ?
    और अगली बार जब आयेंगे तो आप के पास नहीं आयेंगे :) :)
    सारे राज खोल दिए आपने :) :)
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..रोते हुए आते हैं सब !!!
  13. समीर लाल "टिप्पणीकार"
    धन्य भये प्रभु ज्ञान प्राप्त हुआ॒॒
    समीर लाल “टिप्पणीकार” की हालिया प्रविष्टी..अधूरे सपने- अधूरी चाहतें!!
  14. ताऊ लठ्ठवाले
    जय जय हे प्रभु ज्ञाण गुण सागर….
    रामराम.
  15. janmejay Mamgai
    ओशो को भी मात न दे दो डर है . वो तो मुल्ला नासिर्रुद्दीन के पीछे पड़ा . तुमने तो देवताओं की ऐसे तैसी कर दी है . कि अभी ” स्वर में आर्तता का फ़्लेवर कम है”
  16. आशीष
    देखिये शुक्ला जी, ये सही बात नहीं है, आप खामख्वाह मंदिरों के पीछे पड़ रहे हैं, भाई आस्था का सवाल है, जिससे कि पूरा हिन्दुस्तान चलता है| अब आर एस एस वाले आपके पीछे पड़ गए तो क्या होगा?
  17. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] भक्त कल्याण कोचिंग सेंटर [...]

Wednesday, December 12, 2012

अभी बारह नहीं बजे हैं

http://web.archive.org/web/20140420084302/http://hindini.com/fursatiya/archives/3712

अभी बारह नहीं बजे हैं

पिछले कुछ दिन से बारह, बारह, बारह के चर्चे हैं।
खास तारीख है। दिन, महीना, साल का तो बारह बजे घंटो बीत गये। अब बस घंटा ,मिनट , सेकेंड का बारह बजना बाकी है। उसका भी बज ही जायेगा।
दुनिया भर से खबरे आ रही हैं। लोगों के प्लान हैं। कोई बारह बजकर बारह मिनट पर शादी करने जा रहा है। क्या पता किसी का तलाक का प्लान हो। कोई इस मौके पर गाड़ी खरीदने जा रहा है कोई घोड़ा। तमाम लोग होंगे जो आज के दिन बारह बजकर बारह मिनट पर बच्चे का जन्म चाहते होंगे।भर्ती हो गये होंगे नर्सिंग होम में। बच्चा होगा तो नाम भी धर लेंगे बारह सिंह, द्वादस कुमार, ट्वेल्व ट्वेल्व । आगे चलकर वे शायद TT या BB (बारह बजे) के नाम से प्रसिद्ध हों।
आम तौर पर प्रसिद्ध व्यक्तियों, घटनाओं से जुड़ी तारीखें याद की जाती हैं। इम्तहान के लिये रटी जाती हैं। दो अक्टूबर माने गांधी जयन्ती, चौदह नवंबर माने बालदिवस। पन्द्रह अगस्त माने स्वंतंत्रता दिवस, छब्बीस जनवरी माने गणतंत्र दिवस। इन तारीखों में हुई घटनाओं ने इनको खास बनाया। ये घटनायें अगर इनके अलावा और किसी दिन हुई होतीं तो इनकी जगह वे तारीखें याद की जातीं।
बारह बारह बारह का मामला उलट इंजीनियरिंग का है। इस दिन बारह बजकर बारह बजे काम किये जायें ताकि वे जिंदगी भर याद रहें। यह सोच ताजमहल के सामने फोटो खिंचाकर प्रेमी बनने जैसी है। किसी महापुरुष के साथ फोटो खिंचाकर महान बनने की इच्छा जैसी है। कुदाल के साथ फ़ोटो खिंचाकर खुद को मेहनती बताने जैसी है।
आप कुछ ऐसे काम करें जिससे वो तारीख यादगार हो के बजाय आप खास तारीख में खास बजकर खास मिनट खास मिनट कुछ भी करके यादगार बनने की ललक कैलेंडरी करप्शन जैसा है।
कानपुर में ऐसा हुआ था आठ अगस्त, सन दो हजार आठ में। आठ, आठ, आठ । खास दिन। तीन फ़ैक्ट्रियों के महाप्रबंधक बने, बदले। तीनों लोगों को तबादले पर जाना था। तीनों ने तय किया कि आठ अगस्त को ही अदला-बदली करेंगे। की भी गयी। एक साहब तो अक्सर सुनाते रहे कि वे एक ही दिन दो जगह के महाप्रबंधक रहे। सुबह एक फ़ैक्ट्री के शाम को दूसरी के। कुछ नहीं तो कुल मिलाकर हजार घंटे तो इस बात का जिक्र हुआ ही होगा इस बात का। साहब की दिहाड़ी के हिसाब से देखा (पांच सौ रुपया प्रति घंटा) तो कम से कम पांच लाख रुपये के बराबर समय बरबाद हुआ यह याद करने में कि वे एक साथ जो जगह के महाप्रंबंधक रहे। जिन लोगों के साथ यह यादें साझा हुई होंगी उनका भी समय अगर जोड़ लिया जाये तो बरबादी करोड़ों तक पहुंचेगी।
इस कैलेंडरी निठल्लेपन की बात को अगर दुनिया भर के लोगों तक फ़ैलाया जाये तो अरबों-खरबों तक पहुंचेगा मामला। अनगिन लोगों ने सालों तक यह बयान किया होगा कि अमुक खास दिन में अमुक खास समय हमने अमुक काम किया होगा। कित्ता तो नुकसान हुआ होगा दुनिया का एक खास तारीख से जुड़ने की लालसा में।
बाजार अपन की पंचागी ललक का फ़ायदा उठाता है। आज बारह बजकर बारह मिनट पर न जाने क्या-क्या खर्चे के जुगाड़ बना रखे होंगे आपके लिये। इस समय आप खर्चा कीजिये ताकि पल यादगार हो सकें। न जाने कित्ते घंटे, दिन बरबाद हुये होंगे इस खास घड़ी के इंतजार में। पहले आने के इंतजार में बरबादी । इसके गुजर जाने पर इसके बारे में चर्चा करने में घंटों की बरबादी।
अभी तो बारह नहीं बजे हैं। कुछ घंटे बाकी हैं। लेकिन हमसे कोई पूछे कि हम बारह बजकर बारह मिनट पर क्या करना चाहेंगे तो अपन का प्लान तो यह है कि अगर याद रहा तो अपन बारह बजकर मुस्करायेंगे। इससे ज्यादा और कुच्छ नहीं करेंगे इस ऐतिहासिक पल मौके पर। मजा आया मुस्कराने में तो और मुस्करायेंगे। न हुआ तो तीन चार को पकड़ के बैठा लेंगे और कहेंगे चलो मुस्कराते हैं यार। फोटो-सोटो भी खैंचकर फ़ेसबुक पर सटा देंगे और जिन्दगी भर याद करेंगे कि ये देक्खो हम बारह-बारह को मुस्करा रहे थे। और मुस्कराने का मन हुआ तो घड़ी आगे -पीछे करके मुस्करायेंगे। बारह-बारह-बारह की कांटा पु्लिंग करके फ़्रीज कर देंगे और जित्ता मन करेगा मुस्कराते रहेंगे।
मुस्कराते हुये हम यह सोचकर खुश भी होंगे कि कैलेंडर में तेहरवां महीना नहीं होता।
हम तो अभैयें से प्रैक्टिस भी शुरु कर दिये मुस्कराने का। आपका क्या प्लान है। आप क्या कीजियेगा बताइये न जरा।

19 responses to “अभी बारह नहीं बजे हैं”

  1. आशीष श्रीवास्तव
    बारह बजने से पहले ही पोष्ट कर दी जी!
    आशीष श्रीवास्तव की हालिया प्रविष्टी..हिग्स बोसान मिल ही गया !
  2. AKASH
    हर हर खास दिन को सेलिब्रेट करने का खास तरीका “चद्दर तान के सो जाओ”, वही १२-१२ को भी किया |
    सादर
    AKASH की हालिया प्रविष्टी..माँ
  3. Anonymous
    इस चक्कर में देश और दुनिया का बारह बजा दिया जाता है……….मजेदार मौज ली आपने………
    प्रणाम.
  4. संतोष त्रिवेदी
    ….फिलहाल आम आदमी के तो चेहरे पर सदाबहार बारह बजे रहते हैं !
    संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..हवा का झोंका !
  5. ajit gupta
    बाजार का ही सारा खेल है।
    ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..राजा के दरबारियों की वर्दी
  6. sonal
    कैलेंडरी निठल्लेपन …superlike
    sonal की हालिया प्रविष्टी..हरि अनंत हरी कथा अनंता !!!
  7. प्रवीण पाण्डेय
    हमारे तो १२ कब से बजे हुये हैं।
  8. देवेन्द्र पाण्डेय
    मस्त लगी यह पोस्ट। यह बात तो सबसे अच्छी लगी…
    कुछ ऐसे काम करें जिससे वो तारीख यादगार हो के बजाय खास तारीख में कुछ भी करके यादगार बनने की ललक कैलेंडरी करप्शन जैसा है।
  9. देवांशु निगम
    चलो १३-१३-१३ नहीं आएगी कभी, वरना लोग “तेरा तेरा तेरा सुरूर” गाने लगते :) :) :)
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..रोते हुए आते हैं सब !!!
  10. vishun dayal ojha
    सर जी प्रणाम सबसे पहली लाइन छोड़कर छटवें पैरा में आपने जो लिखा है उससे ऐसा लगता है की फूले हुए गुब्बारे में सुई चुभोकर उसकी हवा निकाल दी हो | मुझे तो मजा आया है |
  11. दीपक बाबा
    फोटुए जानदार लगाए हैं,
    दीपक बाबा की हालिया प्रविष्टी..दादी माँ की दो कहानियाँ
  12. सतीश पंचम
    :-)
    सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..देश बऊराना एफडीआई चौक…..
  13. ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय
    बाह क्या मस्त पोस्ट है जी आपने तो इस पोस्ट के जरिये ही १२सेके.-१२मि.-१२दि.-१२म.-१२ वर्ष को एतिहासिक बना दिया जी सचमुच क्या मजेदार पोस्ट है आपके व्लाग को अपने छोटे से व्लाग एग्रीगेटर पर लगा दिया है ।
    फुरसतिया क्षणों में वैठे वैठे प्लान आया कि महानतम ब्लागरों को अपने साथ वटोर लूँ सो आप लोगों के ब्लागों का लिंक अपने राष्ट्रधर्म पर डाल दिया है कृपया आ कर जरुर देखिये ।
    http://rastradharm.blogspot.in राष्ट्रधर्म एक राष्ट्रीय पत्र एवं ब्लाग एग्रीगेटर
    ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय की हालिया प्रविष्टी..यह कैसी शासन व्यवस्था है।जिस पर हमारा कोई नियंत्रण नही -योगेश गर्ग
  14. हिमांशु
    जबरदस्त!
    सच कहा आपने- हमारी ओर भी नामकरण हुआ- “द्वादश”!
    हिमांशु की हालिया प्रविष्टी..सावित्री-3
  15. हिमांशु
    एक-ठो सर्च ऑप्शन लगाइये! अमृतलाल वेगड़ से जुड़ी आपकी लिखाई, सारी इकट्ठा पढ़ना चाहता था…ज़्यादा ढूँढ़ना पड़ता है।
    हिमांशु की हालिया प्रविष्टी..सावित्री-3
  16. shilpamehta2
    बढ़िया है जी :)
    अभी ६ दिन में आएगी २०/१२/२०१२ – बोले तो “बीस बारह बीस बारह” – बस ये सब कमार्शियलाइजेशन चलता रहेगा … :)
  17. Alpana
    बहुत बढ़िया!
    —————-
    २१ दिसम्बर २०१२ के बारे में आप के क्या विचार हैं?जानना ज़रूर चाहेंगे.
    -सुना है इस तारीख होने वाला दुनिया का विनाश तकनीकी कारणों से ऊपर वाले ने अगले साल तक के लिए टाल दिया गया है!
    Alpana की हालिया प्रविष्टी..बरसे मेघ…अहा!
  18. सतीश चन्द्र सत्यार्थी
    हम भी उस दिन बस मुस्कुराए ही.. वैसे भी इससे बेहतर काम क्या होता…
    सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..हाथी और जंजीरें
  19. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] अभी बारह नहीं बजे हैं [...]