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दिल्ली ब्लागर मीट का आंखो देखा हाल
By फ़ुरसतिया on June 5, 2007
ये ‘फुरसतिया टाइम्स’ हमारे लिये बबाले जान हो गया।
कल रात सोते-सोते कई फोन घनघनाये। सबकी मांग थी कि दिल्ली में जो ब्लागर मिलन हुआ उसकी रिपोर्ट‘फ़ुरसतिया टाइम्स’ में छापी जाये।
हमने जम्हुआते हुये कहा, भाई अभी कल तो निकाला ‘फुरसतिया टाइम्स’ आज फिर से कहां से निकालें! अभी मूड भी नहीं। मौका भी नहीं है दस्तूर भी नहीं।
पब्लिक भड़क गयी। बोली- अपनी औकात में रहो। अखबार के पहले ही अंक में लिखा है- सर्वाधिकार पाठकाधीन। जब हम कह रहें तो लिखो। लिखो वर्ना तुमको हटाके किसी पंगेबाज संपादक को बैठा देंगे। तमाम दुमकटे लोग सम्पादकी करने को तैयार हैं।
हमने कहा- अरे भाई छापी तो है मैथिलीजी ने रिपोर्ट। उसके अलावा और क्या लिखें? उन्होंने बता तो दिया सब कुछ अब उसी को क्या दुहराना!
“अरे वो सब गुडी-गुडी रिपोर्ट है। हमें फ़ील गुड फ़ैक्टर नहीं चाहिये। हम सच जानना चाहते हैं। तुम लिखो वर्ना अपना हिसाब कर लो उधर जाकर। हम दूसरा आदमी रख लेंगे। तमाम फालतू लोग लगे हैं लाइन में।” पब्लिक गुस्से में थी।
नौकरी किसको नहीं प्यारी होती भाईजान! हमने अपने पत्रकार को कहा बेटा जरा दिल्ली में चिठेरे जमा हुये थे उनकी रिपोर्ट भेज दे। छापनी है। फोटो मत भेजना। वो मैथिलीजी के ब्लाग से ले लेंगे।
वो बोला -भैया पीछे की रिपोर्ट कैसे लायें। जो बीत गया उसका आखों देखा हाल कैसे बतायें?
“अरे बेटा इसीलिये कहता रहता हूं थोड़ा पढ़ा-लिखा कर। ये दिन भर फ़ुट्टफ़ैरी करते रहते हो। आइंस्टीन की जुगाड़ी लिंक देखो। अपनी स्पीड प्रकाश की गति से तेज कर लो। जैसे ही तुम्हारी स्पीड प्रकाश की गति से तेज हुयी वैसे ही तुम अतीत में पहुंच जाओगे। इधर तुमने लाइट को ओवर टेक किया उधर तुम दो दिन पीछे। टाप गियर में ले लो हो जायेगा। लेकिन ज्यादा तेज मत करना नहीं तो पता चला तुम बाबर के जमाने में पहुंच गये। या सलीम-अनारकली को देखने लगे।” हमने अपना सारा तकनीक ज्ञान उसको आनलाइन ट्रान्सफर कर दिया।
बहरहाल जो रिपोर्ट उसने भेजी वह यहां प्रस्तुत है। यह जनता जनार्दन की मांग पर लिखी गयी है। इसलिये इसका फ़ैसला जनता करेगी कि यह सच है कि झूठ!वैसे भी फ़ैशन के दौर में गारण्टी की अपेक्षा नहीं करनी चाहिये।
दिल्ली ब्लागर मीट का आंखों देखा हाल
दिल्ली ब्लागर्स मीट रविवार, ३ जून को हुई। मीटिंग स्थल के बारे में सबको पता था। समय भी सबको पता था इसलिये काफ़ी लोग पहुंच गये।
सबसे पहले पहुंचे पंगेबाज अरुण और मोहल्लेबाज अविनाश। होटल के बेयरे, जो कि ब्लाग पढ़ते रहते हैं, आशा कर थे कि ये अकेले में मिले हैं तो कुछ घमासान होगा। कुछ कयास लगा रहे थे कि इधर से पंगेबाज अपने दस सवाल निकाल कर अविनाश के सामने पटक देंगे कि इनके जवाब दो। उधर अविनाश अपने तमाम लिख्खाड़ दोस्तों को फोनिया के उनके जबाब बताने के लिये कहेंगे। इस बीच में पंगेबाज नारद की एडवाइजरी बोर्ड को सारे सवाल भेज देंगे। इसी तरह की तमाम मनोरम कल्पनाऒं में डूबे बैरे को झटका लगा जब उन्होंने देखा कि पंगेबाज और मोहल्लेबाज एकदूसरे को आपस में मुन्ना भाई की जादू की झप्पी देते हुये गाना गा रहे थे- हम बने तुम बने एक दूजे के लिये।
पंगेबाज अरुण ने मोहल्लेबाज अविनाश के हाथों में हाथ डाल के आवाज को थोड़ा गीला करते हुये कहा- सच में भाई अविनाश अगर तुम नहीं होते तो मैं भी नहीं होता। अगर मोहल्ला नहीं होता तो मैं पंगेबाज शुरू कैसे हो सकता था। तुम्हारे ही कारण मेरे ब्लाग का जन्म हुआ। तुम्हारे विवादस्पद लेख पढ़कर ही मुझमें पंगेबाजी शुरू करने की इच्छा हुयी। मैं इसके लिये सदैव तुम्हारा आभारी रहूंगा।
“लिखते रहना हमारा मिशन है। वह विवादास्पद हो जाये तो इसके लिये हम क्या करें। मैंने तो अपने कर्तव्य का पालन किया। इसके लिये इतना आभारी होने की क्या जरूरत मेरे भाई!”अविनाश ने अरुण की कटी दुम को सहलाते हुये कहा।
यह मित्रालाप आगे चलता लेकिन तमाम दूसरे ब्लागरों के आ जाने से दोनों छिटककर अलग हो गये।
अफलातून जी को छोड़कर सभी उपस्थित ब्लागर्स निश्चित समय पर पहुंच गये थे| श्री अफलातून जी इस बैठक के लिये अपनी परिषद की गुड़गांव में हो रही कार्यकारिणी की महत्वपूर्ण बैठक से उठकर आये, इस पर भी वे बैठक के थोड़ी देर बाद ही पहुंच गये|
कुछ जानकार लोगों का कहना है कि अफ़लातूनजी अपनी परिषद की मीटिंग एक दिन पहले ही निपटाकर मुंह अंधेरे से ही मीटिंगस्थल के बाहर नुक्क्ड़ पर एक पनवाड़ी की दुकान पर खड़े मीटिंग का रियाज कर रहे थे। वहीं खड़े-खड़े उन्होंने बगल के धोबी से अपने नये नीले कुर्ते में प्रेस करवाया। कुर्ते का रंग शायद उन्होंने उ.प्र. में नयी सरकार आने के बाद बदला था इसी वे कुरते समेत चमक रहे थे। गुड़गांव में उन्होंने प्रत्यक्षाजी से मिलने का प्रयास भी किया लेकिन पता/फोन नम्बर न होने के कारण मुलाकात संभव न हो सकी।
बैठक में यह चिन्ता जतायी गयी कि ब्लागर्स तो बढ़ रहे हैं पर ब्लागिंग के पाठक उस मात्रा में नहीं बढ़ पा रहे हैं।
इसके कारण की खोजबीन करने पर पता चला कि जो लिखना-शुरू करता है वह लिखता कम है लोगों को पढ़ाता ज्यादा है। पढ़ाने के साथ-साथ वह लोगों को टिप्पणी करने के लिये भी उकसाता है। कुछ लोग तो लोगों को सोते से उठाकर टिप्पणी करने का विनम्र अनुरोध करते हैं। अगर नींद में डूबा पाठक पढ़कर टिप्पणी करने की बात करता है तो लेखक कहते हैं- पढ़कर क्या करोगे? टिपिया दो। पढ़ने का मौका मिले या मिले कौन जानता है।
कुछ लोग तो नींद में डूबे पाठक की गफ़लत का फायदा उठाकर उसका पासवर्ड मांग लेते हैं और उसके नाम पर स्वयंसेवा करते रहते हैं। अक्सर इस पर झुंझला कर वही पाठक लेखक बन जाता है।
देवेंद्र वशिष्ठ ‘खबरी’ ने जब खबर दी कि कैसे वे ओरकुट के माध्यम से भी हिन्द युग्म में अधिकाधिक पाठक संख्यां में वृद्धि करते रहे हैं तो अफलातूनजी मुंह गोल करके सीटी बजाते हुये कहा- अब समझ में आया कि मुंबई में शिवसैनिक क्यों कैफ़े पर गुस्सा उतार रहे हैं। वे आरकुट के माध्यम से ब्लाग देखकर झल्लाये हुये हैं और मीडिया उसे शिवाजी महाराज से जोड़ रहा है। उन्हॊंने वहीं से शशि सिंह को यह खबर बताई कि पाडभारती के अगले अंक में इसका खुलासा करने का विचार हो तो वे अभी अपनी ‘पाडरिकार्डिंग’ भेंजे। पिछले प्रसारण में अफ़लातूनजी की टिप्पणियों से घबराये हुये शशि सिंह ने कहा देबू से पूछ कर बतायेंगे। शशिसिंह घर से बात कर रहे थे। फोन बन्द करते-करते अफलातूनजी ने साफ़ सुना- “ये क्या हो गया जी आपको! इतने दिन बाद मौका मिला है हम लोगों को साथ बैठने का। अच्छा खासा बात करते-करते और आप अचानक हाथ जोड़ रहे हैं।”
अफ़लातूनजी ने सर्च एन्जिन फ्रेन्डलीनेस एवं टेक्नोराती के उपयोग पर अपने अनुभव बताये। उन्होंने इस समय श्री अमित गुप्ता की तकनीकी सहायता एवं उनकी अनुपस्थिति को विशेष रूप से याद किया। होते-होते बात अमित गुप्ता और जगदीश भाटिया की अनुपस्थिति की भी हुयी कि वे लोग क्यों नहीं आये। इस पर किसी ने जानकारी दी कि वे लोग आजकल बाहर निकलने में डरते हैं कि कहीं कोई पार्टी उनको पकड़कर राष्ट्र्पति के चुनाव में न खड़ा कर दे।
“प्रसिद्धि की ये तो कीमत चुकानी ही पड़ती है इसीलिये हम गुमनाम रहना पसंद करते हैं इसी लिये हम खुलकर अपने बारे में नहीं बताते। गुमनाम लिखते हैं। “- बेयरे की ड्रेस में कोने में खड़े एक अनाम ब्लागर ने सांस भरते हुये कहा।
लोगों ने समझा शायद बेयरा पूछ रहा है -पेंमेंट कौन करेगा।
इस पर लगभग सभी ने कहा -भैया, हम ब्लागर जरूर हैं लेकिन इतने फटेहाल नहीं कि बिना पैसा दिये चले जायें। हमें बातचीत करने दो। हम भुगतान करके ही जायेंगे। चाहें चंदा करके दें। नहीं होगा तो नीरज दीवान को बुलायेंगे। महीना शुरू हुआ है। शादी हुयी नहीं है। बालक सादा जीवन उच्च विचार वाला है।प्रेमिका होगी तो वो भी सीधी-सादी होगी। तन्ख्वाह के पैसे बचे होंगे। काम बन जायेगा।
इतने में ब्लागिंग में वर्तमान दशा एवं कविता के प्रश्न के उत्तर में श्री राजीव रंजन प्रसाद जी ने निठारी कांड पर अपनी दिल में उतर जाने वाली कविता ओजस्वी स्वर में सुनाई। ओजस्वी कविता सुनते ही होटल के मैनेजर ने बलवे की आशंका देखते हुये थाने में फोन कर दिया- “साहब, कुछ लोग यहां जोर-शोर से निठारी के बारे में खुले आम बातें कर रहे हैं। दो महिलायें भी साथ में हैं। इनको जरूर निठारी कांड के बारे में अंदरूनी जानकारी है। आप जल्दी से आइये। ”
कुछ ही देर में एक सिपाही डंडा फटकारते हुये वहां नमूदार हुआ। मिलनस्थल देखते-देखते घटनास्थल में बदल गया। पूछताछ से घबरा कर किसी ने जीतेंन्द्र चौधरी को फोन कर दिया। सारा वाकया सुनकर जीतू घबरा गये। बोले दादा, ये कोई तकनीकी समस्या तो है नहीं जो इसमें नारद कुछ सहायता करे। यह तो सामाजिक समस्या है। आप खुद निपटो। निपट लेना तो निपटने की तरकीब भेज देना। हम उसे अपने ब्लाग में डाल देंगे तब आप कमेंट करना।
पुलिस वाले की पूछताछ से लोग घबराये हुये थे। कुछ लोग गूगल पर सर्च करके पुलिस वाले से निपटने के तरीक खोजने लगे। तब तक किसी ब्लागर ने ,
“ब्लागर होने के बावजूद भी लोग अकलमंद हो सकते हैं” कहावत का परिचय देते हुये बाड़मेर पुलिस की साइट दिखा दी। यह भी बताया कि हम इन साहब के नजदीकी दोस्त हैं। यह सुनकर पुलिस वाला वापस चला गया।
“ब्लागर होने के बावजूद भी लोग अकलमंद हो सकते हैं” कहावत का परिचय देते हुये बाड़मेर पुलिस की साइट दिखा दी। यह भी बताया कि हम इन साहब के नजदीकी दोस्त हैं। यह सुनकर पुलिस वाला वापस चला गया।
श्री अविनाश जी ने हिन्दी ब्लागिंग के भविष्य को रेखांकित करते हुये कहा कि ब्लागिंग के आने के बाद लेखन पर स्थापित लेखकों का का वर्चस्व टूटा है और ब्लागर्स की सृजनात्मकता स्वीकार होने लगी है। श्री अविनाश ने यह भी जोड़ा कि केवल सृजनात्मकता ही नहीं वरन कहा-सुनी और सनसनाते बयान देने में भी स्थापित लेखकों को हम लोग टक्कर देने लगे हैं।
मोहिन्दर ने बताया कि पहले पत्र पत्रिकायें जिन लेखकों की रचनायें अस्वीकृत कर देतीं थीं पर ब्लागिंग के बाद ब्लागर्स के लेखन की मांग होने लगी है। इसके बाद भी जो रचनायें स्वीकृत नहीं होतीं वे हम लोग ब्लाग में पोस्ट कर देते हैं। इस पर किसी ने मासूमियत से पूछा कि तो क्या इसका मतलब यह निकाला जाये कि फ़ुरसतिया, समीरलाल, प्रमोदसिंह, अविनाश आदि जो जल्दी-जल्दी अपने लेख पोस्ट करते हैं क्या उनके लेख कहीं छपने के लिये स्वीकृत नहीं होते। इस पर मोहिन्दर ने कहा- इस बारे में वे अभी कोई बयान जारी नहीं करेंगे। बाद में अपनी पोस्ट में अलग से लिखेंगे।
सुश्री सुनीता शानू एवं सुश्री रंजना भाटिया रंजु की उपस्थिति से मीटिंग का माहौल सुखद एवं सौंन्दर्यपूर्ण बना रहा। रंजना भाटिया ने ब्लागर एवं टिप्पणियो के महत्व को रेखांकित किया। इस विषय पर श्री समीर लाल जी के ब्लागर्स को प्रोत्साहन को विशेष रूप से रेखांकित किया गया। इस बारे में एक ब्लागर ने अपने अनुभव सुनाते हुये बताया कि समीरलाल जी उनकी हर पोस्ट पर टिप्पणी करते हैं। उन्होंने ही उनको टिप्पणियों का जवाब देने की आदत डाली। इससे टिप्पणियों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ पाठक को लगता है लेखक/कवि तहजीब वाला भी है।
दूसरे ब्लागर ने अपने संस्मरण सुनाते हुये बताया कि एक बार जब समीरलाल जब बाहर जा रहे थे तो अपना पासवर्ड दे गये थे जिससे मैं उनकी तरफ़ से अपने ब्लाग लेखन की तारीफ़ करके अपनी तरफ़ से उनको धन्यवाद दे दिया करता था। लेकिन इसमें एक बार उल्टा हो गया। गलती से कविता पोस्ट करने के बाद पहले समीरलालजी की तरफ़ से टिप्पणी और हौसला आफ़जाई के लिये शुक्रिया की टिप्पणी कर दी इसके बाद अपनी तरफ़ से,”बहुत अच्छी कविता है। बहुत अच्छी उपमायें हैं। बिम्ब योजना अद्भुत है। लिखना जारी रखें” पोस्ट कर दिया। पता नहीं कैसे मेरे देखने से पहले समीरलाल जी ने इसे देख लिया और नाराज होकर अपना पासवर्ड बदल लिया। अब मैं उनकी टिप्पणियों के लिये उनके मूड पर निर्भर हूं जबकि मेरे तमाम दोस्त अपनी पोस्ट के साथ ही समीरलाल जी की टिप्पणी पोस्ट कर रहे हैं। इतनी छोटी गलती के लिये इतनी बड़ी सजा भला जायज है।
श्री सुनील डोगरा जी ने नये एवं विशेष रूप से भावी हिन्दी ब्लागर्स के लिये एक बडी़ वर्कशाप का आयोजन का प्रस्ताव किया। लोगों ने सुझाव दिया कि मेले-ठेले, बीच बजरिया जहां जगह मिले लोगों को ब्लागिंग की जानकारी दी जाये। किसी ने प्रस्ताव लिया कि अगर ट्रेन लेट हो तो प्लेटफ़ार्म पर भी साथी यात्रियों को जानकारी देना शुरू कर दिया जाये।
कुंवारे ब्लागर/ब्लागराइन को सुझाव दिया गया कि वे अपने जीवन साथी में और तमाम गुणों के साथ-साथ यह भी देखें कि जीवन साथी को ब्लागिंग का प्रारंभिक
ज्ञान अवश्य हो। ‘आप मुझे अच्छे लगने लगे’ कहने के पहले साथी को आप बहुत अच्छा लिखतीं/लिखते हैंलिखकर टिप्पणी करना आना चाहिये।
ज्ञान अवश्य हो। ‘आप मुझे अच्छे लगने लगे’ कहने के पहले साथी को आप बहुत अच्छा लिखतीं/लिखते हैंलिखकर टिप्पणी करना आना चाहिये।
इस गोष्ठी में सबसे प्रमुख बात यह रही कि ब्लागिंग की में तीखी बहस चलते रहने एवं गोष्टी में सहमति एवं असहमति के स्वरों के बाबजूद माहौल शुरू से आखिर तक एकदम दोस्ताना रहा। शुरुआत में हालांकि अविनाश और अरुण में संभावित वार्तायुद्ध की आशंका को मद्देनजर रखते हुये अविनाश और अरुण के बीच में अफ़लातून सैंडविच की तरह बैठे थे। लेकिन मीटिंग समाप्त होते-होते दोनों ने अपने बीच की इस बाधा को किनारे कर दिया और एक बार फिर हाथ मिलाते हुये विदा हुये। लोगों की नजरों में वे पहली बार मिल रहे थे लेकिन उनको पता था उन्होंने कैसे शुरुआत की थी।
यह आंखों देखा हाल हमने अपने संवाददाता की रिपोर्ट के आधार पर बयान कर रहे किया। अगर किसी को इसमें कोई एतराज हो तो वो हमारे संवाददाता को पकड़े।
बताइये कैसा लगा आपको !
Posted in बस यूं ही | 25 Responses
बहुत हंसाये हो दादा।
आप हमें अपने संवाददाता का पता तो बताईये जरा!
मुन्ना भाई मीट्स हिंदी ब्लागर्स की दूसरी किश्त पढ़िये और मजा आएगा!
ये ब्लागर मीट का मीट-मसाला बना दिया आपने.. ऊपर कॉर्टून झकास है.. कह रिया है.. राम मिलाई जोड़ी.. एक ऐवें दूसरा वैवें.. (खुदई समझ लो.)
अब पता चला कि बजरंगी और लालरंगी एक दूसरे को ऑक्सीजन कैसे पहुंचाते हैं. हम खाली पीली पढ़ पढ़कर कार्बनडायाक्साइड पचाते हैं.
सीरियसली..अफ़लातून से नहीं मिल पाने का सख़्त अफ़सोस है.. क्या करता रविवार को मेरा अवकाश नहीं होता.
एक बात और लगता है नीरज भाई का भी कोई डुप्लीकेट बन गया है, इतनी गंभीर बातें करने वाले नीरज भाई की आज की टिप्प्णी ध्यान से देखिये, विश्वास नहीं होता कि यह नीरज भाई ने की होगी।
घुघूती बासूती
आने वाली ब्लागर मीट्स के भी आंखों देखे विवरण के लिये हमारा अनुरोध आरक्षित कर लीजिये :D।
अबे तुम्हरी पोस्ट मे जितेन्द्र चौधरी हर बार टपक पड़ता है, कौनो अनुबन्ध किए हो?
फुरसतिया जी, मैं सोच रहा हूँ कि ये वाला फार्मूला काँपीराइट करा लूँ, बडी आमद हो जायेगी।
वैसे आपने खुफिया कैमरा लगाया कहाँ था?