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नारद पर ब्लाग का प्रतिबंध – अप्रिय हुआ लेकिन गलत नहीं हुआ
By फ़ुरसतिया on June 16, 2007
पिछले दो दिन से हिंदी ब्लाग जगत में एक राहुल के ब्लाग बाजार पर अवैध अतिक्रमण पर नारद द्वारा कड़ी कार्यवाही का मुद्दा छाया हुआ है। कुछ साथियों ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताया। वहीं नारद से जुड़े तमाम साथियों ने इसे सही फ़ैसला बताया है। पहले दिन जहां प्रतिबंध के प्रति प्रतिरोध के स्वर प्रमुखता में छाये थे। वहीं आज प्रतिरोध का भी उग्र प्रतिरोध शुरू हो गया। कुछ लोगों से इस प्रतिबंध को आपातकाल के भी बराबर बताया। गिरिराज जोशी की पोस्ट पर तो अविनाश और गिरिराज जोशी का बाकायदा टिप्पणी कीर्तन भी हुआ। इस बीच आज मुझे तमाम मजेदार खबरें भी सुनने को मिलीं।
चटपटी खबरें
* अनूप शुक्ल, लगता है, विरोध से घबरा के सरेंडर करने वाले हैं।
*अविनाश ने जीतेंन्द्र जुलाई में NDTV पर इंटरव्यू का जुगाड़ करने का वायदा किया है इसीलिये वह खुलकर मोहल्ले का विरोध नहीं करते।
* आप एक बार अमित के हाथ में नारद का संचालन दे दो फिर देखो कि कैसे वह ठिकाने लगाता है सबको।
*एक मौका दिया जा सकता है राहुल को।
*भाई साहब मेरी समझ में तो ब्लाग को बहाल करना कमजोरी है। बाकी आप बड़े हैं। जैसा ठीक समझें।
*आप अच्छे आदमी ही नहीं काबिल प्रशासक भी बनिये।
*आप माफ़ करने के अपने अधिकार का प्रयोग करने के समय यह भी सोचियेगा कि तमाम लोगों की भावनायें इस निर्णय से जुड़ी हैं। ज्ञानदत्त, श्रीश, अनुनाद आदि ब्लागरों ने इसका समर्थन किया है। बाकी जैसा आप समझें।
*अविनाश ने जीतेंन्द्र जुलाई में NDTV पर इंटरव्यू का जुगाड़ करने का वायदा किया है इसीलिये वह खुलकर मोहल्ले का विरोध नहीं करते।
* आप एक बार अमित के हाथ में नारद का संचालन दे दो फिर देखो कि कैसे वह ठिकाने लगाता है सबको।
*एक मौका दिया जा सकता है राहुल को।
*भाई साहब मेरी समझ में तो ब्लाग को बहाल करना कमजोरी है। बाकी आप बड़े हैं। जैसा ठीक समझें।
*आप अच्छे आदमी ही नहीं काबिल प्रशासक भी बनिये।
*आप माफ़ करने के अपने अधिकार का प्रयोग करने के समय यह भी सोचियेगा कि तमाम लोगों की भावनायें इस निर्णय से जुड़ी हैं। ज्ञानदत्त, श्रीश, अनुनाद आदि ब्लागरों ने इसका समर्थन किया है। बाकी जैसा आप समझें।
इसके अलावा भी तमाम प्रतिक्रियायें बमार्फ़त चैट और फोन मिलीं।
घटनाक्रम
राहुल के ब्लाग पर बैन उनकी एक पोस्ट पर संजय बेंगाणी के प्रति एक आपत्तिजनक टिप्पणी करने के कारण लगाया गया था। राहुल कुल मिलाकर तीन ब्लाग लिखते हैं। बाजार, बाजार पर अतिक्रमण और यू पी की पाती। बाजार पर अतिक्रमण को नारद से हटा दिया गया।
इस कार्रवाई के परिप्रेक्ष्य में पहले अभय तिवारीजी और फिर प्रियंकरजी ने पुनर्विचार करने की मार्मिक अपीलें कीं। लेकिन अभी तक प्रतिबंध हटाया नहीं गया है। इसे अन्य कुछ लोगों के अलावा प्रमोदसिंहजी और अभयतिवारीजी ने दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुये नारद से जुड़े लोगों का छोटापन बताया है।
हमारे भी लफड़े हुये थे कभी
जब मैंने ब्लाग लिखना शुरू किया था तब नारद नहीं था। अक्षरग्राम चौपाल की तरह प्रयोग होता था। लोग एक दूसरे के ब्लाग पर टिप्पणी करके अपनी उपस्थिति की सूचना देते थे। जिसको नये चिट्ठों की सूचना मिलती वह उसे चौपाल पर सूचित कर देता। देबाशीष के बनाये हिंदी के पहले एग्रेगेटर चिट्ठाविश्व पर पोस्टें कभी-कभी दो-तीन दिन बाद दिखतीं। तब तक हम सारी नयी पोस्ट पढ़ चुके होते। नये लेखक कई-कई दिनों तक नये हस्ताक्षर वाले नोटिस पर टंगे रहते। लगभग हर ब्लाग पर सभी चिट्ठों की सूची रहती। वहीं से दिन में दो-तीन बार देखकर हम पता करते रहते कि कोई नयी पोस्ट तो नहीं आयी!
हमने चार पांच पोस्ट ही लिखीं थी तब तक किसी पुराने ब्लागर की नजर हमारे ब्लाग पर नहीं पड़ी थी। हम कुलबुला रहे थे। काउंटर हमने लगा लिया था लेकिन उसको समझने की तमीज हमें सिर्फ़ इतनी थी कि हम यह पता कर लेते कि आज कुल जमा कितने लोगों ने मेरा ब्लाग देखा। एक दिन देबाशीष ने हमारा ब्लाग देखा और चौपाल पर उसकी सूचना दी। मैंने और इन्द्र अवस्थी ने एक साथ लिखना शुरू किया था। हमारी खिलंदड़ी भाषा पर टिपियाते हुये ने यूपी वाले ब्लाग का स्वागत किया और यह हिदायत भी दी कि हम जरा भाषा का ख्याल रखें।
हम जिस भाषा को अपनी ताकत समझते थे उसी को देबू ने ध्यान में रखने की हिदायत दी थी। हमें वह बहुत खला। हमने इन्द्र अवस्थी से पूछा- बताओ क्या किया जाये? मार दिया जाये या छोड़ दिया जाये? इन्द्र अवस्थी ने लौटती डाक से जवाब दिया – छोड़ा तो नहिये जायेगा। जवाब जरूर दिया जायेगा।
हम दोनों ने देबू की खिंचाई करते हुये पोस्टें लिखीं। कुछ समय तक हम सीना फुलाये घूमते रहे कि क्या मुंहतोड़ जवाब दिया है। हमारी स्थिति कुछ-कुछ वैसी ही थी जिस स्थिति से आजकल पंगेबाज अरुण गुजर रहे हैं। वे इधर-उधर गाना गाते फिरते हैं देखो जीतू की नाक में दम कर दिया। नारद के धुर्रे बिखेर दिये। आदि-इत्यादि। अब उनको यह भी समझना चाहिये कि जब वे चैट पर अपनी वीरता का गुणगान कर रहे होते हैं तो उसी समय वह गुणग्राहक अपने साथ में चैट करते किसी दूसरे साथी को उनके डायलाग दिखाता चलता है। ऐसा अक्सर होता है तमाम लोगों के साथ। इसलिये मेरा सुझाव है कि लोग जब आपस में बात करें तब यह समझकर करें कि वे यह बात सबको बता रहे हैं।
लेकिन हमारा गर्व ज्यादा देर तक कायम न रह सका। देबू ने तुरन्त अपने बड़प्पन का परिचय देते हुये टिप्पणी की-
भाई अनूप लगता है हदें मैं ही लाँघ गया। आपने ध्यान दिया हो तो मैंने वैधानिक चेतावनी दे ही दी थी कि शालीनता का मैंने “वैसे मैंने कोई ठेका नहीं ले रखा। मैं अपने शब्द वापस लेता हूँ। विश्वास करें कि मुखियाई की कोई जलतफ़हमी मैंने पाल नहीं रखी। जाल विचारों के स्वच्छंद विचरण का स्वतंत्र माध्यम है, ये किसी की बपौती वैसे भी नहीं हो सकती, मुझ नाचीज़ की क्या औकात़। राज्यों का उल्लेख स्वाभाविक जिञासावश हुआ, ये जानने की रुचि तो संभचतः किसी भी हिन्दी चिट्ठाकार को होगी कि ये माध्यम कहाँ जोर पकड़ रहा है। लिखते रहिए, आशा है यह हिन्दी ब्लॉगजगत को मजबूती प्रदान करेगा।
इस टिप्पणी से मुझे बहुत अफसोस हुआ। हमें शर्मिंदगी का अहसास हुआ कि एक शरीफ़ व्यक्ति पर हमने व्यंग्य बाण मारे। मैंने देबू को मेल लिखी। और हर तरह से प्रयास किया कि पोस्ट में मेरे व्यंग्य की कटुता कुछ कम सके। उन दिनों हम तकनीकी रूप से और भी बौड़म थे। हम काउंटर पर देखते कि हमारे ब्लाग पर अक्षरग्राम के द्वारा कोई दिन में कई बार आता है। हमें लगता है कि हो न हो इन लोगों ने हमारे ब्लाग पर जासूसी करने के लिये कोई तरकीब फिट कर रखी है।
आज जब हमारे तमाम साथी नारद पर तकनीकी गड़बड़ियों के कारण हुयी देरी आदि को अपने खिलाफ़ षडयन्त्र की साजिश देखते हैं ( आज सुबह देर से नींद खुली, तो राहुल का SMS था कि बजार पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। क्योंकि सुबह चार बजे पब्लिश की हुई सफाई चार घंटे बाद सुबह आठ बजे तक नारद पर फ्लैश नहीं हुई है।) तो अपना वह समय याद आता है।
बाद में देबू से संबंध कुछ ऐसे बने कि अब हम उनकी बात को, चाहे उससे सहमत हों या असहमत, मना करने की सोच भी नहीं पाते।
ये पुरानी बातें सिर्फ़ इसलिये बताने के लिये कि जब हम नया-नया लिखना शुरू करते हैं तब किन मन:स्थितियों से गुजरते हैं।
प्रतिरोधी स्वर- कुछ विचार
राहुल के ब्लाग पर जो पाबंदी लगी वह वस्तुत: ‘डिले एक्टिव डिवाइश’ की तरह रही। एक खास तरह के बमों में यह डिवाइश लगती है। इसके चलते बम कुछ देर में फटता है। जिससे कि बम फ़ेंकने वाला खुद सुरक्षित बच निकले। या जिसके ऊपर हमला हो वह गफ़लत में हो तब फ़टे।
राहुल ने जो पोस्टें अभी तक लिखीं उनमें से कुछ इस बात पर हीं थी कि ब्लाग लिखने से कुछ नहीं होता। आदि-इत्यादि। संजय बेंगाणी के खिलाफ़ भी उन्होंने लिखा तो उनको साम्प्रदायिक व्यक्ति मानते हुये लिखा जो असगर वजाहत साहब के लेखन को भड़काऊ बताता है और गुजरात का रहने वाला है।
इस प्रतिबन्ध के खिलाफ़ आवाज उठाते हुये अविनाश ने लिखा – राहुल ने जिस तरह की भाषा इस्तेमाल की है, उससे अधिक भाषाई बदतमीजियां तो संजय बेंगाणी और पंगेबाज और काकेश और हम कर चुके हैं। आगे उन्होंने लिखा- अपनी काबिलियत का इस्तेमाल राहुल की भाषा के अमर्यादित वाक्यों की व्याख्या करने में लगाते कि नारद की ये कार्रवाई क्यों उचित है- तो ज्यादा सही होता।
अविनाश के अनुरोध को मानते हुये नारद की कार्रवाई की पड़ताल करने का प्रयास करता हूं। वैसे अविनाश को यह बताने की जरूरत शायद नहीं है कि अगर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुयी तो इसके मायने यह नहीं होते कि हम आगे कोई कार्रवाई करने की अहर्ता खो बैठे।
जहां तक मुझे याद पड़ता है मोहल्ला ब्लाग के शुरू होने के पहले नारद पर जितने हिंदी ब्लाग थे उनमें छिट-पुट खींचतान के अलावा इतने तल्खी नहीं थी। मोहल्ले पर शुरुआत में कुछ बहुत अच्छे लेख पढ़ने को मिले। भाषा, प्रस्तुति और चयन को देखते हुये कुछ शानदार लेख दिखे। इसके बाद प्रमोदसिंहजी और रवीशकुमारजी और बाद में अभय तिवारीजी के ब्लाग जुड़े। इनको हम मीडिया से जुड़ा ब्लाग मानते रहे। सबको पत्रकार समझते रहे।
प्रमोदजी की भाषा पहले तो सर से ऊपर से गुजरती रही लेकिन हम आंख मिचमिचाकर बांचते रहे। रवीश कुमार बीस साल बाद वाले कई लेख तो हम ऐसे ही स्किप कर गये। लेकिन धीरे-धीरे उनके गद्य का लालित्य और सामर्थ्य पल्ले पड़ने लगा। अब उनका सारा लिखा फिर से पढ़ने के लिये ड्यू हो गया है। तब शायद कुछ और समझ आये। आज प्रमोद सिंह और ज्ञानदत्तजी के ब्लाग मेरे सबसे पसंदीदा ब्लागों में से हैं।
रवीश कुमार के सहज सरल गद्य के हम शुरू से ही फ़ैन हो गये थे। अभयजी के लेखन के हम जितने मुरीद रहे उससे कहीं ज्यादा उनकी सदभावना के कायल रहे।
अविनाश ज्यादातर खुद नहीं लिखते। वे दूसरों के लेख, पत्र, इंटरव्यू मोहल्ले में छापते रहे। आमतौर पर उनके परिचयात्मक वाक्य बहुत भड़काऊ रहते हैं। उनके बारे में ही लिखते हुये रमन कौल ने लिखा भी था शायद- आपके द्वारा प्रस्तुत लेख की भाषा उतनी भड़काऊ नहीं होती जितने भड़काऊ आपके परिचयात्मक लेख रहते हैं।
मोहल्ले पर भड़काऊ लेखों के कारण कई बार उनके ब्लाग को नारद पर प्रतिबंधित करने की बात भी हुयी। लेकिन नारद के ज्यादातर सदस्यों ने इसे उचित नहीं माना। इसके चलते हम लोगों से कुछ लोग खफ़ा भी रहे। अब भी हैं। अब हालत यह है कि कुछेक ब्लागरों के अलावा मोहल्ले पर ज्यादातर ब्लागर टिप्पणी करने से बचते हैं। काफ़ी लोग तो पढ़ते भी नहीं हैं।
यह मैं सच कह रहा हूं। अविनाश के प्रति किसी द्वेषवश या मोहल्ले को नीचा दिखाने के लिये सच में तोड़-मरोड़ नहीं कर रहा। हालांकि यह सच है कि अविनाश ने बहुत अच्छे-अच्छे लेख/इंटरव्यू हमें वहां पढ़वाये। लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि अविनाश की भाषा ने मोहल्ले को एक सनसनी फैलाने वाला ब्लाग भर बना के रख दिया।
आज गिरिराज जोशी की पोस्ट पर जिस अंदाज में अविनाश ने टिप्पणी युद्ध किया उसे देखकर ताज्जुब भी हुआ कि इन महाराज में इतना बचपना भी बाकी है।
कुछ दिन पहले मैंने कल के लिये पत्रिका में बाबा नागार्जुन पर केंद्रित एक अंक फिर से पढ़ा था। उसमें अविनाश का भी जिक्र था। अविनाश शायद उनको लेख पढ़कर सुनाते थे। बाबा नागार्जुन के बारे में बताते हुये किसी ने लिखा था कि बाबा अपने से धुर विरोधी मानसिकता वाले अखबार पांचजन्य को भी पढ़ा करते थे ताकि विरोधी विचारों के बारे में अंदाज मिलता रहे कि अगला सोच क्या रहा है।
आज हम ऐसी स्थिति में आ गये हैं कि ज्यादातर लोग आपस में एक दूसरे के खिलाफ़ ऐसे खड़े हैं कि जो मेल-मिलाप की बात करेगा -वह मारा जायेगा। इस शानदार उपलब्धि का बहुत कुछ श्रेय अविनाश को जाता है। यह मेरी समझ है। हालांकि अविनाश के बारे में अभयजी ने बताया है कि वे दिल के बहुत अच्छे हैं। मैं मानता हूं उनकी बात सही है लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि अविनाश के मोहल्ले पर छपे अपने लेखों की प्रस्तुति के चलते निरंतर कटुता का प्रसार करते रहे। संभव है यह अनजाने में होता रहा हो और ऐसी उनकी मंशा न रही हो। लेकिन ऐसा मैं और मेरे तमाम दोस्त मानते हैं।
नारद एक संकलक है
इसी संदर्भ में नारद की बात जरूरी है। नारद मात्र एक ब्लाग एग्रीगेटर है। नारद को लेकर तमाम बार तमाम लोगों ने जो मन में आया वह कहा। नारद तानाशाह है, नारद डरपोंक हैं, नारद के लोग एन.डी.टी.वी. के हाथों बिके हुये हैं, नारद मनमानी करता है, नारद में लोकतंत्र नहीं है, नारद की नीतियां पारदर्शी बनायी जायें, टीम बनाई जाये। गर्ज की जितने मुंह उससे दोगुनी ज्यादा बातें। इनमें से ज्यादातर बातें लोगों को तकनीकी जानकारी न होने के कारण हुयी। इससे अलग चूंकि जीतेंद्र समय-समय पर नारद की तरफ़ से बयान जारी करते रहे, नारद में समय-समय पर लोकलुभावन फ़ीचर भी डालते रहे इसलिये नारद से लगभग सभी ब्लागर्स का जुड़ा़व हो गया और नारद को हिंदी ब्लागिंग का पर्याय माना जाने लगा। नारद पर पंजीकरण मतलब ब्लागिंग की तीर्थयात्रा। इसके पीछे जीतेंन्द्र की अनथक मेहनत भी रही। नारद की सेवा में गड़बड़ी की खबर से ही उनकी सांसे सुनामी की तरह चलने लगतीं।
जबकि सच्चाई यह है हिंदी में ही दूसरा ब्लाग एग्रीगेटर हिंदी.काम भी मौजूद है। इसे उन्मुक्तजी ने (पता नहीं मुझे किसलिये) हिंदी का सबसे अच्छा एग्रीगेटर बताया है। चूंकि वह गुपचुप काम करता रहता है इसलिये उसके बारे में कभी चर्चा नहीं होती।
बहरहाल नारद जब सेवायें देता है। नये ब्लाग के बारे में बताता है तो उस पर निर्भरता भी है लोगों की। नारद अपनी तरफ़ से किसी के ब्लाग में कुछ नहीं जोड़ता-घटाता। सिवाय ब्लाग पोस्ट के सूची पट की तरह काम करने के इसकी और कोई भूमिका नहीं है। इस तथ्य से वाकिफ़-नावाकिफ़ लोगों ने नारद को सैकड़ों बार कोसा। उसे तानाशाह, मगरूर आदि न जाने क्या-क्या बताया। तमाम बार बहस होने के बावजूद नारद पर अभी तक कोई ब्लाग बैन नहीं हुआ था।
जो लोग भी इसे तानाशाह कहते हैं वे दोबारा सोचें कि अगर यह तानाशाह होता तो क्या अपनी खिलाफत के बावजूद उनके ब्लाग को अपने साथ जोड़े रखता। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ न ही इसका यह उद्देश्य है।
कल जब मैंने अभय तिवारी जी की पोस्ट पढ़ी, मैं बहुत बेचैन हुआ। इसलिये नहीं कि राहुल के साथ अन्याय हुआ है। बल्कि इसलिये कि अभयजी चाहते हैं यह सब तनाव की स्थिति खतम हो जाये । उनके अनुरोध ने में न कोई छल-कपट है न कोई बनावट। इसलिये मेरा मन किया कि मैं इस बारे में बात करके जैसा वे चाहते हैं वैसा करने की कोशिश करूं। मैंने जो कुछ हुआ था वह भी सच-सच लिख दिया।
रात को मैंने देखा अविनाश की पोस्ट थीआप तक हमारी आवाज पहुंच रही है शुक्लाजी! इसमें हमारे खिलाफ़ भले मानुस होने तक का आरोप लगा दिया गया।:)
सुखद सामूहिकता में अपने सहज विश्वास के चलते हमने राहुल का ब्लाग देखा। वहां बहुत शालीन भाषा में अपनी पहली पोस्ट की स्थितियों के बारे में लिखा था और खेद भी व्यक्त किया गया था। हमें लगा इस प्रकरण का पटाक्षेप हो जायेगा। लेकिन जब मैंने उनके दूसरे ब्लाग पर देखा तो उसी दिन की पोस्ट में प्रदीप सिंह के माध्यम से नारद कीतानाशाही आदि की बात करते हुये सभ्य भाषा में लानत मलानत की गयी थी।
इसके अलावा कई जगहों पर राहुल के उदारता का बखान करते हुये तुरंत उसका ब्लाग बहाल करने की बात कही गयी। राहुल एक अपने एक ब्लाग पर खेद प्रकट करते हैं। दूसरे पर नारद से जुड़े लोगों को गरियाते हैं। उसी दिन उसी समय।
यह गिरहबान पकड़कर माफ़ी मांगने का अन्दाज है।
न जाने कौन सलाहकार हैं जो नसीरुद्दीन जी को सलाह देते हैं कि नारद को चिट्ठी न भेजो। मोहल्ले में भेजो उसे अविनाश छापेंगे यह बताते हुये कि करवटें बदलते हुये बेचारे नसीरुद्दीन जी रात भर जागते रहे। पता नहीं चला कि वे उनको खुद चिट्ठी देने आये थे घर पर दरवाजे से नीचे सरकाकर कि मेल से भेजी।
बहरहाल नसीरुउद्दीनजी बता सकें कि नारद के किस सलाहकार ने उनको मेल भेजने से मना किया तो हम उनसे पूंछे।
बहरहाल नसीरुउद्दीनजी बता सकें कि नारद के किस सलाहकार ने उनको मेल भेजने से मना किया तो हम उनसे पूंछे।
प्रतिबंध बनाम आपातकाल बोले तो हीरे का चोर बनाम खीरे का चोर
इसके बाद कल रात लगभग एक बजे अफ़लातून जी मिले आनलाइन। मैंने उनको अपनी बात बताई। यह दुविधा भी कि भाई यह अच्छी बात नहीं लगती कि एक ब्लाग पर तो खेद व्यक्त करो दूसरे पर खुंदक। लेकिन लगभग एक घंटे की बातचीत के बावजूद हम अफ़लातून जी को यह समझा नहीं पाये कि हमारी चिंता क्या थी। शायद हमारी बात गलत रही हो या तर्क इतने लचर कि अफ़लातूनजी इससे अप्रभावित रहे।
लेकिन आज सबेरे जब मैंने अफ़लातूनजी की पोस्ट देखी तो उनके बचकानेपन पर बहुत तरस आया। मुझे सच में यह आशा नहीं थी कि अफ़लातूनजी ऐसी लड़कपने की हरकत करेंगे। हां अफ़लातूनजी, यह आपका लड़कपन है। मैं आपके इस अंदाज से बहुत हैरान और क्षुब्ध हूं। हमने आपसे बात की और अपनी परेशानी बतायी कि यह जटिल स्थिति है और आप लिखते हैं अकाल तख़्त को माफ़ी नामंजूर ?| अफ़लातूनजी,आपने सबसे तेज बनने चैनेल बनने के चक्कर में बेसिर-पैर की। स्वामीजी ने एक पोस्ट में लिखा था कि चीजें अपना उपयोग करवाती हैं। आपके दिमाग में भी एक सूचना फंसी थी कि २६ जून को आपातकाल लागू हुआ था। उसी सूचना की कुलबुलाहट ने आपसे लिखवाया
२६ जून की तारीख आ रही है जिस दिन १९७५ में सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित करने का दुर्भाग्यपूर्ण फैसला लिया गया था । उस दु:शासन पर्व के दिन लदे जब आजादी की कीमत पहचान कर जनता ने उस हुकूमत को पलट दिया। सभी नागरिक आजादीपसन्द चिट्ठाकार उस दिन अपनी निष्ठा और संकल्प को पुख्ता करें ।
इसके माध्यम से आपने बाजार पर अतिक्रमण पर लगे प्रतिबंध को आपातकाल के समतुल्य बताया। यह तुलना करने के पहले सोचते कि क्या सच में दोनों में कोई साम्य है? आपातकाल में जैसा आज राजीव टंडनजी ने फोन पर बताया-दैनिक जागरण के संपादक नरेन्द्र मोहनजी अपने संपादकीय में प्रश्नवाचक चिंन्ह लगाने मात्र के आरोप में जेल चले गये थे।
यहां तो आप और तमाम दूसरे साथी ठाठ से नारद को गरिया रहे हैं। तर्क तमाचों से थपड़िया रहे हैं। अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकारों का धांस के उपयोग कर रहे हैं। नारद से जुड़े लोगों को कौवे बता रहे हैं। ऐसी आजादी और कहां!
लेकिन अफ़लातूनजी आपकी यह उपमा बहुत लचर है। मुझे अफ़सोस है कि किशन पटनायक जैसे सुधी राजनैतिज्ञ के अनुयायी इतनी हड़बड़ी में आ गये कि हीरे के चोर और खीरे के चोर दोनों को एक बराबर खड़ा कर दिया।
यह बात आपको चुभेगी और मैं चाहता हूं चुभे क्योंकि मुझे आपके इस लड़कपन वाली हरकत ने सही में मुझे बहुत कष्ट पहुंचाया इसलिये आप नारद और हमारी भी प्रवृत्तियों में तानाशाही के और अंश बतायेंगे और अभिव्यक्ति का झंडा फ़हरायेंगे। उसके लिये कुछ मौजूं कवितायें आपको याद ही होंगी। कुछ और देखियेगा एक तो हम आपको बतायें ही देते हैं- कोशल टिक नहीं सकता/कोशल में विचारों की कमी है। और एक ठो वली असी भी कहिन हैं शेर- मुमकिन है मेरी आवाज दबा दी जाये लेकिन/मेरा लहजा कभी फरियाद नहीं हो सकता। और आप खुदै खोज लेंगे ऐसी आशा है।
प्रतिबंध तानाशाही है या लोकतांत्रिक
जहां तक नारद के तानाशाह और लोकतांत्रिक होने की बात है तो बाजार पर अतिक्रमण करने के मुद्दे पर कुल ४८ टिप्पणियां हुयीं। चालीस टिप्पणियों में इस प्रतिबंध का समर्थन किया है जबकि आठ लोगों टिप्पणियों में इसका प्रतिरोध है। इस हिसाब से ८०% से अधिक टिप्पणियां इस प्रतिबंध के पक्ष में हैं। इस लिहाज से तो यह माना जाना चाहिये कि इस निर्णय को लोगों की आमसहमति है।
वैसे तो देखा जाये कि जब इंटरनेट जैसे मुक्त माध्यम सें किसी ब्लाग को बैन करना अपना ही आधार सिकोड़ना है। इस बारे में बहुत पहले विनय नेलिखा भी था कि इस तरह के बैन से बैन करने वाले संगलक की ही उपयोगिता कम होगी। दूसरी तरफ़ प्रमोद सिंह जी ने भी कहा था- इस तरह के बैन किसी समस्या का इलाज नहीं है। आप एक को बैन करोगे वह दूसरे नाम से आ जायेगा।
समय के साथ जब एक दिन में हजार-दो हजार पोस्टें हिंदी लिखीं जायेंगी तब पता भी नहीं चलेगा कि पचास पोस्ट कब पहले पन्ने से पांचवें पन्ने में पहुंच गयीं। उस समय नारद अपने वर्तमान रूप में अप्रासंगिक हो जायेगा। तब शायद ब्लाग के संकलक श्रेणी के हिसाब से हों।
मैंने जब बाजार पर अतिक्रमण पर बैन की संस्तुति की थी तो यह अंदाजा था कि लोगों को इससे जो नाराजगी होगी वह संबंधित पोस्ट हटाते ही खतम हो जायेगी। इसके बाद ब्लाग बहाल हो जायेगा। यह अलग बात है कि राहुल के पिछले रिकार्ड को देख कर यही लगता था कि ज्यादा ब्लागिंग में उनकी रुचि नहीं है। मैंने इसी मंशा से लगभग हर जगह यह टिप्पणी भी की थी कि राहुल अपनी पोस्ट हटायें तब हम बात करते हैं। लेकिन जब राहुल ने पोस्ट हटायी और साथ में ही दूसरे ब्लाग पर नारद को कोसते हुये उसी दिन एक पोस्ट लिखी तो मुझे यह लगा कि ये मुंह बिराने की तरकीब है। इसके बाद अफ़लातून जी ने जब इस प्रतिबंध को आपातकाल सरीखा बताया और आगे कौवे उड़ाये तो और शाम तक बाकायदा टिप्पणी युद्ध/पोस्ट युद्ध शुरू हो गया तो मेरे करने के लिये कुछ नहीं बचा था।
अफसोस है/अनुरोध है
मैं भाई अभय तिवारी से अपना अफसोस प्रकट करता हूं कि उनको दिये वायदे पर मैं अमल करने का मन न बना सका।
इस बीच धुरविरोधी जी अपना ब्लाग लेखन बन्द करने की घोषणा की है। जो कि अत्यन्त दुखद है। आप सच में बतायें कि अशालीन भाषा वाले ब्लाग को प्रतिबंधित करने की बात क्या सच में इतनी गलत है कि आप अपना ब्लाग बंद कर दें? अभिव्यक्ति की आजादी की आपकी चिंता जायज है और मैं आपके इसके लिये सम्मान करता हूं कि अभी तक आपने जहां भी गलत होते देखा वहां आपत्ति दर्ज कराने का प्रयास किया। क्या यह बात सच में इतनी गलत की नारद ने कि आप विरोध में लिखना बंद कर दें? क्या इस तरह के ब्लाग को सदा को लिये नारद पर चलते रहने दिया जाये चाहे वे जो मन आये लिखते रहें? यहां तो संजय बेंगाणी थे जो कि संयोजक से नारद की इस टीम में हैं। कल को कोई सिरफ़िरा किसी महिला के लिये इसी तरह के और इससे भी अधिक आपत्तिजनक भाषा इस्तेमाल करते हुये लेख लिखता रहता है तो क्या अभिव्यक्ति की आजादी के नाम हम उससे केवल बकवास बंद करने की अपील और टिप्पणी करके विरोध करते रहेंगे?
आप से अनुरोध है धुरविरोधीजी कि आप अपने निर्णय पर फ़िर से विचार करें और अपना ब्लाग लेखन जारी रखें।
प्रतिबंध हमारे चुनाव की आजादी है
बाजार पर अतिक्रमण ब्लाग पर नारद द्वारा प्रतिबंध उसकी आजादी पर कुठाराघात नहीं है। यह हमारे अपने चुनाव की आजादी है। जब नारद से जुड़े अधिकांश लोग यह मानते हैं कि वह ब्लाग नारद पर न दिखे तो यह कदम तानाशाही कैसे हो गया अफलातूनजी आप बताओ। क्या आप यह कहना चाहते हैं कि बहुसंख्यक लोगों के विचार पर अमल गैरलोकतांत्रिक है? या यह कि इतने सारे लोगों में से किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मायने नहीं पता!
वैसे सच तो है कि नारद पर पंजीकरण ही अपने आप में अपनी आजादी का हरण है। इंटरनेट स्वयं में एक आजाद माध्यम है। आपके चाहने वाले आपको खोज ही लेंगे। अगर काबिलियत होगी तो आप मोस्ट फ़ेवरिट में रखे जायेंगे। जहां आपने कुछ शर्तों को मानने का वायदा किया वैसे ही आप उन शर्तों को मानने के लिये बाध्य हो गये। आपकी आजादी का उतना हिस्सा नारद के अधीन हो गया। इस लिहाज से तो अब बाजार पर अतिक्रमण आजाद हो गया। निर्द्वंद हो गया।
बात खत्म करने से पहले नारद ब्लाग पर प्रयोग की गयी भाषा के बारे में। वहां प्रयुक्त भाषा सीधी-साधी और अकड़वाली है। एक सेवा प्रदाता संकलक को जैसी भाषा प्रयोग करनी चाहिये वैसे प्रवक्ताऒं वाली भाषा नहीं है यह कि फांसी की सजा भी ‘प्लीज्ड टु….. हैंग टिल डेथ’ वाले अंदाज में दे सके। इससे जिन साथियों को कष्ट पहुंचा उनके प्रति मैं खेद प्रकट करता हूं।
वैसे भी हरेक का अपना-अपना कोर कम्पीटेंस अलग-अलग होता है। जो इतिहास में निष्णात होता है वह ऐसे ऐतिहासिक खंडहरों में घुमाता है कि आदमी का भूगोल गड़बड़ा जाये। तकनीक का जानकार ऐसी ऐसी तकनीकें झेलाता है कि पता नहीं कि हम आदमी हैं या कोई जुगाड़ी लिंक। कुछ लोग हर सही-गलत बात में बेशर्मी से खिलखिलाते रहते हैं। भावुकता प्रेमी साथी भावनाऒं के सागर में इतना डुबाते-उतराते हैं कि सुनने वाले के मन समंदर में सुनामी चलने लगे। इसी तरह तार्किक लोग आपके कंधे पर हाथ रखकर आपको बहस के मैदान में ले जाकर अपने तर्क तमाचों से मार-मार कर आपके गाल लाल कर देंगे।
तो जीतेंन्द्र का ‘कोर कम्पीटेंस’ प्रवक्ता गिरी नहीं रहा है। इसी लिये वे पक गये लेकिन झुक नहीं पाये। अजीब जड़ पेड़ हैं। इसके लिये एक बार फिर से खेद।
अब जब मैं जब यह पोस्ट करने जा रहा हूं तो इसे दुबारा भी पढ़ा। मैंने इसमें अविनाशजी और अफलातूनजी के बारे में कुछ अधिक ही लिखा है। अविनाश को शायद बुरा लगे लेकिन मैं यह बताना चाहता हूं कि उनके बारे में विचार मैंने जो विचार व्यक्त किये वे उनके लेखन को लेकर हैं। ये मेरे निजी विचार हैं और अब तक के उनके लेखन को देखते पढ़ते हुये बने हैं। उनके व्यक्तित्व के बारे में मैं अभयजी के विचार ,अविनाश उतने बुरे नहीं हैं/दिल के अच्छे हैं/भले हैं आदि को ही सही मान रहा हूं। कभी मुलाकात होने पर अपनी राय भी बनाऊंगा।
अफलातूनजी, मुझे पता है कि इतना कुछ लिखने के बावजूद नाराज नहीं होंगे क्योंकि मैंने जो यह लिखा वह उनकी इन दो पोस्टों से ही संबंधित है। वैसे वे अगर नाराज होना चाहें तो हो भी सकते हैं लेकिन वे खुद सोचें कि ऐसी लड़कपने वाली पोस्ट उन्होंने क्यों लिखी? क्या सच में नारद पर अश्लील भाषा के कारण एक ब्लाग पर लगा प्रतिबंध और आपातकाल बराबर की चीजें हैं।
राहुल के लिये अब चुनौती है कि वे लिखना जारी रखें। हम वायदा करते हैं कि उनकी जो पोस्ट पठनीय होगी हम उसके बारे में सबको बतायेंगे।
हमने अपने विचार रखे नारद द्वारा एक ब्लाग पर प्रतिबंध लगाने के बारे में। मेरा मानना है कि यह अप्रिय हुआ लेकिन गलत नहीं हुआ। हां प्रतिबंध लगाने के मामले में कुछ जल्दबाजी हुयी जिसे बचाया जा सकता था। इसे बहाल करने के बारे में हम पुनर्विचार करेंगे लेकिन फिलहाल अभी इस बारे में कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
बहुमत द्वारा समर्थित इस निर्णय के बावजूद यहीं पर धुरविरोधीजी की कही बात भी ध्यान आती है कि ये प्रतिबंध हमें अंधी गली में धकेल देंगे। अब आये दिन लोगों की शिकायतों का सिलसिला बढे़गा। हर एक की जांच करो। सरदर्द। इसमें कोई डिजिटाइजेशन और तुलनात्मक अध्ययन संभव नहीं है। अत: जो बात एक को खराब लगेगी वही दूसरे को सामान्य सी लगेगी। आने वाले दिनों में नारद की आफ़त बढ़ेगी।
प्रेमेंन्द्र और गिरिराज जोशी ने जिस अंदाज में इस ब्लाग पर प्रतिबंध की घटना को नारद के विजय उल्लास के रूप में प्रदर्शित किया है वह कहीं से उचित नहीं है। आप पत्रकारों को पूरी कौम को गरिया रहे हो। उनको तालीबान बता रहे हो। सबको निकालकर बाहर फ़ेंकने की बात कर रहे हो यह उचित नहीं है। जिस अंदाज में गिरिराज जोशी की पोस्ट पर टिप्पणी युद्ध हुआ वह बचकाना है। उसकी कोई सार्थकता नहीं सिवाय इसके कि उस पर एक पोस्ट पर अधिकतम टिप्पणियों का रिकार्ड बन गया। कूड़ा टिप्पणियों का।
प्रेमेंन्द्र और गिरिराज जोशी ने जिस अंदाज में इस ब्लाग पर प्रतिबंध की घटना को नारद के विजय उल्लास के रूप में प्रदर्शित किया है वह कहीं से उचित नहीं है। आप पत्रकारों को पूरी कौम को गरिया रहे हो। उनको तालीबान बता रहे हो। सबको निकालकर बाहर फ़ेंकने की बात कर रहे हो यह उचित नहीं है। जिस अंदाज में गिरिराज जोशी की पोस्ट पर टिप्पणी युद्ध हुआ वह बचकाना है। उसकी कोई सार्थकता नहीं सिवाय इसके कि उस पर एक पोस्ट पर अधिकतम टिप्पणियों का रिकार्ड बन गया। कूड़ा टिप्पणियों का।
आज सृजन शिल्पी का जन्मदिन है। उनको हमारी अनेकानेक मंगलकामनायें।
Posted in बस यूं ही | 21 Responses
ये सब सुनकर असली नारद जी को कितना कष्ट हुआ होगा, कहीं हृदयाघात से मर न जाएँ बेचारे!
मेरे अन्य संक्षिप्त विचार मै थोड़े समय में अपने पृष्ठ पर लिखता हूँ…
mudde par aapka paksh samajh aayaa .
मेरे विचार से बहुत से चिट्टाकार बन्धु फीड एग्रेगेटर की भूमिका नहीं समझ पाते हैं। नारद, या हिन्दी बलॉग डॉट कॉम या हिन्दी चिट्ठे एवं पाडकास्ट न किसी की स्वतंत्रता छीन सकते हैं न ही छीनते हैं। वे केवल आपको हटा सकते हैं। हटाने का अर्थ यह नहीं है कि उस चिट्ठे की स्वतंत्रता समाप्त हो गयी। वह चिट्टाकार लिखने के लिये स्वतंत्र है।
मेरा एक चिट्टा लेख है। जहां तक मैं समझता हूं यह किसी भी यह किसी भी फीड एग्रगेटर में नहीं आता, कम से कम नारद में नहीं। इसका यह अर्थ नहीं कि किसी ने मेरी स्वतंत्रता छीन ली है। इस पर लोग वीकिपीडिया या फिर सर्च करके और अब कुछ कैफे हिन्दी से आते हैं। इस की प्रत्येक चिट्ठी ११० बार से ज्यादा बार पढ़ी गयी है। मेरा उन्मुक्त चिट्ठा, इन तीनो फीड एग्रेगेटर पर आता है फिर भी इसकी प्रत्येक चिट्ठी ९० से कम बार पढ़ गयी है। यानि कि जो कहीं नहीं आता है उसकी चिट्ठियां ज्यादा बार पढ़ी गयी हैं और जो आता है वह कम बार पढ़ गयी।
यह तीनो व्यक्तिगत फीड एग्रेगेटर हैं इनके बनाने वालों के अपने सपने हैं वे उसे पूरा करने के लिये स्वतंत्र हैं यदि आप उनके सपनो में नहीं आते तो कोई जरूरी नहीं कि वे आपको अपने साथ रखें। यदि किसी को अपने सपने पूरे करने हैं तो उसे अपने बल बूते पर करना चाहिये न कि किसी फीड एग्रेगेटर के कन्धे पर। यदि आप अच्छा लिखेंगे तो कोई शक नहीं कि लोग आपके पास आयेंगे तब सारे फीड एग्रेगेटर आपको स्वयं रखने के लिये आगे आयेंगे। यदि आप कूड़ा लिखेंगे तो चाहे आप सारे फीड एग्रेगेटर पर आयें, आपको कोई नहीं पढ़ेगा।
असल में उन सब को इस सब की तकनीकी जानकारी भी दी जानी चाहिये कि किस प्रकार यह दूसरों की आजादी पर कुठाराघात नहीं नारद के चुनाव की आजादी है।
रवि जी ने तकनीकी पक्ष विस्तार से रखा है मगर वे लोग इतने आवेश में हैं कि इसे समझना ही नहीं चाहते।
दस दिन के लिये नारद को बंद कर दीजिये, सबको अहसास हो जायेगा कि आक्सीजन की नली हटने के बाद भी हम सांस ले पा रहे हैं। दुनिया वैसे ही चल रही है, आसमान नहीं गिरा। आपातकाल या मार्शल लॉ नहीं आया। हम आजाद हैं और चिट्ठे लिख सकते हैं।
बड़ा लेख लगा…
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..भगतसिंह के चौदह दस्तावेज