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मैं आगे भी पढ़ना चाहती हूं…
By फ़ुरसतिया on June 12, 2007
अगर इरादा पक्का है तो दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है। अगर आप अपने लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पित हैं तो शारीरिक अक्षमतायें कभी भी आपके रास्ते का रोड़ा नहीं बन सकतीं।
बनारस से ३२ किमी दूर दल्लीपुर गांव की बिटिया रानी वर्मा के बारे में ये बातें एकदम सच उतरती हैं। रानी वर्मा के दोनों हाथ नहीं हैं। नौ साल की उम्र में एक दुर्घटना में रानी के दोनों हाथ कट गये थे। इसके बावजूद उसने इस साल हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की।
शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिये परीक्षाओं में लिखने के लिये सहायता मिल सकती है। लेकिन रानी ने किसी की सहायता लेने की बजाय अपने पैरों से लिखने का हुनर सीखा। अपने खोये हुये हाथों की कमी अपने पैरों से पूरी की।
लोगों को आश्चर्य हो सकता है कि कटे हुये हाथों वाली ये लड़की अपने पैरों से लिखने के अलावा ड्राइंग भी बना लेती है। अपने बायें पैर से कागज या कापी को पकड़ कर अपने दायें पैर की दो उंगलियों में पेन या पेंसिल पकड़कर रानी आराम से लिख लेती है और फटाफट स्केच भी बना लेती है।
यही नहीं अपने पैरों की सहायता से वह घर के कुछ छोटे-मोटे काम भी कर लेती है।
रानी ने उत्तर प्रदेश की हाई स्कूल परीक्षा में ६१ प्रतिशत अंक प्राप्त किये।
रानी जब कक्षा पांच में पढ़ती थी तब एक पम्पिंग सेट में फंसकर उसके हाथ कट गये। वह कहती है- मैं आगे भी पढ़ना चाहती हूं और इंजीनियर बनना चाहती हूं।
जब उससे पूछा गया कि इंजीनियर ही क्यों और कोई पेशा क्यों नहीं तो उसका जवाब था-इंजीनियर इसलिये बनना चाहती हूं ताकि मैं ऐसी मशीने और औजार बना सकूं जो किसी को अपाहिज न बनायें।
छह बच्चों के बाप रानी के पिता रमेश चन्द्र वर्मा अपनी बेटी की इस उपलब्धि से खुश हैं। अपनी किस्मत खुद लिखने का प्रयास करने वाली बेटी के बारे में बात करते हुये वे कहते हैं-यह उसकी संकल्पशक्ति है जिसने उसको इतना मजबूत बनाया कि उसने हादसे/हकीकत का सामना किया और लिखने का हुनर विकसित किया।
रानी के पिता ने आगे बताया- हमें अखबारों से पता चला कि प्रधानमंत्री ने रानी को एक लाख रुपये देने की घोषणा की है। इससे उसके सपने पूरे होने में सहायता मिलेगी। लेकिन इस बारे में कोई लिखित सूचना नहीं मिली है।
जिला अधिकारी वीणा कुमारी मीणा ने जानकारी दी कि- स्थानीय प्रशासन को भी अभी तक इस तरह की कोई सूचना नहीं मिली है।
रानी हालांकि अपने नंबरों से संतुष्ट है लेकिन अगर परीक्षाऒं के दौरान उसकी मां का निधन न होता तो वह और अच्छे अंक ला सकती थी। रानी की मां का निधन परीक्षाऒं के दौरान ही २४ मार्च को हो गया था।
रानी अपनी सफलता का सारा श्रेय अपनी मां को देती है। उसने बताया कि- मेरी मां ने ही मुझे हाथ कट जाने पर पैरों से लिखने के लिये प्रोत्साहित किया।
इसके बाद उसने पैर से लिखने का अभ्यास शुरू किया और धीरे-धीरे पैर से लिखने में गति हासिल कर ली। जब कक्षा आठ में थी तब भी उसने परीक्षाऒं के लिये लिखने वाले का सहयोग नहीं लिया।
यहां तक कि उसके अध्यापक भी उसके इस निर्णय पर चकित हुये। बोर्ड परीक्षाऒं के दौरान उसके लिये लिखने वाले का इंतजाम किया गया था लेकिन उसने अपने आप ही लिखने का निर्णय लिया।
केवल घर परिवार और गांव वाले ही नहीं वरन अध्यापकों को भी रानी पर गर्व है।
श्री भागीरथी महाराज इंटर कालेज नयेपुर वर्जी ,जहां से रानी ने पढ़ाई की, के प्रधानाचार्य रामचरित प्रसाद ने उसकी सफ़लता पर सन्तोष जाहिर किया और राने के भविष्य के लिये शुभकामनायें दीं।
विनोद कुमार जो कि रानी को ट्यूशन पढ़ाते ने कहा- रानी के दृण निश्चय को देख कर मैं स्वयं अपने जीवन के लिये प्रेरणा प्राप्त हुयी।
मैं दुआ करता हूं कि ये बच्ची आगे भी पढ़ सके, आगे भी बढ़ सके।
मेरी कामना है रानी अपने जीवन में अपनी संकल्प शक्ति से अपनी प्रगति के रास्ते में आने वाली हर बाधा को पार करके तमाम लोगों के लिये प्रेरणा का स्रोत बने।
आभार:यह लेख पिछ्ले सप्ताह टाइम्स आफ़ इंडिया में अंग्रेजी में छपा था। इसके लेखक छपे श्री बिनय सिंह हैं। मैं उनके प्रति आभार व्यक्त करता हूं।
मेरी पसन्द
आज की मेरी पसन्द में इस बच्ची के लिये कुछ पंक्तियां जो मुझे रचनाजी ने मेरी भतीजी के विवाह के अवसर पर लिखकर भेजीं थी।
My beloved daughter, Oh! dear you!
May your wishes all come true!!
May you be free from all the fears!
May this world be all yours!!May you never be in the tears!
May you have all the cheers!!
May you win all the fight!
May you shine bright, bright and bright!!!!!
Posted in बस यूं ही | 20 Responses
जिनके दिल मे चाह होती है वो खुद रास्ता और दूसरो के लिये मंजिल बन जाते है
न तन से, न मन से.
दिया साधना का जलाते रहे हैं
उठा कर भुजा भाल पर ज़िन्दगी के
नया रोज टीका लगाते रहे हैं
कदम पर चढ़ें हैं सदा फूल उनके
पूज्य हैं मंदिरों से कहीं और ज्यादा
यही दीप हैं जो अंधेरे ह्रदय को
नई ज्योति से जगमगाते रहे हैं
धन्यवाद रानी और
अनूपदा ।
मंजिल उन्हे ही मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है
सिर्फ पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।
आलोक पुराणिक
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।
http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2007/06/070613_bhushan_marks.shtml